Sunday, April 12, 2015

जैज़ पर लम्बा आलेख




चट्टानी जीवन का संगीत 

बीसवीं कड़ी



23.

चालीस के दशक में चार्ली पार्कर ने डिज़ी गिलिस्पी और फिर बाद में माइल्स डेविस के साथ मिल कर जो नया अन्दाज़े-बयाँ विकसित किया था, उसने पहले की अदाकारी को लय, ताल और सुर के लिहाज़ से कहीं अधिक विविध और पेचीदा, संश्लिष्ट और जटिल बना दिया। यही कारण है कि जैज़ के क्षेत्र में चार्ली पार्कर और माइल्स डेविस जैसे संगीतकारों के आगमन के बाद हम पाते हैं कि संगीतकार उत्तरोत्तर धुनों को स्वान्तः सुखाय, मानो ख़ुद अपने लिए पेश कर रहे हैं और कभी-कभी तो श्रोताओं को बिल्कुल नज़रन्दाज़ कर देते हैं। ये सभी नये संगीतकार उत्तरोत्तर अपने आपको महज़ पेशेवर संगीतकार अथवा ‘मनोरंजन-कर्ता’ की बजाय कलाकार मानने लगे। 

https://youtu.be/zqNTltOGh5c?list=PLdhGk7gKuZxYV8bG4lrWS2viBrmp3bZnh (माइल्स डेविस - सो वौट)

इस नयी धारा के साथ ही जैज़-संगीत के सभी बुनियादी उपकरण जुटा लिये गये थे। ब्लूज़ की उदासी और रैगटाइम की मस्ती को मिला कर जो शैली विकसित हुई थी, वह अब एक कला का रूप ले चुकी थी। छोटी-छोटी मण्डलियों की तकनीक के साथ संगीतकारों के सामने बड़े-बड़े बैण्डों की रंगारंग विविधता मौजूद थी। इसके अलावा जैज़-संगीत का अनिवार्य गुण -- ‘स्विंग’ -- तो था ही। यानी वह ख़ास गुण, जो इस संगीत को उसकी विशिष्ट ताल से जोड़ता था, मगर उसके साथ-साथ चार्ली पार्कर और माइल्स डेविस का अन्तरोन्मुखी वादन भी था। इसके अलावा कुछ ऐसे संगीतकार भी थे, जो बदलते हुए वक्त के साथ जैज़ को यूरोप की अन्य तकनीकों से जोड़ कर नयी दिशाएँ खोजने में संलग्न थे। क्योंकि कुल मिला कर इस समय तक जैज़ संगीत की धारा या तो संगीत के अब तक उपलब्ध उपकरणों का विस्तार करने की ओर बढ़ी थी या विभिन्न तकनीकों का मेल करने की ओर या फिर जैज़ की बुनियादी जड़ों की ओर वापसी की दिशा में।
इसके बावजूद नयी दिशाओं की खोज बराबर जारी रही। इस बार नयी दिशा की खोज जैज़-संगीत के तकनीकी विकास के सन्दर्भ में उतनी नहीं थी, जितनी उसकी भावनात्मक विरासत के सन्दर्भ में। यह शायद इस वजह से था कि जैज़ पर शास्त्रीयता बहुत हावी होने लगी थी और उसकी जीवन्तता तकनीकी कलाबाज़ियों के नीचे दब-सी चली थी। नयी दिशा की खोज करने वालों या कहा जाय कि जैज़ को फिर से उसकी परम्परा के साथ जोड़ने वालों में ट्रम्पेट वादक क्लिफ़र्ड ब्राउन का नाम लिया जा सकता है।

https://youtu.be/UXPzAasKWQg (क्लिफ़र्ड ब्राउन - चेरोकी)

