Tuesday, April 21, 2015

जैज़ पर लम्बा आलेख


चट्टानी जीवन का संगीत 

सत्ताईसवीं और समापन कड़ी

31.
जैज़ के इस लम्बे सफ़र में हम उसके स्रोत से धीरे-धीरे निकलने वाली पतली-सी धार से ले कर उसके एक महानद बनने तक का विकास देख आये हैं. जैसा कि हमने कहा 1960 तक पहुंचते-पहुंचते जैज़ दुनिया के बेहतरीन संगीत की सफ़ में शामिल हो चुका था. उसका, कहा जाय, एक शास्त्र बन गया था, समीक्षा-प्रणाली निर्मित हो चुकी थी, उसे ले कर वाद-विवाद और बहसें होने लगी थीं. इसके बाद उसका विकास वैसे ही होना था जैसे एक छतनार पेड़ का होता है -- नयी-नयी डालियों और शाखाओं-प्रशाखाओं के साथ, जो अब तक जारी है.
1960 के बाद के कुछ दशकों के दौरान पुराने तपे हुए उस्तादों के साथ कुछ नये उस्ताद भी सामने आये, जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर जैज़ की परम्परा को निखारने की कोशिश की। पियानोवादक सेसिल टेलर, ब्रिटेन के ट्रॉम्बोन-वादक जार्ज चिज़म, फ्रान्सीसी जिप्सी गिटार-वादक जैंगो राइनहार्ट, बेस-वादक नील्स हैनिंग, आस्र्टीड पेडरसन, सैक्सोफ़ोन-वादक ऐल्बर्ट आइलर, आदि इन्हीं प्रतिभा-सम्पन्न जैज़ संगीतकारों में शामिल हैं, हालाँकि सूची इससे कहीं लम्बी हो सकती है।
इनमें भी जैंगो राइनहार्ट का नाम बिल्कुल अलग स्थान रखता है। 

https://youtu.be/wLjG8L4nnh4?list=PLMdpMzOy0l11KN-XHOckXjg5lb7OR9h3E ( जैंगो राइनहार्ट - औल औफ़ मी)

जैंगो राइनहार्ट को संगीत का शौक़ बचपन ही से था। जिप्सी होने के नाते संगीत उनके ख़ून में था, यह कहना शायद ग़लत न होगा। मगर इस शौक़ को एक नयी दिशा मिली युवावस्था में जब, उन्होंने लुई आर्मस्ट्रौंग और ड्यूक एलिंग्टन के रिकॉर्ड सुने और जैज़-संगीत की ओर आकर्षित हुए। जैंगो राइनहार्ट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने जैज़-संगीत में -- जो पिछले कई दशकों से पियानो, सैक्सोफ़ोन और ट्रम्पेट अथवा बैस जैसे वाद्यों के इर्द-गिर्द केन्द्रित रहा है -- एक बार फिर गिटार, यानी तार वाले वाद्य का समावेश किया है, जो बात कि इस शैली की जड़ों में रैगटाइम और बैंजो तथा गिटार की उपस्थिति से मेल खाती है। 

https://youtu.be/UoaJprTBYRc?list=PLMdpMzOy0l11KN-XHOckXjg5lb7OR9h3E (जैंगो राइनहार्ट - ब्लूज़ एन मिनियोर)

इस दौर में संगीत के वाद्यों के साथ-साथ सुनने के साधनों में जो तकनीकी विकास हुआ, उसने जैज़ संगीत को और भी ज़्यादा लोकप्रिय बनाने में मदद दी. मिसाल के लिए पुराने 78 आरपीएम के तवों से ले कर जिनमें अमूमन 3.5 मिनट की रिकौर्डिंग हो सकती थी, एक्स्टॆंडेड प्लेयिंग और लौंग प्लेयिंग रिकौर्डों तक और फिर कैसेट से ले कर सीडी और डीवीडी तक -- जिस तरह संगीत के प्रसार का विकास हुआ है, जैज़ का दायरा सिर्फ़ अफ़्रीकी-अमरीकी अश्वेत संगीतकारों तक सीमित न रह कर धीरे-धीरे दुनिया भर में फैलता चला गया है. इसके अलावा जैज़ के प्रसार का एक कारण यह भी है कि भले ही उसकी भौतिक जड़ें अफ़्रीकी-अमरीकी अश्वेत समुदाय में गहरे उतरी हुई हों, लेकिन इस संगीत के अन्दर सम्वेदना के जो पहलू हैं, वे इसे इस काबिल बनाते हैं कि दूसरे देशों के लोग भी इससे जुड़ सकें. आशु प्रेरणा का आधार भी इस संगीत को सहज ही अपना लिये जाने योग्य बनाता है. यही वजह है कि जैसे-जैसे 1960 के बाद जैज़ दूसरे देशों में फैला, वहां के संगीतकारों ने इसे अपना कर, अपनी-अपनी संगीत परम्पराओं से समृद्ध करके इसके नये-नये रूप विकसित किये हैं. लैटिन जैज़, ऐफ़्रो-क्यूबन जैज़, सोल जैज़, ब्रज़िलियन जैज़, जैज़ फ़्यूजन, पंक जैज़, साइकेडेलिक जैज़, जैज़ फ़ंक, रौक जैज़, स्मूद जैज़ -- फ़ेहरिस्त ख़ासी लम्बी है और बजाने की तकनीकें और नये वाद्यों का दख़ल भी उतना ही अलग है जितना बजाने वाले. लेकिन इस सारे विकास और विभिन्नता के बीच एक धारा लगातार इस बात की कोशिश करती रही है कि सारे विकास और प्रयोग के बावजूद, जैज़ को उसकी जड़ों से इतना दूर न जाने दिया जाये कि वह अपनी बुनियादी प्रतिज्ञाएं ही भूल जाये, जो उसे एक दलित उत्पीड़ित जाति के विरोध और अभिव्यक्ति का दस्तावेज़ बनाती हैं. यही कारण है कि इसी दौर में जब जैज़ हैरतंगेज़ रफ़्तार से फैल रहा था, संगीतकारों का एक समूह ऐसा भी था जो परम्परा को बरक़रार रखने की कोशिश कर रहा था. आर्ची शेप और सेसिल टेलर का नाम लिया ही जा चुका है, उनसे आगे बढ़ने पर हमें विंटन मार्सेलिस,  हर्बी हैनकौक, चिक कोरिया और पियानोवादिका मेरी लू विलियम्स जैसे संगीतकार मिलते हैं जिन्हों ने उस धारा को फिर से जीवित करने की कोशिश की थी जो लुई आर्मस्ट्रौंग और ड्यूक एलिंग्टन के समय में मौजूद थी. 

https://youtu.be/oP-vD4ScAGA?list=PL8eK2Ek-HETlLMD7SyDgce8miz74_gaCG (हर्बी हैनकौक - वौटरमेलन मैन)

https://youtu.be/z4THBVc47ug (मेरी लू विलियम्स - इट ऐन्ट नेसेसैरिली सो) 

     
हाल के वर्षों में जैज़ का दायरा कई देशों में फैल गया है। जैज़ में एक आश्चर्यजनक बहुलता देखी जाती है. हर देश के अपने-अपने जैज़-प्रेमी हैं, हालाँकि यह एक दिलचस्प तथ्य है कि आज जैज़ के ज़्यादातर रिकॉर्ड जर्मनी और जापान में बिकते हैं। कुछ जानकारों का ख़याल है कि कुछ देशों में जहाँ स्थानीय लोक-संगीत की परम्परा लुप्त हो गयी थी और जीवन्त लोक-संगीत मौजूद नहीं था, वहाँ जैज़ संगीत ने जड़ें जमा ली हैं क्योंकि यह एक ऐसा संगीत था, जिसके साथ लोगों को महज़ गीत गाने की ज़रूरत नहीं थी, बल्कि वे उसके साथ प्रयोग कर सकते थे। अपने किस्म का संगीत तैयार कर सकते थे। शायद यही वजह है कि आज जैज़ संगीतकार किसी भी देश में, किसी भी जाति में पैदा हो सकते हैं। मिसाल के तौर पर जापान की महिला पियानो-वादक तोशिको आकियोशी को ही लिया जा सकता है, जिन्होंने अनेक प्रयोग किये हैं और जिनका रिकॉर्ड ’प्रेम पत्र’ उनकी प्रतिभा का प्रमाण है।

https://youtu.be/5eTDfJTqoZ4 (तोशिको आकियोशी - प्रेम पत्र)


लेकिन इस सब के बावजूद यह सच है कि चाहे जितने देशों में जैज़ के फूल खिलें, जब तक उसमें अमरीकी नीग्रो संगीत के स्वर सुनायी देते रहेंगे, श्रम और पीड़ा और मानवीय उदासी और अन्याय के विरोध के साथ, आंखों के पानी और दिल की आग के साथ उसका रिश्ता बना रहेगा, तब तक उसका अनोखापन और उसकी एक अलग पहचान भी बरकरार रहेगी। क्योंकि जैज़-संगीत महज़ संगीत की शैली नहीं है, बल्कि उसमें एक पूरी-की-पूरी जाति के संघर्ष का इतिहास गुँथा हुआ है।

https://youtu.be/Alga6OjOQeY?list=PLaqZLT1Rv3-Jus64lBH7uLjvljbpIWeTO (तोशिको आकियोशी - मिंगस को विदाई)

(तमामशुद)


हर्फ़े-आख़िर

दोस्तो, 
जैज़ की यह मुख़्तसर-सी कहानी यहीं आ कर ख़त्म होती है. लेकिन जैसा कि हमारे प्रिय कवि मुक्तिबोध ने कहा था "नहीं होती, कहीं भी ख़त्म कविता नहीं होती, कि वह आवेग त्वरित काल-यात्री है," जैज़ की कहानी भी यहां एक पड़ाव तक पहुंची है, ख़त्म नहीं हुई. वह भी आवेग-त्वरित काल-यात्री है. मैंने भरसक कोशिश की है कि इस सैर-बीनी तस्वीर को आप के सामने पेश कर सकूं ताकि आप इस नायाब संगीत से परिचित हो सकें, यह जान सकें कि कैसे जान-लेवा श्रम और अमानवीय व्यथा के बीच से भी एक जाति अपने लिए जीने के आधार बनाती है और दूसरों को भी जीने की प्रेरणा देती है. ज़ाहिर है, जैज़ की समूची कहानी कहना एक आदमी के एक प्रयास के बस की बात नहीं. इस कहानी में कई पहलू छूट गये होंगे. उम्मीद है, यह आपको यह कमी पूरी करने के लिए भी प्रेरित करेगी. यही मेरे इस विनम्र प्रयास की सार्थकता होगी.

नीलाभ  




Monday, April 20, 2015

जैज़ पर लम्बा आलेख


चट्टानी जीवन का संगीत 

छब्बीसवीं कड़ी

30.


1958 में जैज़ संगीत का एक ऐल्बम आया जिसमें सिर्फ़ सैक्सोफ़ोन, बेस और ड्रम -- तीन वाद्य इस्तेमाल किये गये थे. न पियानो था, न ट्रम्पेट और न और कोई वाद्य. ऐल्बम के आवरण पर लिखा था -- "कैसी विडम्बना है कि नीग्रो के साथ, जो और किसी भी समुदाय से ज़्यादा अमरीकी संस्कृति को अपना कह सकता है, इतना बुरा सलूक हो रहा है; उसे दबाया और कुचला जा रहा है; कि नीग्रो, जिसने अपने अस्तित्व में ही मनुष्यता का सबूत दिया है, ऐसी अमानवीयता का शिकार बनाया जा रहा है." इस ऐल्बम की शीर्षक धुन लगभग बीस मिनट लम्बा और तात्कालिक प्रेरणा से रचा गया एक टुकड़ा था जो सुनने वाले को काल और युगों के फ़ासले लंघा कर उस मन:स्थिति में ले जाता था जो जैज़ संगीत के शुरुआती दौर की ख़ासियत थी -- एक नाराज़, उदासी-भरी कैफ़ियत. रिकौर्ड के कुछ हिस्से बेहद तनाव से रचे-बसे थे और आने वाले दिनों में उभरने वाले अफ़्रीकी-अमरीकी अश्वेत समुदाय के आक्रोश की पूर्व-सूचना देते थे. ऐल्बम का नाम था ’फ़्रीडम सुइट"  और इसके रचयिता थे सनी रौलिन्स जिन्होंने इसमें सैक्सोफ़ोन बजाया था. 

https://youtu.be/CERGVEqPoT0 (सनी रौलिन्स - फ़्रीडम सुइट)

रौलिन्स जैज़ संगीतकारों के उस समूह के एक्ज प्रमुख सदस्य थे जिसने 1960 के दशक में जैज़ को कोरे पेशेवराना संगीत और मनोरंजन के दायरों से बाहर निकालने में एक बड़ी भूमिका अदा की।
वैसे तो सनी रॉलिन्स ने काफ़ी पहले ही सैक्सोफ़ोन बजाना शुरू कर दिया था और एकल वादन के अलावा वे नाइट-क्लबों, संगीत-सभाओं और रिकॉर्ड कम्पनियों के लिए भी सैक्सोफ़ोन बजाया करते थे, मगर पचास के दशक के मध्य तक पहुँचते-पहुँचते सुनने वालों को ऐसा महसूस होने लगा था कि वे ख़ुद को दोहरा रहे हैं। एक समीक्षक ने तो यहाँ तक कह दिया था कि सनी रॉलिन्स को उन संगीतकारों में शुमार किया जा सकता है, जो अपनी निजी प्रतिभा के बल पर जैज़ की प्रथम श्रेणी के कलाकार रहते हैं, लेकिन जैज़ संगीत में सीधे कोई योगदान करने के योग्य नहीं जान पड़ते। इसी बीच तरह-तरह की अफ़वाहें भी उड़ती रहीं-कि सनी रॉलिन्स ने सैक्सोफ़ोन छोड़ कर बाँसुरी जैसा वाद्य -- ओबो -- सीखना शुरू कर दिया है; कि दोहराव से बचने के लिए उन्होंने संगीत-सभाओं में शिरकत करना बन्द कर दिया है; कि वे नयी धुनों पर काम कर रहे हैं; कि शुरू की प्रशंसा को वे सहेज नहीं पाये; कि अब वे बिना संगत के सफल सैक्सोफ़ोन-वादन करेंगे। इस आख़िरी अफ़वाह के पीछे चोट करने की एक छिपी हुई प्रवृत्ति भी थी, जैसा कि कला के क्षेत्र में अक्सर होता है, क्योंकि कुछ समय पहले ही सनी रॉलिन्स ने संगीत के कार्यक्रमों में अक्सर पियानोवादक के बिना ही सैक्सोफ़ोन बजाना शुरू कर दिया था और कई बार धुन की रचना तथा ऑकेस्ट्रा का निर्देशन भी ख़ुद ही सँभाल लिया था।
इसके पीछे एक कारण तो संगीतकार का अपना व्यक्तित्व हो सकता है। मगर व्यापक रूप से पचास के दशक के मध्य में जैज़-संगीत फिर एक नयी दिशा ले रहा था। इस दौर में कलाकारों के सामने जैज़ की बुनियादी ’भाषा’ या ’रंग’ को पहचानने या परखने की समस्या नहीं थी, बल्कि समस्या यह थी कि जैज़-संगीत के प्रचलित मुहावरे के भीतर कुछ ऐसा ताल-मेल बैठाया जाय, लय-ताल-सुर और धुन को ऐसा व्यवस्थित रूप दिया जाय, जो पहले की शैलियों के सन्दर्भ में बीस के दशक में जेली रोल मॉर्टन ने, तीस के दशक में ड्यूक एलिंग्टन ने और चालीस के दशक में चार्ली पार्कर ने दिया था। पचास के दशक में इस समस्या को कई लोग सुलझाने की कोशिश कर रहे थे। एक ओर पियानोवादक तथा कम्पोज़र थियोलोनियस मंक और उनकी मण्डली थी तो दूसरी ओर बेस वादक चार्ल्स मिंगस, सैक्सोफ़ोन वादक माइल्स डेविस और उनकी ’माइल्स डेविस सेक्स्टेट’ नामक मण्डली, और्नेट कोलमैन और उनका दल और तीसरी ओर आर्ची शेप और सनी रॉलिन्स जैसे संगीतकार, जो अकेले ही इस काम में जुटे हुए थे।
एक अर्थ में जैज़ संगीतकार अब भी उसी मूल समस्या से जूझ रहे थे, जो लुई आर्मस्ट्रौंग के ज़माने से चली आ रही थी -- संगीत को दोहराव की एकरसता से बचाते हुए किस प्रकार धुन और एकल वादन की लम्बाई को बढ़ाया जाय। भारतीय संगीत में भी किसी-न-किसी समय यह समस्या ज़रूर पैदा हुई होगी कि राग को लम्बे समय तक कैसे पेश किया जाय। ज़ाहिर है इस तरह की समस्या में वादकों के रचनात्मक कौशल का बहुत बड़ा हाथ होता है और जब मौलिक प्रतिभा के बल पर कल्पनाशील के साथ धुन पेश की जाती है तो उसका महत्व निश्चय ही बढ़ जाता है। बहुत अच्छे वादक तो निश्चय ही इससे भी आगे बढ़ कर एक तरह से नया संगीत ही रचने की कोशिश करते हैं। जैज़-संगीत में इसकी मिसाल के तौर पर चार्ली पार्कर तो पहले से ही मौजूद थे। लेकिन पार्कर के एकल वादन की विशेषता थी -- उसका सीधी रेखा में विस्तार। जैसे किसी माला में कडि़याँ जुड़ती चली जायें। सनी रॉलिन्स ने जब लम्बे-लम्बे एकल वादन किये तो उन्होंने कुछ ऐसी पद्धति अपनायी, जैसी एक वास्तु-शिल्पी भवन का नक्शा तैयार करते समय अपनाता है। संगीत की अमूर्तता को ध्वनि-बिम्बों के सहारे उन्होंने मूर्त-और वह भी कई दिशाओं में मूर्त करने की कोशिश की। शायद इसी लचीलेपन की सहायता से वे माइल्स डेविस, जॉनी कोल्ट्रेन, थियोलोनियस मंक, मैक्स रोच और जॉन ल्यूइस जैसे विविध प्रकार के उस्तादों का साथ निभा सके।
जैज़ संगीत में अक्सर गायकों और वादकों ने पहले के रचनाकारों के गाये या बजाये संगीत को दोबारा अपने ढंग से पेश करके अपनी निजी शैली साबित की है. सनी रौलिन्स इसके अपवाद नहीं हैं. उन्होंने मशहूर गायिका बिली हौलिडे के गाये गीत "गौड ब्लेस द चाइल्ड हू’ज़ गौट हिज़ ओन" कुछ इस तरह पेश किया :

