Wednesday, February 25, 2015

जैज़ संगीत पर एक लम्बा आलेख


चट्टानी जीवन का संगीत 

सत्रहवीं कड़ी


21.

"जैज़ का इतिहास चार शब्दों में बताया जा सकता है -- 
लुई आर्मस्ट्रौंग चार्ली पार्कर."
-- माइल्स डेविस 

तीस का दशक अगर प्रसार के लिहाज़ से जैज़ संगीत का सुनहरा काल था तो चालीस का दशक एक बिलकुल ही अलग ढंग से जैज़ के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ। पहली बार संगीतकारों के रवैये में एक तब्दीली आयी और उन्होंने अपने संगीत को केवल मनोरंजन से नहीं, बल्कि कला के प्रतिमानों से जोड़ कर देखना शुरू किया। 
जहाँ तक दूसरों पर असर डालने का सम्बन्ध है इसमें कोई शक नहीं कि लुई आर्मस्ट्रौंग जैज़ संगीत के पहले महान कलाकार के रूप में सामने आते हैं, लेकिन उनकी निगाह हमेशा अपने श्रोताओं की ओर केन्द्रित रही। यही नहीं, बल्कि तीस के दशक से पहले जैज़ का जो बुनियादी ढाँचा तैयार हुआ था, उसमें उन्होंने बहुत कम परिवर्तन किया। यही वजह है कि लुई आर्मस्ट्रौंग के साये में जैज़ संगीत उत्तरोत्तर मनोरंजन प्रधान होता गया था। न्यू और्लीन्स का प्रारम्भिक जैज़ खुली फ़िज़ा का संगीत था, उस शहर के बाशिन्दों का संगीत था और इस तरह पूरे समाज का अंग था। लुई आर्मस्ट्रौंग ने अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर इस संगीत को जन-सामान्य के दायरे से उठा कर संगीत की शोभा-यात्रा का सिरमौर बना दिया, ‘शो बिज़’ का अंग बना दिया। 
मगर दूसरी ओर ऐसे बहुत-से उभरते हुए संगीतकार थे, जो इस चकाचौंध-भरी व्यावसायिकता के ख़िलाफ़ थे, जो महसूस करते थे कि अगर जैज़-संगीत को सचमुच अपना सही रूप माना है तो उसे जन-रुचि और आत्माभिव्यक्ति के बीच सन्तुलन बनाये रख कर, तल्लीनता और द्वन्द्व के आपसी रिश्तों को पुष्ट करते चलना होगा। और चाहे प्रयोग और आशु रचना जिस भी सीमा तक की जाये जैज़ को अपनी जड़ों को विस्मृत नहीं करना है जो एक पूरी जाति के सुख-दुख, हर्ष-विषाद, संघर्ष  और आशा-आकांक्षा में गहरे उतरी हुई हैं. और इस धारा के सबसे बड़े प्रवक्ता थे -- चार्ली पार्कर, जिन्होंने अपने तईं जैज़ को एक बिल्कुल नयी दिशा में मोड़ दिया। सुनिये उन पर लिखा ऐन्टनी प्रोवो का गीत :

http://youtu.be/psHeVgk8rj8 (यार्ड्बर्ड स्वीट -- चार्ली पार्कर -- शब्दों के साथ)


चार्ली पार्कर (1920-55) कैन्सस सिटी में पैदा हुए थे और ग्यारह साल की उमर ही से सैक्सोफ़ोन बजाने लगे थे. चौदह का होने पर वे अपने स्कूल के बैण्ड में शामिल हो गये, ताकि उन्हें अभ्यास और प्रदर्शन के लिए स्कूल का वाद्य उप्लब्ध हो सके. अपने जीवन के शुरू ही में उन्हें "यार्डबर्ड" (आंगन पाखी) या सिर्फ़ "बर्ड" के नाम से बुलाया जाने लगा और यह नाम ज़िन्दगी भर उनके बुलाने वाला नाम रहा उनकी बहुत-सी रचनाओं की प्रेरणा भी रहा जैसे "यार्डबर्ड सुईट" --

http://youtu.be/HmroWIcCNUI  (यार्डबर्ड स्वीट -- चार्ली पार्कर )

कैन्सस सिटी में रहते हुए ही पार्कर ने सैक्सोफ़ोन वादक बनने का फ़ैसला कर लिया था और  यही वह समय था जब संगीत को गम्भीरता से लेते हुए पार्कर ने जम कर अभ्यास करना शुरू किया. अर्से बाद एक इण्टर्व्यू में उन्होंने बताया कि तकरीबन 3-4बरस का समय उन्होंने 15-15 घण्टे रोज़ाना अभ्यास किया था. इसी अर्से में काऊण्ट बेसी और बेनी मूटौन के बैण्डों ने उन पर गहरा असर डाला और इसी दौरान अपने शहर के स्थानीय मण्डलियों में सैक्सोफ़ोन बजाते हुए उन्होंने आशु रचना की बारीक़ियां भी सीखीं. 1938 में पार्कर ने जे मक्शैन की मण्डली में हिस्सा लेते हुए बाहर के शहरों के दौरे भी किये जो उन्हें शिकागो और न्यू यौर्क तक ले गये.


http://youtu.be/_KaNwqdlz50 (औटम इन न्यू यौर्क -- चार्ली पार्कर ) 


1939 में चार्ली पार्कर न्यू यौर्क आ गये और यह शहर उन्हें इतना भाया कि उन्होंने इसे ही अपना घर बना लिया. इससे कुछ समय पहले एक दुर्घटना में घायल हो जाने पर इलाज के दौरान चार्ली पार्कर को हस्पताल ही में मौर्फ़ीन की लत लग गयी जो आगे चल कर हेरोइन की लत में बदल गयी. जैज़ के परिवेश और परिदृश्य में गांजा, अफ़ीम, कोकीन और हेरोइन का नशा आम था और यह लत दूर होने के बजाय जड़ पकड़ती चली गयी. 
न्यू यौर्क में कुछ समय बाद पार्कर ने अर्ल हाइन्स की मण्डली में भी सैक्सोफ़ोन बजाया जहां उनकी मुलाक़ात डिज़ी गिलेस्पी से हुई जिनके साथ वे मिल कर बहुत-से अवसरों पर कार्यक्रम देने वाले थे. लेकिन सिर्फ़ डिज़ी गिलेस्पी ही नहीं, चार्ली पार्कर के परिचय के दायरे में ऐसे बहुत-से बुतशिकन आने वाले थे जो जैज़ में नयी राहें खोज रहे थे, मसलन, माइल्ज़ डेविस, थेलोनिअस मंक, मैक्स रोच, चार्ल्स मिंगस. ये सभी प्रतिभाशाली संगीतकार अब जैज़ को केवल मनोरंजन के दायरे से उठा कर एक कला-रूप बनाने पर कमर कसे बैठे थे. 

http://youtu.be/reqvTT8oCxs (ब्लूमडीडू -- पार्कर, गिलेस्पी, थेलोनिअस मंक) 

पार्कर का इनकी तरफ़ आकर्षित होना एक ही बालो-पर के अन्दीलबों के इकट्ठा होने जैसा था. एक दिन वे गिटारवादक विलियम फ़्लीट के साथ किसी सभा में बजा रहे थे जब अचानक उन्हें यह सूझा कि जैज़ की क्रोमैटिक सरगम  के बारह सुरों से किसी भी "की" में नियमपूर्वक जाया जा सकता है, जिससे जैज़ के एकलवादन की बहुत-सी पाबन्दियां तोड़ी जा सकती हैं. 


लेकिन इन सभी नये पैग़म्बरों के संगीत को शुरू-शुरू में काफ़ी विरोध का सामना पड़ा. इसके अलावा, दुर्भाग्य से उन दिनों संगीतकारों के संघ ने व्यावसायिक रिकौर्डिंग पर पाबन्दी लगायी हुई थे, इसलिए ढेरों अवसर बिना रिकौर्ड किये ही गुज़र गये. लेकिन पाबन्दी उठने के बाद साल भर बाद 1945 में दो ऐसे मौक़े आये जब इन सभी साथियों के साथ पार्कर ने अपनी कला का सिक्का जमा दिया. पहला मौका जून के महीने में डिज़ी गिलेस्पी, मैक्स रोच और बड पावेल की संगत में न्यू यौर्क के टाउन हौल की एक संगीत सभा में बजाने का था और दूसरा अवसर सवौये की एक रिकौर्डिंग सभा का था जिसमें सभी नये संगीतकार चार्ली पार्कर के नेतृत्व में इकट्ठा थे -- डिज़ी गिलेस्पी, माइल्ज़ डेविस, मैक्स रोच और कर्ली रसेल -- और इस रिकौर्डिंग के कई टुकड़े आज ऐतिहासिक माने जाते हैं, जैसे को-को, बिलीज़ बाउन्स और नाओ’ज़ द टाइम -- 

http://youtu.be/a6xoifznoZ8 (बिलीज़ बाउन्स -- चार्ली पार्कर) 

अगले दस साल चार्ली पार्कर की ज़िन्दगी के सुनहरे साल कहे जा सकते हैं हालांकि हेरोइन की लत ने उन्हें परेशान करना नहीं छोडा था. एक बार तो वे हस्पताल में छै महीने काट कर पूरी तरह "साफ़" हो आये थे और इसी समय उन्होंने "रिलैक्सिन ऐट द कैमारिलो" के नाम से एक गत कैमारिलो हस्पताल को खिराज देते हुए पेश की --

http://youtu.be/F22y1pHsCdo (रिलैक्सिन ऐट द कैमारिलो -- चार्ली पार्कर)

लेकिन न्यू यौर्क आने पर हेरोइन ने फिर पार्कर को अपनी चंगुल में जकड़ लिया. तो भी वे लगातार सैक्सोफ़ोन बजाते रहे और उन्होंने दर्जनों नयी धुनें रिकौर्ड कीं. अब तक यह नयी शैली लोकप्रिय हो चुकी थी और लोगों ने इसे बीबौप कहना शुरू कर दिया था. अपने साथियों -- थेलोनिअस मंक और चार्लस मिंगस -- की तरह चार्ली पार्कर भी संगीत की बुनियाद में दिलचस्पी रखते थे, इसलिए उनकी बहुत इच्छा थी कि वे पश्चिमी शस्त्रीय संगीत के वाद्य वृन्द यानी और्केस्ट्रा के साथ जैज़ को मिला कर बजायें और नये प्रयोग करें. वे शास्त्रीय संगीत में अच्छा-ख़ासा दखल रखते थे और जब 1949 में जब उन्हें जैज़ वादकों और शास्त्रीय संगीतकारों की एक मिली-जुली मण्डली के साथ सैक्सोफ़ोन बजाने का मौका मिला तो उन्हों ने कुछ शानदार धुनें रिकौर्ड कीं जैसे, "जस्ट फ़्रेण्ड्स," "एवरीथिंग हैपन्स टू मी," "एप्रिल इन पैरिस," "समरटाइम," और "इफ़ आई शुड लूज़ यू."

http://youtu.be/zPBAIVK-JRA (एप्रिल इन पैरिस -- चार्ली पार्कर)

जीवन के अन्त तक चार्ली पार्कर प्रयोग करते ही रहे, कभी संगीत की अदायगी को ले कर और कभी अपने वाद्य को ले कर जिसके अनेक नमूनों को उन्होंने आज़माया और सुनने वालों को अपनी महारत से चकित किया. उनके वादन की शैली अनोखी थी और उन्होंने जैज़ के हर पहलू पर अपनी प्रतिभा से अमिट छाप छोड़ी. 1955 में जब वे दिवंगत हुए तो अपने महज़ पैंतीस बरस के जीवन के पीछे न सिर्फ़ अनगिनत चाहने वालों का समुदाय छोड़ गये, बल्कि अपने प्रशंसक साथियों को भी. चार्ली पार्कर के साथ अनेक बार संगत कर चुके प्रख्यात सैक्सोफ़ोन वादक माइल्स डेविस ने उनके निधन पर शायद उन्हें सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यह कह कर दी,"जैज़ का इतिहास चार शब्दों में बताया जा सकता है -- लुई आर्मस्ट्रौंग चार्ली पार्कर."

http://youtu.be/eeM0JMgj358 (चार्ली पार्कर -- श्रेष्ठ चयन 1)

http://youtu.be/Ed4LyJ8h-jk (चार्ली पार्कर -- श्रेष्ठ चयन 2)

(जारी)

Tuesday, February 24, 2015

जैज़ संगीत पर एक लम्बा आलेख


जैज़ संगीत पर एक लम्बा आलेख 

चट्टानी जीवन का संगीत 

सोलहवीं कड़ी

20.

लोग यह समझते ही नहीं कि जो तुम गाना चाहते हो और 
जैसे गाना चाहते हो, उसे गाने के लिए कैसी लड़ाई लड़नी पड़ती है.
-- बिली हौलिडे

तीस के ही दशक में कई छोटे-छोटे मगर शानदार दल भी मौजूद थे और तीस के ही दशक में प्रख्यात ब्लूज़ गायिका बिली हॉलिडे ने अपने जादू भरे गायन से लोगों के दिल जीत लिये थे। 

http://youtu.be/YtqjW2uhBT4 ( लेडी सिंग्स द ब्लूज़ -- बिली हौलिडे)

चवालीस साल की छोटी-सी उमर में दिवंगत होने से पहले बिली हॉलिडे की दुखद कहानी एक सम्वेदनशील कलाकार और उसके इर्द-गिर्द के निपट व्यावसायिक वातावरण के द्वन्द्व की अनिवार्य परिणति थी।
वैसे तो अमरीका में रंगभेद के युग में किसी भी नीग्रो या नीग्रो मूल के कलाकार का जीवन आसान नहीं था, लेकिन संगीत और वह भी जैज़ संगीत के सिलसिले में बड़े-से-बड़े फ़नकारों को ऐसे-ऐसे उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता कि हैरत होनी स्वाभाविक थी. एक पल आप शोहरत की बुलन्दियों पर होते और दूसरे ही पल मामूली-से-मामूली लोग आपको आपके रंग और नस्ल की वजह से दो कौड़ी का बना कर रख सकते थे. हालांकि कहा जाता है कि अब हालात सुधर गये हैं, मगर लोग जानते हैं कि अन्दर की सच्चाई कुछ और ही है. और आज से सौ साल पहले तो हालत कहीं ज़्यादा ख़राब रही होगी जब भेद-भाव खुले तौर पर बरता जाता था. 
बिली हौलिडे को शोहरत की बुलन्दियों पर पहुंचने से पहले नारकीय स्थितियों से हो कर गुज़रना पड़ा था. पिता संगीतकार थे और मां को कुंवारेपन ही में मां बनने पर अपने मां-बाप के घर से निकल कर चले आना पड़ा था. बिली का जन्म फिलाडेल्फ़िया में १९१५ में हुआ, लेकिन एक तो उनके पिता ने उसकी मां से शादी नहीं की हुई थी, दूसरे दो साल बाद ही उसके पिता उन सब को छोड़ कर जैज़ गिटारवादक के तौर पर अपनी किस्मत आज़माने निकल लिये थे और तीसरी बात यह थी कि बिली की मां को अक्सर रेलगाड़ियों में काम मिलता जिसकी वजह से बिली को वापस उसके ननिहाल बौल्टिमोर भेज दिया गया. ज़ाहिर है, मां-बाप की देख-रेख के अभाव में दूसरों का आसरा बिली के बहुत काम नहीं आ सकता था. उसका बिगड़ जाना लाज़िमी था. 
नौ साल की उमर में जब इस लगभग बेआसरा लड़की से चालीस बरस के एक आदमी ने बलात्कार किया तो सज़ा भी उस आदमी को नहीं बिली को दी गयी. वह आवारगी के आरोप में बाल गृह के हवाले कर दी गयी, फिर जब वह छूट कर आयी और कुछ समय अपनी मां के साथ रही जो इस बीच एक होटल चलाने की कोशिश कर रही थी तो एक पड़ोसी ने उससे बलात्कार का प्रयास किया. बारह साल की उमर में बिली हौलिडे जो तब तक अपने असली नाम एलेनोरा फ़ैगन के नाम से जानी जाती थी, फिर रिमाण्ड होम पहुंच गयी. 1929 में बिली की मां ने न्यू यौर्क में कालों की बस्ती हारलेम में किस्मत आज़माने का फ़ैसला किया और बिली भी वहीं आ गयी. उनकी मकान मालिकिन एक वेश्यालय चलाती थी और कोई और काम न ढूंढ पाने पर बिली की मां ने भी यही पेशा अपना लिया. और फिर बिली भी अभी चौदह की नहीं हुई थी कि उसे भी पेशा करने पर मजबूर होना पड़ा. जल्दी ही उस चकले पर छापा पड़ा और एक बार फिर बिली सुधार गृह की दीवारों के पीछे थी.
इस बार छूटने पर बिली ने अपनी ज़िन्दगी का ढर्रा बदलने का फ़ैसला किया और नाइट क्लबों में गाना शुरू किया.