क्लिफ़र्ड ब्राउन (1930-56) की पैदाइश एक संगीत-प्रेमी परिवार में हुई थी. उनके पिता खुद ट्रम्पेट बजाते थे और उन्होंने अपने चार छोटे बेटों को मिला कर गायकों की एक मण्डली तैयार कर दी थी. बचपन में अपने पिता की चमकती हुई ट्रम्पेट को देख कर क्लिफ़र्ड ब्राउन इतना मुग्ध हो गये थे कि दस साल की उमर से उन्होंने अपने स्कूल के बैण्ड में बजाना शुरू कर दिया था और उनके उत्साह को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें तेरह साल की उमर में उनकी अपनी ट्रम्पेट खरीद दी थी और उनके लिए एक संगीत शिक्षक का भी प्रबन्ध कर दिया था. विश्वविद्यालय तक पहुंचते-पहुंचते क्लिफ़र्ड संगीत सभाओं में बजाने लगे थे और यकीनन उन्होंने सुनने वालों पर असर डाला ही होगा, क्योंकि बीस साल की उमर में जब वे एक कार दुर्घटना में घायल हो कर साल भर तक हस्पताल में इलाज कराते रहे तो सुप्रसिद्ध जैज़ संगीतकार डिज़ी गिलेस्पी ने हस्पताल में आ कर उनको राय दी थी कि स्वस्थ हो जाने के बाद वे संगीत को पेशेवर तौर पर अपनाने के बारे में गम्भीरता से सोचें. 
क्लिफ़र्ड ब्राउन ने इस राय पर अमल किया था और जल्द ही वे व्यावसायिक वादकों की अगली पांत में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गये थे. उनके ट्रम्पेट वादन के शुरुआती दौर पर प्रसिद्ध जैज़ वादक फ़ैट्स नवारो का असर था लेकिन जल्द ही क्लिफ़र्ड ब्राउन ने अपनी शैली विकसित कर ली थी जो चार्ली पार्कर ही की परम्परा में बीबौप को आगे बढ़ाती थी. तेज़ रफ़्तार वाली धुनें जिनमें गर्मजोशी हो लेकिन अपनी रफ़्तार के बावजूद जिनमें हर सुर स्पष्ट सुना जा सके और वाद्य की पूरी गुंजाइशों का इस्तेमाल किया गया हो. अपने कौशल के चलते क्लिफ़र्ड जटिल संरचनाओं के माध्यम से और सुरों में तब्दीली करके बीबौप की "बीजगणित जैसी" सीधी रेखा वाली लय-ताल में प्रयोग कर लेते थे. जल्दी ही क्लिफ़र्ड ब्राउन ने ड्रम-वादक मैक्स रोच और सैक्सोफ़ोन-वादक सनी रौलिन्स के साथ अपना बैण्ड गठित कर लिया और कुछ बेहतरीन धुनें रिकौर्ड करायीं. यहां उनकी और मैक्स रोच की बजाई एक पुरानी धुन "स्टौम्पिन्ग ऐट द सवौय" पेश है :

https://youtu.be/VcQmn5d9-b4 (क्लिफ़र्ड ब्राउन और मैक्स रोच - स्टौम्पिन्ग ऐट द सवौय)


जैज़ के आम परिदृश्य से उलटी धारा में चलते हुए क्लिफ़र्ड ब्राउन ने खुद को हर तरह के नशे से दूर रखा था और यह साबित कर दिया था कि अच्छा वादक बनने के लिए नशे की ऐसी कोई ज़रूरत नहीं होती. तभी जब वे जैज़ संगीत में एक लम्बी उड़ान भरने के लिए पर तौल रहे थे 1956 में एक कार दुर्घटना में असमय ही क्लिफ़र्ड ब्राउन का निधन हो गया, अगर समय के हिसाब से देखा जाये तो क्लिफ़र्ड ब्राउन ने कुल-जमा चार साल तक अपने संगीत की रिकौर्डिंग करायी थी, लेकिन यह उनकी प्रतिभा ही का कमाल था कि उन्होंने जैज़ को फिर उसकी जड़ों से जोड़ने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

 24.