https://youtu.be/_O-wMuGt63c?list=PLZS7EwPLsVu0RMpG0Xu8yAGydiWz3lXm- (सनी रौलिन्स - गौड ब्लेस द चाइल्ड हू’ज़ गौट हिज़ ओन)

1949 में अपनी पहली रिकौर्डिंग में हिस्सा लेने के बाद सनी रौलिंस ने तरह-तरह के प्रयोग किये और हर तरह के वादकों और मण्डलियों के साथ संगत की. संगत करते समय उन्होंने बड़े और छोटे बैण्डों और संगीत की बड़ी सभाओं में कोई फ़र्क नहीं किया, जिससे सैक्सोफ़ोन पर उनकी महारत का बख़ूबी अन्दाज़ा होता है. उनके प्रयोगों का मामला सिर्फ़ पियानो को इस्तेमाल करने या न करने से ही ताल्लुक़ नहीं रखता, बल्कि उनमें यह ख़ूबी भी है कि वे बेहद मामूली धुनों और गीतों को ले कर उन्हें नया बना कर पेश कर दें. यह भी सनी रौलिन्स की ख़ूबी ही कही जायेगी कि उन्होंने जब-जब पाया कि उनका संगीत ठहराव का शिकार हो रहा है तो उन्होंने अपनी मर्ज़ी से कुछ समय तक जैज़ संगीत की दुनिया से छुट्टी भी ले ली. पहला मौका १९६० के दशक में आया जब समीक्षकों ने उनके संगीत में दोहराव की शिकायत की और ख़ुद सनी रौलिन्स को भी लगा कि वे एक मुक़ाम तक पहुंच कर ठहर-से गये थे. इस दौर का एक मज़ेदार क़िस्सा यह है कि अपने पड़ोस के घर में रहने वाली औरत के आराम और सुकून के खयाल से, जो बच्चे से थी, सनी रौलिन्स विलियम्सबर्ग सेतु पर जा कर अभ्यास करते. तीन साल के अवकाश के बाद जब उनकी "वापसी" हुई तो उन्होंने अपने नये ऐल्बम का नाम रखा "द ब्रिज" -- "सेतु". यही वह पुल था जिसने सनी रौलिन्स के पहले के दौर को नये दौर से जोड़ने का काम किया. 
अवकाश का दूसरा मौक़ा १९७० के दशक के आरम्भ में आया जब रौलिन्स ने योग, ध्यान और पूर्वी दर्शन के अध्ययन के लिए सैक्सोफ़ोन बजाने और मण्डलियों में संगत करने से छुट्टी ली. जब वे 1972 में दोबारा जैज़ संगीत की दुनिया में लौटे तो एक नये अवतार में. उन्होंने वाद्यों और वादन की पुरानी शैली से अलग हटते हुए इलेक्ट्रिक गिटार, इलेक्ट्रिक बेस और आम तौर पर पौप या फ़ंक की तर्ज़ पर ड्रम बजाने वालों की संगत करनी शुरू की. बस पुराना अगर कुछ था तो वह था उनका अपना सैक्सोफ़ोन. लेकिन सारे रिकौर्ड डिस्को क़िस्म के नहीं थे. इसी दौर में एकल वादन की इच्छा उनके अन्दर बढ़ती चली गयी और 1985 में उन्होंने "द सोलो ऐल्बम" के नाम से अपने एकल वादन का ऐल्बम रिकौर्ड कराया. 

https://youtu.be/s6bgbaVpukE (सनी रौलिन्स - एकल वादन)

रौलिन्स को 2001 में उनके रिकौर्ड "दिस इज़ वौट आई डू" के लिए ग्रैमी पुरस्कार मिला और जैज़ संगीत में उनके योगदान के लिए 2004 में उन्हें ग्रैमी लाइफ़ टाइम अवौर्ड से सम्मानित किया गया. 

https://youtu.be/xb85Y2TZTp0 (सनी रौलिन्स - दिस इज़ वौट आई डू)


मगर रौलिन्स का असली पुरस्कार सुनने वालों और समीक्षकों की तरफ़ से आया है. और इस तरह सनी रौलिन्स लगातार किसी-न-किसी शहर में दोपहर के वक्त या रात के आठ बजे की सभा में अपने सैक्सोफ़ोन के साथ सुनने वालों को मोहित करते रहते हैं मानो यह भी एक रोज़मर्रा का काम हो, जैसा कि वह लगभग डेढ़ सौ साल पहले  उन्नीसवीं सदी के अन्त में हुआ करता था.
(जारी) 



जैज़ पर लम्बा आलेख



चट्टानी जीवन का संगीत 
पच्चीसवीं कड़ी


29.

जौन कोल्ट्रेन के अनुयायियों में से आर्ची शेप्प पहले सेक्सोफ़ोन वादक हैं, जिन्हें भरपूर सराहना मिली। आर्ची शेप में और्नेट कोल्ट्रेन की तरह रूढ़ियों को तोड़ने का जज़्बा एक कदम और आगे तक गया. उन्होंने अफ़्रीकी मूल के संगीत को फिर से जैज़ की मुख्यधारा में लाने की कोशिशें तो कीं ही,  अफ़्रीकी अमरीकी अश्वेतों के साथ किये जा रहे अन्याय  को भी सामने ला कर उसका विरोध करने की प्रेरणा दी. आर्ची शेप का जन्म अमरीका के पूर्वी किनारे पर फ़्लौरिडा में हुआ लेकिन वे पले-बढ़े पेन्सिल्वेनिया के फ़िलाडेल्फ़िया शहर में. शुरू-शुरू में पियानो, क्लैरिनेट और सैक्सोफ़ोन सीखने के बाद उन्होंने सैक्सोफ़ोन बजाना जारी रखा और बीच में चार साल एक नाट्य संस्थान में नाटक और रंगमंच का प्रशिक्षण भी लिया जो किसी व्यवसायिक जैज़ संगीतकार के लिए एक अनोखा फ़ैसला था. नाट्य प्रशिक्षण के बाद आर्ची शेप फिर से पेशेवर वादकों में शामिल हो गये और उन्होंने अपने स्वभाव के मुताबिक प्रयोगशील पियानो-वादक सेसिल टेलर की संगत शुरू की. इसके साथ साथ वे जौन कोल्ट्रेन के साथ भी जुड़े और 1965 में जब उन्होंने कोल्ट्रेन के साथ मिल कर "न्यू थिंग्ज़" नाम से एक रिकौर्ड तैयार किया जिसकी एक तरफ़ उन्का एकल वादन था और दूसरी तरफ़ जौन कोल्ट्रेन का तो उनका नाम जैज़ संगीत की "नयी लहर" के वादकों की अगली पंक्ति में गिना जाने लगा. 

https://youtu.be/cGE-9GliyCw (आर्ची शेप - न्यू थिंग्ज़)

  
1965 में ही शेप ने "फ़ायर म्यूज़िक" नाम का एक ऐल्बम तैयार किया जिससे उनके अन्दर अर्से से पनप रही राजनैतिक चेतना के साफ़-साफ़ संकेत मिले. ऐल्बम का नाम उन्होंने अफ़्रीकी कर्मकाण्ड की एक पुरानी परम्परा के नाम पर रखा था और इसमें अफ़्रीकी अधिकारों के लिए लड़ने वाले सुप्रसिद्ध नेता मैल्कम एक्स की हत्या पर एक शोक गीत भी शामिल था. 

https://youtu.be/cVPoMrs3QZA (आर्ची शेप - फ़ायर म्यूज़िक)

अफ़्रीकी परम्परा के साथ शेप का जुड़ाव बढ़ता चला गया. यह दौर भी ऐसा था जब सामाजिक और राजनैतिक मोर्चों पर वे सभी लोग अपनी आवाज़ें बुलन्द करने लगे थे, जो अब तक गोरों के अन्याय और गोरे साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का शिकार थे. जैज़ पर भी इसका असर पड़ रहा था और एक तरफ़ तो जैज़ संगीतकार अफ़्रीका और एशिया और लातीनी अमरीका में अपनी जड़ें तलाश रहे थे, दूसरी तरफ़ नये-नये प्रयोगों में खुल कर हिस्सा ले रहे थे, भले ही व्यावसायिकता का कितना भी दबाव क्यों न रहा हो. आर्ची शेप ने भी नयी-नयी हिकमतें आज़माना जारी रखा और अपनी रचनाओं में कुछ अफ़्रीकी वाद्यों के साथ माउथ और्गन जैसे पुराने मगर त्याग दिये गये वाद्य को भी जगह दी. इसके अलावा उन्होंने कवियों की हिस्सेदारी का भी स्वागत किया. 1972 में वे "ऐटिका ब्लूज़" और "क्राई औफ़ माई पीपल" जैसे ऐल्बमों से खुले तौर पर नागरिक अधिकार आन्दोलन करने वालों के साथ जा खड़े हुए.

https://youtu.be/ZVyy8bvv3dg (आर्ची शेप - ऐटिका ब्लूज़)


1971 में शेप ने प्रतिष्ठित मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय में संगीत के प्रोफ़ेसर का पद संभाला और अगले तीस साल वे वहीं रह कर अफ़्रीकी-अमरीकी संगीत की क्रान्तिकारी परम्परा और रंगमंच में अश्वेत संगीतकारों के योगदान के पाठ्यक्रम संचालित करते रहे. इस बीच अफ़्रीकी संगीत के विभिन्न तत्वों की खोज-बीन के साथ वे रंगमंच और फ़िल्म में भी संगीतकार की हैसियत से जुड़े रहे हैं और कविता और संगीत के रिश्ते को उजागर करते रहे हैं. इसी वजह से समीक्षकों ने उन्हें ’जैज़ के आनन्द का बहुप्रतीक्षित पुररुद्धार’ कहा है। लेकिन शेप्प संगीत के बारे में एक ज़्यादा जटिल और भिन्न नज़रिया रखते हैं -- ’संगीत को कभी-कभी आतंकित भी करना चाहिए, लोगों को गर्दन से पकड़ कर झकझोरना चाहिए। संगीत को चाहिए कि वे भरे हुए पेटों और गदबदे हँसते हुए भिक्षुओं की अनिवार्य विजय का गुणगान करे। हमारे जीवन में सामाजिक ही नहीं कलात्मक व्यवस्था भी लाये।’ आर्ची शेप्प की यह मान्यता दरअसल जैज़ संगीत की बुनियादी मान्यता है -- सुखी जीवन की अनिवार्य विजय का गुणगान, जिसमें भूख और दुख से छुटकारा हो और ज़िन्दगी में सामाजिक व्यवस्था के साथ कलात्मक व्यवस्था भी कायम हो।

https://youtu.be/sU_PTQFJA8s (क्राई औफ़ माई पीपल)

(जारी)

Saturday, April 18, 2015

जैज़ पर लम्बा आलेख



चट्टानी जीवन का संगीत 
चौबीसवीं कड़ी


28.