http://youtu.be/HbEZqeoUhGA (योर मदर्स सन इन लौ -- बिली हौलिडे) 


एक लोकप्रिय गायिका बिली डव के नाम का पहला हिस्सा अपने पिता क्लैरेन्स हौलिडे के नाम के दूसरे हिस्से से जोड़ कर बिली ने अपना पेशेवर नाम बिली हौलिडे ईजाद किया और अगले दो साल तक न्यू यौर्क के अलग-अलग क्लबों में अपनी गायकी के बल पर शोहरत की सीढ़ियां चढ़नी शुरू कर दीं. 1932 में बिली की साधना रंग लायी और उन पर संगीत प्रोड्यूसर जौन हैमण्ड की नजर पड़ी. हुआ यों कि बिली को एक क्लब की जानी-मानी गायिका के एवज़ में गाने का मौका मिला क्योंकि उस दिन वह गायिका वहां नहीं आ पायी थी. जौन हैमण्ड उस गायिका को पसन्द करते थे और उसे सुनने आये हुए थे. वे बिली के गाने से बहुत प्रभावित हुए. बाद में उन्होंने कहा,"बिली के गाने ने मेरी संगीत की रुचि और संगीत के जीवन को लगभग बदल कर रख दिया, क्योंकि जो गायिकाएं मैंने तब तक देखी थीं, उनमें वह पहली गायिका थी, जो जैज़ को सचमुच किसी जीनियस फ़नकार की तरह गाती थी." हैमण्ड ने जाने-माने जैज़ संगीतकार बेनी गुडमैन की संगत में बिली के गाये गाने रिकौर्ड करवाये और यहां से बिली का जीवन एक दूसरी ही दिशा में मुड़ गया.

http://youtu.be/RvDZOX9IdKs (गुड मौर्निंग हार्टेक -- बिली हौलिडे)


अगले कुछ साल बिली हौलिडे टेडी विल्सन, काउण्ट बेसी और आर्टी शौ जैसे संगीतकारों की मण्डलियों में गाती रही और धीरे-धीरे उनके रिकौर्डों की लोकप्रियता बढ़ती रही. लेकिन यह सफ़र आसान नहीं था. मण्डलियों के साथ दौरा करने पर कई बार उन्हें रंगभेद के सबसे घटिया रूपों से रू-ब-रू होना पड़ता. फिर जैसे सामाजिक भेद-भाव और सफ़र के तनाव ही काफ़ी न थे, बिली को शराब और नशीले पदार्थों की भी लत लग गयी थी. और जीवन के अन्त तक इन लतों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा.
तभी 1930 के दशक के अन्त में पहली बार बिली हौलिडे की ज़िन्दगी में ऐसा मौका आया जिसने उनकी शोहरत को एकबारगी आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया. वे कोलम्बिया के लिए गाने रिकौर्ड कर रही थीं जब उनके सामने एक गीत आया "स्ट्रेन्ज फ़्रूट" (अजीब फल). 

http://youtu.be/-KLl-vrH6Sc (स्ट्रेंज फ़्रूट -- बिली हौलिडे)

गीत गोरों द्वारा कालों को फांसी दे कर पेड़ पर लटकाये जाने की घटनाओं के बारे में था जो अमरीका के दख्षिणी इलाक़ों में आम थीं. उसे एक यहूदी स्कूल  अध्यापक ने लिखा था और छद्म नाम से जारी किया था. यह गीत न्यू यौर्क के ग्रीनविच विलेज के एक क्लब मालिक ने सुना और बिली के सामने प्रस्ताव रखा कि वह इसे गाये. ज़ाहिर है, गीत के बोल बहुत विस्फोटक थे और बिली हौलिडे को डर था कि उन्हें बदले की कार्रवाई का निशाना बनना पड़ सकता है. इसलिए जब वह उसे गाने के लिए क्लब के मंच पर आयी तो उसके मन में घबरहट थी. लेकिन दूसरी तरफ़ उनका कहना था कि गीत के बिम्बों ने उन्हें उनके पिता की मौत की याद करा दी थी, जिनसे उनके सम्बन्ध गायिका बनने के बाद सुधर गये थे और जिनको उनके रंग की वजह से फेफड़े के कैन्सर का इलाज नहीं मुहैया कराया गया था.

दक्षिण के पेड़ों पर फलते हैं अजीब फल
पत्तियों पर लहू और जड़ों पर है ख़ून
दक्षिणी हवाओं पर झूमें काले शरीर
पोपलर के पेड़ों पर कैसे अजीब फल

शूरों की धरती का देहाती नज़ारा
बाहर को निकली आंखें ऐंठा मुंह सारा
मैग्नोलिया के फूलों की महक मीठी मधुर
सहसा जलते हुए मांस की गन्ध हवा में फिर  

ये रहे फल कौवे मारेंगे चोंचें जिन पर
बारिश बहा ले जायेगी, हवा चूसेगी जम कर
सूरज सड़ायेगा इन्हें, पेड़ गिरायेंगे
यही है वह अजीब और कड़वी फ़सल
दक्षिण के पेड़ों के ये अजीबो-ग़रीब फल

http://youtu.be/98CxkS0vzB8 (स्ट्रेंज फ़्रूट -- बिली हौलिडे)

इस गीत को गाते समय बिली सुनने वालों को बिलकुल चुप करा दिया करती थी. गीत के दौरान धीरे-धीरे बत्तियां मद्धिम होती जातीं और सारी हरकतें बन्द हो जातीं, सिर्फ़ रोशनी का एक चकत्ता बिली के चेहरे पर रहता और आखिरी सुर पर यह बत्ती भी गुल हो जाती और जब लौटती तो बिली जा चुकी होती.
न सिर्फ़ यह गीत बेइन्तेहा लोकप्रिय हुआ, अगले कई बरसों तक यह बिली का फ़रमाइशी गीत बना रहा. अपनी आत्म-कथा में उसने लिखा,"यह मुझे याद कराता है कि पिता किस तरह मरे थे. लेकिन मुझे इसको गाते ही रहना है, महज़ इसलिए नहीं कि लोग फ़रमाइश करते हैं, बल्कि इसलिए भी कि पिता के मरने के बीस साल बाद भी हालात वैसे ही हैं."
"अजीब फल" की लोकप्रियता के बाद जहां तक संगीत और गायकी का ताल्लुक है बिली ने मुड़ कर नहीं देखा. एक के बाद दूसरा हिट गीत आता रहा और इसी के साथ बड़े-बड़े क्लबों और संगेत सभाओं में गाने के मौके भी. 

http://youtu.be/YKqxG09wlIA ( फ़ाइन ऐण्ड मेलो -- बिली हौलिडे)


लेकिन दूसरी तरफ़ शराब और हेरोइन की लत और उसके चलते लगातार पुलिस और अदालत के चक्कर भी जान का वबाल बने रहे. एक हफ़्ते वह कार्नेगी हौल या ब्रौडवे पर भारी भीड़ के सामने गा रही होती और दूसरे हफ़्ते वह सलाखों के पीछे होती.
संगीत से जुड़ी व्यावसायिकता के दबाव सिर्फ़ यहीं तक सीमित नहीं थे कि संगीतकार बराबर अपनी कला को बेचते चले जायें। इससे भी आगे बढ़ कर कई बार संगीतकारों के मैनेजर उनके जीवन तक को नियन्त्रित करने लगते थे। बिली हॉलिडे के साथ हुआ यह कि एक शहर से दूसरे शहर और दूसरे शहर से तीसरे शहर का दौरा करने के क्रम में जब शरीर जवाब देने लगा तो उनके अपने प्रबन्धकों ने उन्हें मादक दवाइयों का आदी बना दिया। दूसरी ओर अपने माहौल के साथ ताल-मेल न बिठा पाने से उपजे अन्तर्विरोधों और विषमताओं ने बिली हॉलिडे को मानसिक रूप से भी तोड़ दिया। नतीजे के तौर पर यह शानदार गायिका, जिसका कार्यक्रम लन्दन के ऐल्बर्ट हॉल में हो चुका था, अन्ततः पागलख़ाने और फिर अकाल मृत्यु के शिकंजे में जा पहुँची। मगर अपने छोटे-से जीवन में ही बिली हॉलिडे अपने पीछे संगीत का ऐसा विरसा छोड़ गयीं, जिसका मूल्य आज भी कम नहीं हुआ है।
बिली के गाये गानों को बहुत-सी गायिकाओं ने गाया जिनमें सारा वौहन और डायना रौस जैसी गायिकाएं शामिल हैं. डायना रौस ने तो बिली के जीवन पर बनी फ़िल्म "लेडी सिंग्स द ब्लूज़" में बिली का किरदर भी अदा किया. यहां बिली के एक मशहूर गीत "कवर मैन" की तीन अदायगियां पेश हैं. एक बिली के स्वर में, एक सारा वौहन के और एक डायना रौस के. 

http://youtu.be/thSfGPZGmnQ?list=PLCCA3BD86C5D8F482 लवर मैन बिली हौलिडे
http://youtu.be/ynC0711OHPY lover man sarah vaughan
http://youtu.be/hMtXuD4-63o lover man diana ross


बिली के गायन में बोलों की अदायगी में दम-ख़म और विश्वास तो था ही, एक अजीब-सी गर्मजोशी भी थी जो बोलों को सतर-दर-सतर आगे बढ़ाती हुई सुनने वालों के दिलों के तार भी झंकृत करती चलती थी. जैसा कि एक समीक्षक ने लिखा कि उसकी आवाज़ में एक ही साथ इस्पाती दृढ़ता भी थी और बेहिसाब नरमी भी, उसमें बुज़ुर्गों का-सा सयानापन भी था और एक अजीब-सी बच्चों जैसी फ़ितरत भी. इसीलिए बिली हौलिडे के बेहतरीन गीतों में जो सबसे बड़ा गुण उभर कर सामने आता है वह दिल की सच्चाई है.

http://youtu.be/bKNtP1zOVHw (गौड ब्लेस द चाइल्ड दैट्स गौट इट्स ओन -- बिली हौलिडे)

(जारी)



Monday, February 23, 2015

जैज़ संगीत पर एक लम्बा आलेख



चट्टानी जीवन का संगीत 

पन्द्रहवीं कड़ी



19.

"ड्यूक एलिंग्टन अपने जीवन के अन्त तक लगातार नयी-नयी 
रचनाएं, नये-नये राग पेश करते रहे. संगीत-कला सचमुच उनकी प्रेयसी थी"

इसमें कोई शक नहीं कि 1935-36 से 1942-43 के बीच चाहे गोरे संगीतकारों की कुछ मण्डलियाँ बड़ी दक्षता से जैज़ बजाती रहीं, मगर जैज़ को महानता के शिखर पर पहुँचाने का काम इन्हीं नीग्रो संगीतकारों ने किया और इसमें भी दो रायें नहीं हैं कि इस दौर के सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्डों में से एक ड्यूक एलिंग्टन ने तैयार किया था। वर्ष था 1940 और रिकॉर्ड का शीर्षक था -- ‘को-को’।

http://youtu.be/qemBuum2jSU ( को को )


मगर ड्यूक एलिंग्टन का सही जायज़ा लेने के लिए तो एक अलग लेख ही दरकार होगा। उनकी बहुमुखी प्रतिभा और बेशकीमती योगदान का मूल्यांकन आसान नहीं है। ख़ास तौर पर इसलिए भी कि उनके कृतित्व के कई पहलू हैं और वह कई दशकों को नापता है। लुई आर्मस्ट्रौंग बुनियादी तौर पर वादक थे, परफ़ॉर्मर थे, उनकी प्रतिभा संगीत के व्यवहार में व्यक्त हुई थी, जबकि ड्यूक एलिंग्टन शास्त्री और चिन्तक थे; कम्पोज़र थे और स्रष्टा थे। संगीत के प्रति इन दोनों महान कलाकारों के रवैये में भी बहुत फ़र्क़ था। लुई आर्मस्ट्रौंग मण्डली में शिरकत करते हुए भी लगातार अपनी निजी दक्षता और कौशल पर ज़ोर देने, ‘मुखर’ होने के हामी थे, मगर ड्यूक एलिंग्टन अपने अपूर्व कला-कौशल को रचना और पूरी मण्डली के हित में लीन कर देने में विश्वास रखते थे। इन्हीं विशेषताओं के चलते अपनी बहुमुखी प्रतिभा से ड्यूक एलिंग्टन ने जैज़-संगीत को उसका संस्कार दिया, उसे परिष्कृत किया, श्रम और अमरीकी नीग्रो समुदाय की जातीय स्मृति में विद्यमान गहरी भावनाओं से जुड़े इस संगीत की सामूहिकता बरकरार रखी। शायद इसीलिए उन्होंने अपने निजी वाद्य के तौर पर पियानो पियानो को चुना था, मगर वे सिर्फ़ संगत नहीं करते थे, वे धुनें भी रचते थे। ऐसे में कई बार लोगों का ध्यान इस बात की ओर नहीं जाता कि ड्यूक एलिंग्टन के उन रिकॉर्डों में, जो उन्होंने अपनी मण्डली के साथ तैयार किये, पियानो के सुर इतने मद्धम क्यों हैं -- ‘सुनाई’ क्यों नहीं देते? कारण यह था कि ऐसे रिकॉर्डों में ड्यूक अपने अप्रतिम वादन से पूरे दल को बाँधे रखते थे। उनकी रचनाओं में पियानो के सुर अन्य वाद्यों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करते थे, उसी तरह जैसे माला का धागा अलग-अलग मनकों को जोड़े रखता है। लेकिन जब-जब ड्यूक एलिंग्टन ने अपने पियानो की एकल प्रस्तुतियाँ पेश कीं, उनकी अद्भुत क्षमता चकित करती रही। मिसाल के तौर पर ‘इन अ सेण्टीमेण्टल मूड’ (भावुकता के क्षण) नामक उनकी प्रसिद्ध रचना, जिसे उन्होंने सन पैंतीस में तैयार किया था और जो उनकी श्रेष्ठतम रचनाओं में शुमार की जाती है। 

http://youtu.be/7UKGc8J463k ( इन अ संटिमेंटल मूड)

हस्ब मामूल इस धुन को भी वे अपने दल-बल के साथ पेश किया करते थे, लेकिन अमरीका के प्रसिद्ध कैपिटल स्टूडियो के संचालकों के साथ उनका पुराना वादा था कि वे एक पूरा रिकॉर्ड केवल अपने पियानोवादन पर केन्द्रित रखते हुए तैयार करेंगे। इस वादे को वफ़ा करने में उन्हें लगभग बीस साल लग गये। फिर एक दिन 13 अप्रैल सन 53 को ड्यूक एलिंग्टन अपने साथियों को ले कर कैपिटल स्टूडियो पहुँचे और उस रोज़ दोपहर बाद से रिकॉर्डिंग का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह अगली सुबह तक चलता रहा। इस एक बैठक में उन्होंने कोई बारह धुनें रिकॉर्ड करायीं, जिनमें से अनेक धुनें बहुत लोकप्रिय हुईं।जैसे "मूड इण्डिगो" --

http://youtu.be/x02lJ023tJ4 (मूड इण्डिगो)

लेकिन ऐसे एकल वादन के अवसर ड्यूक एलिंग्टन के जीवन में भी अनोखे कहे जा सकते हैं। ज़्यादातर तो वे अपने समकालीनों और उभरते हुए नये संगीतकारों के साथ मिल कर ही अपनी बनायी धुनों को पेश करते रहे। उनकी मण्डलियों में जैज़ का एक-न-एक अविस्मरणीय संगीतकार हमेशा रहा -- मिसाल के तौर पर सैक्सोफ़ोन-वादक जॉनी हॉजेस या ट्रम्पेट-वादक कूटी विलियम्स। यही नहीं, बल्कि ड्यूक एलिंग्टन ने कोलमैन हॉकिन्स और उन जैसे अन्य अप्रतिम वादकों के साथ बीसियों रिकॉर्ड बनाये और जैज़ को एक तरह से अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान कर दिया।

http://youtu.be/x5C_BLHaT00 (ड्यूक एलिंग्टन और कोलमैन हॉकिन्स -- वौण्डरलस्ट )

http://youtu.be/w_-h04qW_CY (इन ए सेंटिमेण्टल मूड -- ड्यूक एलिंग्टन और जौन कोल्ट्रेन)



