चट्टानी जीवन का संगीत
इक्कीसवीं कड़ी
25.
1959 में जैज़ के चार ऐसे ऐल्बम आये जिन्होंने जैज़ को आगे के लिए बदल कर रख दिया. माइल्स डेविस का "काइण्ड औफ़ ब्लू," डेव ब्रूबेक का "टाइम आउट," चार्ल्स मिंगस का "मिंगस आ हुम" और और्नेट कोलमैन का "द शेप औफ़ जैज़ टू कम." इनमें माइल्स डेविस और चार्ल्स मिंगस जैज़ में काफ़ी पहले से सक्रिय थे और इस मुकाम पर पहुंच गये थे कि एक बड़ा धमाका कर सकें. डेव ब्रूबेक पियानो-वादक थे, जैज़ संगीत की दुनिया में -- जो लगभग पूरी-की-पूरी अश्वेत संगीतकारों की दुनिया थी -- एक आम गोरे अमरीकी संगीतकार की हैसियत से दाख़िल हुए थे और यह उम्मीद रखते थे कि वे इस अफ़्रीकी-अमरीकी संगीत में अपनी शमूलियत भी दर्ज करा सकेंगे. सिर्फ़ और्नेट कोलमैन न केवल इन सबसे कम उमर के वादक थे, बल्कि इस छोटी उमर में भी उन्होंने अपने वादन की अनोखी शैली से आम सुनने वालों और जैज़ पारखियों में तीखी प्रतिक्रिया पैदा की थी. जहां बहुत-से लोगों को लगता था कि और्नेट कोलमैन सचमुच प्रतिभाशाली और प्रयोगशील वादक हैं, वहीं कुछ लोग उन्हें बेसुरा कहते हुए उन्हें जैज़ की सफ़ में शामिल करने से ही इनकार कर देते थे. 1959 में अपना ऐल्बम रिकौर्ड कराने से पहले लगभग नौ साल और्नेट कोलमैन लौस ऐन्जिलीज़ में अपने संगीत के लिए जगह बनाने की कोशिश करते रहे थे और इस दौर में उन्होंने अपनी आजीविका तरह-तरह के मामूली काम करते हुए चलायी थी, यहां तक कि लिफ़्ट चालक का भी काम किया था.
1959 का साल कई मानों में ख़ास था. दूसरे महायुद्ध के बाद के वर्षों में अमरीका एक तरफ़ तो नयी ख़ुशहाली के रास्ते पर चल पड़ा था, दूसरी तरफ़ विश्वयुद्ध के मैदान से निकल कर राष्ट्रपति की गद्दी संभालने वाले ड्वाइट डी. आइज़नहावर अपने दूसरे कार्यकाल के अन्तिम चरण में पहुंच चुके थे, जिसमें उन्होंने बाहरी दुनिया में अमरीकी वर्चस्व को बढाने के सभी सम्भव उपाय किये थे. इसी दौर में शीत युद्ध शुरू हुआ, वियतनाम में अमरीकी दख़लन्दाज़ी बढ़ी, अमरीकी गुप्तचर एजेन्सी सी.आइ.ए. ने बाहरी मुल्कों में घुसपैठ के ज़रिये अमरीका-विरोध को खत्म करने की राहें खोलीं और अमरीका के अन्दर बड़े पैमाने पर नागरिक अधिकार आन्दोलन शुरू हुआ, जिसकी अगली पांतें अफ़्रीकी मूल के अश्वेत लोगों ने संभाल रखी थीं. अश्वेत अफ़्रीकी अमरीकियों के खिलाफ़ गोरे लोगों ने जो मोर्चेबन्दियां कर रखी थीं, वे खुल कर सामने आ गयी थीं, बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने में आधी सदी की देर थी. कुल-मिला कर ख़ुशी और आशा के साथ भय और नफ़रत और दबे हुए आक्रोश का मिला-जुला माहौल था. अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को साम-दाम-दण्ड-भेद -- हर तरीके से दबाया जाता था और जहां तक अश्वेत अफ़्रीकी मूल के अमरीकियों का सवाल था, अक्सर दण्ड वाला उपाय ही अमल में लाया जाता.
