चट्टानी जीवन का संगीत
सत्ताईसवीं और समापन कड़ी
31.
जैज़ के इस लम्बे सफ़र में हम उसके स्रोत से धीरे-धीरे निकलने वाली पतली-सी धार से ले कर उसके एक महानद बनने तक का विकास देख आये हैं. जैसा कि हमने कहा 1960 तक पहुंचते-पहुंचते जैज़ दुनिया के बेहतरीन संगीत की सफ़ में शामिल हो चुका था. उसका, कहा जाय, एक शास्त्र बन गया था, समीक्षा-प्रणाली निर्मित हो चुकी थी, उसे ले कर वाद-विवाद और बहसें होने लगी थीं. इसके बाद उसका विकास वैसे ही होना था जैसे एक छतनार पेड़ का होता है -- नयी-नयी डालियों और शाखाओं-प्रशाखाओं के साथ, जो अब तक जारी है.
1960 के बाद के कुछ दशकों के दौरान पुराने तपे हुए उस्तादों के साथ कुछ नये उस्ताद भी सामने आये, जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर जैज़ की परम्परा को निखारने की कोशिश की। पियानोवादक सेसिल टेलर, ब्रिटेन के ट्रॉम्बोन-वादक जार्ज चिज़म, फ्रान्सीसी जिप्सी गिटार-वादक जैंगो राइनहार्ट, बेस-वादक नील्स हैनिंग, आस्र्टीड पेडरसन, सैक्सोफ़ोन-वादक ऐल्बर्ट आइलर, आदि इन्हीं प्रतिभा-सम्पन्न जैज़ संगीतकारों में शामिल हैं, हालाँकि सूची इससे कहीं लम्बी हो सकती है।
इनमें भी जैंगो राइनहार्ट का नाम बिल्कुल अलग स्थान रखता है।
https://youtu.be/wLjG8L4nnh4?list=PLMdpMzOy0l11KN-XHOckXjg5lb7OR9h3E ( जैंगो राइनहार्ट - औल औफ़ मी)
जैंगो राइनहार्ट को संगीत का शौक़ बचपन ही से था। जिप्सी होने के नाते संगीत उनके ख़ून में था, यह कहना शायद ग़लत न होगा। मगर इस शौक़ को एक नयी दिशा मिली युवावस्था में जब, उन्होंने लुई आर्मस्ट्रौंग और ड्यूक एलिंग्टन के रिकॉर्ड सुने और जैज़-संगीत की ओर आकर्षित हुए। जैंगो राइनहार्ट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने जैज़-संगीत में -- जो पिछले कई दशकों से पियानो, सैक्सोफ़ोन और ट्रम्पेट अथवा बैस जैसे वाद्यों के इर्द-गिर्द केन्द्रित रहा है -- एक बार फिर गिटार, यानी तार वाले वाद्य का समावेश किया है, जो बात कि इस शैली की जड़ों में रैगटाइम और बैंजो तथा गिटार की उपस्थिति से मेल खाती है।
https://youtu.be/UoaJprTBYRc?list=PLMdpMzOy0l11KN-XHOckXjg5lb7OR9h3E (जैंगो राइनहार्ट - ब्लूज़ एन मिनियोर)
इस दौर में संगीत के वाद्यों के साथ-साथ सुनने के साधनों में जो तकनीकी विकास हुआ, उसने जैज़ संगीत को और भी ज़्यादा लोकप्रिय बनाने में मदद दी. मिसाल के लिए पुराने 78 आरपीएम के तवों से ले कर जिनमें अमूमन 3.5 मिनट की रिकौर्डिंग हो सकती थी, एक्स्टॆंडेड प्लेयिंग और लौंग प्लेयिंग रिकौर्डों तक और फिर कैसेट से ले कर सीडी और डीवीडी तक -- जिस तरह संगीत के प्रसार का विकास हुआ है, जैज़ का दायरा सिर्फ़ अफ़्रीकी-अमरीकी अश्वेत संगीतकारों तक सीमित न रह कर धीरे-धीरे दुनिया भर में फैलता चला गया है. इसके अलावा जैज़ के प्रसार का एक कारण यह भी है कि भले ही उसकी भौतिक जड़ें अफ़्रीकी-अमरीकी अश्वेत समुदाय में गहरे उतरी हुई हों, लेकिन इस संगीत के अन्दर सम्वेदना के जो पहलू हैं, वे इसे इस काबिल बनाते हैं कि दूसरे देशों के लोग भी इससे जुड़ सकें. आशु प्रेरणा का आधार भी इस संगीत को सहज ही अपना लिये जाने योग्य बनाता है. यही वजह है कि जैसे-जैसे 1960 के बाद जैज़ दूसरे देशों में फैला, वहां के संगीतकारों ने इसे अपना कर, अपनी-अपनी संगीत परम्पराओं से समृद्ध करके इसके नये-नये रूप विकसित किये हैं. लैटिन जैज़, ऐफ़्रो-क्यूबन जैज़, सोल जैज़, ब्रज़िलियन जैज़, जैज़ फ़्यूजन, पंक जैज़, साइकेडेलिक जैज़, जैज़ फ़ंक, रौक जैज़, स्मूद जैज़ -- फ़ेहरिस्त ख़ासी लम्बी है और बजाने की तकनीकें और नये वाद्यों का दख़ल भी उतना ही अलग है जितना बजाने वाले. लेकिन इस सारे विकास और विभिन्नता के बीच एक धारा लगातार इस बात की कोशिश करती रही है कि सारे विकास और प्रयोग के बावजूद, जैज़ को उसकी जड़ों से इतना दूर न जाने दिया जाये कि वह अपनी बुनियादी प्रतिज्ञाएं ही भूल जाये, जो उसे एक दलित उत्पीड़ित जाति के विरोध और अभिव्यक्ति का दस्तावेज़ बनाती हैं. यही कारण है कि इसी दौर में जब जैज़ हैरतंगेज़ रफ़्तार से फैल रहा था, संगीतकारों का एक समूह ऐसा भी था जो परम्परा को बरक़रार रखने की कोशिश कर रहा था. आर्ची शेप और सेसिल टेलर का नाम लिया ही जा चुका है, उनसे आगे बढ़ने पर हमें विंटन मार्सेलिस, हर्बी हैनकौक, चिक कोरिया और पियानोवादिका मेरी लू विलियम्स जैसे संगीतकार मिलते हैं जिन्हों ने उस धारा को फिर से जीवित करने की कोशिश की थी जो लुई आर्मस्ट्रौंग और ड्यूक एलिंग्टन के समय में मौजूद थी.