और्नेट कोलमैन के ही एक अत्यन्त सावधान और हमदर्द श्रोता थे जॉन कोल्ट्रेन (1926 – 1967), जिन्होंने जैज़ के क्षेत्र में अगली कड़ी जोड़ी।
कोल्ट्रेन की कहानी एक ऐसे आदमी की कहानी है, जिसने बिल्कुल नीचे से शुरू किया। 
जॉन कोल्ट्रेन   ने अपनी छोटी-सी ज़िन्दगी में जैज़ के कई रंग देखे और कुछ ऐसे लोगों के साथ संगत की जो काफ़ी टेढ़े माने जाते थे. जैसे माइल्स डेविस और थेलोनिअस मंक. कोल्ट्रेन की निजी ज़िन्दगी में भी कई उतार-चढ़ाव आये, जिनका असर उनके संगीत पर भी पड़ा. जौन कोल्ट्रेन का जन्म नौर्थ कैरोलाइना में हुआ था, जहां उन्होंने ज़िन्दगी के शुरुआती साल गुज़ारे. अभी वे बारह साल के थे जब कुछ ही महीनों के अन्दर उनके दादा-दादी, बुआ और पिता का देहान्त हो गया और उन्हें उनकी मां ने पाल-पोस कर बड़ा किया. सोलह बरस की उमर में कोल्ट्रेन अपने परिवार के साथ फ़िलाडेल्फ़िया चले आये और उसी समय उनकी मां ने उन्हें तोहफ़े में एक सैक्सोफ़ोन दिया, जिस पर दो-ढाई बरस में ही कोल्ट्रेन ने इतनी महारत हासिल कर ली कि वे पेशेवर मण्डलियों में संगत करने लगे. 
दूसरे विश्व युद्ध के अन्तिम दौर में कोल्ट्रेन 1945 में नौसेना में भरती हो गये और साल भर तक एक नौसैनिक के तौर पर काम करने के बाद जब वे फ़िलाडेल्फ़िया लौटे तो एक बार फिर जैज़ संगीत का नशा उन पर सवार हो गया. हालांकि वे कई मण्डलियों में संगत करते रहे और बाहर दौरों पर भी जाते रहे, मगर उन पर असर चार्ली पार्कर का था, जिन्हें वे नौसेना में भरती होने से दो महीने पहले सुन चुके थे और उन्हीं के लफ़्ज़ों में कहें तो पार्कर की शैली ने "उनकी ठीक आंखों के बीच चोट की थी." वे कोलमैन हौकिन्स को भी सुन चुके थे और धीरे-धीरे यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि ये सारे तपे हुए जैज़ वादक कैसी नयी चाल में जैज़ को ढालने का काम कर रहे थे. 

https://youtu.be/saN1BwlxJxA (जौन कोल्ट्रेन - ऐलाबामा)

इसी दौर में कोल्ट्रेन एक ओर तो डिज़ी गिलेस्पी और जौनी हौजेस के सम्पर्क में आये, दूसरी तरफ़ माइल्स डेविस जैसे "कठिन" जैज़ संगीतकार के सम्पर्क में, जिनके साथ कोल्ट्रेन का एक अजीबो-ग़रीब रिश्ता रहा -- एक तरफ़ आदर-सम्मान का दूसरी तरफ़ तनाव का और तीसरी तरफ़ संघर्ष का.  हो सकता है, जैज़-संगीत के प्रेमियों ने कोल्ट्रेन को 1949 के आस-पास सुना हो, जब वे डिज़ी गिलिस्पी के बैण्ड में बहुत-से लोगों के बीच एक और सेक्सोफ़ोन-वादक की हैसियत से मौजूद थे, लेकिन उनकी वास्तविक प्रतिभा का पता लोगों को सन 1955 में चला, जब उन्होंने माइल्स डेविस की मण्डली में संगत शुरू की। बड़ी बात यह थी कि कोल्ट्रेन एक जाने-माने संगीतकार से नयी हिकमतें सीखते हुए आज़ाद पेशेवर की ज़िन्दगी जी रहे थे जब माइल्स डेविस ने उन्हें ख़ास तौर पर बुला कर अपनी मण्डली "फ़र्स्ट ग्रेट क्विण्टेट" में सैक्सोफ़ोन वादक की जगह दी थी. 1955 से 1957 के बीच कोल्ट्रेन ने माइल्स डेविस की मण्डली के साथ कई महत्वपूर्ण रिकौर्ड जारी किये जिनसे उनकी बढ़ती हुई महारत का साफ़ पता चला. लेकिन समस्या यह थी कि जौन कोल्ट्रेन अब तक हेरोइन की चपेट में आ गये थे और माइल्स डेविस ने जब 1957 में अपनी मण्डली भंग की तो उसके पीछे एक वजह कोल्ट्रेन की नशे की लत भी थी. लेकिन सब कुछ के बावजूद माइल्स डेविस के मन में कोल्ट्रेन की प्रतिभा के लिए गहरा सम्मान था और आगे चल कर जब 1958 में कोल्ट्रेन माइल्स डेविस की मण्डली में वापस आये तो दोनों मिल कर संगीत के कार्यक्रमों में एक-दूसरे का साथ देते रहे, जैसे 1960 में स्टौकहोम की संगीत सभा में जो एक यादगार सभा थी. 

http://youtu.be/4_z221y8TOs (जौन कोल्ट्रेन और माइल्स डेविस - युगल वादन - स्टौकहोम 1960)


इस बीच कोल्ट्रेन 1955 में जुआनीटा नईमा ग्रब्स से शादी कर चुके थे जो धर्म-परिवर्तन करके मुस्लिम बनी थी और नईमा के साथ वे इस्लाम के सम्पर्क में भी आये. लेकिन यह विवाह आठ साल बाद टूट गया और इसके बाद कोल्ट्रेन ने ऐलिस मक्लाउड से दूसरा विवाह किया जो उनकी निजी ज़िन्दगी और संगीत -- दोनों के लिए बहुत सार्थक साबित हुआ, क्योंकि दोनों की रुचियां बहुत मिलती थीं, ख़ास तौर पर भारतीय दर्शन और धर्म में. ऐलिस चूंकि खुद भी जैज़ पियानोवादक थी और जानती थी कि पेशेवर संगीतकार को किस तरह के तनावों से जूझना पड़ता है.
बहरहाल, माइल्स डेविस की संगत में कोल्ट्रेन उस नयी धारा में शामिल हो चुके थे, जिसकी शुरुआत माइल्स डेविस, चार्ल्स मिंगस और थेलोनिअस मंक जैसे "सोचने वाले" जैज़ संगीतकारों ने की थी. स्वाभाविक रूप से कोल्ट्रेन का अगला कदम उन्हें थेलोनिअस मंक की मण्डली में ले गया जहां उन्होंने 1957 में कुछ ही महीनों के लिए पड़ाव डाला, लेकिन उस साल के आख़ीर में सुप्रसिद्ध कारनेगी हौल में जो कार्यक्रम आयोजित हुआ वह आज भी कोल्ट्रेन और मंक के चाहने वालों और आम जैज़ प्रेमियों में बहुत लोकप्रिय है. 

Thelonious Monk Quartet with John Coltrane at Carnegie Hall 

 रूढि़यों से मुक्ति का प्रयास साठ के दशक में जॉन काल्ट्रेन भी करते रहे और यह कोशिश काफ़ी हद तक सफल भी हुई। इसीलिए जब वे परम्परागत ढंग के ब्लूज़ बजाते तो भी उनका एक अलग अन्दाज़ रहता. सुरों के बीच आवा-जाही काफ़ी जटिल और ताल का परिवर्तन भी बिलकुल अपनी तरह का होता जिसे कोल्ट्रेन के परिवर्तन कहा जाने लगा था. जैसा कि उस दौर के सबसे मशहूर ऐल्बम "ब्लू नोट" में सुनायी देता है, ख़ास तौर पर दो रिकौर्डों -- "ब्लू ट्रेन" और "लेज़ी बर्ड" में.

http://youtu.be/XpZHUVjQydI   --- (जॉन काल्ट्रेन - ब्लू ट्रेन)

http://youtu.be/DAsUNTHRjaM -- ( जॉन काल्ट्रेन - लेज़ी बर्ड)

माइल्स डेविस और थेलोनिअस मंक की संगत में -- जिनमें से एक ट्रम्पेट वादक थे और दूसरे पियानो -- जौन कोल्ट्रेन ने अपनी शैली को इस हद तक सान पर चढ़ाया था कि एक समीक्षक ने कहा था कि उनका वादन "संगीत की चादरों" जैसा लगता है. ख़ूब कसा हुआ और एक ही मिनट के दौरान सैकड़ों सुरों के फ़ासले तय कर लेने वाला. 
इस बीच जॉन काल्ट्रेन के संगीत में कई उतार-चढ़ाव आये। एक दौर ऐसा भी था, जब वे ’मुक्त जैज़’ के सबसे बड़े समर्थक थे और ऐसा संगीत पेश कर रहे थे, जिसमें नाद और स्वर की कोई सुसंगत संरचना नहीं रह गयी थी -- संगीत विशुद्ध ध्वनि बन कर रह गया था। लेकिन इस अति से अलग हो कर जब उन्होंने ’काले मोती’ जैसी धुनें रिकॉर्ड कीं तो रूढि़यों को तोड़ते हुए भी जैज़ की बुनियादी परम्परा का-उसके सुर, ताल और लय का-पूरा ख़याल रखा। ’काले मोती’ नामक मशहूर रिकॉर्ड के आरम्भ में हानल्ड बर्ड के ट्रम्पेट-वादन के बाद जब जॉन कोल्ट्रेन सेक्सोफ़ोन पर धुन को बढ़ाते हैं तो उनकी रचनात्मकता का एहसास सहज ही हो जाता है।
http://youtu.be/grdV-iNIsQs -- (जॉन काल्ट्रेन - काले मोती)

"काले मोती" के आस-पास कोल्ट्रेन ने अपना एक बेहद कामयाब ऐल्बम जारी किया -- "जायण्ट स्टेप्स" -- "विराट कदम." इसमें ज़्यादातर उनकी अपनी रचनाएं थीं और ऐल्बम का मुख्य रिकौर्ड आम तौर पर उनकी प्रयोगशीलता की मिसाल माना जाता है, जिसमें सुर-ताल का मेल बेहद पेचीदा भी है और कोल्ट्रेन की अनोखी शैली में इस्तेमाल किया गया है, जहां सुरों के बढ़ते हुए क्रम के साथ धुन और राग का सामंजस्य मुग्ध कर देता है.  

http://youtu.be/30FTr6G53VU  --- (जॉन काल्ट्रेन - जायण्ट स्टेप्स)

जैसा कि हमने कहा, कोल्ट्रेन के संगीत का सफ़र सीधा नहीं था. 1960 के दशक के शुरू में वे एक बार फिर इस हद तक चले गये कि समीक्षक और जैज़ प्रेमी उनके संगीत को "ऐण्टी जैज़" कहने लगे. खुद कोल्ट्रेन ने माना कि वे कुछ ज़्यादा ही तकनीकी बारीकियों में उलझ गये थे. मगर हर बार की तरह वे फिर अपनी पुरानी शैली की तरफ़ लौट आये, अल्बत्ता उसमें कुछ नया जोड़ते हुए. अब तक कोल्ट्रेन कुछ नये लोगों की संगत करने लगे थे और उनकी मण्डली "द क्लासिक क्वौर्टेट" ने अपना सबसे मशहूर रिकौर्ड "ए लव सुप्रीम" दिसम्बर 1964 में जारी किया. कहा जाता है कि कोल्ट्रेन को, जो लगातार हेरोइन और एल एस डी जैसे नशों से कूझते रहे थे -- उन्हें अलविदा कहते और फिर उन्हें गले लगाते हुए -- "ए लव सुप्रीम" की प्रेरणा 1957 में नशे की एक लगभग जानलेवा मात्रा लेने के बाद मिली थी. बहरहाल, यह रिकौर्ड न सिर्फ़ कोल्ट्रेन की अब तक की उपलब्धियों की बानगी था, बल्कि बहुत हद तक उनके आध्यात्मिक मिज़ाज की झलकी भी पेश करता था. "ए लव सुप्रीम" का चौथा सुर परिवर्तन कोल्ट्रेन की एक कविता के लिए संगीत का आधार बिछाने के लिए रचा गया था. ऐल्बम के आवरण पर दी गयी इस कविता में आये शब्दों के हर बलाघात के लिए कोल्ट्रेन ने एक सुर बजाया था और हर शब्द पर संगीत का एक टुकड़ा. ज़ाहिर है ऐल्बम काफ़ी चुनौती भरा था, लेकिन मज़े की बात है कि वह सुनने वालों में बहुत लोकप्रिय भी हुआ. जौन कोल्ट्रेन ने "ए लव सुप्रीम" को किसी सभा में एक ही बार बजाया -- 1965 में -- और उसका भी एक छोटा-सा टुकड़ा ही उपलब्ध है, हालांकि ऐल्बम में पूरा रिकौर्ड मिलता है.

http://youtu.be/_qt435yF2Qg  -- (जौन कोल्ट्रेन - ए लव सुप्रीम)

http://youtu.be/clC6cgoh1sU  -- (ए लव सुप्रीम - पूरा)

१९६४-६५ में "ए लव सुप्रीम" तक आते आते जौन कोल्ट्रेन का एक बहुत लम्बा दौर पूरा हो चुका था और उनके संगीत में "ए लव सुप्रीम" से आध्यात्मिकता का जो पुट दाख़िल हुआ था वह आगे के ऐल्बमों -- "ओम" और "मेडिटेशन्स" -- में परवान चढ़ने लगा था. तभी जब किसी को अन्दाज़ा नहीं था कि कोल्ट्रेन की नशे की लत उनके शरीर को कितना खोखला कर चुकी थी, १९६७ में महज़ ४० साल की उमर में जिगर के कैन्सर से कोल्ट्रेन की मौत हो गयी. आज पीछे मुड़ कर देखते हुए यह साफ़-साफ़ देखा जा सकता है कि जौन कोल्ट्रेन ने जैज़ ही नहीं दूसरी तरह के संगीत पर भी कितना असर छोड़ा था. वे ऐसे संगीतकार थे जो परम्परा का साथ निभाते हुए प्रयोगों को उनके चरम तक ले जाने की कूवत रखते थे.
जौन कोल्ट्रेन की मौत के बाद फ़िलाडेल्फ़िया का उनका पुराना घर राष्ट्रीय ऐतिहासिक भवन घोषित कर दिया गया है और यही दर्जा उनके ्न्यू यौर्ख वाले घर को भी दिया गया है जहां वे 1964 से ले कर मृत्यु तक रहे. लेकिन उनकी सबसे बड़ी विरासत वह संगीत है जो वे अपने पीछे छोड़ गये हैं. जारी किये गये ऐल्बमों और रिकौर्डों के अलावा बहुत कुछ ऐसा भी है जो अभी सामने नहीं आया है. उनके बेटे रवि कोल्ट्रेन के पास --जिसका नाम सितारवादक पण्डित रविशंकर के नाम पर रखा गया था  और जो खुद भी एक सैक्सोफ़ोनवादक है -- काफ़ी सामग्री रखी हुई है, जिसमें से कुछ तो यकीनन नायाब है.
अन्त में बस इतना कहना बाकी रह जाता है कि किसी फ़नकार की पहचान जिस हद तक उसके प्रयोगों से होती है उतनी ही इस बात से कि वह परम्परा के साथ ताल-मेल बैठाने की कितनी कूवत रखता है. जौन कोल्ट्रेन का ज़िक्र हम उनके सैक्सोफ़ोन पर ड्यूक एलिंग्टन के पियानो की संगत में बजायी गयी ड्यूक एलिंग्टन ही की प्रसिद्ध रचना "इन ए सेण्टिमेण्टल मूड" के साथ ख़त्म कर रहे हैं :

 http://youtu.be/r594pxUjcz4   -- इन ए सेण्टिमेण्टल मूड

(जारी)


Friday, April 17, 2015

जैज़ पर लम्बा आलेख


चट्टानी जीवन का संगीत 
तेईसवीं कड़ी

27.