इस माहौल का असर जैज़ संगीतकारों पर पड़ना लाज़िमी था, जो लगभग सारे के सारे अफ़्रीकी मूल के अश्वेत अमरीकी थे. लेकिन इस असर ने जैज़ की दुनिया में एक-सी प्रतिक्रिया नहीं पैदा की थी. एक कारण तो यह था कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जो ऊपरी तौर पर खुलापन नज़र आया था, उसकी असलियत से ज़्यादातर संगीतकार वाकिफ़ थे. वे जानते थे कि जैज़ तब भी "कालों का संगीत" समझा जाता था और अगर कोई संगीतकार कालों की क़तारों से निकल कर पश्चिमी शास्त्रीय संगीत की दुनिया में कदम रखने की जुर्रत करता तो वह दरवाज़ों को सख़्ती से बन्द पाता. इसलिए वे "कालों के संगीत" की दुनिया तक ही बने रहते. मगर वे इस सच्चाई से नज़रें नहीं चुरा सकते थे कि जहां उनके संगीत की खपत थी, जहां उनके लिए संगीतकार के तौर पर अपने पेशे से आजीविका चलाने की गुंजाइश थी -- वह चाहे क्लब हों या सभाएं या रिकौर्ड बनाने वाली कम्पनियां -- सारा प्रबन्ध-तन्त्र गोरे हाथों में था, जो उनके श्रम से मुनाफ़ा तो कमाता था, लेकिन उनके साथ अघोषित रूप से ग़ुलामों जैसा ही सुलूक करता था. आख़िरी बात यह थी कि जो वे अपने चारों तरफ़ देख रहे थे, उससे कहीं अधिक बुरी स्थितियां उनके बाबा-दादा देख चुके थे और उनकी कला का, अभिव्यक्ति का यह माध्यम -- जैज़ -- उसी काले अतीत से उपजा था, जो किसी भी तरह ख़त्म होने को नहीं आ रहा था. यह बात इसलिए भी ध्यान में रखनी ज़रूरी है, क्योंकि इन चार मण्डलियों में से तीन अश्वेत संगीतकारों की थीं. सिर्फ़ डेव ब्रूबेक की मण्डली गोरे वादकों की थी और उसके ऐल्बम का ऐतिहासिक महत्व इसी बात में था कि पहली बार गोरे संगीतकारों ने एक बड़ी पहलकदमी के तौर पर कालों के संगीत की दुनिया में कदम रखा था, जिसका नतीजा आने वाले वर्षों में यह हुआ कि जैज़ अपनी परम्परागत पांतों से बाहर आम गोरे श्रोताओं को भी बड़े पैमाने पर अपना मुरीद बना सका. लेकिन अगर डेव ब्रुबेक को अलग कर दें तो बाकी तीनों संगीतकारों में जैज़ के सारे मूल गुण थे -- अवसाद, दबा हुआ ग़ुस्सा, बेबसी, रूहानी कशिश, विद्रोह की लपट और लीक से हट कर चलने का एक बेफ़िक्र अन्दाज़. किसी में कम तो किसी में ज़्यादा.
https://youtu.be/-488UORrfJ0?list=PLdhGk7gKuZxYV8bG4lrWS2viBrmp3bZnh (माइल्स डेविस - औल ब्लूज़)
नयी राहें खोलने वाले अपने ऐल्बम "काइण्ड औफ़ ब्लू" को रिकौर्ड करने से पहले माइल्स डेविस एक लम्बा रास्ता तय कर आये थे और अपने संगीत ही में नहीं, बल्कि अपने जीवन में भी बहुत-सी उथल-पुथल और उतार-चढ़ाव देख चुके थे. संगीत माइल्स ड्यूई डेविस (1926-91) को विरासत में नहीं मिला था, उनके पिता दांतों के डाक्टर थे और परिवार खाता-पीता परिवार था. अल्बत्ता, माइल्स की मां काफ़ी अच्छा पियानो बजा लेती थीं और चाहती थीं कि माइल्स भी पियानो सीखें. लेकिन तेरह साल की उमर में जब माइल्स के पिता ने उनकी संगीत शिक्षा का प्रबन्ध किया तो वाद्य चुना ट्रम्पेट. आगे चल कर माइल्स ने संकेत दिया कि ऐसा शायद उनके पिता ने अपनी पत्नी को चिढ़ाने के लिए किया था जिन्हें ट्रम्पेट की आवाज़ पसन्द नहीं थी. माइल्स के शिक्षक एलवुड बुकैनन सख़्त किस्म के गुरु थे और सुर ठीक न निकले तो माइल्स के हाथों पर थप्पड़ जड़ने से गुरेज़ नहीं करते थे. माइल्स के अनुसार उनकी सुर-साधना का यह पाठ आगे चल कर उनके बहुत काम आया.