एड्वर्ड केनेडी "ड्यूक" एलिंग्टन (1899-1974) का जन्म देश की राजधानी वौशिंग्टन डी.सी. में हुआ था. उनके पिता और माता, दोनों पियानो बजाते थे और उनकी मां ने सात साल की उमर ही से उन्हें पियानो सीखने के लिए भेजना शुरू कर दिया था. साथ ही उन्हें इस बात की भी हिदायत दी थी कि वे सभ्य और सज्जनों जैसे दिखें और वैसा ही व्यवहार करें. एलिंग्टन के तौर-तरीकों को देख कर उनके दोस्तों ने उन्हें "ड्यूक" कहना शुरू कर दिया. इस प्रसंग पर अपने स्वाभाविक मज़ाकिया अन्दाज़ में एक बार एलिंग्टन ने इस नामकरण का श्रेय एक दोस्त को देते हुए  टिप्पणी की थी,"मेरे ख़याल में उसे लगा कि अगर मुझे उसकी दोस्ती के क़ाबिल बनना है तो मेरा कोई विरुद होना चाहिए, सो उसने मुझे ड्यूक कह कर बुलाना शुरू कर दिया." बहरहाल, बचपन की इस तरबियत को तो एलिंग्टन नहीं भूले, लेकिन जहां तक पियानो का सवाल था, दिलचस्प बात यह थी कि उन्हें पियानो और संगीत सीखने से ज़्यादा बेसबौल खेलना पसन्द था. बाद में उन्होंने याद किया,"कभी-कभी राष्ट्रपति रूज़वेल्ट अपने घोड़े पर बैठे गुज़रते वक़्त रुक कर हमें खेलते हुए देखने लगते."
मज़े की बात यह थी कि चाहे ड्यूक एलिंग्टन अपनी पियानो शिक्षिका से जितने सबक लेते, उससे ज़्यादा वे छोड़ देते, तो भी संगीत की कुछ अन्दरूनी प्रेरणा ज़रूर रही होगी. शायद यही वजह है कि अपने नक्शा-नवीस पिता द्वारा पेशेवर कलाकार के प्रशिक्षण के लिए एक तकनीकी हाई स्कूल में भेजे जाने के बावजूद, ड्यूक एलिंग्टन ने अन्तिम परीक्षा से तीन महीने पहले स्कूल छोड़ दिया और संगीत को अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य बना लिया. इसके पहले महज़ सोलह साल की उमर में एलिंग्टन अपनी पहली संगीत रचना तैयार कर चुके थे -- "सोडा फ़ाउण्टेन रैग."  बहुत बाद में उन्होंने इसे याददाश्त के बल पर बजाया --

http://youtu.be/RgcJyZA-rrE?list=PLikMSODoYlvY0jXkz4uJ4km79Wu4Ou-Jy (सोडा फ़ाउण्टेन रैग)

इस धुन के पीछे क़िस्सा यह है कि उन दिनों ड्यूक एलिंग्टन "पूडल डौग कैफ़े" नामक होटल में ठण्डे पेय बेचने का काम कर रहे थे और यहीं एक दिन अचानक उनके दिमाग़ में यह धुन आयी थी, जिसे वे महज़ कान से सुन कर बजाया करते क्योंकि अभी उन्हें संगीत की स्वर-लिपि पढ़नी नहीं आयी थी. वे इसे कई शैलियों में पेश करते जिससे सुनने वालों को लगता कि वे अलग-अलग रचनाएं बजा रहे हैं, कभी जैज़ की तरह तो कभी रैग टाइम, वौल्ट्ज़, फ़ौ़क्स ट्रौट और कभी टैंगो की तरह. 1917 से ड्यूक एलिंग्टन अपना खर्च चलाने के लिए साइनबोर्ड रंगने का काम करने लगे और यह सिलसिला 1919 तक चलता रहा जब वे ड्रम वादक सनी ग्रियर से मिले और सनी के आग्रह पर उन्होंने अपना पेशेवर बैण्ड कायम करने की तरफ़ कदम बढ़ाया. धीरे-धीरे उन्होंने वौशिंग्टन में सफल संगीतकार की हैसियत से कामयाबी हासिल कर ली. लेकिन तभी सनी ग्रियर ने न्यू यौर्क जाने का फ़ैसला किया और ड्यूक एलिंग्टन को भी लगा अगर कुछ करना है तो फिर वहां चलना चाहिए जहां सचमुच का मैदान है. एक औसत दर्जे के कामयाब युवक के लिए यह फ़ैसला आसान नहीं था, लेकिन ड्यूक उस मिट्टी के नहीं बने थे जिससे औसत दर्जे के कामयाब कलाकार बनते हैं. एक बार उन्होंने वौशिंग्टन के अपने हिफ़ाज़त भरे माहौल को घोड़ा तो फिर मुड़ कर नहीं देखा. और आगे की कहानी एक ऐसे संगीतकार की सफलता की कहानी है जिसके बारे में कहा गया है --  "ड्यूक एलिंग्टन अपने जीवन के अन्त तक लगातार नयी-नयी रचनाएं, नये-नये राग पेश करते रहे. संगीत-कला सचमुच उनकी प्रेयसी थी. संगीत ही उनका जीवन था और उसके प्रति उनके समर्पण का कोई मुक़ाबला नहीं था. वे सचमुच महान लोगों में एक महान कलाकार थे और ऐन मुमकिन है कि एक दिन वे बीसवीं सदी के पांच-छै महानतम जैज़ संगीतकारों में शुमार किये जायें."  यों, ड्यूक एलिंग्टन के लिए जैज़ जैसी कोई अलग शैली नहीं थी, वे ख़ुद को हमेशा ठप्पों से दूर महज़ एक संगीतकार मानते थे और शायद यही वजह है कि वे जैज़ को उसके दायरे से ऊपर उठा कर अमरीकी संगीत के व्यापक दायरे में ले जा सके और जैज़ को एक कला रूप बना सके. 

http://youtu.be/pOuuaF6OyQI (ड्यूक प्लेज़ एलिंग्टन -- एकल वादन)
ड्यूक की विनम्रता का हाल यह था कि 1965  में उनका नाम पुलिट्ज़र पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया गया, मगर चयन समिति ने उसे ख़ारिज कर दिया. ड्यूक तब तक बड़े पैमाने पर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर चुके थे. पुरस्कार न मिलने पर उन्होंने बस इतना कहा, " क़िस्मत ने मुझ पर दया की है. वह नहीं चाहती कि मैं  कम उमर में बहुत मशहूर हो जाऊं." यह तब जब अगले ही साल उन्हें ग्रैमी का लाइफ़टाइम उपलब्धि पुरस्कार दिया गया. इस भूल को सुधारने का मौक़ा पुलिट्ज़र पुरस्कार  की चयन समिति को 1999 में मिला जब ड्यूक की जन्म-शताब्दी के अवसर पर उन्हें विशेष पुलिट्ज़र पुरस्कार से सम्मानित किया गया. ड्यूक एलिंग्टन का देहान्त 1974 में अपने पचहत्तरवें जन्मदिन के कुछ हे समय बाद हुआ. उनके आख़िरी शब्द थे "यह संगीत ही है कि मैं कैसे जीता हूं, क्यों जीता हूं और मैं कैसे याद किया जाऊंगा." 

http://youtu.be/tB7aBVPoFAw (स्वौम्पी रिवर -- 1928 -- एकल )

(जारी)



Sunday, February 22, 2015

जैज़ संगीत पर एक लम्बा आलेख



चट्टानी जीवन का संगीत 

चौदहवीं कड़ी



17.
जब मैं ने हौक को सुना मैंने लम्बे राग बजाना सीखा
-- माइल्स डेविस 

कोलमैन हॉकिन्स (1904-69) से पहले हालांकि कुछ लोग टेनर सैक्सोफ़ोन बजाते थे, लेकिन इस वाद्य को जैज़ के वाद्यों की पहली पांतमें जगह नहीं मिली थी. कोलमैन हौकिन्स ने ही सबसे पहले इस वाद्य पर महारत हासिल करके उसे जैज़ की क़तारों में शामिल कराया. इसीलिए उनके साथी सैक्सोफ़ोन वादक लेस्टर यंग ने -- जिन्हें सब "प्रेज़िडेन्ट" (राष्ट्रपति) का छोटा रूप "प्रेज़" कह कर बुलाते थे -- 1959 में "द जैज़ रिव्यू" को दिये गये एक इन्टर्व्यू में कहा -- "जहां तक मेरा सवाल है, मेरे ख़याल में कोलमैन हौकिन्स ही राष्ट्रपति थे पहले, ठीक ? रहा मैं, तो मैं दूसरा था." आगे चल कर सुप्रसिद्ध सैक्सोफ़ोन वादक माइल्स डेविस ने कहा -- "जब मैं ने हौक को सुना मैंने लम्बे राग बजाना सीखा."
कोलमैन हौकिन्स हालांकि मिसूरी में पैदा हुए थे, पर उनकी पढ़ाई-लिखाई शिकागो और कैनसास में हुई. शुरू-शुरू में वे पियानो और चेलो बजाते थे, लेकिन जल्दी ही लगभग नौ-दस साल की उमर से वे सैक्सोफ़ोन बजाने लगे. चौदह तक पहुंचते-पहुंचते वे पूर्वी कैनसास में जैज़ मण्डलियों में बजाने लगे थे. हौकिन्स को उनका पहला बड़ा मौक़ा मैमी स्मिथ के जैज़ हाउण्ड्स नामक बैण्ड में मिला और वे 1921 से 23 तक उसी बैण्ड के साथ रहे और फिर न्यू यौर्क चले आये. यहां आ कर हौकिन्स फ़्लेचर हेण्डर्सन की मण्डली  में शामिल हो गये और अगले दस साल तक उसी के साथ रहे. कभी-कभीए वे क्लैरिनेट और बेस सैक्सोफ़ोन भी बजाते. हौकिन्स के जीवन में सब से बड़ा मोड़ तब आया जब लूई आर्मस्ट्रौंग 1924-25 के आस-पास न्यू यौर्क आ कर फ़्लेचर हेण्डर्सन के बैण्ड से जुड़ गये. ज़ाहिर है, दो बड़े संगीतकारों का यह मेल नयी दिशाएं खोलने वाला था और इस दौरान कोलमैन हौकिन्स की वादन शैली में ज़बर्दस्त बदलाव आया. ख़ुद एक प्रतिभाशाली संगीतकार होने के अलावा हौकिन्स में दूसरी प्रतिभाओं को पहचानने का गुण भी था. समय-समय पर आर्मस्ट्रौंग, ड्यूक एलिंग्टन, जैंगो राइनहार्ट और बेनी कार्टर जैसे वादकों के साथ जैज़ बजाने के साथ-साथ उन्होंने लेस्टर यंग, माइल्स डेविस, थेलोनियस मंक और मैक्स रोच जैसे युवा जैज़ संगीतकारों को प्रेरित-प्रभावित भी किया. 1934-39 के बीच लम्बे अर्से तक वे  अमरीका के बाहर यूरोप का भी दौरा करते रहे. 1939 में अमरीका लौटने पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध रिकौर्ड "बौडी ऐण्ड सोल" (देह और आत्मा) जारी किया जो एक मील का पत्थर बन गया. 

http://youtu.be/zUFg6HvljDE  ("बौडी ऐण्ड सोल" )

१९४० के आस-पास उन्होंने जैज़ की ही एक शैली "स्विंग" और फिर "बीबौप" में जम कर प्रयोग किये. हालांकि कुछ आगे चल कर लेस्टर यंग और चार्ली पार्कर जिस तरह सूझ और उपज के साथ बजाने लगे थे उससे लगता था कि कोलमैन हौकिन्स पुराने पड़ गये हैं. मगर यह हौकिन्स का कमाल था कि वे नयी-से-नयी शैली को अपनाने के लिए तैयार रहते थे और जल्दी ही उन्होंने डिज़ी गिलिस्पी के साथ "स्विंग" और "बीबौप" का जादू जगाना शुरू कर दिया था. आज अगर जैज़ में सैक्सोफ़ोने एक अनिवार्य वाद्य बन चुका है तो इसके पीछे कोलमैन हौकिन्स की बहुत बड़ी भूमिका है.
सन तीस के दशक में एक ओर तो जैज़ के क्षेत्र में नयी-नयी प्रतिभाएँ उभर कर सामने आ रही थीं, दूसरी ओर इन नयी प्रतिभाओं के बीच अपनी सहयोग की एक अद्भुत भावना भी पनप रही थी। कूटी विलियम्स, जॉनी हॉजेस, बैनी कार्टर, रे नैंस, लॉरेन्स ब्राउन -- ये कुछ प्रमुख संगीतकार थे, जो अपने-अपने फ़न के माहिर होने के साथ एक-दूसरे से मिल कर संगीत सभाओं में भाग लिया करते थे। उन दिनों लुई आर्मस्ट्रौंग और कोलमैन हॉकिन्स के अलावा जो संगीतकार संगीत-प्रेमियों को अपनी मौलिक प्रतिभा से मुग्ध कर रहा था -- उसका नाम है ड्यूक एलिंग्टन। उसी ज़माने का एक किस्सा याद करते हुए कोलमैन हाकिन्स ने बताया कि एक दिन ड्यूक एलिंग्टन आये और कहने लगे कि मैं चाहता हूँ तुम मेरे साथ मिल कर एक रिकॉर्ड तैयार करो। मैं पियानो बजाऊँगा, तुम सैक्सोफ़ोन सँभालो। धुन मैं तैयार करूँगा। कोलमैन हॉकिन्स ने फ़ौरन हामी भर दी लेकिन इन दोनों संगीतकारों को मिल-बैठने में बीस बरस लग गये। फिर सन 1962 में एक इन्टरव्र्यू के दौरान कोलमैन हॉकिन्स ने इस घटना का ज़िक्र किया तो इन दोनों के इकट्ठा होने की नौबत आयी। और तब दोनों ने मिल कर जो रिकॉर्ड तैयार किया -- लिम्बो जैज़  -- उसने जैज़ की दुनिया में एकबारगी तहलका मचा दिया।

http://youtu.be/rN6UlJEXySY (लिम्बो जैज़)

लेकिन यह काफ़ी समय बाद की बात है। सन तीस के दशक में तो ड्यूक एलिंग्टन ख़ुद अपनी मण्डली को जमाने में जुटे हुए थे और कोलमैन हॉकिन्स अकेले दम अपनी प्रतिभा का सिक्का मनवाने की कोशिश कर रहे थे। 1933 में ही उन्होंने कुछ शानदार मिसालें कायम कर दी थीं जिनमें से ‘होकस पोकस’ शीर्षक से की गयी रचना बहुत मशहूर हुई।

http://youtu.be/DCAWyZk8lNY (होकस पोकस)

वैसे, बहुत-से लोग सन 30 के दशक के मध्य से ले कर 40 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों तक के समय को ‘स्विंग म्यूज़िक’ के युग के नाम से याद करते हैं। लेकिन ‘स्विंग म्यूज़िक का युग’ दरअसल कोई मायने नहीं रखता। इस दौर में बस हुआ यह कि संगीत का मोर्चा कुछ देर के लिए बड़े-बड़े बैण्डों ने सँभाल लिया। इनमें से ज़्यादातर बैण्ड गोरे संगीतकारों के थे और प्रचार भी इनका ज़्यादा हुआ, जैसे बेनी गुडमैन का, जिनका रिकॉर्ड ‘स्टॉम्पिंग ऐट द सैवॉय’ एक ज़माने में बहुत लोकप्रिय हुआ था। मगर बहत-से दूसरे बैण्ड ख़ालिस तौर पर नीग्रो संगीतकारों के थे, जिनमें काउण्ट बेसी का ऑकैस्ट्रा और ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड काफ़ी मशहूर हुए।

18.