इसी समय मिंगस और माइल्स से उमर में कुछ साल छोटे, लेकिन लीक से हट कर चलने की वैसी ही ज़िद रखने वाले संगीतकार थे सैक्सोफ़ोन वादक और्नेट कोलमैन (1930- ), जिनके उस ऐल्बम का, जो 1959 में रिकौर्ड किया गया, शीर्षक ही बहुत-से लोगों को बड़बोलेपन की मिसाल लग सकता था. और्नेट कोलमैन ने इस ऐल्बम का नाम रखा था "शेप औफ़ जैज़ टू कम" यानी "आने वाले दिनों में जैज़ का स्वरूप." 
और्नेट कोलमैन ने, जिनका जन्म और पालन-पोषण फ़ोर्ट वर्थ, टेक्सास में हुआ, 1959 में जैसे एक छलांग लगा कर अपने ऐल्बम में शामिल छै धुनों को रिकौर्ड कराते हुए जैज़ संगीत के बारे में अपना बयान दर्ज कराया था. जहां माइल्स डेविस और चार्ल्स मिंगस पुराने तपे हुए संगीतकार थे और कई-कई बार अपने संगीत को रिकौर्ड करा चुके थे, वहीं और्नेट कोलमैन का यह महज़ तीसरा ऐल्बम था और इसका मौका भी उन्हें ख़ासी मुश्किल से मिला था. बात यह थी कि जिस लीक पर वे अपने स्कूली दिनों ही में चल पड़े थे वह पैदाइशी विद्रोहियों की लीक कही जा सकती थी. अभी वे स्कूल के बैण्ड में थे कि उन्हें एक प्रसिद्ध धुन को बजाने के दौरान तात्कालिक प्रेरणा से तयशुदा सुर-ताल से हट कर प्रयोग करने की हिमाकत की वजह से बैण्ड के बाहर कर दिया गया था. लेकिन और्नेट कोलमैन अपने इरादे के पक्के थे. वे उस छोटी उमर में भी जानते थे कि अगर उन्हें संगीत में अपनी राह बनानी है तो वह उनकी अपनी राह होगी, पिटी-पिटायी लीक नहीं. उन्नीस साल की उमर तक वे अपनी तरह के कुछ साथियों को इकट्ठा करके स्थानीय क्लबों में बजाना शुरू कर चुके थे. किसी तरह अपने छोटे से शहर से बाहर निकलने की कोशिश में उन्होंने कुछ घुमन्तू मण्डलियों के साथ आस-पास के दौरे शुरू किये. इसी तरह के एक दौरे में बेटन रूज नाम की जगह के सुनने वाले इतने भड़के कि उन्होंने और्नेट के साथ हाथा-पाई करते हुए उनका सैक्सोफ़ोन भी तोड़ दिया. इस घटना के बाद और्नेट एक बैण्ड में शामिल हो कर लौस ऐन्जिलीज़ चले गये, लेकिन वहां पहुंचते ही उन्हें उनकी हठी फ़ितरत की वजह से बैण्ड से बाहर कर दिया गया. अगले नौ साल वे लौस ऐन्जिलीज़ में छोटे-मोटे काम करके अपना ख़र्चा चलाते हुए स्थानीय बैण्डों में सैक्सोफ़ोन बजाते रहे. 

https://youtu.be/JbEuvFmx1lU?list=PLlvZuli9Xh9gznxUbfrhjEihXck9ZhQLD (और्नेट कोलमैन - वेन विल द ब्लूज़ लीव)

फिर, जब ऑर्नेट कोलमैन सन 1958-59 में पहले पहल न्यूयॉर्क आये तो बहुत-से लोगों को यह लगा कि उन्होंने अचानक एक ऐसे क्षेत्र में धावे मारने शुरू कर दिये हैं, जिसे दूसरे संगीतकार अभी दूर से ही जाँच-परख रहे थे। कुछ लोगों की नज़र में ऑर्नेट कोलमैन एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने जैज़ में अव्यवस्था और बेसुरापन पैदा किया था, जबकि बहुत-से लोगों का ख़याल था कि कोलमैन एक क्रान्तिकारी संगीतकार थे, जिन्होंने जैज़ को उसकी रूढि़यों से मुक्त कर खुलापन प्रदान किया। अपनी अदाकारी में आर्नेट कोलमैन ने हर प्रकार की पारम्परिक रचनाओं के साथ छूट ली थी। यहाँ तक कि स्वर, सुर और तान के सिलसिले में चली आ रही रूढि़यों को भी उन्होंने तोड़ा था। इसके अलावा अलावा चूँकि वे लगभग पूरी तरह तात्कालिक प्रेरणा पर निर्भर करते थे, इसलिए बहुत-से समीक्षकों ने उन्हें या तो संगीत से कतई रहित कहा या फिर एक प्रतिभाशाली नौसिखिया। इसके बावजूद जहाँ तक बुनियादी लय और ताल का सवाल है, इसमें कोई शक नहीं है कि कोलमैन यह जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं और इसीलिए अपने पूर्ववर्ती संगीतकार चार्ली पार्कर की तरह उनमें यह क्षमता थी कि जैज़ के किसी अत्यन्त पारम्परिक रूढि़ग्रस्त पिटे-पिटाये टुकड़े को उठा कर उसे बिल्कुल ताज़ा बना कर पेश कर दें।

https://youtu.be/WoC69lxnS_Y?list=PL2Z8vT6D3wiQi7Qz6zwpwHYMfeOa6KXmJ (और्नेट कोलमैन - इवेन्चुअली)

"शेप औफ़ जैज़ टू कम" कुल 36-37 मिनट का ऐल्बम था और उसमें 4 मिनट से ले कर 9 मिनट तक की छै रचनाएं थीं -- लोनली वुमन, इवेन्चुअली, पीस, फ़ोकस औन सैनिटी, कन्जीनिऐलिटी और क्रोनौलोजी, लेकिन इन छै रचनाओं के माध्यम से ही और्नेट कोलमैन ने जैज़ की दुनिया में अपनी मुहर लगा दी थी. न सिर्फ़ वे पूरी तरह तात्कालिक प्रेरणा पर बजाते थे, बल्कि उन्होंने अपनी छोटी-सी मण्डली में न तो पियानो को जगह दी थी न गिटार को. मण्डली में चार लोग थे -- सैक्सोफ़ोन पर और्ने कोलमैन, कौर्नेट पर डौन चेरी, बेस पर चार्ली हेडन और ड्रम्स पर बिली हिगिन्स. जैसे इतना ही परम्परागत श्रोताओं और समीक्षकों को चौंकाने के लिए काफ़ी न हो, जो सैक्सोफ़ोन और्नेट कोलमैन बजाते थे वह पीतल का नहीं, प्लास्टिक का बना हुआ था, जिससे उसकी अवाज़ में एक खास क़िस्म की करख़्त फ़ितरत पैदा हो गयी थी.
"शेप औफ़ जैज़ टू कम" की सारी रचनाएं और्नेट कोलमैन ने तैयार की थीं और हालांकि वे इस ऐल्बम का नाम फ़ोकस औन सैनिटी रखना चहते थे, लेकिन फिर उन्होंने सलाह-मशविरे के बाद "शेप औफ़ जैज़ टू कम" ही तय किया. ऐल्बम की पहली रचना "लोनली वुमन" ने ऐल्बम के बाज़ार में आते ही लोगों का ध्यान खींचा और समय के साथ वह जैज़ की अविस्मरणीय रचनाओं में शामिल हो गयी है. 

http://youtu.be/QSmYTc1Jv7w (Ornette Coleman The Lonely Woman in Vienna 2008)

"लोनली वुमन" के बारे में और्नेट ने बताया कि इस धुन का ख़याल उन्हें लौस ऐन्जिलीस में एक डिपार्टमेण्टल स्टोर में काम करते हुए खाने की छुट्टी के दौरान आया था जब उन्होंने एक औरत का फ़ोटो देखा था. "औरत के पीछे तमाम तरह की ऐशो-आराम की चीज़ें थीं," और्नेट कोलमैन ने बताया था,"दौलत  से खरीदी जा सकने वाली हर तरह का सामान, लेकिन वह इतनी उदास थी. मैंने मन में सोचा -- हे भगवान, मैं इस एहसास को समझ सकता हूं. मैंने कभी इस तरह की दौलत नहीं देखी, पर मुझे वह महसूस हो रहा है जो उस औरत के मन में चल रहा है. जब मैं काम के बाद घर गया तो मैंने यह रचना तैयार की. मैंने ख़ुद को ठीक उस जगह रख कर उस भावना को अपने ऊपर हावी होने दिया और यह टुकड़ा रचा."   
वैसे, इस ऐल्बम की सारी-की-सारी रचनाएं अपनी सादगी में अनोखी कही जा सकती हैं. हर टुकड़े में एक छोटी-सी धुन है, काफ़ी कुछ जैज़ के किसी भी आम गीत की तरह, फिर बीच में तात्कालिक प्रेरणा से बजाये गये टुकड़े हैं और अन्त में एक बार फिर मुख्य धुन पर वापसी. मगर यह सादगी और वादकों की ग़ैरतयशुदा उड़ान ही इन टुकड़ों की जान है. और्नेट कोलमैन का कहना था कि जैज़ ही ऐसा संगीत है जहां किसी सुर या टुकड़े को हर बार बजाते हुए नया करके पेश किया जा सकता है और इस लिहाज़ से वह एकदम आज़ाद संगीत है. 
आज़ादी ही वह चीज़ थी जिसे हासिल करने के लिए और्नेट कोलमैन अपने बचपन से कोशिश करते आ रहे थे और  "शेप औफ़ जैज़ टू कम" इस दिशा में उनका पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम था. इस ऐल्बम के माध्यम से उन्होंने जैज़ की दुनिया में ऐसी चुमौती पेश कर दी थी जिसे तस्लीम करना आज भी बहुत से लोगों को गवारा नहीं है. अनेक समीक्षकों ने उन्हें मूर्तिभंजक कहा, सुर-ताल से रहित कहा, जैज़ का घुसपैठिया भी कहा, लेकिन सुनने वालों और बहुत-से रचनाकारों ने उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें एक सच्चा फ़नकार माना.  
1959 में "शेप औफ़ जैज़ टू कम" को रिकौर्ड करने के बाद और्नेट कोलमैन ने अगले ऐल्बम को रिकर्ड कराने में देर नहीं की और जो नयी राह "शेप औफ़ जैज़ टू कम" में खोजी थी, उसी पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने अगला ऐल्बम रिकौर्ड कराया और उसका नाम रखा "फ़्री जैज़" -- "उन्मुक्त जैज़." "फ़्री जैज़" स्टीरियो में रिकौर्ड हुआ था और इसमें और्नेट ने चारों वाद्यों के दो जोड़े इस्तेमाल किये थे. चालीस मिनट लम्बी यह रिकौर्डिंग अब तक का रिकौर्ड किया गया सबसे लम्बा जैज़ रिकौर्ड था और बाज़ार में आते ही इसे फ़ौरन कोलमैन की विवादग्रस्त रचनाओं में शुमार किया जाने लगा. और्नेट कोलमैन ने इसमें एक नियमित मगर जटिल ताल पर तजरुबे किये थे. एक ड्रम वादक नियमित ताल पकड कर चलता तो दूसरा डबल टाइम में यानी उसकी रफ़्तार निस्बतन तेज़ होती. बीच में उन्मुक्त झाले होते और हालांकि बैण्ड के हर सदस्य को एकल वादन का अवसर मिलता, पर वे अगर चाह्ते तो बीच-बीच में शामिल भी हो सकते थे.

https://youtu.be/d0HB8ybKJzo (और्नेट कोलमैन - फ़्री जैज़ भाग 1)


"फ़्री जैज़" का नाम और्नेट कोलमैन ने सिर्फ़ इस ऐल्बम के लिए तय किया था, लेकिन उनकी इच्छा के विपरीत धीरे-धीरे उनकी बढ़ती हुई प्रतिष्ठा ने इसे एक आन्दोलन का, जैज़ की एक नयी विधा का रूप दे दिया. फिर स्थितियां कुछ इस तरह बदलीं कि ख़ुद कोलमैन इसी राह को आगे बढ़ाते हुए नयी-नयी धाराओं के साथ जुड़ते चले गये और एक गुरु बन कर उभरे. उन्होंने तार वाले वाद्यों के साथ भी प्रयोग किये

https://youtu.be/ml_BetwQ84I (और्नेट कोलमैन - फ़्री जैज़ भाग 2)

इसके अलावा उन्होंने माइल्स डेविस की तरह इलेक्ट्रिक वाद्यों का भी इस्तेमाल किया और अपने पुराने प्लास्टिक के सैक्सोफ़ोन को न त्यागते हुए भी पीतल के सैक्सोफ़ोन भी बजाये. मगर जो कुछ और्नेट कोलमैन ने १९५९ के बाद किया उसमें उन्होंने रूढ़ियों को तोड़ते रहने की अपनी टेक बरकरार रखी.

https://youtu.be/dM5WPCsWA3M?list=PL2Z8vT6D3wiQi7Qz6zwpwHYMfeOa6KXmJ (और्नेट कोलमैन - औफ़ ह्यूमन फ़ीलिंग्ज़)

(जारी)

Wednesday, April 15, 2015

जैज़ पर लम्बा आलेख



चट्टानी जीवन का संगीत 
बाईसवीं कड़ी

26.

माइल्स डेविस अगर बहुत हद तक अन्तर्मुखी कलाकार थे, स्वभाव और संगीत दोनों के लिहाज़ से, तो चार्ल्स मिंगस (1922-79)  अव्वल से आख़िर तक हर चीज़ से लोहा लेने वाले फ़नकार थे -- चाहे मामला संगीत का हो या देश-दुनिबया का, साथी कलाकारों का हो या फिर सुननेवालों का.

थेलोनिअस मंक को अगर उनके अन्तर्मुखी स्वभाव के कारण बहुत-से लोग "लोनली मंक" यानी एकाकी साधू कहते थे और इसी शीर्षक से "टाइम" पत्रिका ने उन पर आवरण कथा भी प्रकाशित की थी तो चार्ल्स मिंगस की शोहरत जैज़ के "नाराज़ आदमी" की थी. जैज़ संगीत और अपनी डगर से अलग न हटने की टेक के चलते मंच और संगीत सभाओं या रिकौर्डिंग के दौरान मिंगस का आपे से बाहर हो जाना या संगतकारों को फटकार देना या मण्डली से बाहर कर देना एक आम बात थी. मझोले आकार के बैण्डों के लिए संगीत रचने और अपनी मण्डली के वादकों की ताकत और कौशल को बढ़ाने और उस पर बल देने की अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के चलते चार्ल्स मिंगस को अक्सर ड्यूक एलिंग्टन का उत्तराधिकारी भी माना जाता था, जिनके लिए वैसे भी मिंगस के मन में बहुत श्रद्धा थी. ख़ुद डिज़ी गिलेस्पी ने एक बार कहा था कि मिंगस उन्हें "युवा ड्यूक" की याद दिलाते थे. लेकिन मिंगस उन गिने-चुने वादकों में थे जिन्हें ड्यूक एलिंग्टन ने अपने बैंड से उनके कलह-क्लेश-भरे स्वभाव के कारण एक बार निकाल भी दिया था.

चार्ल्स मिंगस का जन्म ऐरिज़ोना में हुआ था और वे लौस ऐन्जिलीस में पले-बढ़े थे. हालांकि वे अश्वेत थे, लेकिन मां और पिता, दोनों की तरफ़ से उनकी नसों में अलग-अलग क़ौमों का ख़ून भी दौड़ रहा था. मां की तरफ़ से चीनी और अंग्रेज़ तो पिता की तरफ़ से स्वीडी. बहरहाल, बाहर की सारी दुनिया के लिए चार्ल्स मिंगस नीग्रो थे. उनकी मां ने सख़्ती से घर में सिर्फ़ गिरजे में बजाये जाने वाले संगीत ही की इजाज़त दे रखी थी, लेकिन जल्दी ही चार्ल्स को दूसरी तरह के संगीत में दिलचस्पी पैदा हो गयी, ख़ास तौर पर ड्यूक एलिंग्टन की रचनाओं में. उन्होंने शुरुआत ट्रौम्बोन से की और फिर वे चेलो बजाने लगे जो बड़े आकार की वायलिन जैसा वाद्य था. लेकिन पेशेवर तौर पर वे चेलो बजाना जारी नहीं रख पाये, क्योंकि उस समय किसी अश्वेत संगीतकार के लिए शास्त्रीय संगीत के हलकों में दाख़िल होना असम्भव था और जैज़ में अभी चेलो को वाद्य के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था. आख़िरकार मिंगस ने तार वाले दूसरे वाद्य -- बेस -- को चुना को, जिसे हाथ से बजाते थे और जो जैज़ में अपनी शमूलियत दर्ज कर चुका था. इसके बावजूद चेलो से मिंगस की मोहब्बत जीवन भर चली.

पढ़ाई-लिखाई में कमज़ोर होने की वजह से चार्ल्स मिंगस अपनी जवानी के दिनों में संगीत की स्वर-लिपि उतनी तेज़ी से नहीं पढ़ पाते थे जिसकी वजह से उन्हें हमेशा शास्त्रीय संगीत की दुनिया से बहिष्कृत होने का एहसास सालता रहा. ताज़िन्दगी नस्लवाद और रंगभेद से उनकी जद्दो-जेहद के साथ इन शुरुआती अनुभवों ने मिल कर बहुत हद तक उनके संगीत की फ़ितरत को गढ़ने की भूमिका निभायी. उनके संगीत में नस्लवाद, भेद-भाव और न्याय-अन्याय के स्वर साफ़ झलकते हैं.