उन्हीं दिनों एक और संगीतकार-पियानो वादक हौरेस सिल्वर जैज़ की जीवन्तता को पुनर्जीवित करने के लिए नीग्रो गिरजों को ‘गॉस्पेल’ संगीत की छान-बीन कर रहे थे और उस बीते हुए ज़माने की धुनें तलाश रहे थे, जब ब्लूज़ और नीग्रो भजनों में इतना फ़र्क़ नहीं था। कुल मिला कर सिल्वर की कोशिश जैज़-संगीत के उस मूलभूत आधार को फिर से खोज निकालने की थी, जहाँ से वे पहले-पहल शुरू हुआ था। इस तलाश में नीग्रो भजनों की ओर जाने वालों में अकेले सिल्वर ही नहीं थे। बहुत सारे नीग्रो संगीतकारों के लिए जैज़ को ‘अपना संगीत’ कह कर फिर से अपने नज़दीक लाने का शायद यह भी एक रास्ता था -- यानी ऐसा संगीत, जो उनके अपने अनुभव से, उनकी अपनी ज़िन्दगी से उपजा हो। 

https://youtu.be/CWeXOm49kE0 (हौरेस सिल्वर - सौन्ग फ़ौर माई फ़ादर)

हौरेस सिल्वर (1928-2014) का जन्म अमरीका के सबसे दक्षिणी राज्य कनेटिकट में हुआ था. उनके पिता अफ़्रीका के पश्चिमी सिरे पर मध्य अतलान्तिक महासागर के टापू केप वर्दे के रहने वाले थे जो पुर्तगालियों का उपनिवेश रहा था. लिहाज़ा हौरेस को अपने पिता की ओर से पुर्तगाली संगीत के सुर-ताल का परिचय भी मिला. हालांकि हौरेस ने कभी इस बात को प्रचारित नहीं किया कि वे पुर्तगाली भाषा या संगीत-परम्परा की भी अच्छी जानकारी रखते थे. बहुत बाद में चल कर उन्होंने "केप वर्डियन ब्लूज़" के नाम से एक ऐल्बम जारी करके अपनी विरासत को तस्लीम किया.

https://youtu.be/PygdDdJ0IRY (द ऐफ़्रिकन क्वीन - केप वर्डियन ब्लूज़ - हौरेस सिल्वर)


शुरुआत हौरेस ने सैक्सोफ़ोन बजाने से की थी, मगर बाद में वे पियानो बजाने लगे. सिल्वर को पहला बड़ा मौक़ा 1950 में मिला जब सक्सोफ़ोन वादक स्टैन गेट्ज़ ने उन्हें एक क्लब में बजाते सुना और अपने बैंड में शामिल कर लिया. स्टैन ही के साथ हौरेस सिल्वर ने अपना पहला ऐल्बम रिकौर्ड कराया. 1951 से 1955 तक सिल्वर लगातार दौरे करते रहे और अपनी कला को निखारते रहे. 1955 में उन्होंने अपना ऐल्बम "हौरेस सिल्वर ऐण्ड द जैज़ मेसेन्जर" रिकौर्ड कराया जिसकी हर तरफ़ भरपूर तारीफ़ हुई.

https://youtu.be/5hjWcEPyHhk?list=PL49EA3C341BF92DFE (हौरेस सिल्वर - रूम 608 - जैज़ मेसेन्जर)

1960 के दशक तक हौरेस सिल्वर धीरे-धीरे जैज़ के विभिन्न पहलुओं में हाथ आज़माते रहे और कुछ देर आक्रामकता से बजाते रहने के बाद अचानक रूमानी सुरों पर आ जाते और ये सारे परिवर्तन एक ही धुन में बड़ी तेज़ी से होते.

https://youtu.be/ANTpZU2m9pY (सिक्स पीसेज़ औफ़ सिल्वर)

जब 1960 और 1970 के दशकों में अमरीका में सामाजिक असन्तोष और उथल-पुथल तेज़ हुई तो सिल्वर ने अपने संगीत के माध्यम से अपना सुर भी सामाजिक परिवर्तनकारियों के साथ मिलाते हुए अपना बयान अपने संगीत के माध्यम से दर्ज कराया. उनका महत्वपूर्ण ऐल्बम युनाइटेड "द स्टेट्स औफ़ माइण्ड" इसकी एक मिसाल है.

https://youtu.be/xCXB45lTeDc (हौरेस सिल्वर - द मर्जर औफ़ द माइण्ड्स)