 बैण्ड सचमुच मस्ती में झूम सकता है, जब आप इस तरह सबका साथ निभा सकें 
मानो आप मक्खन को छुरी से काट रहे हों.
-- काउण्ट बेसी

इस बीच जैज़ का दायरा न्यू ऑर्लीन्स और शिकागो से बढ़ कर अमरीका के अन्य शहरों तक फैल गया था। काउण्ट बेसी अमरीका के कैन्सस सिटी नामक नगर की देन थे। काउण्ट बेसी को कैन्सस सिटी से निकल कर अपनी प्रतिभा का चमत्कार दिखाने का मौका कब मिला, इसका जैज़ संगीत के इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है, न ही इस बात का ज़िक्र है कि काउण्ट बेसी ने जैज़ के एक और मशहूर संगीतकार बेनी कार्टर की संगत कब शुरू की, मगर इतना तय है कि सन 40-41 के आस-पास ये दोनों कलाकार मिल कर जैज़ संगीत में नयी धारा बहाने में मशग़ूल थे। शायद इसी शुरू की संगत का असर था कि वर्षों बाद जब सन 1961 में बेनी कार्टर ने काउण्ट बेसी के साथ मिल कर धुनों के संकलन का एक मशहूर रिकॉर्ड तैयार किया तो उसका नाम काउण्ट बेसी के अपने शहर के नाम पर रखा -- ‘कैन्सस सिटी सुईट’।

http://youtu.be/HtzbK_ByFG8 (कैन्सस सिटी के बारे में)
http://youtu.be/3Pgmb0Y9nGc (कैन्सस सिटी सेवेन) 

अपने शुरू के दिनों में काउण्ट बेसी कैन्सस सिटी के मशहूर रेनो क्लब में पियानो बजाया करते थे और यह अकारण नहीं कि इस रिकार्ड की एक धुन का नाम है -- ‘राम्पिन ऐट द रेनो’ -- यानी रेनो क्लब की धमा चौकड़ी।

http://youtu.be/GGomvd__bqU  (राम्पिन ऐट द रेनो)

बात यह थी कि न्यू और्लीन्ज़ और शिकागो से होते हुए जैज़ संगीत की शाखाएं न्यू यौर्क, न्यू जर्सी और दूसरी बहुत-सी छोटी-बड़ी जगहों पर भी फैलने लगी थीं और जब कैनसस सिटी के दरवाज़े मनोरंजन की दुनिया के लिए खोल दिये गये तो जुआघरों, शराबख़ानों और वेश्यालयों के साथ-साथ क्लबों के लिए भी जगह बन गयी और ऐसी हालत में उत्तर-दक्षिण-पूरब-पच्छिम से संगीत-मण्डलियां, बड़े-बड़े बैण्ड और संगीतकार आ कर कैनसस सिटी में इकट्ठा होने लगे. काउण्ट बेसी का नाम  इन में प्रमुख था.
विलियम जेम्स "काउण्ट" बेसी का जन्म न्यू जर्सी के रेड बैंक नामक गांव में हुआ था. माता-पिता, दोनों संगीत-प्रेमी थे, मां पियानो बजाती थीं और उन्हीं से काउण्ट बेसी को पियानो के शुरुआती सबक भी मिले. स्कूल में बेसी पढ़ने-लिखने की बजाय यात्राओं के सपने लेते. उन पर उन घुमन्तू मेलों का असर था जो उनके कस्बे में आया करते. हाई स्कूल की दहलीज़ लांघने के बाद काउण्ट बेसी रेड बैंक के पैलेस थियेटर में काफी समय गुज़ारते जहां छिट्पुट काम करने के एवज़ में उन्हें मुफ़्त में कार्यक्रम देखने-सुनने को मिल जाते. उन्होंने जल्दी ही मंच पर चल रहे कार्यक्रमों और मूक फ़िल्मों के साथ बजने वाले उपयुक्त संगीत को रचना सीख लिया. हालांकि पियानो बजाने में उन्हें स्वाभाविक रूप से महारत हासिल थी, बेसी ने ड्रम बजाना पसन्द किया, लेकिन अपने ही कस्बे में रहने वाले सनी ग्रियर की प्रतिभा से हतोत्साह हो कर, जो आगे चल कर ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड में शामिल हुए, काउण्ट बेसी ने पन्द्रह साल की उमर में पूरी तरह पियानो पर ही ध्यान लगाया. फिर बेसी और ग्रियर वहीं रेड बैंक में अलग-अलग कार्यक्रमों में साथ-साथ पियानो और ड्रम बजाते रहे, जब तक कि ग्रियर अपने व्यावसायिक जीवन के सिलसिले में रेड बैंक से चले नहीं गये. इसके बाद कुछ साल वहीं अपने पर तोलने के बाद 1920 के आस-पास काउण्ट बेसी हार्लेम चले गये, हार्लेम में, जो जैज़ संगीत का गढ़ बनता जा रहा था,  बेसी अल्हम्ब्रा थियेटर के पास रहते थे और जैज़ संगीतकारों से अक्सर उनका मिलना-जुलना होता. सनी ग्रियर भी वहीं थे. धीरे-धीरे सोलह वर्षीय बेसी संगीत की बारीकियां सीखने लगे और सीखने का इससे बेहतर तरीका और क्या होता कि जो भी मौका मिले उसे थाम लो, बीस साल की उमर तक वे बैण्डों के साथ और एकल रूप में भी कैन्सस सिटी, सेंट लुई, न्यू और्लीन्ज़ और शिकागो तक दौरे कर आये थे. इस विविध रूपी काम में उन्हें जो अनुभव मिल रहा था वह आगे चल कर उनके बहुत काम आने वाला था.  1925 में हार्लेम लौट कर बेसी को पहला स्थायी काम लेरौय’ज़ नामक जगह में मिला जो अपने पियानो वादकों के लिए जानी जाती थी. यहीं बेसी की मुलाकात फ़ैट्स वौलर से हुई और उन्होंने और्गन बजाना भी सीख लिया, जिसे वे बाद में कैन्सस सिटी के एबलोन थियेटर और फिर ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड में भी बजाने वाले थे.

http://youtu.be/iBDMTT_GVeU?list=PLwF7H2q48PPMT2FuxFczAapwlJbE4yjWv (वन ओ क्लौक जम्प)


1928 में बेसी टुल्सा में थे जब उन्होंने वौल्टर पेज और उनके बैण्ड को सुना. कुछ महीनों के बाद उन्हें भी उस बैण्ड में शामिल होने का मौका मिला और उनके वादन को सुन कर पहली बार लोग उन्हें "काउण्ट" कहने लगे. अगले ही साल बेसी कैन्सस सिटी चले आये और बेनी मोटेन के बैण्ड मे शामिल हो गये. मोटेन की हसरत ड्यूक एलिंग्टन या फ़्लेचर हेण्डरसन जैसा बैण्ड कायम करने की थी. मोटेन थे भी काफी प्रतिष्ठित और 1935 तक बेसी और मोटेन का साथ तमाम तरह के उतार-चढ़ाव के बीच बना रहा. 1935 में मोटेन की मौत के बाद, बेसी ने एक नया बैण्ड कायम किया, जिसमें मोटेन के कई सद्स्य शामिल थे.  1936 के अन्त में काउण्ट बेसी कैन्सस सिटी से शिकागो आ गये और पहली बार उनके बैण्ड "काउण्ट बेसी ऐण्ड हिज़ बैरन्स औफ़ रिदम" ने जैज़ संगीत की दुनिया में अपना सिक्का मनवाना शुरू कर दिया. शुरू ही से बेसी और उनका बैण्ड अपनी लय-ताल के लिए जाना जाता था. बेसी ने एक और नया प्रयोग यह किया कि वे दो टेनर सैक्सोफ़ोन वादकों को औल्टो वादकों के अगल-बगल रखने लगे. इससे जो होड़ और मुकाबले का समां बंधने लगा उसने दूसरे बैण्डों को भी यह हिकमत आज़माने की प्रेरणा दी. इस बीच उनके संगीत के रिकौर्ड भी बनने लगे थे. 

http://youtu.be/Rxg_kA6YaYk?list=PLwF7H2q48PPMT2FuxFczAapwlJbE4yjWv (स्विंगिंग द ब्लूज़ 1938)


एक बार काउण्ट बेसी ने अपना सिक्का जमा दिया तो फिर गाड़ी चल निकली. शहरों के नाम एक के बाद एक गुज़रने लगे. न्यू यौर्क में बेसी अनेक ब्लूज़ गायकों के सम्पर्क में आये बिली हौलिडे, जिमी रशिंग, बिग जो टर्नर, हेलेन ह्यूम्ज़ और जो विलियम्स जैसी प्रतिभाएं. यही नहीं, बेसी ने कुछ जाने-माने हौलिवुड सितारों के साथ भी कार्यक्रम दिये. इसी के साथ बेसी का सम्बन्ध फ़िल्मों से भी हुआ. यह सिलसिला 1958 तक चलता रहा जब काउण्ट बेसी और उनका बैंड अपने पहले यूरोपीय दौरे पर गया. दौरा कामयाब रहा और इसके बाद कार्यक्र्मों की गिनती न रही. अमरीका के पूर्वी तट पर न्यू यौर्क से ले कर पश्चिमी तट पर हौलिवुड और लास वेगास तक -- काउण्ट बेसी संगीत सभाओं, फ़िल्मों और टेलिविजन के कार्यक्रमों में भाग लेते रहे और बड़े-बड़े गायकों के संगतकार बने रहे. यह सिलसिला 1984 में काउण्ट बेसी के देहान्त तक चलता रहा. 
जैज़ संगीत में यह कहना मुश्किल है कि कौन-सी चीज़ अहम है -- गाना या बजाना. एकदम शुरुआती दौर की गुहारों और कनस्तरों और बैंजो जैसे वाद्यों  से ले कर रैग टाइम, ब्लूज़, स्विंग और हिप-हौप की मंज़िलें तय करते हुए जैज़ गायन और जैज़ के वाद्यों ने कई पड़ाव देखे हैं, उसमें कई क़िस्म की शैलियां और वाद्य जुड़े हैं. आज जब जैज़ संगीत की बात होती है तो आम लोगों के मन में या तो ड्रम बजाते ड्रमवादक की छवि उभरती है या सैक्सोफ़ोन पर हिलोरें और झटके लेते सैक्सोफ़ोनवादक की. अक्सर लोग उस वाद्य को नज़रन्दाज़ कर देते हैं जो जैज़ के सारे वाद्यों -- ड्रम, सैक्सोफ़ोन, क्लैरिनेट, ट्रौम्बोन, ट्रम्पेट, गिटार, बेस गिटार और बैंजो आदि -- को जोड़े रहता है, वैसे ही जैसे धागा सारे मनकों को माला की शक्ल में पिरोये रखता है. और यह वाद्य है पियानो जो शायद ड्रम (या उसके बहुत ही कच्चे रूप कनस्तर) और बैंजो के बाद पहला वाद्य था जो जैज़ संगीत के साथ जुड़ा था. दरअसल, अगर संगीत कुल मिला कर सुर-ताल का मामला है तो सुर-ताल के बीच सामंजस्य कायम करने का काम जो वाद्य करता है, वह पियानो है. काउण्ट बेसी की सबसे बड़ी ख़ूबी यही थी कि वे अपने बैण्ड की रीढ़ बने रहे जो अक्सर नज़र नहीं आती, लेकिन ढांचे को खड़ा रखने की भूमिका निभाती है. यही वजह है कि उन्होंने अपने लगभग अस्सी वर्ष के जीवन में न केवल जैज़ के बेगिनती गायकों के साथ संगत की, बल्कि अनेक वादकों को भी पियानो के पीछे बैठे-बैठे वह फलक मुहैया कराया, जिस पर वे अपने सुरों की कारीगरी दिखा सकें.  
काउण्ट बेसी ने सुनने वालों की कई पीढ़ियों को बड़े बैण्ड के संगीत से परिचित कराया. वे बहुत-से जैज़ संगीतकारों के विपरीत विनम्र और किसी हद तक संकोची कलाकार थे, तनावरहित, मज़ा लेने वाले और हमेशा अपने संगीत लो ले कर उत्साह से भरे हुए. उन्होंने लिखा है ,"मेरे ख़याल से बैण्ड सचमुच मस्ती में झूम सकता है अगर वह बिना झटकों के झूम सके, जब आप इस तरह अपने वाद्य को बजाते हुए सबका साथ निभा सकें मानो आप मक्खन को छुरी से काट रहे हों."

http://youtu.be/gMko51An5JU (काउण्ट बेसी -- पैरिस में -- 1981)

आज जब काउण्ट बेसी की फ़ेहरिस्त को हम देखते हैं तो हैरत होती है. बिली हौलिडे से ले कर जो जोन्स, जिमी रशिंग, एला फ़िट्ज़जेरल्ड, फ़्रैंक सिनाट्रा, सैमी डेविस जूनियर, बिंग क्रौसबी और सारा वौहन जैसे नामी गायकों के साथ काउण्ट बेसी का लम्बा सम्बन्ध रहा और यह संगीत सभाओं से लेकर रिकौर्ड बनाने वाली कम्पनियों और फ़िल्मों औत टेलिविजन तक हर क़िस्म की संगत का रहा. यही हाल वादकों का भी था. बस उनकी सबसे बड़ी निराशा यह रही कि वे कभी लुई आर्मस्ट्रौंग की संगत नहीं कर सके.   
इस विनम्र कलाकार को सबसे बड़ा ख़िराज उनके देहान्त के बाद दिया गया. रेड बैंक में एक थियेटर हौल और एक मैदान को तो उनका नाम दिया ही गया, 2009 में न्यू यौर्क की एजकोम्ब ऐवेन्यू और 160वीं सड़क का नाम बदल कर दो महान संगीतकारों पर रखा गया. एजकोम्ब ऐवेन्यू को पौल रोबसन बूलेवार और 160वीं सड़क का नाम काउण्ट बेसी प्लेस रखा गया.

(जारी)



चट्टानी जीवन का संगीत 

चौदहवीं कड़ी



17.
जब मैं ने हौक को सुना मैंने लम्बे राग बजाना सीखा
-- माइल्स डेविस 

कोलमैन हॉकिन्स (1904-69) से पहले हालांकि कुछ लोग टेनर सैक्सोफ़ोन बजाते थे, लेकिन इस वाद्य को जैज़ के वाद्यों की पहली पांतमें जगह नहीं मिली थी. कोलमैन हौकिन्स ने ही सबसे पहले इस वाद्य पर महारत हासिल करके उसे जैज़ की क़तारों में शामिल कराया. इसीलिए उनके साथी सैक्सोफ़ोन वादक लेस्टर यंग ने -- जिन्हें सब "प्रेज़िडेन्ट" (राष्ट्रपति) का छोटा रूप "प्रेज़" कह कर बुलाते थे -- 1959 में "द जैज़ रिव्यू" को दिये गये एक इन्टर्व्यू में कहा -- "जहां तक मेरा सवाल है, मेरे ख़याल में कोलमैन हौकिन्स ही राष्ट्रपति थे पहले, ठीक ? रहा मैं, तो मैं दूसरा था." आगे चल कर सुप्रसिद्ध सैक्सोफ़ोन वादक माइल्स डेविस ने कहा -- "जब मैं ने हौक को सुना मैंने लम्बे राग बजाना सीखा."
कोलमैन हौकिन्स हालांकि मिसूरी में पैदा हुए थे, पर उनकी पढ़ाई-लिखाई शिकागो और कैनसास में हुई. शुरू-शुरू में वे पियानो और चेलो बजाते थे, लेकिन जल्दी ही लगभग नौ-दस साल की उमर से वे सैक्सोफ़ोन बजाने लगे. चौदह तक पहुंचते-पहुंचते वे पूर्वी कैनसास में जैज़ मण्डलियों में बजाने लगे थे. हौकिन्स को उनका पहला बड़ा मौक़ा मैमी स्मिथ के जैज़ हाउण्ड्स नामक बैण्ड में मिला और वे 1921 से 23 तक उसी बैण्ड के साथ रहे और फिर न्यू यौर्क चले आये. यहां आ कर हौकिन्स फ़्लेचर हेण्डर्सन की मण्डली  में शामिल हो गये और अगले दस साल तक उसी के साथ रहे. कभी-कभीए वे क्लैरिनेट और बेस सैक्सोफ़ोन भी बजाते. हौकिन्स के जीवन में सब से बड़ा मोड़ तब आया जब लूई आर्मस्ट्रौंग 1924-25 के आस-पास न्यू यौर्क आ कर फ़्लेचर हेण्डर्सन के बैण्ड से जुड़ गये. ज़ाहिर है, दो बड़े संगीतकारों का यह मेल नयी दिशाएं खोलने वाला था और इस दौरान कोलमैन हौकिन्स की वादन शैली में ज़बर्दस्त बदलाव आया. ख़ुद एक प्रतिभाशाली संगीतकार होने के अलावा हौकिन्स में दूसरी प्रतिभाओं को पहचानने का गुण भी था. समय-समय पर आर्मस्ट्रौंग, ड्यूक एलिंग्टन, जैंगो राइनहार्ट और बेनी कार्टर जैसे वादकों के साथ जैज़ बजाने के साथ-साथ उन्होंने लेस्टर यंग, माइल्स डेविस, थेलोनियस मंक और मैक्स रोच जैसे युवा जैज़ संगीतकारों को प्रेरित-प्रभावित भी किया. 1934-39 के बीच लम्बे अर्से तक वे  अमरीका के बाहर यूरोप का भी दौरा करते रहे. 1939 में अमरीका लौटने पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध रिकौर्ड "बौडी ऐण्ड सोल" (देह और आत्मा) जारी किया जो एक मील का पत्थर बन गया. 

http://youtu.be/zUFg6HvljDE  ("बौडी ऐण्ड सोल" )

