Wednesday, January 5, 2011
देशान्तर
आज एक कहानी : नाडीन गोर्डिमर की
लूट
हमारे समय में एक बार भूचाल आया : लेकिन जब से रिक्टर स्केल की ईजाद ने हमारे लिए प्राकृतिक चेतावनियों को नापना मुमकिन बना दिया, यह भूचाल रिकॉर्ड किये गये भूचालों में सबसे शक्तिशाली था.
उसने एक महाद्वीप के कगार को झुका दिया. ऐसे कम्पन से अक्सर बाढ़ें आ जाती हैं; लेकिन इस भयानक भूचाल ने इसका उलट किया, लम्बी साँस लेने की तरह सागर को पीछे खींच लिया. हमारी दुनिया का सबसे गोपनीय हिस्सा उघड़ गया - समुद्र तल में डूबे ध्वस्त जहाज़, मकानों के मुहारे, नाच-घर के फ़ानूस, शौचालय की चिलमची, समुद्री डाकुओं का बक्सा, टी0वी0, डाक-गाड़ी, हवाई जहाज़ का ढाँचा, तोप, संगमरमर की मूर्ति का धड़, कलाश्निकॉव, पर्यटकों से भरी बस की धातु का खोल, बपतिस्मे का कुण्ड, बर्तन धोने की ऑटोमैटिक मशीन, कम्प्यूटर, समुद्री कीड़ों में लिपटी तलवारें, पत्थर बन गये सिक्के. चकित निगाह इन चीज़ों पर दौड़ती चली गयी; जो आबादी अपने ढहते मकानों से सागर-तट के पहाड़ों पर भाग गयी थी, दौड़ती हुई नीचे आयी. जहाँ भूचाल की घन-गरज और शोर ने उन्हें आतंकित कर दिया था, वहाँ निपट सन्नाटा था. सागर की लार इन चीज़ों पर चमक रही थी; यह मानी हुई बात थी कि यहाँ नीचे, जहाँ अतीत और वर्तमान की सामग्री ऐसे पड़ी हुई है, बिना किसी कालक्रम के, समय का कोई अस्तित्व नहीं होता, न कभी था, सब एक-सा है, सब कुछ नहीं है - या सब कुछ तत्काल हथियाया जा सकता है.
लोग भागे लेने, लेने, लेने के लिए. यह क़ीमती था - कब, हरदम, कभी-न-कभी; वह उपयोगी हो सकता था, यह क्या था, ख़ैर किसी-न-किसी को पता होगा, यह ज़रुर अमीरों का रहा होगा, अब मेरा है, जो भी वहाँ है अगर तुम उसे झपट न लोगे तो कोई और झपट लेगा, पैर समुद्री सिवार पर फिसले, सरके, और दलदली रेत में धँस गये, हाँफती हुई समुद्री वनस्पति उनके सामने मुंह बाये थी, किसी ने ज़िक्र नहीं किया कि मछलियाँ थीं ही नहीं, इस अ-पृथ्वी के जीवित निवासी पानी के साथ बहा ले जाये गये थे. राजनैतिक उथल-पुथल के दौरान दुकानों को लूटने का जो मामूली-सा मौक़ा लोगों के ढर्रे में शामिल था, उसकी तुलना इससे नहीं की जा सकती थी. आदमियों, औरतों और उनके बच्चों को उन्मत्त उत्साह ने लेस-भरे कीचड़ और रेत से वह सब खींच निकालने की ताक़त दे दी थी जो वे नहीं जानते थे कि उन्हें चाहिए था, यहाँ से वहाँ निरखने-परखने के दौरान उसने उसकी लड़खड़ाती चाल को तेज़ कर दिया था, और यह संयोग से लाभ उठाने से कहीं ज़्यादा था, यह कुदरत की उस ताक़त को लूटने की तरह था जिसके आगे वे असहाय भाग खड़े हुए थे. लो, उठा लो; झपटते हुए वे अपने ध्वस्त मकानों और वहाँ रखे अर्सा पुराने साज-सामान के नुक़सान को भूलने में सफल हो गये. उन्होंने एक-दूसरे को चीख़-चिल्ला कर पुकारते हुए ख़ामोशी को तार-तार कर दिया था और अनुपस्थित सागर-पाखियों की पुकारों जैसी इन पुकारों में उन्होंने तेज़ हवा की तरह बढ़ते शोर का दूर से आना नहीं सुना. और फिर सागर ने आ कर उन्हें अपने ख़ज़ाने में शामिल करने के लिए घेर लिया.
यही है जिसकी जानकारी है; टेलिविजन समाचारों में जिनके पास दरअसल गहराइयों की जस्ते जैसी चमड़ी के सिवा दिखाने को और कुछ नहीं था - उन थोड़े-से भीरु, दुर्बल या होशियार लोगों से रेडियो पर की गयी भेंट-वार्ताओं में जो पहाड़ों से नीचे नहीं आये थे, और उन लाशों के बारे में समाचार-पत्रों की टिप्पणियों में, जिन्हें किसी कारण से समुद्र ने ठुकरा दिया था, तट पर कहीं आगे लहरों के साथ ला कर पटक दिया था.