जब मिंगस ने हाई स्कूल में बेस बजाना शुरू किया तो जो  हिकमतें उन्होंने चेलो के सिलसिले में सीखी थीं, उन्हें वे यहां आ़ज़माने लगे. पांच बरस तक वे न्यू यौर्क फ़िल्हार्मौनिक और्केस्ट्रा के मुख्य बेस वादक हर्मन राइन्सहागेन से सीखते रहे. अपनी किशोरावस्था से शुरू करके ही चार्ल्स मिंगस काफ़ी प्रौढ़ किस्म की संगीत रचनाएं करने लगे थे, क्योंकि उनमें पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के तत्व शामिल थे. इनमें से कुछ टुकड़े आगे चल कर 1960 में संगीत निर्देशक गुण्टर शिलर के साथ रिकौर्ड भी किय गये. मज़े की बात है इन्हें "बर्ड से पहले" कह कर श्रोताओं के सामने पेश किया गया, क्योंकि "बर्ड" यानी चार्ली पार्कर के साथ जुड़ने के बाद मिंगस उन बहुत-से वादकों में से थे जिनके संगीत की समझ पार्कर ने बदल कर रख दी थी.

बेस-वादक के रूप में मिंगस अपनी मिसाल आप थे. 1943 से शुरू करके वे लुई आर्मस्ट्रौंग और ड्यूक एलिंग्टन जैसे तपे हुए संगीतकारों की संगत करने लगे थे और 1950 के दशक में वे चार्ली पार्कर की संगत में बेस बजाने लगे. मिंगस की नज़र में पार्कर जैज़ संगीत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और रचनात्मक वादक थे. लेकिन कई बार पार्कर की आत्म-विनाशक आदतों और नशे की लत के कारण उन्हें खीझ भी होती थी और उन्हें न सिर्फ़ इस बात से चिढ़ थी कि एक रूमानी नज़रिये के तहत नशों को जैज़ संगीतकारों के लिए मानो ज़रूरी चीज़ बताया जाता था, बल्कि इस बात से भी कि पार्कर के इर्द-गिर्द एक प्रभामण्डल बुन कर उनके नक़लचियों की एक खेप तैयार हो गयी थी. इसी को लक्ष्य करके मिंगस ने एक गीत तैयार किया जिसके बोल थे "अगर पार्कर होता बड़ा बन्दूकची तो मरे पड़े मिलते ढेरों नक़लची."

चर्ल्स मिंगस अक्सर मझोले आकार की मण्डलियों के साथ काम करना पसन्द करते थे जिसमें पारी-पारी से वादक आते-जाते रहते थे. अपने संगतकारों से वे लगातार यही अपेक्षा रखते कि वे बजाते समय अपने रचनात्मक कौशल का प्रदर्शन करते रहें. मिंगस की इन मण्डलियों को कुछ संगीतकारों ने जैज़ के विश्वविद्यालय भी कहा क्योंकि वहां वे इतनी तरह की तकनीकों से प्रयोग करते और अपने संगतकारों को भी सिखाते.

https://youtu.be/HafQ0B36ZIQ?list=PLcc51NYcXkvHWQV8vBLs38rOlsC7CkbE7
(चार्ल्स मिंगस - टाइम्स स्क्वेयर में पुरानी यादें)

मिंगस जैज़ संगीत के लगभग 10 ऐलबम रिकौर्ड कर चुके थे जब उन्होंने "पिथेकैन्थ्रोपस एरेक्टस" रिकौर्ड कराया, जिसे उनका पहला महत्वपूर्ण ऐल्बम माना जाता है -- मण्डली के निर्देशक और रचनाकार, दोनों के तौर पर. इसका शीर्षक गीत सुरों में रची गयी दस मिनट लम्बी कविता कहा जा सकता है जिसमें मनुष्य के बनने से ले कर उसके एक अन्तिम पतन तक के विकास को दर्शाया गया था. एलिंग्टन की तरह मिंगस भी ख़ास-ख़ास संगीतकारों को ध्यान में रख कर अपने गीत और राग तैयार करते थे मसलन "पिथेकैन्थ्रोपस एरेक्टस" में उन्होंने कुछ दुस्साहसी क़िस्म के वादकों को शामिल किया था. "पिथेकैन्थ्रोपस एरेक्टस" के बाद के दस साल मिंगस के जीवन के सबसे उर्वर और रचनात्मक साल थे. प्रभावशाली राग और ऐल्बम आश्चर्यजनक गति से आते रहे, दस बरस में लगभग तीस रिकौर्ड, जिसका मुक़ाबला ड्यूक एलिंग्टन के अलावा और कोई नहीं कर सकता था. 

https://youtu.be/ZB6GkA54n_Q (चार्ल्स मिंगस - पिथेकैन्थोपस एरेक्टस)

अगर "पिथेकैन्थ्रोपस एरेक्टस" मिंगस का पहला महत्वपूर्ण ऐल्बम था, तो उसके तीन साल बाद ही 1959 में रिकौर्ड किया गया ऐल्बम "मिंगस आ हुम" उनका घोषणा-पत्र कहा जा सकता है जिसमें न सिर्फ़ उन्होंने अपनी फ़नकारी, अपने संगीत-सम्बन्धी विचारों और अपने सामाजिक-राजनैतिक बयान को दर्ज किया था, बल्कि यह साबित कर दिया था वे बीसवीं सदी के अप्रतिम जैज़ संगीतकारों में शामिल किये जाने लायक हैं. इस दौर में सनी रॉलिन्स जैसे वादक अगर संगीत की अदाकारी की समस्या से जूझ रहे थे तो दूसरी ओर बैस-वादक चार्ल्स मिंगस अपने पूर्ववर्ती रचनाकारों -- ड्यूक एलिंग्टन और चार्ली पार्कर -- की तरह इस अदाकारी में अन्तर्निहित वैचारिक पक्ष की समस्याओं का सामना कर रहे थे।

https://youtu.be/jfuisVNidXU?list=PLTP2K4U1d1_ypnCaXm9AtTijlk6JfhsVY (चार्ल्स मिंगस - ड्यूक के नाम खुला ख़त)

एक संगीतकार के रूप में अपने अनुभवों को याद करते हुए अपनी पुस्तक ’आख़िरी आदमी के पीछे’ में चार्ल्स मिंगस ने लिखा था, ’सही मायनों में मेरे भीतर तीन आदमी हैं -- एक आदमी डरे हुए जानवर जैसा है, जो हमले की आशंका से पहले ही हमला कर बैठता है। दूसरा आदमी जीवन और लोगों को प्यार करने वाला निहायत शरीफ़ आदमी है, जो लोगों को अपनी ज़िन्दगी के दबे-छिपे कोनों में ले जाता है, जो उनकी तमाम बुरी बातें सहता है, जो उनकी तमाम चालाकियाँ और फ़रेब समझने के बाद भी न तो उन्हें नष्ट करता है, न अपने आप को। और तीसरा आदमी हमेशा बीच में खड़ा रहता है -- बेपरवाह; बेफ़िक्र; किसी लगाव के बिना; देखता हुआ, प्रतीक्षा करता हुआ कि जो कुछ उसने देखा है, उसे बाकी दोनों के सामने व्यक्त कर सके।’

मिंगस ने अपने जीवन में गोरों के हाथों अश्वेत लोगों का जो अमानवीय सलूक देखा था, उसने समय ले बारे में उनकी अवधारणा पर भी असर डाला था. उनके एक साथी के अनुसार "मिंगस के लिए न तो कोई अतीत था, न वर्तमान, न भविष्य. सब कुछ घुल-मिल कर एक बन गया था."

https://youtu.be/vEWYeF122dI (चार्ल्स मिंगस - तीन रंगों में अपना चित्र)

"मिंगस आ हुम" में नौ टुकड़े थे, नौ अलग-अलग धुनें -- बेटर गिट इट इन यौर सोल, गुडबाइ पोर्क पाई हैट, बूगी स्टौप शफ़ल, सेल्फ़ पोर्ट्रैट इन थ्री कलर्स, ओपन लेटर टू ड्यूक, बर्ड कौल्स, फ़ेबल्स औफ़ फ़ौबस, पुसी कैट ड्यूज़ और जेली रोल -- लेकिन इन सभी में एक विलक्षण एकाग्रता थी. मिंगस ने अक्सर कहा था कि अपने संगीत के माध्यम से वे अपने आप को व्यक्त करने की कोशिश करते थे और यह काम उनके लिए इस कारण से इतना मुश्किल था क्योंकि वे एक जगह खड़े होने की बजाय समय के साथ लगातार बदलते चल रहे थे. शायद यही वजह है कि जब उन्हें सही मौक़ा मिला तो उन्होंने अपने आप को समग्रता में सामने रख दिया. "मिंगस आ हुम" में एक तरफ़ बेटर गिट इट इन यौर सोल जैसी रचना है जो गिरजे में बजाये जाने वाले संगीत की याद दिलाती है, तो दूसरी तरफ़ सेल्फ़ पोर्ट्रैट इन थ्री कलर्स जैसी धुन जो मानो सुनने वाले को न सिर्फ़ मिंगस के अन्दर की झांकी दिखाती है, बल्कि ख़ुद अपने अन्दर झांकने के लिए प्रेरित करती है. इन्हीं के साथ फ़ेबल्स औफ़ फ़ौबस जैसी रचना भी है, जिसमें मिंगस ने धुन के साथ गीत भी शामिल किया था. 

http://youtu.be/QT2-iobVcdw (Fables of Faubus)

गीत में अमरीकी प्रान्त आर्कैन्सस के गवर्नर और्वल फ़ौबस की खुली निन्दा थी, क्योंकि और्वल  फ़ौबस ने अमरीका की सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के खिलाफ़ नौ काले छात्रों को लिटल रौक नामक जगह के एक स्कूल में दाखिल होने से रोक दिया था और नस्ली भेद-भाव के समर्थकों का खुल्लम-खुल्ला साथ दिया था. यह पहला मामला था, जब भेद-भाव जो अब तक छिपे तौर पर चलता था, खुल कर समूचे अमरीका ही नहीं, समूची दुनिया के सामने आ गया था. राष्ट्रपति आइज़नहावर और उनके प्रशासन के लिए संकट पैदा हो गया था, सेना बुलानी पड़ी थी, आक्रोश दोनों तरफ़ से फूट पड़ा था और अन्त में गवर्नर फ़ौबस को अपना आदेश वापस लेना पड़ा था. ज़ाहिर है, यह मिंगस का आन्दोलनकारी कार्यकर्ता वाला पक्ष था. यों, मिंगस बराबर यही कहते रहे कि वे कोई राजनैतिक कार्यकर्ता नहीं हैं, वे तो महज़ वादक और संगीत-निर्देशक हैं, लेकिन यह भी सही है कि मिंगस बहुत स्पष्टवादी कलाकार थे और संगीत के मंच को अपने विचार व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल करने से कभी हिचकते नहीं थे चाहे बात सुनने वालों के व्यवहार की हो या संगतकारों के व्यवहार की, नस्ली भेद-भाव की हो या किसी और अन्याय-उत्पीड़न की.

चूंकि चार्ल्स मिंगस ज़िन्दगी भर नस्ली और रंग आधारित भेद-भाव से जूझते रहे, इसका असर उनके संगीत पर लाज़िमी तौर पर पड़ता रहा, उर्वरता के दौर आते और फिर अवसाद के जिनमें वे ज़्यादा न रच पाते. तो भी वे जैज़ संगीत के हल्कों में बेस के सबसे महत्वपूर्ण वादक बने रहे, कहा जा सकता है कि उन्होंने इस वाद्य के सन्दर्भ में ज़मीन तोड़ने का काम किया. सबसे बड़ी बात यह थी कि चार्ल्स मिंगस किसी ख़ाने में रखे जाने से हमेशा बचते रहे. अपनी प्रेरणाएं वे जैज़ के ताज़ातरीन चलन से ले कर मुक्त जैज़, तीसरी धारा और शास्त्रीय संगीत के साथ पुराने धार्मिक संगीत को मिला कर तैयार करते. उनका ज़ोर सामूहिक रचनात्मकता पर रहता जैसा पुराने ज़माने में न्यू और्लीन्ज़ की मण्डलियों में मिलता था जहां महत्व इस बात पर रहता कि कोई भी वादक मण्डली के बाक़ी वादकों के साथ कैसे ताल-मेल बैठा कर एक गुंथा हुआ संगीत पेश करता था. और इस लिहाज़ से चार्ल्स मिंगस नये और पुराने का अद्भुत मेल थे.

(जारी)

Monday, April 13, 2015

जैज़ पर लम्बा आलेख



चट्टानी जीवन का संगीत 

इक्कीसवीं कड़ी


25.