सोलह साल की उमर तक पहुंचते-पहुंचते माइल्स डेविस इतने माहिर हो चुके थे कि स्कूल के दौरान जब मौक़ा मिले, पेशेवर मण्डलियों में ट्रम्पेट बजा सकें. उसी दौर में जब माइल्स ने हाई स्कूल की पढ़ाई ख़त्म की एक मण्डली उनके शहर ईस्ट सेंट लूइस आयी जिसमें डिज़ी गिलेस्पी और चार्ली पार्कर भी थे. मण्डली के ट्रम्पेट वादक के बीमार पड़ने पर कुछ हफ़्तों के लिए माइल्स को उस मण्डली में शामिल कर लिया गया. इसके बाद मण्डली तो न्यू यौर्क लौट गयी लेकिन माइल्स के मन में तमाम तरह की लालसाएं बो गयी. 1944 के अन्त में माइल्स जूइलियार्ड संगीत विद्यालय में दाखिल होने के लिए न्यू यौर्क चले आये, लेकिन उनका मकसद था चार्ली पार्कर से राब्ता कायम करना, हालांकि सैक्सोफ़ोन-वादक कोलमैन हौकिन्स ने उन्हें बरजा भी था, जो चार्ली पार्कर के तीखे मिज़ाज और उनकी नशे की लत से वाकिफ़ थे. लेकिन माइल्स को उनके इरादे से डिगना आसान न था. जल्द ही उन्होंने अपने आदर्श वादक से सम्पर्क कर लिया और उन क्लबों में बजाने लगे जहां पार्कर के अलावा जैज़ के कुछ और जाने-माने संगीतकार अपना कौशल दिखाते, जैसे थेलोनिअस मंक, फ़ैट्स नवारो, केनी क्लार्क और जे.जे.जौन्सन.
साल भर बाद ही माइल्स डेविस ने न्यू यौर्क के क्लबों में पेशेवर वादक के तौर पर कदम रख दिया और 1945 में वे पहली बार किसी रिकौर्डिंग स्टूडियो में दाख़िल हुए, मगर मण्डली के मुख्य वादक के रूप में नहीं, बल्कि एक नये वादक की हैसियत से. कुछ समय बाद जब डिज़ी गिलेस्पी ने चार्ली पार्कर का बैण्ड छोड़ा तो माइल्स उस जगह को भरने के लिए बुलाये गये और पार्कर के साथ माइल्स ने कई बार रिकौर्डिंग में हिस्सा लिया. इसी दौर में वे पुराने असर से बाहर आ कर अन्तत: अपनी शैली निखारने वाले थे और बीबौप का पल्ला छोड़ कर उस शैली की तरफ़ बढ़ने वाले थे जो कूल जैज़ कहलायी.
https://youtu.be/KcoqwKEtYDs?list=PLED9CF5CAEE7AD60A (माइल्स डेविस - रौकर )
पार्कर के साथ माइल्स का साथ तीन साल चला, लेकिन पार्कर के नशे की लत और तीखे स्वभाव ने आख़िरकार 1948 में माइल्स को पार्कर से अलग हो कर अपना रास्ता तलाश करने के लिए मजबूर कर दिया.