"द युनाइटेड स्टेट्स औफ़ माइण्ड" के बाद सिल्वर ने जैज़ की जड़ों की तरफ़ जाने और पुराने भजनीकों की परम्परा को दोबारा जीवित करने का काम जारी रखा. उल्लेखनीय बात यह भी है कि मादक पदार्थों और नशे की अलग-अलग क़िस्मों से अटी-पड़ी जैज़ संगीत की दुनिया में क्लिफ़र्ड ब्राउन की तरह हौरेस सिल्वर भी नशों से दूर ही रहे. यही नहीं, हौरेस ने शोहरत और लोकप्रियता अर्जित करने के बाद ढेरों नये उभरते जैज़ संगीतकारों को बढ़ावा दिया. इसके साथ-साथ वे कई बार अपनी बनाई धुनों में अपने पसन्दीदा संगीतकारों के टुकड़े जोड़ लेते और इस तरह उन्हें ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करते. हौरेस सिल्वर आर्ट टेटम और थेलोनिअस मंक जैसे जैज़ संगीतकारों के साथ-साथ नैट किंग कोल जैसे गायकों से भी प्रभावित थे. नैट किंग कोल ने पुराने भजनीकों की परम्परा को ज़िन्दा ही नहीं रखा था, बल्क्जि उसमें नयी राहें भी खोजी थीं. यही वजह है कि हौरेस सिल्वर की धारा आगे चल कर अपने ही समकालीन ब्लूज़ गायक रे चार्ल्स जैसे सम्वेदनशील ब्लूज़ गायकों से भी जुड़ती नज़र आयी जिनमें नीग्रो भजनों की परम्परा लगातार एक अन्तर्धारा की तरह मौजूद रही है.

https://youtu.be/fRgWBN8yt_E(रे चार्ल्स - जौर्जिया औन माई माइण्ड)

रे चार्ल्स (1930-2004) के योगदान को किसी लेख में बयां करना सम्भव नहीं है, इसके लिए तो एक किताब ही दरकार होगी. यह हैरत की बात नहीं है कि उनकी गायकी के बारे में बात करते हुए फ़्रैंक सिनाट्रा जैसे गायक-अभिनेता ने उन्हें "जीनिअस" कहा था. और यह तब जब रे चार्ल्स भरपूर शोहरत का दौर देखने के बाद, बीच के वर्षों में गुमनामी का दौर भी झेल चुके थे. मगर यह उनकी प्रतिभा ही थी कि वे एक मंज़िल तक पहुंचने के बाद अगले राहियों के साथ हो लेते और उनसे आगे निकल जाते.
रे चार्ल्स अभी चार बरस के थे कि उनकी आंखें जवाब देने लगी थीं और सात बरस तक आते-आते वे पूरी तरह अन्धे हो चुके थे. लेकिन उनके अन्दर संगीत सीखने की जो लगन थी उसकेबल पर उन्होंने ब्रेल पद्धति से पियानो के सुरों को पहचानना सीखा -- बायें हाथ से दायें हाथ की हरकतों को और दायें हाथ से बायें हाथ की हरकतों को, और फिर इन दोनों में ताल-मेल बैठाना . ज़ाहिर है, यह आसान नहीं था, मगर आगे चल कर पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के इस प्रशिक्षण ने ही रे चार्ल्स को रिदम और ब्लूज़ से ले कर भजनीकों की शैली तक, जैज़ की विभिन्न शैलियों को पूरी हुनरमन्दी के साथ निभाने की क़ूवत बख़्शी.
हौरेस सिल्वर की तरह रे चार्ल्स भी लूइ आर्मस्ट्रौन्ग, आर्ट टेटम और नैट किंग कोल से प्रभावित थे. लेकिन शोहरत की राह आसान नहीं थी. 1949 में "कन्फ़ेशन ब्लूज़" के नाम से जारी किये गये रिकौर्ड से पहले रे चार्ल्स ने बेहद ग़रीबी के दिन भी देखे, कई बार बिना खाये रह जाते हुए. इस पूरे दौर में वे दूसरे गायकों और वादकों के लिए संगीत सजाते. लेकिन "कन्फ़ेशन ब्लूज़" ने यह सिलसिला बदल दिया. इसके बाद 1960 में रिकौर्ड किये गये गीत "जौर्जिया औन माई माइण्ड" ने उन्हें देश भर में प्रसिद्ध कर दिया और पहला ग्रैमी पुरस्कार दिलाया :

https://youtu.be/fRgWBN8yt_E(रे चार्ल्स - जौर्जिया औन माई माइण्ड)