1959 में जैज़ के चार ऐसे ऐल्बम आये जिन्होंने जैज़ को आगे के लिए बदल कर रख दिया. माइल्स डेविस का "काइण्ड औफ़ ब्लू," डेव ब्रूबेक का "टाइम आउट," चार्ल्स मिंगस का "मिंगस आ हुम" और और्नेट कोलमैन का "द शेप औफ़ जैज़ टू कम." इनमें माइल्स डेविस और चार्ल्स मिंगस जैज़ में काफ़ी पहले से सक्रिय थे और इस मुकाम पर पहुंच गये थे कि एक बड़ा धमाका कर सकें. डेव ब्रूबेक पियानो-वादक थे, जैज़ संगीत की दुनिया में -- जो लगभग पूरी-की-पूरी अश्वेत संगीतकारों की दुनिया थी -- एक आम गोरे अमरीकी संगीतकार की हैसियत से दाख़िल हुए थे और यह उम्मीद रखते थे कि वे इस अफ़्रीकी-अमरीकी संगीत में अपनी शमूलियत भी दर्ज करा सकेंगे. सिर्फ़ और्नेट कोलमैन न केवल इन सबसे कम उमर के वादक थे, बल्कि इस छोटी उमर में भी उन्होंने अपने वादन की अनोखी शैली से आम सुनने वालों और जैज़ पारखियों में तीखी प्रतिक्रिया पैदा की थी. जहां बहुत-से लोगों को लगता था कि और्नेट कोलमैन सचमुच प्रतिभाशाली और प्रयोगशील वादक हैं, वहीं कुछ लोग उन्हें बेसुरा कहते हुए उन्हें जैज़ की सफ़ में शामिल करने से ही इनकार कर देते थे. 1959 में अपना ऐल्बम रिकौर्ड कराने से पहले लगभग नौ साल और्नेट कोलमैन लौस ऐन्जिलीज़ में अपने संगीत के लिए जगह बनाने की कोशिश करते रहे थे और इस दौर में उन्होंने अपनी आजीविका तरह-तरह के मामूली काम करते हुए चलायी थी, यहां तक कि लिफ़्ट चालक का भी काम किया था.
1959 का साल कई मानों में ख़ास था. दूसरे महायुद्ध के बाद के वर्षों में अमरीका एक तरफ़ तो नयी ख़ुशहाली के रास्ते पर चल पड़ा था, दूसरी तरफ़ विश्वयुद्ध के मैदान से निकल कर राष्ट्रपति की गद्दी संभालने वाले ड्वाइट डी. आइज़नहावर अपने दूसरे कार्यकाल के अन्तिम चरण में पहुंच चुके थे, जिसमें उन्होंने बाहरी दुनिया में अमरीकी वर्चस्व को बढाने के सभी सम्भव उपाय किये थे. इसी दौर में शीत युद्ध शुरू हुआ, वियतनाम में अमरीकी दख़लन्दाज़ी बढ़ी, अमरीकी गुप्तचर एजेन्सी सी.आइ.ए. ने बाहरी मुल्कों में घुसपैठ के ज़रिये अमरीका-विरोध को खत्म करने की राहें खोलीं और अमरीका के अन्दर बड़े पैमाने पर नागरिक अधिकार आन्दोलन शुरू हुआ, जिसकी अगली पांतें अफ़्रीकी मूल के अश्वेत लोगों ने संभाल रखी थीं. अश्वेत अफ़्रीकी अमरीकियों के खिलाफ़ गोरे लोगों ने जो मोर्चेबन्दियां कर रखी थीं, वे खुल कर सामने आ गयी थीं, बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने में आधी सदी की देर थी. कुल-मिला कर ख़ुशी और आशा के साथ भय और नफ़रत और दबे हुए आक्रोश का मिला-जुला माहौल था. अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को साम-दाम-दण्ड-भेद -- हर तरीके से दबाया जाता था और जहां तक अश्वेत अफ़्रीकी मूल के अमरीकियों का सवाल था, अक्सर दण्ड वाला उपाय ही अमल में लाया जाता.
इस माहौल का असर जैज़ संगीतकारों पर पड़ना लाज़िमी था, जो लगभग सारे के सारे अफ़्रीकी मूल के अश्वेत अमरीकी थे. लेकिन इस असर ने जैज़ की दुनिया में एक-सी प्रतिक्रिया नहीं पैदा की थी. एक कारण तो यह था कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जो ऊपरी तौर पर खुलापन नज़र आया था, उसकी असलियत से ज़्यादातर संगीतकार वाकिफ़ थे. वे जानते थे कि जैज़ तब भी "कालों का संगीत" समझा जाता था और अगर कोई संगीतकार कालों की क़तारों से निकल कर पश्चिमी शास्त्रीय संगीत की दुनिया में कदम रखने की जुर्रत करता तो वह दरवाज़ों को सख़्ती से बन्द पाता. इसलिए वे "कालों के संगीत" की दुनिया तक ही बने रहते. मगर वे इस सच्चाई से नज़रें नहीं चुरा सकते थे कि जहां उनके संगीत की खपत थी, जहां उनके लिए संगीतकार के तौर पर अपने पेशे से आजीविका चलाने की गुंजाइश थी -- वह चाहे क्लब हों या सभाएं या रिकौर्ड बनाने वाली कम्पनियां -- सारा प्रबन्ध-तन्त्र गोरे हाथों में था, जो उनके श्रम से मुनाफ़ा तो कमाता था, लेकिन उनके साथ अघोषित रूप से ग़ुलामों जैसा ही सुलूक करता था. आख़िरी बात यह थी कि जो वे अपने चारों तरफ़ देख रहे थे, उससे कहीं अधिक बुरी स्थितियां उनके बाबा-दादा देख चुके थे और उनकी कला का, अभिव्यक्ति का यह माध्यम -- जैज़ -- उसी काले अतीत से उपजा था, जो किसी भी तरह ख़त्म होने को नहीं आ रहा था. यह बात इसलिए भी ध्यान में रखनी ज़रूरी है, क्योंकि इन चार मण्डलियों में से तीन अश्वेत संगीतकारों की थीं. सिर्फ़ डेव ब्रूबेक की मण्डली गोरे वादकों की थी और उसके ऐल्बम का ऐतिहासिक महत्व इसी बात में था कि पहली बार गोरे संगीतकारों ने एक बड़ी पहलकदमी के तौर पर कालों के संगीत की दुनिया में कदम रखा था, जिसका नतीजा आने वाले वर्षों में यह हुआ कि जैज़ अपनी परम्परागत पांतों से बाहर आम गोरे श्रोताओं को भी बड़े पैमाने पर अपना मुरीद बना सका. लेकिन अगर डेव ब्रुबेक को अलग कर दें तो बाकी तीनों संगीतकारों में जैज़ के सारे मूल गुण थे -- अवसाद, दबा हुआ ग़ुस्सा, बेबसी, रूहानी कशिश, विद्रोह की लपट और लीक से हट कर चलने का एक बेफ़िक्र अन्दाज़. किसी में कम तो किसी में ज़्यादा. 

https://youtu.be/-488UORrfJ0?list=PLdhGk7gKuZxYV8bG4lrWS2viBrmp3bZnh (माइल्स डेविस - औल ब्लूज़)


नयी राहें खोलने वाले अपने ऐल्बम "काइण्ड औफ़ ब्लू" को रिकौर्ड करने से पहले माइल्स डेविस एक लम्बा रास्ता तय कर आये थे और अपने संगीत ही में नहीं, बल्कि अपने जीवन में भी बहुत-सी उथल-पुथल और उतार-चढ़ाव देख चुके थे. संगीत माइल्स ड्यूई डेविस (1926-91) को विरासत में नहीं मिला था, उनके पिता दांतों के डाक्टर थे और परिवार खाता-पीता परिवार था. अल्बत्ता, माइल्स की मां काफ़ी अच्छा पियानो बजा लेती थीं और चाहती थीं कि माइल्स भी पियानो सीखें. लेकिन तेरह साल की उमर में जब माइल्स के पिता ने उनकी संगीत शिक्षा का प्रबन्ध किया तो वाद्य चुना ट्रम्पेट. आगे चल कर माइल्स ने संकेत दिया कि ऐसा शायद उनके पिता ने अपनी पत्नी को चिढ़ाने के लिए किया था जिन्हें ट्रम्पेट की आवाज़ पसन्द नहीं थी. माइल्स के शिक्षक एलवुड बुकैनन सख़्त किस्म के गुरु थे और सुर ठीक न निकले तो माइल्स के हाथों पर थप्पड़ जड़ने से गुरेज़ नहीं करते थे. माइल्स के अनुसार उनकी सुर-साधना का यह पाठ आगे चल कर उनके बहुत काम आया.
सोलह साल की उमर तक पहुंचते-पहुंचते माइल्स डेविस इतने माहिर हो चुके थे कि स्कूल के दौरान जब मौक़ा मिले, पेशेवर मण्डलियों में ट्रम्पेट बजा सकें. उसी दौर में जब माइल्स ने हाई स्कूल की पढ़ाई ख़त्म की एक मण्डली उनके शहर ईस्ट सेंट लूइस आयी जिसमें डिज़ी गिलेस्पी और चार्ली पार्कर भी थे. मण्डली के ट्रम्पेट वादक के बीमार पड़ने पर कुछ हफ़्तों के लिए माइल्स को उस मण्डली में शामिल कर लिया गया. इसके बाद मण्डली तो न्यू यौर्क लौट गयी लेकिन माइल्स के मन में तमाम तरह की लालसाएं बो गयी. 1944 के अन्त में माइल्स जूइलियार्ड संगीत विद्यालय में दाखिल होने के लिए न्यू यौर्क चले आये, लेकिन उनका मकसद था चार्ली पार्कर से राब्ता कायम करना, हालांकि सैक्सोफ़ोन-वादक कोलमैन हौकिन्स ने उन्हें बरजा भी था, जो चार्ली पार्कर के तीखे मिज़ाज और उनकी नशे की लत से वाकिफ़ थे. लेकिन माइल्स को उनके इरादे से डिगना आसान न था. जल्द ही उन्होंने अपने आदर्श वादक से सम्पर्क कर लिया और उन क्लबों में बजाने लगे जहां पार्कर के अलावा जैज़ के कुछ और जाने-माने संगीतकार अपना कौशल दिखाते, जैसे थेलोनिअस मंक, फ़ैट्स नवारो, केनी क्लार्क और जे.जे.जौन्सन.
साल भर बाद ही माइल्स डेविस ने न्यू यौर्क के क्लबों में पेशेवर वादक के तौर पर कदम रख दिया और 1945 में वे पहली बार किसी रिकौर्डिंग स्टूडियो में दाख़िल हुए, मगर मण्डली के मुख्य वादक के रूप में नहीं, बल्कि एक नये वादक की हैसियत से. कुछ समय बाद जब डिज़ी गिलेस्पी ने चार्ली पार्कर का बैण्ड छोड़ा तो माइल्स उस जगह को भरने के लिए बुलाये गये और पार्कर के साथ माइल्स ने कई बार रिकौर्डिंग में हिस्सा लिया. इसी दौर में वे पुराने असर से बाहर आ कर अन्तत: अपनी शैली निखारने वाले थे और बीबौप का पल्ला छोड़ कर उस शैली की तरफ़ बढ़ने वाले थे जो कूल जैज़ कहलायी. 

https://youtu.be/KcoqwKEtYDs?list=PLED9CF5CAEE7AD60A (माइल्स डेविस - रौकर )

पार्कर के साथ माइल्स का साथ तीन साल चला, लेकिन पार्कर के नशे की लत और तीखे स्वभाव ने आख़िरकार 1948 में माइल्स को पार्कर से अलग हो कर अपना रास्ता तलाश करने के लिए मजबूर कर दिया.
अगले दस साल माइल्स के जीवन में कई तरह की तब्दीलियां पैदा करने वाले थे. जहां एक तरफ़ वे अपने संगीत को नयी-नयी ऊंचाइयों पर ले जा रहे थे और जैज़ की दुनिया में अपना सिक्का जमा रहे थे, वहीं उनकी निजी ज़िन्दगी उन्हें उस अवसाद की तरफ़ धकेल रही थी, जो उन्हें हेरोइन के ज़हरीले पंजों का कैदी बना देने वाली थी.  1948 में पार्कर से अलग होने के बाद माइल्स ने संगीत-निर्देशक गिल एवन्स के साथ एक नये तजरुबे को शुरू किया और कुछ ऐसे वाद्य भी मण्डली में शामिल किये जो आम तौर पर और्केस्ट्रा के वाद्य माने जाते थे, जैज़ के नहीं जैसे फ़्रान्सीसी हौर्न और ट्यूबा. मण्डली का नाम माइल्स डेविस नोनेट रखा गया. हालांकि परम्परागत जैज़ संगीतकारों में इस सब को ले कर कुछ ग़ुस्सा था, ख़ास तौर पर मण्डली में गोरे वादकों की उपस्थिति पर, मगर माइल्स के लिए यह एक नयी शुरुआत थी. 1949 में माइल्स फ़्रान्स गये और वहां उन्होंने पाया कि सुनने वाले उनके रंग में नहीं, उनके संगीत में दिलचस्पी रखते थे और अश्वेत संगीतकारों के लिए वहां का माहौल बेहतर था. इसी दौरे में उनका परिचय अभिनेत्री जुलिएट ग्रेको से हुआ और जल्दी ही यह परिचय प्रेम में बदल गया. इस सब को देखते हुए हालांकि लोगों ने उनसे पैरिस में रह् जाने को कहा, माइल्स न्यू यौर्क लौट आये.
लौटने के बाद माइल्स धीरे-धीरे मानसिक अवसाद में डूबते चले गये. इसके पीछे वे जूलिएट ग्रेको से अपने अलगाव के साथ-साथ समीक्षकों की नाइन्साफ़ी को भी दोषी ठहराते जो उनके नोनेट वाले तजरुबे के लिए श्रेय उनकी बजाय उनकी मण्डली के सहयोगियों  को दे रहे थे. इसी समय अपने स्कूल के दिनों की साथिन के साथ उनके सम्बन्ध भी उजागर हो गये जो न्यू यौर्क में उनके साथ रहती थी और जिससे उनके दो बच्चे भी थे. डेविस ने आम जैज़ संगीतकारों की तरह हेरोइन में सहारा तलाश किया. तीन-चार साल में ही असर दिखायी देने लगा. ट्रम्पेट पर उनकी पकड़ ढीली पड़ने लगी और एक दौरे में वे गिरफ़्तार भी हुए. अपनी बुरी हालत को देखते हुए माइल्स ने 1954 में अपने पिता के घर लौटने का फ़ैसला किया और फिर अपने को एक कमरे में तब तक बन्द रखा जब तक उनकी लत छूट नहीं गयी. लेकिन 1950-54 का यह दौर माइल्स के लिए फ़नकारी के लिहाज़ से काफ़ी ज़रख़ेज़ रहा. उन्हों ने कई महत्वपूर्ण संगीतकारों के साथ सहयोग किया, नयी तकनीकें सीखीं, अपने संगीत को कूल जैज़ से आगे की ओर ले जाने की राह खोजी और प्रेस्टिज रिकौर्डस नामक मशहूर कम्पनी के साथ अनुबन्ध करके जैज़ के नामी वादकों के साथ कई लोकप्रिय रिकौर्ड तैयार किये जिनमें से बैग्स ग्रूव और वौकिन जैसे रिकौर्ड आज भी लोगों को याद हैं. इसी दौर में जब एक तरफ़ माइल्स अपनी निजी परेशानियों से जूझ रहे थे और दूसरी तरफ़ नयी राहें खोज रहे थे, उनके अलग-थलग रहने वाली कैफ़ियत को देख कर लोगों ने उन्हें "अंधेरे का राजा" कहना शुरु कर दिया था.

https://youtu.be/-xkiPPSVRvE (माइल्स डेविस - इफ़ आई वर अ बेल)

1955 में स्वस्थ हो कर न्यू यौर्क लौटने के बाद माइल्स ने अपनी मण्डली बनाने की कोशिशें शुरू कर दीं और आहिस्ता-आहिस्ता वे उन वादकों को छांटने लगे जो उनकी तरह नये के मुरीद थे. जल्द ही माइल्स डेविस क्विण्टेट के नाम से एक मण्डली तैयार हो गयी. अब माइल्स अपने सारे हुनर को सामने रख सकते थे. नयी मण्दली के साथ-साथ नया अनुबन्ध भी आया. इस बार कोलम्बिया रिकौर्ड्स के साथ. लेकिन नयी कम्पनी के साथ रिकौर्डिंग करने से पहले उन्हें प्रेस्टिज रिकौर्ड्स के साथ पुराने अनुबन्ध को पूरा करना था. ये सारे ऐल्बम प्रेस्टिज रिकौर्ड्स ने अगले तीन -चार वर्षों में सुनने वालों के सामने पेश किये और इनमें से कई रिकौर्ड ऐसे थे जिन्होंने माइल्स को जैज़ जगत की एक जानी-मानी हस्ती बना दिया. एक अर्से से माइल्स जैज़ को उस लीक से निकालने की कोशिश कर रहे थे और उन्होंने इस सिलसिले में बीबौप से ले कर कूल जैज़ तक का सफ़र करते हुए क्यूबा और लातीनी अमरीका के दूसरे देशों में बसे अफ़्रीकी संगीतकारों के तजरुबों का जायज़ा लिया था, तभी 1958 में पश्चिमी अफ़्रीका के देश गिनी से आयी एक मण्डली को सुनते हुए माइल्स ने ख़ालिस अफ़्रीकी वाद्य कलिम्बा को सुना. 

http://youtu.be/4XD02oMHC5E (कलिम्बा)
  
इसमें दो या अधिक सुरों के ताल-मेल पर काफ़ी देर तक टिके रह कर संवादी और विवादी सुरों में आवा-जाही की जा सकती थी. माइल्स को मालूम था कि ट्रम्पेट में यह आसानी से सम्भव नहीं था तो भी वे इस तकनीक को अपनी रचनाओं में शामिल करना चाहते थे, ख़ास तौर पर इसलिए कि उनका ढर्रा ही आशु रचना का था, पहले से तयशुदा धुन को बजाने का नहीं, भले ही वे किसी और द्वारा पहले बजायी गयी एक पुरानी धुन को पेश कर रहे हों. ताल-मेल और बेताले होने के बीच की यह आवाजाही जैज़ के लिए उस समय एक नया विचार था, जहां बीबौप के जल्दी-जल्दी बदलने वाले ताल-मेल का चलन था. 
अब तक माइल्स की मण्डली का नाम "क्विण्टेट" की बजाय "सेक्स्टेट" हो गया था और इसमें माइल्स ने बहुत ध्यान से अपने साथी वादकों का चुनाव किया था. इसी जत्थे के साथ 1959 में माइल्स डेविस रिकौर्डिंग स्टूडियो में दाख़िल हुए और उन्होंने "काइण्ड औफ़ ब्लू" के सारे टुकड़े -- कहा जाय सारे राग -- रिकौर्ड किये. अब तक जो कौशल माइल्स ने अर्जित किया था, संगीत के बारे में सोचा-विचारा था, वह सब जैसे एक जगह आ कर इकट्ठा हो गया था. इन सभी धुनों में ताज़गी तो थी ही जैसे कोई फूल तत्काल खिल रहा हो, एक अजीब मन पर छा जाने वाली कैफ़ियत भी थी, मानो संगीतकार बजाते हुए एक तरफ़ अपने किसी साथी से दिल खोल कर बात कर रहा हो और उसी के साथ अन्दर किसी ख़याल में डूबा हुआ सोच रहा हो. अकारण नहीं कि काइण्ड औफ़ ब्लू बिक्री के लिहाज़ से अब तक का सबसे लोकप्रिय रिकौर्ड साबित हुआ है.
काइण्ड औफ़ ब्लू के बाद माइल्स डेविस ने और बहुत-से पड़ाव तय किये. वे जैज़ को फ़्यूजन की तरफ़ ले गये. उन्होंने इलेक्ट्रिक वाद्य भी इस्तेमाल किये और जैज़ को उन धाराओं से मिलाने की कोशिशें जारी रखीं जो युवा सुनने वालों को आकर्षित कर रही थीं जैसे फ़ंक और रौक. आने वाले दसियों वादकों और संगीतकारों पर उनके वादन ही का नहीं, संगीत के बारे में उनके विचारों का भी गहरा असर पड़ा, लेकिन "काइण्ड औफ़ ब्लू" न सिर्फ़ माइल्स डेविस का शाहकार है, वह अब तक का सबसे ज़्यादा बिकने वाला जैज़ ऐल्बम भी बना हुआ है. वैसे, आगे चल कर माइल्स डेविस इन पुरानी धुनों को दोबारा पेश करने से इनकार करते रहे. उनका कहना था, समय बदलता है, संगीतकार बदलता है और इसके साथ उसका संगीत भी बदलता है. 

https://youtu.be/X3jcoYvU5qg (माइल्स डेविस - माई मैन’ज़ गौन नाओ}
(जारी)

Sunday, April 12, 2015

जैज़ पर लम्बा आलेख




चट्टानी जीवन का संगीत 

बीसवीं कड़ी



23.