लेकिन लेखक को कुछ ऐसा मालूम है, जिसका पता किसी को नहीं है; कल्पना का रुपान्तरण.
अब सुनिए, एक आदमी है जो एक ख़ास चीज़ (क्या) के लिए सारी ज़िन्दगी ललकता रहा है. उस के पास ढेर सारी-चीज़ें-हैं, जिनमें से कुछ पर उसकी निगाह अक्सर पड़ती रहती है, लिहाज़ा उसे पसन्द होंगी, कुछ पर उसका ध्यान नहीं जाता, जान-बूझ कर, जिन्हें शायद उसे हासिल नहीं करना चाहिए था, लेकिन जिन्हें वह फेंक नहीं पाता, एक नयी चाल का लैम्प है जिसकी रोशनी में वह पढ़ता है, और उसके पलँग के सिरहाने के ऊपर, दीवार पर, एक जापानी छापा है, एक होकूसाई, ‘महा तरंग,’ वह दरअसल पूर्वी माल का संग्रह नहीं करता, हालाँकि अगर वह सामने की दीवार पर होता तो शायद वह कमरे के साज-सामान का हिस्सा होने से अधिक होता, वह बरसों से वह उसके सिर के पीछे ओझल रहा है. ये सारी-चीज़ें-मगर वह एक नहीं.
वह अवकाश-प्राप्त आदमी है, अर्से से तलाक़-शुदा, जिसने उस जगह के तौर पर समुद्र-तट के पहाड़ों में एक पुरानी, लेकिन सुसज्जित कोठी चुनी जहाँ से वह शहर के हमले की तरफ़ पीठ फेर सके. गाँव से एक औरत आ कर खाना पकाती और साफ़-सफ़ाई करती है और किसी और बातचीत से तंग नहीं करती. ज़िन्दगी किसी वरदान की तरह उत्तेजना से रहित है, वह उस तरह की हलचल, सुखद हो या नहीं, से अघा चुका है, लेकिन उसके निरीक्षण स्थल से वह दृश्य, जो कभी घटित नहीं हो सकता था, यहाँ तक कि कभी सोचा भी नहीं जा सकता था, हुक्म-सरीखा है. वह उनमें है जो दौड़ते हुए चमकते समुद्र-तल की तरफ़ जा रहे हैं, उघाड़ कर नंगे कर दिये अतीत की तरफ़, मलबा-ख़ज़ाना, एक ही चीज़ है.
दूसरे लुटेरों की तरह, जिनमें वह घुलता-मिलता नहीं, जिनसे उसका कोई साम्य नहीं है, वह एक चीज़ से दूसरी चीज़ की तरफ़ भागता है, रंगीन चीनी मिट्टी की चीज़ों के ठीकरे, विनाश, परित्याग और ज़ंग से गढ़े गये मूर्ति-शिल्प, खारे पानी से पुराने बने मदिरा के पीपे, डूबी हुई रेसिंग मोटर-साइकिल, दन्दानसाज़ की कुर्सी उलटता-पलटता; उसके क़दम इन्सानी पसलियों और पैरों की हड्डियों को कचरते हुए जिन्हें वह पहचान नहीं पाता. लेकिन दूसरों के विपरीत वह कुछ नहीं लेता - जब तक कि : वहाँ, समुद्री सिवार की नारंगी-भूरी अलकों से अलंकृत, सीपियों और लाल प्रवाल के दँतीले किनारों में मज़बूती से जकड़ी वह चीज़ है. (एक आईना?) मानो असम्भव सच हो गया है; वह जानता था वह कहाँ थी, सागर के नीचे, इसीलिए उसे मालूम नहीं था कि वह क्या थी, पहले कभी खोज नहीं पाया था. वह सिर्फ़ उसी चीज़ से उजागर हो सकती थी जो पहले कभी नहीं हुई थी, रिक्टर स्केल पर दर्ज किये गये हमारी पृथ्वी के सबसे ज़बर्दस्त आवेग से.
वह उठा लेता है, उस चीज़ को, उस आईने को, रेत उससे सरक जाती है, पानी जो उस आईने के पास बची अन्तिम चमकदार निगाह है, उससे बह जाता है, वह उसे अपने साथ ले जा रहा है, आख़िरकार उस पर क़ब्ज़ा करता हुआ.
और उसके पलँग के सिरहाने से वह विशाल तरंग आती है और उसे ले जाती है.
