Monday, February 28, 2011

देशान्तर



नौजवान दोस्त रविप्रकाश की कविताओं का इन्तज़ार है. तब तक अपनी एक और ताज़ा कविता पेश कर रहा हूं --


जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी


जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ से बहुत कुछ ओझल है
ओझल है हत्यारों की माँद
ओझल हैं संसद के नीचे जमा होते
किसानों के ख़ून के तालाब
ओझल है देश के सबसे बड़े व्यापारी
की टकसाल
ओझल हैं ख़बरें और तस्वीरें और शब्द

जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ से ओझल हैं
सम्राट के आगे हाथ बाँधे खड़े फ़नकार
ओझल हैं उनके झुके हुए सिर,
सिले हुए होंट, मुँह पर ताले, दिमाग़ के जाले

जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ एक आदमी लटक रहा है
छत की धन्नी से बँधी रस्सी के फन्दे को गले में डाले
बिलख रहे हैं कुछ औरतें और बच्चे
भावहीन आँखों से ताक रहे हैं पड़ोसी
अब भी बाक़ी है
लेनदार बैंकों और सरकारी एजेन्सियों की धमकियों की धमक

जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ दूर से सुनायी रही हैं
हाँका लगाने वालों की आवाज़ें
धीरे-धीरे नज़दीक आती हुईं
पिट रही है डुगडुगी, भौंक रहे हैं कुत्ते,
भगदड़ मची हुई है आदिवासियों में,
कौंध रही हैं संगीनें वर्दियों में सजे हुए जल्लादों की
शिकार पर निकला है राजा चिदम्बरम
वेदान्त के रथ पर

जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
चारों तरफ़ फैली हुई है रात
ख़ौफ़ की तरह --
चीख़ते-चिंघाड़ते निशाचरी दानव हैं
शिकारी कुत्तों की गश्त है
बिच्छुओं का पहरा है
कोबरा ताक लगाये बैठे हैं

जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ
वहाँ एक सुगबुगाहट है
आग का राग गुनगुना रहा है कोई
बन्दूक को साफ़ करते हुए,
जूते के तस्मे कसते हुए,
पीठ पर बाँधने से पहले
पिट्ठू में चीज़ें हिफ़ाज़त से रखते हुए
लम्बे सफ़र पर जाने से पहले
उस सब को देखते हुए
जो नहीं रह जाने वाला है ज्यों-का-त्यों
उसके लौटने तक या न लौटने तक
इसी के लिए तो वह जा रहा है
अनिश्चित भविष्य को भरे अपनी मैगज़ीन में
पूरे निश्चय के साथ

जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
जल उठा है एक आदिवासी का अलाव
अँधेरे के ख़िलाफ़
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
ऐसी ही उम्मीदों पर टिका हुआ है जीवन

3 comments:

  1. Sir
    sach Shayad aadha nahin hota, kisi ke jaisa nahin hota, phir bhi aapne jo likha hai sach ka anubhav pradan karata hai.

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  2. सांस लेता यथार्थ बहुत चुभता है.....

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