१९४० के आस-पास उन्होंने जैज़ की ही एक शैली "स्विंग" और फिर "बीबौप" में जम कर प्रयोग किये. हालांकि कुछ आगे चल कर लेस्टर यंग और चार्ली पार्कर जिस तरह सूझ और उपज के साथ बजाने लगे थे उससे लगता था कि कोलमैन हौकिन्स पुराने पड़ गये हैं. मगर यह हौकिन्स का कमाल था कि वे नयी-से-नयी शैली को अपनाने के लिए तैयार रहते थे और जल्दी ही उन्होंने डिज़ी गिलिस्पी के साथ "स्विंग" और "बीबौप" का जादू जगाना शुरू कर दिया था. आज अगर जैज़ में सैक्सोफ़ोने एक अनिवार्य वाद्य बन चुका है तो इसके पीछे कोलमैन हौकिन्स की बहुत बड़ी भूमिका है.
सन तीस के दशक में एक ओर तो जैज़ के क्षेत्र में नयी-नयी प्रतिभाएँ उभर कर सामने आ रही थीं, दूसरी ओर इन नयी प्रतिभाओं के बीच अपनी सहयोग की एक अद्भुत भावना भी पनप रही थी। कूटी विलियम्स, जॉनी हॉजेस, बैनी कार्टर, रे नैंस, लॉरेन्स ब्राउन -- ये कुछ प्रमुख संगीतकार थे, जो अपने-अपने फ़न के माहिर होने के साथ एक-दूसरे से मिल कर संगीत सभाओं में भाग लिया करते थे। उन दिनों लुई आर्मस्ट्रौंग और कोलमैन हॉकिन्स के अलावा जो संगीतकार संगीत-प्रेमियों को अपनी मौलिक प्रतिभा से मुग्ध कर रहा था -- उसका नाम है ड्यूक एलिंग्टन। उसी ज़माने का एक किस्सा याद करते हुए कोलमैन हाकिन्स ने बताया कि एक दिन ड्यूक एलिंग्टन आये और कहने लगे कि मैं चाहता हूँ तुम मेरे साथ मिल कर एक रिकॉर्ड तैयार करो। मैं पियानो बजाऊँगा, तुम सैक्सोफ़ोन सँभालो। धुन मैं तैयार करूँगा। कोलमैन हॉकिन्स ने फ़ौरन हामी भर दी लेकिन इन दोनों संगीतकारों को मिल-बैठने में बीस बरस लग गये। फिर सन 1962 में एक इन्टरव्र्यू के दौरान कोलमैन हॉकिन्स ने इस घटना का ज़िक्र किया तो इन दोनों के इकट्ठा होने की नौबत आयी। और तब दोनों ने मिल कर जो रिकॉर्ड तैयार किया -- लिम्बो जैज़  -- उसने जैज़ की दुनिया में एकबारगी तहलका मचा दिया।

http://youtu.be/rN6UlJEXySY (लिम्बो जैज़)

लेकिन यह काफ़ी समय बाद की बात है। सन तीस के दशक में तो ड्यूक एलिंग्टन ख़ुद अपनी मण्डली को जमाने में जुटे हुए थे और कोलमैन हॉकिन्स अकेले दम अपनी प्रतिभा का सिक्का मनवाने की कोशिश कर रहे थे। 1933 में ही उन्होंने कुछ शानदार मिसालें कायम कर दी थीं जिनमें से ‘होकस पोकस’ शीर्षक से की गयी रचना बहुत मशहूर हुई।



वैसे, बहुत-से लोग सन 30 के दशक के मध्य से ले कर 40 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों तक के समय को ‘स्विंग म्यूज़िक’ के युग के नाम से याद करते हैं। लेकिन ‘स्विंग म्यूज़िक का युग’ दरअसल कोई मायने नहीं रखता। इस दौर में बस हुआ यह कि संगीत का मोर्चा कुछ देर के लिए बड़े-बड़े बैण्डों ने सँभाल लिया। इनमें से ज़्यादातर बैण्ड गोरे संगीतकारों के थे और प्रचार भी इनका ज़्यादा हुआ, जैसे बेनी गुडमैन का, जिनका रिकॉर्ड ‘स्टॉम्पिंग ऐट द सैवॉय’ एक ज़माने में बहुत लोकप्रिय हुआ था। मगर बहत-से दूसरे बैण्ड ख़ालिस तौर पर नीग्रो संगीतकारों के थे, जिनमें काउण्ट बेसी का ऑकैस्ट्रा और ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड काफ़ी मशहूर हुए।

18.

 बैण्ड सचमुच मस्ती में झूम सकता है, जब आप इस तरह सबका साथ निभा सकें 
मानो आप मक्खन को छुरी से काट रहे हों.
-- काउण्ट बेसी

इस बीच जैज़ का दायरा न्यू ऑर्लीन्स और शिकागो से बढ़ कर अमरीका के अन्य शहरों तक फैल गया था। काउण्ट बेसी अमरीका के कैन्सस सिटी नामक नगर की देन थे। काउण्ट बेसी को कैन्सस सिटी से निकल कर अपनी प्रतिभा का चमत्कार दिखाने का मौका कब मिला, इसका जैज़ संगीत के इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है, न ही इस बात का ज़िक्र है कि काउण्ट बेसी ने जैज़ के एक और मशहूर संगीतकार बेनी कार्टर की संगत कब शुरू की, मगर इतना तय है कि सन 40-41 के आस-पास ये दोनों कलाकार मिल कर जैज़ संगीत में नयी धारा बहाने में मशग़ूल थे। शायद इसी शुरू की संगत का असर था कि वर्षों बाद जब सन 1961 में बेनी कार्टर ने काउण्ट बेसी के साथ मिल कर धुनों के संकलन का एक मशहूर रिकॉर्ड तैयार किया तो उसका नाम काउण्ट बेसी के अपने शहर के नाम पर रखा -- ‘कैन्सस सिटी सुईट’।

http://youtu.be/HtzbK_ByFG8 (कैन्सस सिटी के बारे में)
http://youtu.be/3Pgmb0Y9nGc (कैन्सस सिटी सेवेन) 

अपने शुरू के दिनों में काउण्ट बेसी कैन्सस सिटी के मशहूर रेनो क्लब में पियानो बजाया करते थे और यह अकारण नहीं कि इस रिकार्ड की एक धुन का नाम है -- ‘राम्पिन ऐट द रेनो’ -- यानी रेनो क्लब की धमा चौकड़ी।

http://youtu.be/GGomvd__bqU  (राम्पिन ऐट द रेनो)

बात यह थी कि न्यू और्लीन्ज़ और शिकागो से होते हुए जैज़ संगीत की शाखाएं न्यू यौर्क, न्यू जर्सी और दूसरी बहुत-सी छोटी-बड़ी जगहों पर भी फैलने लगी थीं और जब कैनसस सिटी के दरवाज़े मनोरंजन की दुनिया के लिए खोल दिये गये तो जुआघरों, शराबख़ानों और वेश्यालयों के साथ-साथ क्लबों के लिए भी जगह बन गयी और ऐसी हालत में उत्तर-दक्षिण-पूरब-पच्छिम से संगीत-मण्डलियां, बड़े-बड़े बैण्ड और संगीतकार आ कर कैनसस सिटी में इकट्ठा होने लगे. काउण्ट बेसी का नाम  इन में प्रमुख था.
विलियम जेम्स "काउण्ट" बेसी का जन्म न्यू जर्सी के रेड बैंक नामक गांव में हुआ था. माता-पिता, दोनों संगीत-प्रेमी थे, मां पियानो बजाती थीं और उन्हीं से काउण्ट बेसी को पियानो के शुरुआती सबक भी मिले. स्कूल में बेसी पढ़ने-लिखने की बजाय यात्राओं के सपने लेते. उन पर उन घुमन्तू मेलों का असर था जो उनके कस्बे में आया करते. हाई स्कूल की दहलीज़ लांघने के बाद काउण्ट बेसी रेड बैंक के पैलेस थियेटर में काफी समय गुज़ारते जहां छिट्पुट काम करने के एवज़ में उन्हें मुफ़्त में कार्यक्रम देखने-सुनने को मिल जाते. उन्होंने जल्दी ही मंच पर चल रहे कार्यक्रमों और मूक फ़िल्मों के साथ बजने वाले उपयुक्त संगीत को रचना सीख लिया. हालांकि पियानो बजाने में उन्हें स्वाभाविक रूप से महारत हासिल थी, बेसी ने ड्रम बजाना पसन्द किया, लेकिन अपने ही कस्बे में रहने वाले सनी ग्रियर की प्रतिभा से हतोत्साह हो कर, जो आगे चल कर ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड में शामिल हुए, काउण्ट बेसी ने पन्द्रह साल की उमर में पूरी तरह पियानो पर ही ध्यान लगाया. फिर बेसी और ग्रियर वहीं रेड बैंक में अलग-अलग कार्यक्रमों में साथ-साथ पियानो और ड्रम बजाते रहे, जब तक कि ग्रियर अपने व्यावसायिक जीवन के सिलसिले में रेड बैंक से चले नहीं गये. इसके बाद कुछ साल वहीं अपने पर तोलने के बाद 1920 के आस-पास काउण्ट बेसी हार्लेम चले गये, हार्लेम में, जो जैज़ संगीत का गढ़ बनता जा रहा था,  बेसी अल्हम्ब्रा थियेटर के पास रहते थे और जैज़ संगीतकारों से अक्सर उनका मिलना-जुलना होता. सनी ग्रियर भी वहीं थे. धीरे-धीरे सोलह वर्षीय बेसी संगीत की बारीकियां सीखने लगे और सीखने का इससे बेहतर तरीका और क्या होता कि जो भी मौका मिले उसे थाम लो, बीस साल की उमर तक वे बैण्डों के साथ और एकल रूप में भी कैन्सस सिटी, सेंट लुई, न्यू और्लीन्ज़ और शिकागो तक दौरे कर आये थे. इस विविध रूपी काम में उन्हें जो अनुभव मिल रहा था वह आगे चल कर उनके बहुत काम आने वाला था.  1925 में हार्लेम लौट कर बेसी को पहला स्थायी काम लेरौय’ज़ नामक जगह में मिला जो अपने पियानो वादकों के लिए जानी जाती थी. यहीं बेसी की मुलाकात फ़ैट्स वौलर से हुई और उन्होंने और्गन बजाना भी सीख लिया, जिसे वे बाद में कैन्सस सिटी के एबलोन थियेटर और फिर ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड में भी बजाने वाले थे.

http://youtu.be/iBDMTT_GVeU?list=PLwF7H2q48PPMT2FuxFczAapwlJbE4yjWv (वन ओ क्लौक जम्प)


1928 में बेसी टुल्सा में थे जब उन्होंने वौल्टर पेज और उनके बैण्ड को सुना. कुछ महीनों के बाद उन्हें भी उस बैण्ड में शामिल होने का मौका मिला और उनके वादन को सुन कर पहली बार लोग उन्हें "काउण्ट" कहने लगे. अगले ही साल बेसी कैन्सस सिटी चले आये और बेनी मोटेन के बैण्ड मे शामिल हो गये. मोटेन की हसरत ड्यूक एलिंग्टन या फ़्लेचर हेण्डरसन जैसा बैण्ड कायम करने की थी. मोटेन थे भी काफी प्रतिष्ठित और 1935 तक बेसी और मोटेन का साथ तमाम तरह के उतार-चढ़ाव के बीच बना रहा. 1935 में मोटेन की मौत के बाद, बेसी ने एक नया बैण्ड कायम किया, जिसमें मोटेन के कई सद्स्य शामिल थे.  1936 के अन्त में काउण्ट बेसी कैन्सस सिटी से शिकागो आ गये और पहली बार उनके बैण्ड "काउण्ट बेसी ऐण्ड हिज़ बैरन्स औफ़ रिदम" ने जैज़ संगीत की दुनिया में अपना सिक्का मनवाना शुरू कर दिया. शुरू ही से बेसी और उनका बैण्ड अपनी लय-ताल के लिए जाना जाता था. बेसी ने एक और नया प्रयोग यह किया कि वे दो टेनर सैक्सोफ़ोन वादकों को औल्टो वादकों के अगल-बगल रखने लगे. इससे जो होड़ और मुकाबले का समां बंधने लगा उसने दूसरे बैण्डों को भी यह हिकमत आज़माने की प्रेरणा दी. इस बीच उनके संगीत के रिकौर्ड भी बनने लगे थे. 

http://youtu.be/Rxg_kA6YaYk?list=PLwF7H2q48PPMT2FuxFczAapwlJbE4yjWv (स्विंगिंग द ब्लूज़ 1938)


एक बार काउण्ट बेसी ने अपना सिक्का जमा दिया तो फिर गाड़ी चल निकली. शहरों के नाम एक के बाद एक गुज़रने लगे. न्यू यौर्क में बेसी अनेक ब्लूज़ गायकों के सम्पर्क में आये बिली हौलिडे, जिमी रशिंग, बिग जो टर्नर, हेलेन ह्यूम्ज़ और जो विलियम्स जैसी प्रतिभाएं. यही नहीं, बेसी ने कुछ जाने-माने हौलिवुड सितारों के साथ भी कार्यक्रम दिये. इसी के साथ बेसी का सम्बन्ध फ़िल्मों से भी हुआ. यह सिलसिला 1958 तक चलता रहा जब काउण्ट बेसी और उनका बैंड अपने पहले यूरोपीय दौरे पर गया. दौरा कामयाब रहा और इसके बाद कार्यक्र्मों की गिनती न रही. अमरीका के पूर्वी तट पर न्यू यौर्क से ले कर पश्चिमी तट पर हौलिवुड और लास वेगास तक -- काउण्ट बेसी संगीत सभाओं, फ़िल्मों और टेलिविजन के कार्यक्रमों में भाग लेते रहे और बड़े-बड़े गायकों के संगतकार बने रहे. यह सिलसिला 1984 में काउण्ट बेसी के देहान्त तक चलता रहा. 
जैज़ संगीत में यह कहना मुश्किल है कि कौन-सी चीज़ अहम है -- गाना या बजाना. एकदम शुरुआती दौर की गुहारों और कनस्तरों और बैंजो जैसे वाद्यों  से ले कर रैग टाइम, ब्लूज़, स्विंग और हिप-हौप की मंज़िलें तय करते हुए जैज़ गायन और जैज़ के वाद्यों ने कई पड़ाव देखे हैं, उसमें कई क़िस्म की शैलियां और वाद्य जुड़े हैं. आज जब जैज़ संगीत की बात होती है तो आम लोगों के मन में या तो ड्रम बजाते ड्रमवादक की छवि उभरती है या सैक्सोफ़ोन पर हिलोरें और झटके लेते सैक्सोफ़ोनवादक की. अक्सर लोग उस वाद्य को नज़रन्दाज़ कर देते हैं जो जैज़ के सारे वाद्यों -- ड्रम, सैक्सोफ़ोन, क्लैरिनेट, ट्रौम्बोन, ट्रम्पेट, गिटार, बेस गिटार और बैंजो आदि -- को जोड़े रहता है, वैसे ही जैसे धागा सारे मनकों को माला की शक्ल में पिरोये रखता है. और यह वाद्य है पियानो जो शायद ड्रम (या उसके बहुत ही कच्चे रूप कनस्तर) और बैंजो के बाद पहला वाद्य था जो जैज़ संगीत के साथ जुड़ा था. दरअसल, अगर संगीत कुल मिला कर सुर-ताल का मामला है तो सुर-ताल के बीच सामंजस्य कायम करने का काम जो वाद्य करता है, वह पियानो है. काउण्ट बेसी की सबसे बड़ी ख़ूबी यही थी कि वे अपने बैण्ड की रीढ़ बने रहे जो अक्सर नज़र नहीं आती, लेकिन ढांचे को खड़ा रखने की भूमिका निभाती है. यही वजह है कि उन्होंने अपने लगभग अस्सी वर्ष के जीवन में न केवल जैज़ के बेगिनती गायकों के साथ संगत की, बल्कि अनेक वादकों को भी पियानो के पीछे बैठे-बैठे वह फलक मुहैया कराया, जिस पर वे अपने सुरों की कारीगरी दिखा सकें.  
काउण्ट बेसी ने सुनने वालों की कई पीढ़ियों को बड़े बैण्ड के संगीत से परिचित कराया. वे बहुत-से जैज़ संगीतकारों के विपरीत विनम्र और किसी हद तक संकोची कलाकार थे, तनावरहित, मज़ा लेने वाले और हमेशा अपने संगीत लो ले कर उत्साह से भरे हुए. उन्होंने लिखा है ,"मेरे ख़याल से बैण्ड सचमुच मस्ती में झूम सकता है अगर वह बिना झटकों के झूम सके, जब आप इस तरह अपने वाद्य को बजाते हुए सबका साथ निभा सकें मानो आप मक्खन को छुरी से काट रहे हों."

http://youtu.be/gMko51An5JU (काउण्ट बेसी -- पैरिस में -- 1981)

आज जब काउण्ट बेसी की फ़ेहरिस्त को हम देखते हैं तो हैरत होती है. बिली हौलिडे से ले कर जो जोन्स, जिमी रशिंग, एला फ़िट्ज़जेरल्ड, फ़्रैंक सिनाट्रा, सैमी डेविस जूनियर, बिंग क्रौसबी और सारा वौहन जैसे नामी गायकों के साथ काउण्ट बेसी का लम्बा सम्बन्ध रहा और यह संगीत सभाओं से लेकर रिकौर्ड बनाने वाली कम्पनियों और फ़िल्मों औत टेलिविजन तक हर क़िस्म की संगत का रहा. यही हाल वादकों का भी था. बस उनकी सबसे बड़ी निराशा यह रही कि वे कभी लुई आर्मस्ट्रौंग की संगत नहीं कर सके.   
इस विनम्र कलाकार को सबसे बड़ा ख़िराज उनके देहान्त के बाद दिया गया. रेड बैंक में एक थियेटर हौल और एक मैदान को तो उनका नाम दिया ही गया, 2009 में न्यू यौर्क की एजकोम्ब ऐवेन्यू और 160वीं सड़क का नाम बदल कर दो महान संगीतकारों पर रखा गया. एजकोम्ब ऐवेन्यू को पौल रोबसन बूलेवार और 160वीं सड़क का नाम काउण्ट बेसी प्लेस रखा गया.