चालीस के दशक में चार्ली पार्कर ने डिज़ी गिलिस्पी और फिर बाद में माइल्स डेविस के साथ मिल कर जो नया अन्दाज़े-बयाँ विकसित किया था, उसने पहले की अदाकारी को लय, ताल और सुर के लिहाज़ से कहीं अधिक विविध और पेचीदा, संश्लिष्ट और जटिल बना दिया। यही कारण है कि जैज़ के क्षेत्र में चार्ली पार्कर और माइल्स डेविस जैसे संगीतकारों के आगमन के बाद हम पाते हैं कि संगीतकार उत्तरोत्तर धुनों को स्वान्तः सुखाय, मानो ख़ुद अपने लिए पेश कर रहे हैं और कभी-कभी तो श्रोताओं को बिल्कुल नज़रन्दाज़ कर देते हैं। ये सभी नये संगीतकार उत्तरोत्तर अपने आपको महज़ पेशेवर संगीतकार अथवा ‘मनोरंजन-कर्ता’ की बजाय कलाकार मानने लगे। 

https://youtu.be/zqNTltOGh5c?list=PLdhGk7gKuZxYV8bG4lrWS2viBrmp3bZnh (माइल्स डेविस - सो वौट)

इस नयी धारा के साथ ही जैज़-संगीत के सभी बुनियादी उपकरण जुटा लिये गये थे। ब्लूज़ की उदासी और रैगटाइम की मस्ती को मिला कर जो शैली विकसित हुई थी, वह अब एक कला का रूप ले चुकी थी। छोटी-छोटी मण्डलियों की तकनीक के साथ संगीतकारों के सामने बड़े-बड़े बैण्डों की रंगारंग विविधता मौजूद थी। इसके अलावा जैज़-संगीत का अनिवार्य गुण -- ‘स्विंग’ -- तो था ही। यानी वह ख़ास गुण, जो इस संगीत को उसकी विशिष्ट ताल से जोड़ता था, मगर उसके साथ-साथ चार्ली पार्कर और माइल्स डेविस का अन्तरोन्मुखी वादन भी था। इसके अलावा कुछ ऐसे संगीतकार भी थे, जो बदलते हुए वक्त के साथ जैज़ को यूरोप की अन्य तकनीकों से जोड़ कर नयी दिशाएँ खोजने में संलग्न थे। क्योंकि कुल मिला कर इस समय तक जैज़ संगीत की धारा या तो संगीत के अब तक उपलब्ध उपकरणों का विस्तार करने की ओर बढ़ी थी या विभिन्न तकनीकों का मेल करने की ओर या फिर जैज़ की बुनियादी जड़ों की ओर वापसी की दिशा में।
इसके बावजूद नयी दिशाओं की खोज बराबर जारी रही। इस बार नयी दिशा की खोज जैज़-संगीत के तकनीकी विकास के सन्दर्भ में उतनी नहीं थी, जितनी उसकी भावनात्मक विरासत के सन्दर्भ में। यह शायद इस वजह से था कि जैज़ पर शास्त्रीयता बहुत हावी होने लगी थी और उसकी जीवन्तता तकनीकी कलाबाज़ियों के नीचे दब-सी चली थी। नयी दिशा की खोज करने वालों या कहा जाय कि जैज़ को फिर से उसकी परम्परा के साथ जोड़ने वालों में ट्रम्पेट वादक क्लिफ़र्ड ब्राउन का नाम लिया जा सकता है।

https://youtu.be/UXPzAasKWQg (क्लिफ़र्ड ब्राउन - चेरोकी)

क्लिफ़र्ड ब्राउन (1930-56) की पैदाइश एक संगीत-प्रेमी परिवार में हुई थी. उनके पिता खुद ट्रम्पेट बजाते थे और उन्होंने अपने चार छोटे बेटों को मिला कर गायकों की एक मण्डली तैयार कर दी थी. बचपन में अपने पिता की चमकती हुई ट्रम्पेट को देख कर क्लिफ़र्ड ब्राउन इतना मुग्ध हो गये थे कि दस साल की उमर से उन्होंने अपने स्कूल के बैण्ड में बजाना शुरू कर दिया था और उनके उत्साह को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें तेरह साल की उमर में उनकी अपनी ट्रम्पेट खरीद दी थी और उनके लिए एक संगीत शिक्षक का भी प्रबन्ध कर दिया था. विश्वविद्यालय तक पहुंचते-पहुंचते क्लिफ़र्ड संगीत सभाओं में बजाने लगे थे और यकीनन उन्होंने सुनने वालों पर असर डाला ही होगा, क्योंकि बीस साल की उमर में जब वे एक कार दुर्घटना में घायल हो कर साल भर तक हस्पताल में इलाज कराते रहे तो सुप्रसिद्ध जैज़ संगीतकार डिज़ी गिलेस्पी ने हस्पताल में आ कर उनको राय दी थी कि स्वस्थ हो जाने के बाद वे संगीत को पेशेवर तौर पर अपनाने के बारे में गम्भीरता से सोचें. 
क्लिफ़र्ड ब्राउन ने इस राय पर अमल किया था और जल्द ही वे व्यावसायिक वादकों की अगली पांत में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गये थे. उनके ट्रम्पेट वादन के शुरुआती दौर पर प्रसिद्ध जैज़ वादक फ़ैट्स नवारो का असर था लेकिन जल्द ही क्लिफ़र्ड ब्राउन ने अपनी शैली विकसित कर ली थी जो चार्ली पार्कर ही की परम्परा में बीबौप को आगे बढ़ाती थी. तेज़ रफ़्तार वाली धुनें जिनमें गर्मजोशी हो लेकिन अपनी रफ़्तार के बावजूद जिनमें हर सुर स्पष्ट सुना जा सके और वाद्य की पूरी गुंजाइशों का इस्तेमाल किया गया हो. अपने कौशल के चलते क्लिफ़र्ड जटिल संरचनाओं के माध्यम से और सुरों में तब्दीली करके बीबौप की "बीजगणित जैसी" सीधी रेखा वाली लय-ताल में प्रयोग कर लेते थे. जल्दी ही क्लिफ़र्ड ब्राउन ने ड्रम-वादक मैक्स रोच और सैक्सोफ़ोन-वादक सनी रौलिन्स के साथ अपना बैण्ड गठित कर लिया और कुछ बेहतरीन धुनें रिकौर्ड करायीं. यहां उनकी और मैक्स रोच की बजाई एक पुरानी धुन "स्टौम्पिन्ग ऐट द सवौय" पेश है :

https://youtu.be/VcQmn5d9-b4 (क्लिफ़र्ड ब्राउन और मैक्स रोच - स्टौम्पिन्ग ऐट द सवौय)


जैज़ के आम परिदृश्य से उलटी धारा में चलते हुए क्लिफ़र्ड ब्राउन ने खुद को हर तरह के नशे से दूर रखा था और यह साबित कर दिया था कि अच्छा वादक बनने के लिए नशे की ऐसी कोई ज़रूरत नहीं होती. तभी जब वे जैज़ संगीत में एक लम्बी उड़ान भरने के लिए पर तौल रहे थे 1956 में एक कार दुर्घटना में असमय ही क्लिफ़र्ड ब्राउन का निधन हो गया, अगर समय के हिसाब से देखा जाये तो क्लिफ़र्ड ब्राउन ने कुल-जमा चार साल तक अपने संगीत की रिकौर्डिंग करायी थी, लेकिन यह उनकी प्रतिभा ही का कमाल था कि उन्होंने जैज़ को फिर उसकी जड़ों से जोड़ने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

 24.

उन्हीं दिनों एक और संगीतकार-पियानो वादक हौरेस सिल्वर जैज़ की जीवन्तता को पुनर्जीवित करने के लिए नीग्रो गिरजों को ‘गॉस्पेल’ संगीत की छान-बीन कर रहे थे और उस बीते हुए ज़माने की धुनें तलाश रहे थे, जब ब्लूज़ और नीग्रो भजनों में इतना फ़र्क़ नहीं था। कुल मिला कर सिल्वर की कोशिश जैज़-संगीत के उस मूलभूत आधार को फिर से खोज निकालने की थी, जहाँ से वे पहले-पहल शुरू हुआ था। इस तलाश में नीग्रो भजनों की ओर जाने वालों में अकेले सिल्वर ही नहीं थे। बहुत सारे नीग्रो संगीतकारों के लिए जैज़ को ‘अपना संगीत’ कह कर फिर से अपने नज़दीक लाने का शायद यह भी एक रास्ता था -- यानी ऐसा संगीत, जो उनके अपने अनुभव से, उनकी अपनी ज़िन्दगी से उपजा हो। 

https://youtu.be/CWeXOm49kE0 (हौरेस सिल्वर - सौन्ग फ़ौर माई फ़ादर)

हौरेस सिल्वर (1928-2014) का जन्म अमरीका के सबसे दक्षिणी राज्य कनेटिकट में हुआ था. उनके पिता अफ़्रीका के पश्चिमी सिरे पर मध्य अतलान्तिक महासागर के टापू केप वर्दे के रहने वाले थे जो पुर्तगालियों का उपनिवेश रहा था. लिहाज़ा हौरेस को अपने पिता की ओर से पुर्तगाली संगीत के सुर-ताल का परिचय भी मिला. हालांकि हौरेस ने कभी इस बात को प्रचारित नहीं किया कि वे पुर्तगाली भाषा या संगीत-परम्परा की भी अच्छी जानकारी रखते थे. बहुत बाद में चल कर उन्होंने "केप वर्डियन ब्लूज़" के नाम से एक ऐल्बम जारी करके अपनी विरासत को तस्लीम किया.

https://youtu.be/PygdDdJ0IRY (द ऐफ़्रिकन क्वीन - केप वर्डियन ब्लूज़ - हौरेस सिल्वर)


शुरुआत हौरेस ने सैक्सोफ़ोन बजाने से की थी, मगर बाद में वे पियानो बजाने लगे. सिल्वर को पहला बड़ा मौक़ा 1950 में मिला जब सक्सोफ़ोन वादक स्टैन गेट्ज़ ने उन्हें एक क्लब में बजाते सुना और अपने बैंड में शामिल कर लिया. स्टैन ही के साथ हौरेस सिल्वर ने अपना पहला ऐल्बम रिकौर्ड कराया. 1951 से 1955 तक सिल्वर लगातार दौरे करते रहे और अपनी कला को निखारते रहे. 1955 में उन्होंने अपना ऐल्बम "हौरेस सिल्वर ऐण्ड द जैज़ मेसेन्जर" रिकौर्ड कराया जिसकी हर तरफ़ भरपूर तारीफ़ हुई.

https://youtu.be/5hjWcEPyHhk?list=PL49EA3C341BF92DFE (हौरेस सिल्वर - रूम 608 - जैज़ मेसेन्जर)

1960 के दशक तक हौरेस सिल्वर धीरे-धीरे जैज़ के विभिन्न पहलुओं में हाथ आज़माते रहे और कुछ देर आक्रामकता से बजाते रहने के बाद अचानक रूमानी सुरों पर आ जाते और ये सारे परिवर्तन एक ही धुन में बड़ी तेज़ी से होते.

https://youtu.be/ANTpZU2m9pY (सिक्स पीसेज़ औफ़ सिल्वर)

जब 1960 और 1970 के दशकों में अमरीका में सामाजिक असन्तोष और उथल-पुथल तेज़ हुई तो सिल्वर ने अपने संगीत के माध्यम से अपना सुर भी सामाजिक परिवर्तनकारियों के साथ मिलाते हुए अपना बयान अपने संगीत के माध्यम से दर्ज कराया. उनका महत्वपूर्ण ऐल्बम युनाइटेड "द स्टेट्स औफ़ माइण्ड" इसकी एक मिसाल है.

https://youtu.be/xCXB45lTeDc (हौरेस सिल्वर - द मर्जर औफ़ द माइण्ड्स)

"द युनाइटेड स्टेट्स औफ़ माइण्ड" के बाद सिल्वर ने जैज़ की जड़ों की तरफ़ जाने और पुराने भजनीकों की परम्परा को दोबारा जीवित करने का काम जारी रखा. उल्लेखनीय बात यह भी है कि मादक पदार्थों और नशे की अलग-अलग क़िस्मों से अटी-पड़ी जैज़ संगीत की दुनिया में क्लिफ़र्ड ब्राउन की तरह हौरेस सिल्वर भी नशों से दूर ही रहे. यही नहीं, हौरेस ने शोहरत और लोकप्रियता अर्जित करने के बाद ढेरों नये उभरते जैज़ संगीतकारों को बढ़ावा दिया. इसके साथ-साथ वे कई बार अपनी बनाई धुनों में अपने पसन्दीदा संगीतकारों के टुकड़े जोड़ लेते और इस तरह उन्हें ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करते. हौरेस सिल्वर आर्ट टेटम और थेलोनिअस मंक जैसे जैज़ संगीतकारों के साथ-साथ नैट किंग कोल जैसे गायकों से भी प्रभावित थे. नैट किंग कोल ने पुराने भजनीकों की परम्परा को ज़िन्दा ही नहीं रखा था, बल्क्जि उसमें नयी राहें भी खोजी थीं. यही वजह है कि हौरेस सिल्वर की धारा आगे चल कर अपने ही समकालीन ब्लूज़ गायक रे चार्ल्स जैसे सम्वेदनशील ब्लूज़ गायकों से भी जुड़ती नज़र आयी जिनमें नीग्रो भजनों की परम्परा लगातार एक अन्तर्धारा की तरह मौजूद रही है.