अगले रिकौर्ड "हिट द रोड जैक" से रे चार्ल्स ने साबित कर दिया कि 1960 का ग्रैमी रिकौर्ड कोई तुक्का नहीं था. "जौर्जिया औन माई माइण्ड" से बिलकुल अलग शैली में गाये गये गीत "हिट द रोड जैक" में जैज़ की सारी विशेषताएं थीं और इस पर उन्हें दूसरा ग्रैमी पुरस्कार मिला.

https://youtu.be/0rEsVp5tiDQ (hit the road jack)

बहुत-से नीग्रो और जैज़ गायकों की तरह रे चार्ल्स भी उस सामाजिक आन्दोलन से अछूते नहीं रहे जिसमें मार्टिन लूथर किंग से ले कर मैल्कम एक्स जैसे अलग-अलग क़िस्म के आन्दोलनकारी शामिल थे. इसी दौर में रे चार्ल्स ने 1975 में युवा गायक स्टीवी वण्डर के गीत "लिविंग फ़ौर द सिटी" को अपनी शैली में पेश करके इस आन्दोलन से एकता प्रकट की. गीत में उस सारे भेद-भाव और उत्पीड़न का ज़िक्र था जो अफ़्रीकी मूल के अमरीकियों को गोरों के हाथों सहना पड़ता था. लीजिये पहले सुनिये स्टीवी वण्डर का मूल गीत :

https://youtu.be/rc0XEw4m-3w (स्टीवी वण्डर - लिविंग फ़ौर द सिटी)

इसी गीत को जब रे चार्ल्स ने गाया तो अपनी शैली से उसमें कई नये रंग भर दिये :

https://youtu.be/X8cz1Z7q4hA (रे चार्ल्स - लिविंग फ़ौर द सिटी)

कहने की बात नहीं कि दोनों ही गीत बहुत लोकप्रिय हुए और उन्होंने नीग्रो जाति के सामाजिक संघर्ष को और बल ही दिया. "लिविंग फ़ौर द सिटी" पर रे चार्ल्स को फिर एक बार ग्रैमी पुरस्कार से नवाज़ा गया. इस गीत की पहुंच बहुत गहरी थी और उसे सुनते हुए बेसाख़्ता प्रसिद्ध नीग्रो कवि-गायक-संगीतकार गिल स्कौट हेरौन के गीत "वौशिण्ग्टन डी सी" की याद हो आती है जिसमें गिल स्कौट हेरौन ने बड़े दर्द और व्यंग से देश की राजधानी में हुक्मरानों और अमरीकी संविधान की नाक के नीचे नीग्रो लोगों की दुर्दशा बयान की है :

https://youtu.be/MF4UjnzlD3Q (Washington DC)

रे चार्ल्स की तरफ़ लौटें तो 1980 के दशक में उनकी लोकप्रियता घटने लगी. कारण था नयी-नयी शैलियों का चलन में आना जो कुछ दिन बहार दिखा कर जाती रहतीं. इस दौर में रे चार्ल्स ने अपनी डगर नहीं छोड़ी और जब वे इस विपरीत दौर से उभर कर सामने आये तो उन्होंने एक बार फिर धूम मचा दी. मृत्यु से कुछ ही पहले उन्होंने पण्डित रवि शंकर की बेटी नोरा जोन्स के साथ अपना एक पुराना गीत पेश किया -- "हियर वी गो अगेन" -- जिस पर नोर जोन्स को नवां ग्रैमी पुरस्कार मिला. पहले रे चार्ल्स का मूल गीत सुनिये : 
https://youtu.be/yNDUU4gHCuE (रे चार्ल्स - हियर वी गो अगेन )

और अब एक पुराने गायक और नयी गायिका की संयुक्त पेशकश :

https://youtu.be/DkkzlF1D3hg (नोरा जोन्स और रे चार्ल्स - हियर वी गो अगेन)

(जारी)


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