(जारी)

जैज़ संगीत पर एक लम्बा आलेख



चट्टानी जीवन का संगीत 

चौदहवीं कड़ी



17.
जब मैं ने हौक को सुना मैंने लम्बे राग बजाना सीखा
-- माइल्स डेविस 

कोलमैन हॉकिन्स (1904-69) से पहले हालांकि कुछ लोग टेनर सैक्सोफ़ोन बजाते थे, लेकिन इस वाद्य को जैज़ के वाद्यों की पहली पांतमें जगह नहीं मिली थी. कोलमैन हौकिन्स ने ही सबसे पहले इस वाद्य पर महारत हासिल करके उसे जैज़ की क़तारों में शामिल कराया. इसीलिए उनके साथी सैक्सोफ़ोन वादक लेस्टर यंग ने -- जिन्हें सब "प्रेज़िडेन्ट" (राष्ट्रपति) का छोटा रूप "प्रेज़" कह कर बुलाते थे -- 1959 में "द जैज़ रिव्यू" को दिये गये एक इन्टर्व्यू में कहा -- "जहां तक मेरा सवाल है, मेरे ख़याल में कोलमैन हौकिन्स ही राष्ट्रपति थे पहले, ठीक ? रहा मैं, तो मैं दूसरा था." आगे चल कर सुप्रसिद्ध सैक्सोफ़ोन वादक माइल्स डेविस ने कहा -- "जब मैं ने हौक को सुना मैंने लम्बे राग बजाना सीखा."
कोलमैन हौकिन्स हालांकि मिसूरी में पैदा हुए थे, पर उनकी पढ़ाई-लिखाई शिकागो और कैनसास में हुई. शुरू-शुरू में वे पियानो और चेलो बजाते थे, लेकिन जल्दी ही लगभग नौ-दस साल की उमर से वे सैक्सोफ़ोन बजाने लगे. चौदह तक पहुंचते-पहुंचते वे पूर्वी कैनसास में जैज़ मण्डलियों में बजाने लगे थे. हौकिन्स को उनका पहला बड़ा मौक़ा मैमी स्मिथ के जैज़ हाउण्ड्स नामक बैण्ड में मिला और वे 1921 से 23 तक उसी बैण्ड के साथ रहे और फिर न्यू यौर्क चले आये. यहां आ कर हौकिन्स फ़्लेचर हेण्डर्सन की मण्डली  में शामिल हो गये और अगले दस साल तक उसी के साथ रहे. कभी-कभीए वे क्लैरिनेट और बेस सैक्सोफ़ोन भी बजाते. हौकिन्स के जीवन में सब से बड़ा मोड़ तब आया जब लूई आर्मस्ट्रौंग 1924-25 के आस-पास न्यू यौर्क आ कर फ़्लेचर हेण्डर्सन के बैण्ड से जुड़ गये. ज़ाहिर है, दो बड़े संगीतकारों का यह मेल नयी दिशाएं खोलने वाला था और इस दौरान कोलमैन हौकिन्स की वादन शैली में ज़बर्दस्त बदलाव आया. ख़ुद एक प्रतिभाशाली संगीतकार होने के अलावा हौकिन्स में दूसरी प्रतिभाओं को पहचानने का गुण भी था. समय-समय पर आर्मस्ट्रौंग, ड्यूक एलिंग्टन, जैंगो राइनहार्ट और बेनी कार्टर जैसे वादकों के साथ जैज़ बजाने के साथ-साथ उन्होंने लेस्टर यंग, माइल्स डेविस, थेलोनियस मंक और मैक्स रोच जैसे युवा जैज़ संगीतकारों को प्रेरित-प्रभावित भी किया. 1934-39 के बीच लम्बे अर्से तक वे  अमरीका के बाहर यूरोप का भी दौरा करते रहे. 1939 में अमरीका लौटने पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध रिकौर्ड "बौडी ऐण्ड सोल" (देह और आत्मा) जारी किया जो एक मील का पत्थर बन गया. 

http://youtu.be/zUFg6HvljDE  ("बौडी ऐण्ड सोल" )

१९४० के आस-पास उन्होंने जैज़ की ही एक शैली "स्विंग" और फिर "बीबौप" में जम कर प्रयोग किये. हालांकि कुछ आगे चल कर लेस्टर यंग और चार्ली पार्कर जिस तरह सूझ और उपज के साथ बजाने लगे थे उससे लगता था कि कोलमैन हौकिन्स पुराने पड़ गये हैं. मगर यह हौकिन्स का कमाल था कि वे नयी-से-नयी शैली को अपनाने के लिए तैयार रहते थे और जल्दी ही उन्होंने डिज़ी गिलिस्पी के साथ "स्विंग" और "बीबौप" का जादू जगाना शुरू कर दिया था. आज अगर जैज़ में सैक्सोफ़ोने एक अनिवार्य वाद्य बन चुका है तो इसके पीछे कोलमैन हौकिन्स की बहुत बड़ी भूमिका है.
सन तीस के दशक में एक ओर तो जैज़ के क्षेत्र में नयी-नयी प्रतिभाएँ उभर कर सामने आ रही थीं, दूसरी ओर इन नयी प्रतिभाओं के बीच अपनी सहयोग की एक अद्भुत भावना भी पनप रही थी। कूटी विलियम्स, जॉनी हॉजेस, बैनी कार्टर, रे नैंस, लॉरेन्स ब्राउन -- ये कुछ प्रमुख संगीतकार थे, जो अपने-अपने फ़न के माहिर होने के साथ एक-दूसरे से मिल कर संगीत सभाओं में भाग लिया करते थे। उन दिनों लुई आर्मस्ट्रौंग और कोलमैन हॉकिन्स के अलावा जो संगीतकार संगीत-प्रेमियों को अपनी मौलिक प्रतिभा से मुग्ध कर रहा था -- उसका नाम है ड्यूक एलिंग्टन। उसी ज़माने का एक किस्सा याद करते हुए कोलमैन हाकिन्स ने बताया कि एक दिन ड्यूक एलिंग्टन आये और कहने लगे कि मैं चाहता हूँ तुम मेरे साथ मिल कर एक रिकॉर्ड तैयार करो। मैं पियानो बजाऊँगा, तुम सैक्सोफ़ोन सँभालो। धुन मैं तैयार करूँगा। कोलमैन हॉकिन्स ने फ़ौरन हामी भर दी लेकिन इन दोनों संगीतकारों को मिल-बैठने में बीस बरस लग गये। फिर सन 1962 में एक इन्टरव्र्यू के दौरान कोलमैन हॉकिन्स ने इस घटना का ज़िक्र किया तो इन दोनों के इकट्ठा होने की नौबत आयी। और तब दोनों ने मिल कर जो रिकॉर्ड तैयार किया -- लिम्बो जैज़  -- उसने जैज़ की दुनिया में एकबारगी तहलका मचा दिया।

http://youtu.be/rN6UlJEXySY (लिम्बो जैज़)

लेकिन यह काफ़ी समय बाद की बात है। सन तीस के दशक में तो ड्यूक एलिंग्टन ख़ुद अपनी मण्डली को जमाने में जुटे हुए थे और कोलमैन हॉकिन्स अकेले दम अपनी प्रतिभा का सिक्का मनवाने की कोशिश कर रहे थे। 1933 में ही उन्होंने कुछ शानदार मिसालें कायम कर दी थीं जिनमें से ‘होकस पोकस’ शीर्षक से की गयी रचना बहुत मशहूर हुई।



वैसे, बहुत-से लोग सन 30 के दशक के मध्य से ले कर 40 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों तक के समय को ‘स्विंग म्यूज़िक’ के युग के नाम से याद करते हैं। लेकिन ‘स्विंग म्यूज़िक का युग’ दरअसल कोई मायने नहीं रखता। इस दौर में बस हुआ यह कि संगीत का मोर्चा कुछ देर के लिए बड़े-बड़े बैण्डों ने सँभाल लिया। इनमें से ज़्यादातर बैण्ड गोरे संगीतकारों के थे और प्रचार भी इनका ज़्यादा हुआ, जैसे बेनी गुडमैन का, जिनका रिकॉर्ड ‘स्टॉम्पिंग ऐट द सैवॉय’ एक ज़माने में बहुत लोकप्रिय हुआ था। मगर बहत-से दूसरे बैण्ड ख़ालिस तौर पर नीग्रो संगीतकारों के थे, जिनमें काउण्ट बेसी का ऑकैस्ट्रा और ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड काफ़ी मशहूर हुए।

18.

 बैण्ड सचमुच मस्ती में झूम सकता है, जब आप इस तरह सबका साथ निभा सकें 
मानो आप मक्खन को छुरी से काट रहे हों.
-- काउण्ट बेसी

इस बीच जैज़ का दायरा न्यू ऑर्लीन्स और शिकागो से बढ़ कर अमरीका के अन्य शहरों तक फैल गया था। काउण्ट बेसी अमरीका के कैन्सस सिटी नामक नगर की देन थे। काउण्ट बेसी को कैन्सस सिटी से निकल कर अपनी प्रतिभा का चमत्कार दिखाने का मौका कब मिला, इसका जैज़ संगीत के इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है, न ही इस बात का ज़िक्र है कि काउण्ट बेसी ने जैज़ के एक और मशहूर संगीतकार बेनी कार्टर की संगत कब शुरू की, मगर इतना तय है कि सन 40-41 के आस-पास ये दोनों कलाकार मिल कर जैज़ संगीत में नयी धारा बहाने में मशग़ूल थे। शायद इसी शुरू की संगत का असर था कि वर्षों बाद जब सन 1961 में बेनी कार्टर ने काउण्ट बेसी के साथ मिल कर धुनों के संकलन का एक मशहूर रिकॉर्ड तैयार किया तो उसका नाम काउण्ट बेसी के अपने शहर के नाम पर रखा -- ‘कैन्सस सिटी सुईट’।

http://youtu.be/HtzbK_ByFG8 (कैन्सस सिटी के बारे में)
http://youtu.be/3Pgmb0Y9nGc (कैन्सस सिटी सेवेन) 

अपने शुरू के दिनों में काउण्ट बेसी कैन्सस सिटी के मशहूर रेनो क्लब में पियानो बजाया करते थे और यह अकारण नहीं कि इस रिकार्ड की एक धुन का नाम है -- ‘राम्पिन ऐट द रेनो’ -- यानी रेनो क्लब की धमा चौकड़ी।

http://youtu.be/GGomvd__bqU  (राम्पिन ऐट द रेनो)

बात यह थी कि न्यू और्लीन्ज़ और शिकागो से होते हुए जैज़ संगीत की शाखाएं न्यू यौर्क, न्यू जर्सी और दूसरी बहुत-सी छोटी-बड़ी जगहों पर भी फैलने लगी थीं और जब कैनसस सिटी के दरवाज़े मनोरंजन की दुनिया के लिए खोल दिये गये तो जुआघरों, शराबख़ानों और वेश्यालयों के साथ-साथ क्लबों के लिए भी जगह बन गयी और ऐसी हालत में उत्तर-दक्षिण-पूरब-पच्छिम से संगीत-मण्डलियां, बड़े-बड़े बैण्ड और संगीतकार आ कर कैनसस सिटी में इकट्ठा होने लगे. काउण्ट बेसी का नाम  इन में प्रमुख था.
विलियम जेम्स "काउण्ट" बेसी का जन्म न्यू जर्सी के रेड बैंक नामक गांव में हुआ था. माता-पिता, दोनों संगीत-प्रेमी थे, मां पियानो बजाती थीं और उन्हीं से काउण्ट बेसी को पियानो के शुरुआती सबक भी मिले. स्कूल में बेसी पढ़ने-लिखने की बजाय यात्राओं के सपने लेते. उन पर उन घुमन्तू मेलों का असर था जो उनके कस्बे में आया करते. हाई स्कूल की दहलीज़ लांघने के बाद काउण्ट बेसी रेड बैंक के पैलेस थियेटर में काफी समय गुज़ारते जहां छिट्पुट काम करने के एवज़ में उन्हें मुफ़्त में कार्यक्रम देखने-सुनने को मिल जाते. उन्होंने जल्दी ही मंच पर चल रहे कार्यक्रमों और मूक फ़िल्मों के साथ बजने वाले उपयुक्त संगीत को रचना सीख लिया. हालांकि पियानो बजाने में उन्हें स्वाभाविक रूप से महारत हासिल थी, बेसी ने ड्रम बजाना पसन्द किया, लेकिन अपने ही कस्बे में रहने वाले सनी ग्रियर की प्रतिभा से हतोत्साह हो कर, जो आगे चल कर ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड में शामिल हुए, काउण्ट बेसी ने पन्द्रह साल की उमर में पूरी तरह पियानो पर ही ध्यान लगाया. फिर बेसी और ग्रियर वहीं रेड बैंक में अलग-अलग कार्यक्रमों में साथ-साथ पियानो और ड्रम बजाते रहे, जब तक कि ग्रियर अपने व्यावसायिक जीवन के सिलसिले में रेड बैंक से चले नहीं गये. इसके बाद कुछ साल वहीं अपने पर तोलने के बाद 1920 के आस-पास काउण्ट बेसी हार्लेम चले गये, हार्लेम में, जो जैज़ संगीत का गढ़ बनता जा रहा था,  बेसी अल्हम्ब्रा थियेटर के पास रहते थे और जैज़ संगीतकारों से अक्सर उनका मिलना-जुलना होता. सनी ग्रियर भी वहीं थे. धीरे-धीरे सोलह वर्षीय बेसी संगीत की बारीकियां सीखने लगे और सीखने का इससे बेहतर तरीका और क्या होता कि जो भी मौका मिले उसे थाम लो, बीस साल की उमर तक वे बैण्डों के साथ और एकल रूप में भी कैन्सस सिटी, सेंट लुई, न्यू और्लीन्ज़ और शिकागो तक दौरे कर आये थे. इस विविध रूपी काम में उन्हें जो अनुभव मिल रहा था वह आगे चल कर उनके बहुत काम आने वाला था.  1925 में हार्लेम लौट कर बेसी को पहला स्थायी काम लेरौय’ज़ नामक जगह में मिला जो अपने पियानो वादकों के लिए जानी जाती थी. यहीं बेसी की मुलाकात फ़ैट्स वौलर से हुई और उन्होंने और्गन बजाना भी सीख लिया, जिसे वे बाद में कैन्सस सिटी के एबलोन थियेटर और फिर ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड में भी बजाने वाले थे.

http://youtu.be/iBDMTT_GVeU?list=PLwF7H2q48PPMT2FuxFczAapwlJbE4yjWv (वन ओ क्लौक जम्प)