अगले दस साल माइल्स के जीवन में कई तरह की तब्दीलियां पैदा करने वाले थे. जहां एक तरफ़ वे अपने संगीत को नयी-नयी ऊंचाइयों पर ले जा रहे थे और जैज़ की दुनिया में अपना सिक्का जमा रहे थे, वहीं उनकी निजी ज़िन्दगी उन्हें उस अवसाद की तरफ़ धकेल रही थी, जो उन्हें हेरोइन के ज़हरीले पंजों का कैदी बना देने वाली थी. 1948 में पार्कर से अलग होने के बाद माइल्स ने संगीत-निर्देशक गिल एवन्स के साथ एक नये तजरुबे को शुरू किया और कुछ ऐसे वाद्य भी मण्डली में शामिल किये जो आम तौर पर और्केस्ट्रा के वाद्य माने जाते थे, जैज़ के नहीं जैसे फ़्रान्सीसी हौर्न और ट्यूबा. मण्डली का नाम माइल्स डेविस नोनेट रखा गया. हालांकि परम्परागत जैज़ संगीतकारों में इस सब को ले कर कुछ ग़ुस्सा था, ख़ास तौर पर मण्डली में गोरे वादकों की उपस्थिति पर, मगर माइल्स के लिए यह एक नयी शुरुआत थी. 1949 में माइल्स फ़्रान्स गये और वहां उन्होंने पाया कि सुनने वाले उनके रंग में नहीं, उनके संगीत में दिलचस्पी रखते थे और अश्वेत संगीतकारों के लिए वहां का माहौल बेहतर था. इसी दौरे में उनका परिचय अभिनेत्री जुलिएट ग्रेको से हुआ और जल्दी ही यह परिचय प्रेम में बदल गया. इस सब को देखते हुए हालांकि लोगों ने उनसे पैरिस में रह् जाने को कहा, माइल्स न्यू यौर्क लौट आये.
लौटने के बाद माइल्स धीरे-धीरे मानसिक अवसाद में डूबते चले गये. इसके पीछे वे जूलिएट ग्रेको से अपने अलगाव के साथ-साथ समीक्षकों की नाइन्साफ़ी को भी दोषी ठहराते जो उनके नोनेट वाले तजरुबे के लिए श्रेय उनकी बजाय उनकी मण्डली के सहयोगियों को दे रहे थे. इसी समय अपने स्कूल के दिनों की साथिन के साथ उनके सम्बन्ध भी उजागर हो गये जो न्यू यौर्क में उनके साथ रहती थी और जिससे उनके दो बच्चे भी थे. डेविस ने आम जैज़ संगीतकारों की तरह हेरोइन में सहारा तलाश किया. तीन-चार साल में ही असर दिखायी देने लगा. ट्रम्पेट पर उनकी पकड़ ढीली पड़ने लगी और एक दौरे में वे गिरफ़्तार भी हुए. अपनी बुरी हालत को देखते हुए माइल्स ने 1954 में अपने पिता के घर लौटने का फ़ैसला किया और फिर अपने को एक कमरे में तब तक बन्द रखा जब तक उनकी लत छूट नहीं गयी. लेकिन 1950-54 का यह दौर माइल्स के लिए फ़नकारी के लिहाज़ से काफ़ी ज़रख़ेज़ रहा. उन्हों ने कई महत्वपूर्ण संगीतकारों के साथ सहयोग किया, नयी तकनीकें सीखीं, अपने संगीत को कूल जैज़ से आगे की ओर ले जाने की राह खोजी और प्रेस्टिज रिकौर्डस नामक मशहूर कम्पनी के साथ अनुबन्ध करके जैज़ के नामी वादकों के साथ कई लोकप्रिय रिकौर्ड तैयार किये जिनमें से बैग्स ग्रूव और वौकिन जैसे रिकौर्ड आज भी लोगों को याद हैं. इसी दौर में जब एक तरफ़ माइल्स अपनी निजी परेशानियों से जूझ रहे थे और दूसरी तरफ़ नयी राहें खोज रहे थे, उनके अलग-थलग रहने वाली कैफ़ियत को देख कर लोगों ने उन्हें "अंधेरे का राजा" कहना शुरु कर दिया था.
https://youtu.be/-xkiPPSVRvE (माइल्स डेविस - इफ़ आई वर अ बेल)
1955 में स्वस्थ हो कर न्यू यौर्क लौटने के बाद माइल्स ने अपनी मण्डली बनाने की कोशिशें शुरू कर दीं और आहिस्ता-आहिस्ता वे उन वादकों को छांटने लगे जो उनकी तरह नये के मुरीद थे. जल्द ही माइल्स डेविस क्विण्टेट के नाम से एक मण्डली तैयार हो गयी. अब माइल्स अपने सारे हुनर को सामने रख सकते थे. नयी मण्दली के साथ-साथ नया अनुबन्ध भी आया. इस बार कोलम्बिया रिकौर्ड्स के साथ. लेकिन नयी कम्पनी के साथ रिकौर्डिंग करने से पहले उन्हें प्रेस्टिज रिकौर्ड्स के साथ पुराने अनुबन्ध को पूरा करना था. ये सारे ऐल्बम प्रेस्टिज रिकौर्ड्स ने अगले तीन -चार वर्षों में सुनने वालों के सामने पेश किये और इनमें से कई रिकौर्ड ऐसे थे जिन्होंने माइल्स को जैज़ जगत की एक जानी-मानी हस्ती बना दिया. एक अर्से से माइल्स जैज़ को उस लीक से निकालने की कोशिश कर रहे थे और उन्होंने इस सिलसिले में बीबौप से ले कर कूल जैज़ तक का सफ़र करते हुए क्यूबा और लातीनी अमरीका के दूसरे देशों में बसे अफ़्रीकी संगीतकारों के तजरुबों का जायज़ा लिया था, तभी 1958 में पश्चिमी अफ़्रीका के देश गिनी से आयी एक मण्डली को सुनते हुए माइल्स ने ख़ालिस अफ़्रीकी वाद्य कलिम्बा को सुना.