https://youtu.be/fRgWBN8yt_E(रे चार्ल्स - जौर्जिया औन माई माइण्ड)

रे चार्ल्स (1930-2004) के योगदान को किसी लेख में बयां करना सम्भव नहीं है, इसके लिए तो एक किताब ही दरकार होगी. यह हैरत की बात नहीं है कि उनकी गायकी के बारे में बात करते हुए फ़्रैंक सिनाट्रा जैसे गायक-अभिनेता ने उन्हें "जीनिअस" कहा था. और यह तब जब रे चार्ल्स भरपूर शोहरत का दौर देखने के बाद, बीच के वर्षों में गुमनामी का दौर भी झेल चुके थे. मगर यह उनकी प्रतिभा ही थी कि वे एक मंज़िल तक पहुंचने के बाद अगले राहियों के साथ हो लेते और उनसे आगे निकल जाते.
रे चार्ल्स अभी चार बरस के थे कि उनकी आंखें जवाब देने लगी थीं और सात बरस तक आते-आते वे पूरी तरह अन्धे हो चुके थे. लेकिन उनके अन्दर संगीत सीखने की जो लगन थी उसकेबल पर उन्होंने ब्रेल पद्धति से पियानो के सुरों को पहचानना सीखा -- बायें हाथ से दायें हाथ की हरकतों को और दायें हाथ से बायें हाथ की हरकतों को, और फिर इन दोनों में ताल-मेल बैठाना . ज़ाहिर है, यह आसान नहीं था, मगर आगे चल कर पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के इस प्रशिक्षण ने ही रे चार्ल्स को रिदम और ब्लूज़ से ले कर भजनीकों की शैली तक, जैज़ की विभिन्न शैलियों को पूरी हुनरमन्दी के साथ निभाने की क़ूवत बख़्शी.
हौरेस सिल्वर की तरह रे चार्ल्स भी लूइ आर्मस्ट्रौन्ग, आर्ट टेटम और नैट किंग कोल से प्रभावित थे. लेकिन शोहरत की राह आसान नहीं थी. 1949 में "कन्फ़ेशन ब्लूज़" के नाम से जारी किये गये रिकौर्ड से पहले रे चार्ल्स ने बेहद ग़रीबी के दिन भी देखे, कई बार बिना खाये रह जाते हुए. इस पूरे दौर में वे दूसरे गायकों और वादकों के लिए संगीत सजाते. लेकिन "कन्फ़ेशन ब्लूज़" ने यह सिलसिला बदल दिया. इसके बाद 1960 में रिकौर्ड किये गये गीत "जौर्जिया औन माई माइण्ड" ने उन्हें देश भर में प्रसिद्ध कर दिया और पहला ग्रैमी पुरस्कार दिलाया :

https://youtu.be/fRgWBN8yt_E(रे चार्ल्स - जौर्जिया औन माई माइण्ड)

अगले रिकौर्ड "हिट द रोड जैक" से रे चार्ल्स ने साबित कर दिया कि 1960 का ग्रैमी रिकौर्ड कोई तुक्का नहीं था. "जौर्जिया औन माई माइण्ड" से बिलकुल अलग शैली में गाये गये गीत "हिट द रोड जैक" में जैज़ की सारी विशेषताएं थीं और इस पर उन्हें दूसरा ग्रैमी पुरस्कार मिला.

https://youtu.be/0rEsVp5tiDQ (hit the road jack)

बहुत-से नीग्रो और जैज़ गायकों की तरह रे चार्ल्स भी उस सामाजिक आन्दोलन से अछूते नहीं रहे जिसमें मार्टिन लूथर किंग से ले कर मैल्कम एक्स जैसे अलग-अलग क़िस्म के आन्दोलनकारी शामिल थे. इसी दौर में रे चार्ल्स ने 1975 में युवा गायक स्टीवी वण्डर के गीत "लिविंग फ़ौर द सिटी" को अपनी शैली में पेश करके इस आन्दोलन से एकता प्रकट की. गीत में उस सारे भेद-भाव और उत्पीड़न का ज़िक्र था जो अफ़्रीकी मूल के अमरीकियों को गोरों के हाथों सहना पड़ता था. लीजिये पहले सुनिये स्टीवी वण्डर का मूल गीत :

https://youtu.be/rc0XEw4m-3w (स्टीवी वण्डर - लिविंग फ़ौर द सिटी)

इसी गीत को जब रे चार्ल्स ने गाया तो अपनी शैली से उसमें कई नये रंग भर दिये :

https://youtu.be/X8cz1Z7q4hA (रे चार्ल्स - लिविंग फ़ौर द सिटी)

कहने की बात नहीं कि दोनों ही गीत बहुत लोकप्रिय हुए और उन्होंने नीग्रो जाति के सामाजिक संघर्ष को और बल ही दिया. "लिविंग फ़ौर द सिटी" पर रे चार्ल्स को फिर एक बार ग्रैमी पुरस्कार से नवाज़ा गया. इस गीत की पहुंच बहुत गहरी थी और उसे सुनते हुए बेसाख़्ता प्रसिद्ध नीग्रो कवि-गायक-संगीतकार गिल स्कौट हेरौन के गीत "वौशिण्ग्टन डी सी" की याद हो आती है जिसमें गिल स्कौट हेरौन ने बड़े दर्द और व्यंग से देश की राजधानी में हुक्मरानों और अमरीकी संविधान की नाक के नीचे नीग्रो लोगों की दुर्दशा बयान की है :

https://youtu.be/MF4UjnzlD3Q (Washington DC)

रे चार्ल्स की तरफ़ लौटें तो 1980 के दशक में उनकी लोकप्रियता घटने लगी. कारण था नयी-नयी शैलियों का चलन में आना जो कुछ दिन बहार दिखा कर जाती रहतीं. इस दौर में रे चार्ल्स ने अपनी डगर नहीं छोड़ी और जब वे इस विपरीत दौर से उभर कर सामने आये तो उन्होंने एक बार फिर धूम मचा दी. मृत्यु से कुछ ही पहले उन्होंने पण्डित रवि शंकर की बेटी नोरा जोन्स के साथ अपना एक पुराना गीत पेश किया -- "हियर वी गो अगेन" -- जिस पर नोर जोन्स को नवां ग्रैमी पुरस्कार मिला. पहले रे चार्ल्स का मूल गीत सुनिये : 
https://youtu.be/yNDUU4gHCuE (रे चार्ल्स - हियर वी गो अगेन )

और अब एक पुराने गायक और नयी गायिका की संयुक्त पेशकश :

https://youtu.be/DkkzlF1D3hg (नोरा जोन्स और रे चार्ल्स - हियर वी गो अगेन)

(जारी)


Saturday, April 11, 2015

चट्टानी जीवन का संगीत



जैज़ पर एक लम्बा आलेख

चट्टानी जीवन का संगीत 

उन्नीसवीं कड़ी

see this on http://neelabhkamorcha.blogspot.com/

23. थेलोनिअस मंक 

डिज़ी गिलेस्पी अगर बहिर्मुखी, मौज-मस्ती वाली शख़्सियत थे तो थेलोनिअस मंक (1917-1982)गम्भीर तबियत वाले "विचारक" वादक थे.  
थेलोनिअस मंक  के योगदान का अन्दाज़ा महज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि ड्यूक एलिंग्टन के बाद वे सबसे ज़्यादा रिकौर्ड किये गये जैज़ कम्पोज़र थे, हालांकि जहां ड्यूक एलिंग्टन ने 1000 टुकड़े रचे थे, मंक की रचनाओं की तादाद महज़ 70 थी, जिनमें "राउण्ड मिडनाइट," "ब्लू मंक," "रूबी माई डियर," "इन वौक्ड बड" और "वेल यू नीडण्ट" जैसी रचनाएं शामिल थीं. उनके पियानो वादन की शैली भी अनोखी थी. वे काफ़ी धमक के साथ पियानो बजाते मानो तबला बजा रहे हों और बीच में अचानक अन्तरालों का नाटकीय इस्तेमाल करते.

https://youtu.be/IKayR1oqC7w?list=RDIKayR1oqC7w (राउण्ड मिडनाइट)

सुरों में भी सामंजस्य की बजाय वे विस्वरता से काम लेते और सुरीली ऐंठनों का प्रयोग करते. ज़ाहिर है, उनकी शैली सबको पसन्द नहीं आती थी और जहां उनके मद्दाहों की नज़र में थेलोनिअस मंक एक रचनात्मक पियानोवादक थे जिन्होंने जैज़ को समृद्ध किया था, फ़िलिप लार्किन जैसे कुछ समीक्षकों ने उन्हें "पियानो पर टहलते हाथी" तक कह डाला था. इसके साथ ही वे अपने सरापे की वजह से भी ध्यान खींचते थे -- सूट, हैट और धूप के चश्मों की अनोखी क़िस्मों से भी -- और अपनी कुछ ख़ास अदाओं से भी, मसलन पियानो बजाते-बजाते उठ कर खड़े हो जाना और कुछ पल नाचने के बाद फिर बैठ कर बजाने लगना.

https://youtu.be/_40V2lcxM7k?list=RDIKayR1oqC7w (ब्लू मंक)

वैसे तो थेलोनिअस मंक ने छै साल की उमर से पियानो बजाना शुरू किया था और थोड़ी-बहुत संगीत शिक्षा भी हासिल की थी, लेकिन बहुत हद तक उन्होंने अपने बल पर ही संगीत की तालीम हासिल की थी और किशोरावस्था में एक धर्म-प्रचारक के साथ पियानो वादन करते हुए यात्राएं भी की थीं. फिर लगभग बीस साल की उमर में उन्होंने न्यू यौर्क के मैनहैटन इलाके में मिण्टन्स प्लेहाउस नामक नाइटक्लब में आजीविका के लिए पियानो बजाना शुरू कर दिया. उनकी अनोखी शैली बहुत हद तक इसी नाइटक्लब में पियानो बजाते हुए विकसित हुई थी, जहां काम के बाद एकल वादकों के बीच मुक़ाबले होते थे जिनमें अच्छे-अच्छे फ़नकार हिस्सा लेते थे. जैज़ में जो नया मुहावरा सामने आ रहा था, उसके बहुत-से वादक जैसे डिज़ी गिलेस्पी, चार्ली पार्कर और माइल्स डेविस इस नाइटक्लब में बजाने के लिए आते और यहीं थेलोनिअस मंक का परिचय इन सब से हुआ. यों मंक को   जिस कलाकार ने प्रभावित किया था, वे थे ड्यूक एलिंग्टन और जेम्स जौनसन.
एक बार थेलोनिअस मंक ने अपनी राह बना ली, उसके बाद उन्हें अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में देर नहीं लगी. 1950 तक आते-आते उनका शुमार नये फ़नकारों की पहली पांत में होने लगा था. लेकिन तभी एक ऐसा हादसा हुआ जिस ने थेलोनिअस मंक की ज़िन्दगी पर गहरा असर डाला. अगस्त 1951 में न्यू यौर्क शहर की पुलिस ने सड़क के किनारे खड़ी एक कार की तलाशी ली जिसमें मंक और उनके मित्र बड पावेल बैठे हुए थे. तलाशी में पुलिस को कार में नशीले पदार्थ मिले जो बड पावेल के थे. मंक ने पावेल के खिलाफ़ गवाही देने से इनकार कर लिया और पुलिस ने मंक को सबक़ सिखाने के लिए कैबरे में बजाने का उनका लाइसेन्स ज़ब्त कर लिया. ज़ाहिर है, अब वे ऐसे किसी क्लब में नहीं बजा सकते थे जहां शराब मिलती थी. इससे उनके प्रदर्शनों पर एकबारगी पाबन्दी लग गयी और अगले पांच-छै वर्षों तक मंक ने अपना समय रागों की रचना करने, उन्हें रिकौर्ड कराने और शहर के बाहर के थिएटरों और संगीत सभाओं में अपने हुनर का जलवा दिखाने में बिताये. इसी बीच वे यूरोप के पहले दौरे पर भी गये. फिर जब 1956 में उन पर लगी पाबन्दी हटी और उनका लाइसेन्स वापस मिला तो एक बार फिर उन्होंने न्यू यौर्क में बड़े-बड़े क्लबों में बजाना और बड़ी-बड़ी कम्पनियों के साथ अपना संगीत रिकौर्ड कराना शुरू किया. जून 1957 में अपनी पत्नी नेली स्मिथ के नाम पर रची और रिकौर्ड करायी गयी धुन "नेली के साथ गोधूलि" ने सुनने वालों और समीक्षकों के सामने थेलोनिअस मंक की रागदारी के कौशल को उजागर कर दिया.  "नेली के साथ गोधूलि" शुद्ध रूप से मंक की अपनी रचना थी और इसकी अदायगी में वे पहले से तय किये सुरों और लय-ताल से ज़रा भी नहीं हटे थे, कोई आशु वादन की कोशिश नहीं थी. उन्होंने उसकी रचना बड़े ध्यान और मेहनत से की थी.

https://youtu.be/QIVoOwOMq2c (नेली के साथ गोधूलि)

अगले दस साल थेलोनिअस मंक के उर्वर वर्ष थे और उन्होंने पियानो पर अनेक जाने-माने वादकों के साथ संगत की -- माइल्स डेविस, जौन कोल्ट्रेन, डिज़ी गिलेस्पी और आर्ट ब्लेकी. लेकिन इसी बीच मंक का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था. वे रचनात्मक सक्रियता और अवसाद के दो छोरों के बीच झूलने लगे थे. नतीजा यह हुआ कि उनकी रचनात्मकता धीमी पड़ गयी. 1970 तक आते-आते थेलोनिअस मंक जैज़ के परिदृश्य से लगभग ग़ायब हो चुके थे. मण्डली के नेता के रूप में उनकी आखिरी बड़ी रिकौर्डिंग का क़िस्सा बयान करते हुए उनके साथ बीसेक साल से संगत करने वाले बेस-वादक ऐल मैक्गिबन ने बताया कि उस रिकौर्डिंग के बाद जब मंक डिज़ी गिलेस्पी, काई विण्डिंग, सनी स्टिट और आर्ट ब्लेकी जैसे जैज़ के महारथियों के साथ पूरी दुनिया के दौरे पर निकले तो उस समूचे दौरे में उन्होंने "बस दो शब्द, सचमुच दो शब्द" कहे. न तो उन्होंने किसी को "गुड मौर्निंग" कही, न "गुड नाइट" और न "समय क्या है?" जबकि एक अन्य जीवनी में उनके जीवनीकार ने कहा कि "मंक माइल्स डेविस के बिलकुल विपरीत हैं, वे सारा समय संगीत ही के बारे में बात करते रहते हैं और कई बार कुछ समझाने के लिए अगर ज़रूरी हो तो घण्टों खर्च कर सकते हैं."

https://youtu.be/zriS77PCaTk?list=RDIKayR1oqC7w
थेलोनिअस मंक के आखिरी छै साल अपनी संरक्षिका और मित्र बैरोनेस पैनोनिका डि कोएनिग्सवार्टर की देख-रेख में गुज़रे और इस अर्से में उम्होंने एक बार भी पियानो नहीं बजाया हालांकि उनके कमरे में हमेशा पियानो रखा रहता था और उन्होंने बहुत कम मुलाकातियों से भी बात की. 1982 में दिमाग़ की नस फट जाने से उनका निधन हो गया. बाद में चल कर थेलोनिअस मंक को जैज़ में उनके योगदान के लिए मरणोपरान्त ग्रैमी सम्मान और पुलिट्ज़र पुरस्कार भी दिया गया और उनके नाम पर एक संस्थान भी स्थापित हुआ. जैसे-जैसे वक़्त गुज़रा, अनगिनत संगीतकारों ने उनकी धुने और रचे गये राग बजाये और उनके नाम अपनी रचनाएं समर्पित करके उनके अप्रतिम योगदान को स्वीकार किया.
(जारी)