1928 में बेसी टुल्सा में थे जब उन्होंने वौल्टर पेज और उनके बैण्ड को सुना. कुछ महीनों के बाद उन्हें भी उस बैण्ड में शामिल होने का मौका मिला और उनके वादन को सुन कर पहली बार लोग उन्हें "काउण्ट" कहने लगे. अगले ही साल बेसी कैन्सस सिटी चले आये और बेनी मोटेन के बैण्ड मे शामिल हो गये. मोटेन की हसरत ड्यूक एलिंग्टन या फ़्लेचर हेण्डरसन जैसा बैण्ड कायम करने की थी. मोटेन थे भी काफी प्रतिष्ठित और 1935 तक बेसी और मोटेन का साथ तमाम तरह के उतार-चढ़ाव के बीच बना रहा. 1935 में मोटेन की मौत के बाद, बेसी ने एक नया बैण्ड कायम किया, जिसमें मोटेन के कई सद्स्य शामिल थे.  1936 के अन्त में काउण्ट बेसी कैन्सस सिटी से शिकागो आ गये और पहली बार उनके बैण्ड "काउण्ट बेसी ऐण्ड हिज़ बैरन्स औफ़ रिदम" ने जैज़ संगीत की दुनिया में अपना सिक्का मनवाना शुरू कर दिया. शुरू ही से बेसी और उनका बैण्ड अपनी लय-ताल के लिए जाना जाता था. बेसी ने एक और नया प्रयोग यह किया कि वे दो टेनर सैक्सोफ़ोन वादकों को औल्टो वादकों के अगल-बगल रखने लगे. इससे जो होड़ और मुकाबले का समां बंधने लगा उसने दूसरे बैण्डों को भी यह हिकमत आज़माने की प्रेरणा दी. इस बीच उनके संगीत के रिकौर्ड भी बनने लगे थे. 

http://youtu.be/Rxg_kA6YaYk?list=PLwF7H2q48PPMT2FuxFczAapwlJbE4yjWv (स्विंगिंग द ब्लूज़ 1938)


एक बार काउण्ट बेसी ने अपना सिक्का जमा दिया तो फिर गाड़ी चल निकली. शहरों के नाम एक के बाद एक गुज़रने लगे. न्यू यौर्क में बेसी अनेक ब्लूज़ गायकों के सम्पर्क में आये बिली हौलिडे, जिमी रशिंग, बिग जो टर्नर, हेलेन ह्यूम्ज़ और जो विलियम्स जैसी प्रतिभाएं. यही नहीं, बेसी ने कुछ जाने-माने हौलिवुड सितारों के साथ भी कार्यक्रम दिये. इसी के साथ बेसी का सम्बन्ध फ़िल्मों से भी हुआ. यह सिलसिला 1958 तक चलता रहा जब काउण्ट बेसी और उनका बैंड अपने पहले यूरोपीय दौरे पर गया. दौरा कामयाब रहा और इसके बाद कार्यक्र्मों की गिनती न रही. अमरीका के पूर्वी तट पर न्यू यौर्क से ले कर पश्चिमी तट पर हौलिवुड और लास वेगास तक -- काउण्ट बेसी संगीत सभाओं, फ़िल्मों और टेलिविजन के कार्यक्रमों में भाग लेते रहे और बड़े-बड़े गायकों के संगतकार बने रहे. यह सिलसिला 1984 में काउण्ट बेसी के देहान्त तक चलता रहा. 
जैज़ संगीत में यह कहना मुश्किल है कि कौन-सी चीज़ अहम है -- गाना या बजाना. एकदम शुरुआती दौर की गुहारों और कनस्तरों और बैंजो जैसे वाद्यों  से ले कर रैग टाइम, ब्लूज़, स्विंग और हिप-हौप की मंज़िलें तय करते हुए जैज़ गायन और जैज़ के वाद्यों ने कई पड़ाव देखे हैं, उसमें कई क़िस्म की शैलियां और वाद्य जुड़े हैं. आज जब जैज़ संगीत की बात होती है तो आम लोगों के मन में या तो ड्रम बजाते ड्रमवादक की छवि उभरती है या सैक्सोफ़ोन पर हिलोरें और झटके लेते सैक्सोफ़ोनवादक की. अक्सर लोग उस वाद्य को नज़रन्दाज़ कर देते हैं जो जैज़ के सारे वाद्यों -- ड्रम, सैक्सोफ़ोन, क्लैरिनेट, ट्रौम्बोन, ट्रम्पेट, गिटार, बेस गिटार और बैंजो आदि -- को जोड़े रहता है, वैसे ही जैसे धागा सारे मनकों को माला की शक्ल में पिरोये रखता है. और यह वाद्य है पियानो जो शायद ड्रम (या उसके बहुत ही कच्चे रूप कनस्तर) और बैंजो के बाद पहला वाद्य था जो जैज़ संगीत के साथ जुड़ा था. दरअसल, अगर संगीत कुल मिला कर सुर-ताल का मामला है तो सुर-ताल के बीच सामंजस्य कायम करने का काम जो वाद्य करता है, वह पियानो है. काउण्ट बेसी की सबसे बड़ी ख़ूबी यही थी कि वे अपने बैण्ड की रीढ़ बने रहे जो अक्सर नज़र नहीं आती, लेकिन ढांचे को खड़ा रखने की भूमिका निभाती है. यही वजह है कि उन्होंने अपने लगभग अस्सी वर्ष के जीवन में न केवल जैज़ के बेगिनती गायकों के साथ संगत की, बल्कि अनेक वादकों को भी पियानो के पीछे बैठे-बैठे वह फलक मुहैया कराया, जिस पर वे अपने सुरों की कारीगरी दिखा सकें.  
काउण्ट बेसी ने सुनने वालों की कई पीढ़ियों को बड़े बैण्ड के संगीत से परिचित कराया. वे बहुत-से जैज़ संगीतकारों के विपरीत विनम्र और किसी हद तक संकोची कलाकार थे, तनावरहित, मज़ा लेने वाले और हमेशा अपने संगीत लो ले कर उत्साह से भरे हुए. उन्होंने लिखा है ,"मेरे ख़याल से बैण्ड सचमुच मस्ती में झूम सकता है अगर वह बिना झटकों के झूम सके, जब आप इस तरह अपने वाद्य को बजाते हुए सबका साथ निभा सकें मानो आप मक्खन को छुरी से काट रहे हों."

http://youtu.be/gMko51An5JU (काउण्ट बेसी -- पैरिस में -- 1981)

आज जब काउण्ट बेसी की फ़ेहरिस्त को हम देखते हैं तो हैरत होती है. बिली हौलिडे से ले कर जो जोन्स, जिमी रशिंग, एला फ़िट्ज़जेरल्ड, फ़्रैंक सिनाट्रा, सैमी डेविस जूनियर, बिंग क्रौसबी और सारा वौहन जैसे नामी गायकों के साथ काउण्ट बेसी का लम्बा सम्बन्ध रहा और यह संगीत सभाओं से लेकर रिकौर्ड बनाने वाली कम्पनियों और फ़िल्मों औत टेलिविजन तक हर क़िस्म की संगत का रहा. यही हाल वादकों का भी था. बस उनकी सबसे बड़ी निराशा यह रही कि वे कभी लुई आर्मस्ट्रौंग की संगत नहीं कर सके.   
इस विनम्र कलाकार को सबसे बड़ा ख़िराज उनके देहान्त के बाद दिया गया. रेड बैंक में एक थियेटर हौल और एक मैदान को तो उनका नाम दिया ही गया, 2009 में न्यू यौर्क की एजकोम्ब ऐवेन्यू और 160वीं सड़क का नाम बदल कर दो महान संगीतकारों पर रखा गया. एजकोम्ब ऐवेन्यू को पौल रोबसन बूलेवार और 160वीं सड़क का नाम काउण्ट बेसी प्लेस रखा गया.

(जारी)


Thursday, February 19, 2015

जैज़ संगीत पर एक लम्बा आलेख



चट्टानी जीवन का संगीत 

तेरहवीं कड़ी

16.

अगर आपको यह पूछना पड़े कि जैज़ क्या है तो आप कभी नहीं जान पायेंगे. 
-- लूई आर्मस्ट्रौंग


सिड्नी बेशेत अगर किंग औलिवर के बाग़ी शागिर्द थे, अवसाद और बौद्धिकता की अपनी ही दुनिया में विचरने वाले वादक तो लूई आर्मस्ट्रौंग किंग औलिवर के उन शिष्यों में थे जिन्होंने जैज़ को दृढ़ता से उसकी जड़ों से जोड़े रखा और उसे लोकप्रियता की नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया. बेशेत जैज़ के अन्तर्मुखी साधक थे तो आर्मस्ट्रौंग उसके सन्देशवाहक, उसके राजदूत. बेशेत अगर एक मध्यवर्गीय परिवार से आये थे तो लूई आर्मस्ट्रौंग ने न्यू और्लीन्ज़ को उसकी तमाम हलचल और ग़लाज़त और हिंसा के साथ देखा था और ऐसे ही माहौल से निकल कर अपार लोकप्रियता और शोहरत के अपने लम्बे जीवन की शुरूआत की थी। अकारण नहीं है कि अपनी कला और शोहरत के लिए किंग औलिवर को पूरी कृतज्ञता से याद करते हुए भी आर्मस्ट्रौंग अपने बचपन और किशोरावस्था के कड़वे-कसैले अनुभवों को नहीं भूले. "हर बार जब मैं अपनी ट्रम्पेट बजाते हुए आंखें बन्द करता हूं," उन्होंने एक बार कहा था,"मैं अपने प्यारे पुराने न्यू और्लीन्ज़ के दिल में झांकता हूं. उसने मुझे जीने का एक ज़रिया, एक मक़सद दिया."
लुई आर्मस्ट्रौंग को किंग ऑलिवर ने सन 1922 में न्यू ऑर्लीन्स से शिकागो बुला कर अपने बैण्ड में जगह दी थी और अगले कई वर्षों तक ये दोनों संगीतकार क्रियोल जैज़ बैण्ड में एक-दूसरे के पूरक बने रहे। किंग ऑलिवर और लुई आर्मस्ट्रौंग के बीच जो घनिष्टता थी, वह उनके हर रिकॉर्ड में झलकती है। सारी ज़िन्दगी लुई आर्मस्ट्रौंग किंग ऑलिवर को अग्रज-समान मानते रहे और उनकी कला, उदारता और शिक्षा को याद करते रहे और पूरी विनम्रता के साथ यह स्वीकार करते रहे कि उनकी सारी सफलता का श्रेय अगर किसी एक व्यक्ति को दिया जा सकता है तो किंग ऑलिवर ही वह व्यक्ति हैं।
जैज़ संगीत के सामूहिक शिरकत वाले मूल तत्व को बरकरार रखते हुए किंग ऑलिवर और उनका क्रियोल जैज़ बैण्ड, दल के विभिन्न वादकों के व्यक्तिगत कौशल की बजाय मिले-जुले, कहा जाय कि सहयोगी, प्रयास पर ज़ोर देता था। लेकिन जैसे-जैसे समय गुज़रता गया, लुई आर्मस्ट्रौंग ने धीरे-धीरे अपनी शैली विकसित करनी शुरू कर दी। उस ज़माने के रिकॉर्ड सुनें तो इस बात का स्पष्ट आभास हो जाता है कि लुई आर्मस्ट्रौंग का कॉर्नेट, बैण्ड में शामिल अन्य वाद्यों की तुलना में अधिक ‘मुखर’ है। 

http://youtu.be/TdYJwL_9W7Y (King Oliver's Creole Jazz Band & Louis Armstrong - Just Gone)

बाद में भी जब लुई आर्मस्ट्रौंग किंग ऑलिवर के बैण्ड से बाहर आ कर अपेक्षाकृत बड़े बैण्डों में शामिल हो गये थे, तब भी हम यही पाते हैं कि सारा रिकॉर्ड एक तरह से उन्हीं के इर्द-गिर्द केन्द्रित है। 1920 के ही दशक में आगे चल कर जब लुई आर्मस्ट्रौंग ने ‘हॉट फ़ाइव’ और ‘हॉट सेवेन’ जैसी मण्डलियों में संगत की और रिकॉर्ड तैयार किये तो हालाँकि वहाँ न्यू ऑर्लीन्स ‘घराने’ की परम्परा में ट्रम्पेट, ट्रॉम्बोन और क्लैरिनेट की कतार मौजूद थी, मगर लुई आर्मस्ट्रौंग को लगातार अधिक ज़ोरदारी के साथ कॉर्नेट बजाते और पूरे दल पर हावी होते सुना जा सकता है।

http://youtu.be/zPgh7nxTQT4 (Louis Armstrong - West End Blues - Chicago, 28 June 1928) 

सवाल इसमें अच्छाई-बुराई का नहीं था, बल्कि एक विलक्षण प्रतिभा के अपने निजी और अनोखे व्यक्तित्व का था और फिर तीस के दशक में जब और भी बड़े दलों के साथ लुई आर्मस्ट्रौंग ने अपने प्रारम्भिक चरण के कुछ अविस्मरणीय रिकॉर्ड तैयार किये -- जिनमें वे ट्रम्पेट बजाने के साथ-साथ गाते भी थे -- मिसाल के तौर पर उनका प्रसिद्ध रिकॉर्ड ‘आई काण्ट गिव यू एनीथिंग बट लव’ (मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकता अपनी मुहब्बत के सिवा) सुनें तो हम पाते हैं कि सारा रिकॉर्ड आर्मस्ट्रौंग के ट्रम्पेट वादन और आर्मस्ट्रौंग द्वारा ही संगत में गायी गयी गीत की पँक्तियों पर केन्द्रित है। आर्मस्ट्रौंग के इस "गाने" में मज़े की बात यह थी कि वे कई बार गीत के शब्दों को छोड़ कर "स्कैट शैली" अपनाते, यानी शुद्ध अक्षरों और व्यंजनों पर चले आते और उनकी करख़्त खरखराती आवाज़ में ये अर्थहीन ध्वनियां ट्रम्पेट के स्वरों की पूरक बन जातीं.
 
इसी प्रकार के एकल रिकॉर्डों के बल पर लुई आर्मस्ट्रौंग ने अलगे दस-पन्द्रह वर्षों तक जैज़ की शैली निर्धारित कर दी। उस समय के लगभग सभी ट्रम्पेट-वादकों पर तो उनका असर पड़ा ही, अन्य वाद्यों के फ़नकार भी उनके प्रभाव से अछूते नहीं रहे। यहाँ तक कि लुई आर्मस्ट्रौंग द्वारा अदा किये गये अनेक ‘टुकड़े’ आज भी जैज़ की बहुत-सी रचनाओं में सुने जा सकते हैं।


http://youtu.be/xO3k-S_pqK4 (Louis Armstrong Hot Seven - Wild Man Blues (1927)