https://youtu.be/oP-vD4ScAGA?list=PL8eK2Ek-HETlLMD7SyDgce8miz74_gaCG (हर्बी हैनकौक - वौटरमेलन मैन)
https://youtu.be/z4THBVc47ug (मेरी लू विलियम्स - इट ऐन्ट नेसेसैरिली सो)
हाल के वर्षों में जैज़ का दायरा कई देशों में फैल गया है। जैज़ में एक आश्चर्यजनक बहुलता देखी जाती है. हर देश के अपने-अपने जैज़-प्रेमी हैं, हालाँकि यह एक दिलचस्प तथ्य है कि आज जैज़ के ज़्यादातर रिकॉर्ड जर्मनी और जापान में बिकते हैं। कुछ जानकारों का ख़याल है कि कुछ देशों में जहाँ स्थानीय लोक-संगीत की परम्परा लुप्त हो गयी थी और जीवन्त लोक-संगीत मौजूद नहीं था, वहाँ जैज़ संगीत ने जड़ें जमा ली हैं क्योंकि यह एक ऐसा संगीत था, जिसके साथ लोगों को महज़ गीत गाने की ज़रूरत नहीं थी, बल्कि वे उसके साथ प्रयोग कर सकते थे। अपने किस्म का संगीत तैयार कर सकते थे। शायद यही वजह है कि आज जैज़ संगीतकार किसी भी देश में, किसी भी जाति में पैदा हो सकते हैं। मिसाल के तौर पर जापान की महिला पियानो-वादक तोशिको आकियोशी को ही लिया जा सकता है, जिन्होंने अनेक प्रयोग किये हैं और जिनका रिकॉर्ड ’प्रेम पत्र’ उनकी प्रतिभा का प्रमाण है।
https://youtu.be/5eTDfJTqoZ4 (तोशिको आकियोशी - प्रेम पत्र)
लेकिन इस सब के बावजूद यह सच है कि चाहे जितने देशों में जैज़ के फूल खिलें, जब तक उसमें अमरीकी नीग्रो संगीत के स्वर सुनायी देते रहेंगे, श्रम और पीड़ा और मानवीय उदासी और अन्याय के विरोध के साथ, आंखों के पानी और दिल की आग के साथ उसका रिश्ता बना रहेगा, तब तक उसका अनोखापन और उसकी एक अलग पहचान भी बरकरार रहेगी। क्योंकि जैज़-संगीत महज़ संगीत की शैली नहीं है, बल्कि उसमें एक पूरी-की-पूरी जाति के संघर्ष का इतिहास गुँथा हुआ है।
https://youtu.be/Alga6OjOQeY?list=PLaqZLT1Rv3-Jus64lBH7uLjvljbpIWeTO (तोशिको आकियोशी - मिंगस को विदाई)
(तमामशुद)
हर्फ़े-आख़िर
दोस्तो,
जैज़ की यह मुख़्तसर-सी कहानी यहीं आ कर ख़त्म होती है. लेकिन जैसा कि हमारे प्रिय कवि मुक्तिबोध ने कहा था "नहीं होती, कहीं भी ख़त्म कविता नहीं होती, कि वह आवेग त्वरित काल-यात्री है," जैज़ की कहानी भी यहां एक पड़ाव तक पहुंची है, ख़त्म नहीं हुई. वह भी आवेग-त्वरित काल-यात्री है. मैंने भरसक कोशिश की है कि इस सैर-बीनी तस्वीर को आप के सामने पेश कर सकूं ताकि आप इस नायाब संगीत से परिचित हो सकें, यह जान सकें कि कैसे जान-लेवा श्रम और अमानवीय व्यथा के बीच से भी एक जाति अपने लिए जीने के आधार बनाती है और दूसरों को भी जीने की प्रेरणा देती है. ज़ाहिर है, जैज़ की समूची कहानी कहना एक आदमी के एक प्रयास के बस की बात नहीं. इस कहानी में कई पहलू छूट गये होंगे. उम्मीद है, यह आपको यह कमी पूरी करने के लिए भी प्रेरित करेगी. यही मेरे इस विनम्र प्रयास की सार्थकता होगी.
नीलाभ
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