http://youtu.be/4XD02oMHC5E (कलिम्बा)
इसमें दो या अधिक सुरों के ताल-मेल पर काफ़ी देर तक टिके रह कर संवादी और विवादी सुरों में आवा-जाही की जा सकती थी. माइल्स को मालूम था कि ट्रम्पेट में यह आसानी से सम्भव नहीं था तो भी वे इस तकनीक को अपनी रचनाओं में शामिल करना चाहते थे, ख़ास तौर पर इसलिए कि उनका ढर्रा ही आशु रचना का था, पहले से तयशुदा धुन को बजाने का नहीं, भले ही वे किसी और द्वारा पहले बजायी गयी एक पुरानी धुन को पेश कर रहे हों. ताल-मेल और बेताले होने के बीच की यह आवाजाही जैज़ के लिए उस समय एक नया विचार था, जहां बीबौप के जल्दी-जल्दी बदलने वाले ताल-मेल का चलन था.
अब तक माइल्स की मण्डली का नाम "क्विण्टेट" की बजाय "सेक्स्टेट" हो गया था और इसमें माइल्स ने बहुत ध्यान से अपने साथी वादकों का चुनाव किया था. इसी जत्थे के साथ 1959 में माइल्स डेविस रिकौर्डिंग स्टूडियो में दाख़िल हुए और उन्होंने "काइण्ड औफ़ ब्लू" के सारे टुकड़े -- कहा जाय सारे राग -- रिकौर्ड किये. अब तक जो कौशल माइल्स ने अर्जित किया था, संगीत के बारे में सोचा-विचारा था, वह सब जैसे एक जगह आ कर इकट्ठा हो गया था. इन सभी धुनों में ताज़गी तो थी ही जैसे कोई फूल तत्काल खिल रहा हो, एक अजीब मन पर छा जाने वाली कैफ़ियत भी थी, मानो संगीतकार बजाते हुए एक तरफ़ अपने किसी साथी से दिल खोल कर बात कर रहा हो और उसी के साथ अन्दर किसी ख़याल में डूबा हुआ सोच रहा हो. अकारण नहीं कि काइण्ड औफ़ ब्लू बिक्री के लिहाज़ से अब तक का सबसे लोकप्रिय रिकौर्ड साबित हुआ है.
काइण्ड औफ़ ब्लू के बाद माइल्स डेविस ने और बहुत-से पड़ाव तय किये. वे जैज़ को फ़्यूजन की तरफ़ ले गये. उन्होंने इलेक्ट्रिक वाद्य भी इस्तेमाल किये और जैज़ को उन धाराओं से मिलाने की कोशिशें जारी रखीं जो युवा सुनने वालों को आकर्षित कर रही थीं जैसे फ़ंक और रौक. आने वाले दसियों वादकों और संगीतकारों पर उनके वादन ही का नहीं, संगीत के बारे में उनके विचारों का भी गहरा असर पड़ा, लेकिन "काइण्ड औफ़ ब्लू" न सिर्फ़ माइल्स डेविस का शाहकार है, वह अब तक का सबसे ज़्यादा बिकने वाला जैज़ ऐल्बम भी बना हुआ है. वैसे, आगे चल कर माइल्स डेविस इन पुरानी धुनों को दोबारा पेश करने से इनकार करते रहे. उनका कहना था, समय बदलता है, संगीतकार बदलता है और इसके साथ उसका संगीत भी बदलता है.
https://youtu.be/X3jcoYvU5qg (माइल्स डेविस - माई मैन’ज़ गौन नाओ}
(जारी)
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