हालांकि किंग औलिवर के साथ लूई आर्मस्ट्रौंग का एक ख़ास रिश्ता था, मगर धीरे-धीरे न्यू और्लीन्ज़ और मिसिसिपी नदी के सफ़र उनकी प्रतिभा के लिए कमतर साबित होने लगे. तब तक शिकागो जैज़ संगीत की दुनिया में एक केन्द्र के रूप में उभर कर सामने आ चुका था और इस बीच आर्मस्ट्रौंग किंग औलिवर के बैंड में पियानो बजाने वाले लिलियन हार्डिन के शरीक-ए-हयात बन चुके थे. नये क्षितिजों की खोज दोनों को पहले शिकागो और फिर लौज़ ऐन्जिलीज़ ले गयी जहां फ़िल्मों की रुपहली दुनिया में एक अलग ही आकर्षण था. 1943 में न्यू यौर्क में मुस्तक़िल तौर पर आ बसने से पहले आर्मस्ट्रौंग इन्हीं केन्द्रों में अपनी कला का प्रदर्शन करते रहे, साथ ही लम्बे-लम्बे दौरों पर भी जाते रहे. 
मंच पर अपने ट्रम्पेट-वादन के अलावा अपनी करिश्माई मौजूदगी के लिए विख्यात  लूई आर्मस्ट्रौंग उन पहले-पहले अफ़्रीकी-अमरीकी लोकप्रिय संगीतकारों में थे जो "पार उतरे" थे, यानी जिन्होंने रंग और नस्ल की सारी बन्दिशें पार करके एक सच्ची अखिल अमरीकी ख्याति और हरदिल-अज़ीज़ी हासिल की थी. वे बिरले ही रंग और नस्ल की राजनीति में मुखर हिस्सा लेते, जिसकी वजह से उन्हें कलाकारों की बिरादरी की आलोचना का निशाना भी बनना पड़ता, मगर अपने ढंग से वे दृढ़ता से रंग और नस्ल के आधार पर किये जाने वाले भेद-भाव का विरोध करते और अपने विनम्र अन्दाज़ में भेद-भाव के समर्थकों को जवाब भी देते जैसा कि कई बहु-प्रचारित अवसरों पर देखा भी गया. इसीलिए जब कुछेक मौक़ों पर उन्होंने ज़बान खोली तो वह और भी असरन्दाज़ बन गया, मसलन जब उन्होंने स्कूली बच्चों को रंग और नस्ल के आधार पर अलग-अलग स्कूलों में भेजे जाने की व्यवस्था के ख़िलाफ़ आन्दोलन में हिस्सा लेते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति आइज़नहावर को "दोमुंहा" और "साहसहीन" कहा था, जो बयान राष्ट्रीय खबरों में छाया रहा था. फिर जैसे इतना ही काफ़ी नहीं था लूई आर्मस्ट्रौंग ने अमरीकी विदेश मन्त्रालय द्वारा प्रायोजित सोवियत संघ के एक दौरे पर यह कहते हुए जाने से इनकार कर दिया था कि,"जिस तरह वे मेरे लोगों के साथ दक्षिण में बरताव कर रहे हैं, सरकार जाये भाड़ में" और यह कि वे विदेश में अपनी सरकार की नुमाइन्दगी नहीं कर सकते जब उसने  अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ लड़ाई छेड़ रखी हो. यह भी क़ाबिल-ए-ज़िक्र है कि लूई आर्मस्ट्रौंग के बयान के छै दिन बाद राष्ट्रपति आइज़नहावर ने केन्द्रीय पुलिस बल को आदेश दिया था कि लिटल रौक के बच्चों को स्कूलों में प्रवेश कराने के लिए सिपाही उनके साथ जायें. सारी उमर वे अपनी किशोरावस्था के सरपरस्त यहूदी कौर्नोव्स्की परिवार के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए यहूदियों की ख़ास निशानी "डेविड का सितारा" अपने कोट पर तमग़े की तरह लगा कर मंच पर आते. 
यह तो उनकी कला और व्यक्तित्व ही था कि उन्हें सामाजिक रूप से उन तबकों में भी न्योता जाने लगा जो किसी काले आदमी के लिए प्रतिबन्धित क्षेत्र का दर्जा रखते थे. आर्मस्ट्रौंग की ख़ूबी थी कौर्नेट और ट्रम्पेट पर उनकी असाधारण पकड़. वे कोई प्रचलित धुन बजाना शुरू करते और फिर सहसा छलांग लगा कर उसके कुछ ऐसे पहलू उजागर कर देते जिन पर पहले किसी का ध्यान नहीं गया था. वे उन पहले-पहले संगीतकारों में थे जिन्होंने अपने वादन की रिकौर्डिंग को अपने ही प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए इस्तेमाल किया. अपने ख़ाली समय में उनका रियाज़ भी अनोखा था. वे अपनी रिकौर्डिंग सुनते-सुनते साथ-साथ बजाने लगते और इसके अलावा एक ही धुन की दो अलग-अलग रिकौर्डिंगों का मुक़ाबला करके अपनी तकनीक को सुधारते. यही वजह है कि १९६४ में जब बीटल्स की तूती बोल रही थी और आर्मस्ट्रौंग की उमर ६३ साल के हो चली थी, उनके "हेलो डौली" शीर्षक रिकौर्ड ने बीटल्स के रिकौर्ड को लोकप्रिय गानों की बिलबोर्ड सूची के प्रथम स्थान से हटा कर वहां अपना झण्डा गाड़ दिया था. इससे वे अव्वल नम्बर पर आने वाले अमरीका के सबसे उमरदार संगीतकार बन गये.  

http://youtu.be/kmfeKUNDDYs  (लुई आर्मस्ट्रौंग - हेलो डौली")

अगर लुई आर्मस्ट्रौंग की शैली ‘मुखर’ थी, संगीतकार के निजी कौशल और प्रतिभा की महत्ता स्थापित करने में उनका विश्वास था तो उन्हीं के एक अन्य समकालीन -- ड्यूक एलिंग्टन -- जैज़ की सामूहिकता को बरकरार रखने और उसे ‘नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाने में जुटे हुए थे। मगर ड्यूक एलिंग्टन की चर्चा बाद में।
1930 का दशक एक तरह से जैज़ संगीत का स्वर्ण युग कहा जाता है, जिसमें एक-से-एक अनोखे एकल वादक सामने आये। जैज़ संगीत का क्षेत्र न्यू ऑर्लीन्स से शिकागो और फिर शिकागो से अमरीका के अन्य भागों में फैलने लगा। इसी युग की उपज थे कोलमैन हॉकिन्स, जिन्होंने औरों को पीछे छोड़ कर जैज़ संगीत में अपनी एक अलग जगह बनायी और जैज़ को उसका असली वाद्य -- सैक्सोफ़ोन -- उपलब्ध कराया। जैज़ में बैंजो और गिटार से ले कर पियानो, ट्रम्पेट, ट्रॉम्बोन, कॉर्नेट और क्लैरिनेट संगीत-शैली के रूप में निखर कर सामने आ चुका था, लेकिन जैज़ को अब भी एक ऐसे साज़ की तलाश थी, जो उसे पूरी तरह व्यक्त कर सके और इस साज़ को सामने लाये कोलमैन हॉकिन्स। कोलमैन हॉकिन्स ने ही पहले-पहल सैक्सोफ़ोन पर जैज़ की शानदार रचनाएँ प्रस्तुत कीं और आगे आने वाले वादकों के लिए एक नयी राह खोल दी।

(जारी)

Tuesday, February 17, 2015

जैज़ संगीत पर एक लम्बा आलेख


चट्टानी जीवन का संगीत 

बारहवीं कड़ी


15.

जैज़ रोज़मर्रा की धूल को धो कर साफ़ कर देता है.
-- आर्ट ब्लेकी

यक़ीनन, ग़ुलामों के पास खोने के लिए अपनी बेड़ियों के सिवा और कुछ नहीं होता. लेकिन जो लोग अपनी सरज़मीन से उखाड़ कर एक अजनबी देश में, अजनबी लोगों द्वारा, अजनबी लोगों के बीच ग़ुलाम बना कर ले जाये गये होते हैं, उनका तो न इतिहास होता है, न भूगोल; बस दर्द-ओ-ग़म का एक इलाक़ा होता है, जिसमें नाउम्मीदी हर क़दम पर उनसे वह सब भी छीन लेने के लिए घात लगाये रहती है जो वे किसी तरह जुटाते रहते हैं. अफ़्रीका से ग़ुलाम बना कर अमरीका ले जाये गये लोगों के साथ कुछ ऐसी ही कैफ़ियत थी, या शायद इससे भी ज़्यादा. 
मगर इसे उनके जीवट का ही सबूत माना जायेगा कि हर तरह की विपरीत स्थिति में उन्होंने नये सिरे से अपनी ज़िन्दगियों को दोबारा कंकड़-दर-कंकड़ जोड़ने की कोशिश की और इसमें वे कामयाब भी हुए. इस जद्दो-जेहद से जो चीज़ें उभर कर सामने आयीं और जिन्होंने अपनी बारी में इस जद्दो-जेहद में उनका साथ भी निभाया, उनमें जैज़ को पहली सफ़ पर रखा जा सकता है. यह सिलसिला 1862-64 के अमरीकी गृह युद्ध के बाद और भी तेज़ हो गया कि वह युद्ध लड़ा ही इन ग़ुलामों को आज़ाद करने के मक़सद से गया था. यह बात दीगर है कि उसके बाद भी मोटे तौर पर अफ़्रीकी मूल के अमरीकियों के हालात पहले जैसे ही रहे, या अगर सुधरे भी तो टुकड़ों में और बेहद धीरे-धीरे. 
ज़ाहिर है कि जिनका इतिहास और भूगोल ही नहीं था, उनके संगीत के इतिहास की फ़िक्र किसे होती ? इसीलिए जैज़ का शुरुआती सफ़र अंधेरे में खोया हुआ है. और अगर आज उसका थोड़ा-बहुत अन्दाज़ा किया भी जा सकता है तो महज़ उन क़िस्सों और बयानों के बल पर जो लोगों ने बाद में दर्ज कराये, जब जैज़ संगीत ने बड़े पैमाने पर हरदिल अज़ीज़ी हासिल कर ली और अमरीकी संगीत समीक्षकों को महसूस हुआ कि उनके पास अमरीकी संगीत के नाम पर कहने के लिए जैज़ के सिवा कुछ भी नहीं था, बाक़ी तो जो था, वह सारे-का-सारा यूरोपी संगीत था, वहीं से लाया गया. 
क़िस्से-कहानियों में हक़ीक़त से थोड़ी-बहुत छेड़-छाड़ की गुंजाइश तो रहती ही है. अब यही देखिये कि उसी ज़माने में जब किंग औलिवर और उनका क्रियोल बैण्ड मिसिसिपी की लहरों पर धूम मचा रहा था और लूई आर्मस्ट्रौंग शोहरत और कामयाबी की मंज़िलें एक-एक करके तय कर रहे थे, कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्हें जैज़ के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने के लिए बीस-तीस साल इन्तज़ार करना पड़ा. ऐसे ही एक शख़्स थे बंक जौन्सन (1889-1949).

http://youtu.be/397ne_szA7A (Bunk Johnson -- Panama)


तो दोस्तो, जैज़ के सफ़र में एक छोटा-सा घुमाव ले कर लुई आर्मस्ट्रौंग की चर्चा से पहले बंक जौन्सन का ज़िक्र कर लिया जाये.
नाम तो उनका था विलियम गैरी जौन्सन, मगर वे जाने जाते हैं बंक जौन्सन के नाम से. और उनका यह नाम कैसे और क्यों पड़ा, इसके पीछे एक मज़ेदार क़िस्सा है. हुआ यह कि जब जैज़ के इतिहास को मुकम्मल करने का भूत अमरीकी संगीत समीक्षकों पर चढ़ा तो भाग-दौड़ शुरू हुई. खोज-खोज कर बूढ़-पुरनिये पकड़े जाने लगे और उनसे बात-चीत करके जैज़ संगीत की कड़ियां कुछ उसी अन्दाज़ में जोड़ी जाने लगीं जैसे मानव के विकास क्रम की छान-बीन करने वाले वैज्ञानिक प्रागैतिहासिक काल से ले कर अब तक छान-फटक करते रहते हैं. इस क्रम में नामी संगीतकारों के साथ गुमनाम लोगों के इण्टर्व्यू रिकौर्ड करने का सिलसिला शुरू हुआ. 
इसी क्रम में जब कुछ नामी-गिरामी संगीतकारों ने, जिनमें लुई आर्मस्ट्रौंग के साथ-साथ कुछ और संगीतकार भी शामिल थे, बातचीत के दौरान न्यू और्लीन्ज़ का ज़िक्र करते हुए वहां के प्रभावशाली वादकों में  विलियम जौन्सन का ज़िक्र बड़े सम्मान से किया तो जौन्सन  की तलाश शुरू हुई. मगर जौन्सन का कुछ अता-पता न था. बड़ी खोज-बीन के बाद आख़िरकार 1938 में जब बिल रसेल और फ़्रेद्रिक रैम्ज़े ने अपनी किताब "जैज़मेन" -- जैज़ के लोग -- लिखने की योजना बनायी तो उन्होंने किसी तरह विलियम जौन्सन को लूज़ियाना के न्यू आइबीरिया शहर में खोज निकाला और उनसे ढेरों क़िस्से रिकौर्ड किये. 
जौन्सन जो एक लम्बे अरसे से गुमनामी के गर्त में खोये हुए थे, इस नयी तवज्जो से बहुत उत्साहित हुए और उन्होंने पुराने ज़माने के बारे में, जैज़ के माहौल, संगीतकारों, बैण्डों, गायकों और वादकों के बारे में और सबसे ज़्यादा अपने बारे में कहानियां सुनायीं. ख़ैर किताब लिखी गयी, मगर धीरे-धीरे यह राज़ खुलने लगा कि जौन्सन ने उस ज़माने की बातें करते हुए ढेरों और सेरों झूठ बोला था. यहां तक कि अपने को अहमियत देने के चक्कर में अपनी पैदाइश की तारीख़ दस साल पीछे सरका दी थी. ज़ाहिर है, एक हंगामा खड़ा हो गया और संगीत समीक्षकों ने कहा कि विलियम जौन्सन "बंक" यानी बकवास से भरे हुए थे. और लीजिये साहब यह नाम विलियम जौन्सन के साथ चस्पां हो गया. मगर इससे जौन्सन पर रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ा. चूंकि जब बिल रसेल और फ़्रेड्रिक रैम्ज़े विलियम जौन्सन से मिले थे तब उनके आगे के दांत टूटे हुए थे और उनके पास कोई साज़ नहीं था, इसलिए यह जानने का भी कोई ज़रिया नहीं था कि लुई आर्मस्ट्रौंग ने जो दावा किया था, वह सच भी था या नहीं. चुनांचे एक बार फिर जौन्सन के यहां धरना दिया गया. उन्होंने कहा कि अगर उनके दांत लगवा दिये जायें और उन्हें ट्रम्पेट मुहैया करा दिया जाये तो वे अपने जौहर दिखा सकते हैं. 
बहरहाल, क़िस्सा-कोताह यह कि इस बीच जौन्सन के चटपटे क़िस्सों ने बिल रसेल की किताब को ख़ासा लोकप्रिय बना दिया था. सो लेखकों ने संगीत-प्रेमियों और संगीतकारों और रिकौर्ड कम्पनियों से चन्दा करके बंक जौन्सन के दांत बनवाये, उन्हें साज़ ख़रीद कर दिया और 1940  के बाद जा कर विलियम गैरी "बंक" जौन्सन ने अपने संगीत को रिकौर्ड कराया.

http://youtu.be/oY3Go5Ydeao (Sister Kate)

आज बंक जौन्सन के बारे में जो मालूमात हैं, उनके अनुसार जौन्सन का जन्म न्यू और्लीन्ज़ में ग़ालिबन 1889 में हुआ था, हालांकि ख़ुद वे इसे 1879 में हुआ बताते थे. मामूली परिवार था और जौन्सन ऐडम औलिवियर से संगीत सीख कर उन्हीं की मण्डली में शामिल हो गये थे. कुछ समय उन्होंने बडी बोल्डन के बैंड में भी शिरकत की और आगे चल कर फ़्रैंकी डुसेन और क्लैरेन्स विलियम्स के बैंड में भी. 1915 में जौन्सन ने न्यू और्लीन्ज़ को विदा कही और घुमन्तू मण्डलियों में शामिल हो गये. बात यह थी कि जौन्सन को एक संगीत कार्यक्रम में शिरकत करनी थी. वे वहां पहुंचे ही नहीं. उनके साथियों ने ऐलान किया कि जौन्सन को इसकी माक़ूल सज़ा दी जायेगी जिसका एक पहलू उनकी पिटायी करने से जुड़ा था. सो, संक्षेप में कहें तो वे फूट लिये. 
फिर, 1930 में जब वे ब्लैक ईगल्ज़ नाम के बैण्ड में ट्रम्पेट बजा रहे थे तो बैंड के दूसरे ट्रम्पेट वादक एवन टौमस को किसी ने छुरा मार दिया. इसके बाद जो हंगामा हुआ उसमें न केवल जौन्सन के आगे के सारे दांत टूट गये, उनका साज़ भी तबाह हो गया. उनके लिए ट्रम्पेट बजाना मुहाल हो गया. कई साल तक मेहनत-मज़दूरी करके और ट्रक ड्राइवरी करके वे अपना गुज़ारा चलाते रहे. फिर जब अमरीकी राष्ट्रपति रूज़वेल्ट ने अपनी नयी आर्थिक नीति के तहत आदिवासियों, ग़रीबों, विस्थापितों और समाज के दलित तबक़ों के लिए सांस्कृतिक योजना शुरू की तो जौन्सन बच्चों को संगीत सिखाने के काम पर लग गये और यही वह समय था जब उन्हें जैज़ के इतिहासकारों ने खोज निकाला.
1940 के बाद बंक जौन्सन ने जो संगीत रिकौर्ड किया, उसने यह साबित कर दिया कि उन्हें क्यों उनके समय के संगीतकार इतना सम्मान देते थे. उनके वादन में एक उल्लेख्नीय कल्पनाशीलता, सूक्ष्मता और सौन्दर्य है. लेकिन इन्हीं रिकौर्डों ने यह भी संकेत दिया कि वे क्यों अपना मुक़ाम नहीं हासिल कर पाये थे. वे जब बहकते थे तो उनके वादन की दिशा का पता लगाना मुश्किल होता, कभी मन्द हो जाते कभी ज़रूरत से ज़्यादा आक्रामक. ऊपर से उनकी शराबनोशी अलग अपना असर दिखाती रहती. लेकिन इन कमियों के बावजूद उनका बेहतरीन वादन अव्वल दर्जे का है, और चाहे उन्होंने कितनी ही लनतरानियां हांकी हों उनका संगीत आज भी न्यू और्लीन्ज़ और उसके युग की एक धरोहर है. 

http://youtu.be/IJFXQSIsc8M (Franklin Street Blues -Bunk Johnson)

(जारी)