पिछले निज़ाम के हलकों में जाना-माना उसका नाम बचने वालों में नहीं है. ताज़ा शिकारों के कंकालों के बीच उसके साथ, पुराने समुद्री-डाकुओं और मछुआरों समेत, वे भी हैं जो तानाशाही के दौर में हवाई जहाज़ों से नीचे फेंके गये थे ताकि सागर की साँठ-गाँठ से वे कभी खोजे नहीं जायेंगे. उस रोज़ किसने उन्हें पहचाना, जहाँ वे पड़े हैं?
कोई लाल फूल या गुलाबों की तैरती हुई माला नहीं.
पूरे बीस हाथ नीचे.
अनुवाद : नीलाभ
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नाडीन गौर्डिमर
20 नवम्बर 1923, दक्षिण अफ्रीका
लेखिका और राजनीतिक कार्यकर्ता
नस्लवाद, रंगभेद, निरंकुश शासन तंत्र के विरोध में अपने महाकाव्यात्मक लेखन के कारण जानी जाती हैं.
बुकर और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित
nadine gordimer :
उपन्यास-
The Lying Days (1953)
A World of Strangers (1958)
Occasion for Loving (1963)
The Late Bourgeois World (1966)
A Guest of Honour (1970)
The Conservationist (1974) - Joint winner of the Booker prize in 1974
Burger's Daughter (1979)
July's People (1981)
A Sport of Nature (1987)
My Son's Story (1990)
None to Accompany Me (1994)
The House Gun (1998)
The Pickup (2001)
Get a Life (2005)
कहानी संग्रह-
Face to Face (1949)
Town and Country Lovers
The Soft Voice of the Serpent (1952)
Six Feet of the Country (1956)
Friday's Footprint (1960)
Not for Publication (1965)
Livingstone's Companions (1970)
Selected Stories (1975)
No Place Like: Selected Stories (1978)
A Soldier's Embrace (1980)
Something Out There (1984)
Correspondence Course and other Stories (1984)
The Moment Before the Gun Went Off (1988)
Once Upon a Time (1989)
Jump: And Other Stories (1991)
Why Haven't You Written: Selected Stories 1950-1972 (1992)
Something for the Time Being 1950-1972 (1992)
Loot: And Other Stories (2003)
Beethoven Was One-Sixteenth Black (2007)
निबन्ध संग्रह –
The Essential Gesture: Writing, Politics and Places (1988)
The Black Interpreters (1973)
Writing and Being: The Charles Eliot Norton Lectures (1995)
नाटक –
The First Circle (1949) pub. in Six One-Act Plays
सम्मान-
W. H. Smith Commonwealth Literary Award (England) (1961)
James Tait Black Memorial Prize (Scotland) (1972)
Booker Prize for The Conservationist (1974)
CNA Prize (Central News Agency Literary Award), South Africa (1974, 1975, 1980, 1991)
Grand Aigle d'Or (France) (1975)
Orange Prize shortlisting; she rejected
Scottish Arts Council Neil M. Gunn Fellowship (1981)
Modern Language Association Award (United States) (1982)
Bennett Award (United States) (1987)
Premio Malaparte (Italy) (1985)
Nelly Sachs Prize (Germany) (1986)
Anisfield-Wolf Book Award (1988, A Sport of Nature)
Nobel Prize for Literature (1991)
Laureate of the International Botev Prize (1996)
Commonwealth Writers' Prize for the Best Book from Africa (2002; for The Pickup)
Booker Prize longlist (2001; for The Pickup)
Legion of Honour (France) (2007)[35]
Hon. Member, American Academy of Arts and Sciences
Hon. Member, American Academy and Institute of Arts and Letters
Fellow, Royal Society of Literature (Britain)
Patron, Congress of South African Writers
Commandeur de l'Ordre des Arts et des Lettres (France)
नीलाभ
(१६-८-१९४५), मुंबई
एम. ए. इलाहबाद से, 1980 में चार वर्ष बी.बी.सी. की विदेश प्रसारण सेवा में प्रोड्यूसर
काव्य
संस्मरणारम्भ, अपने आप से लम्बी बातचीत, जंगल खामोश है, उत्तराधिकार, चीजें उपस्थित हैं, शब्दों से नाता अटूट है,शोक का सुख, खतरा अगले मोड़ की उस तरफ है और ईश्वर को मोक्ष
गद्य
प्रतिमानों की पुरोहिती और पूरा घर है कविता
शेक्सपियर, ब्रेष्ट तथा लोर्का के नाटकों के रूपान्तर इनके अलावा,मृच्छकटिक’ का रूपान्तर सत्ता का खेल के नाम से.
जीवनानन्द दास, सुकान्त, भट्टाचार्य, एजरा पाउण्ड, ब्रेष्ट, ताद्युश रोजश्विच, नाजिम हिकमत, अरनेस्तो कादेनाल, निकानोर पार्रा और पाब्लो नेरूदा की कविताओं के अलावा अरुन्धती राय के उपन्यास के गॉड आफ स्माल थिंग्स और लेर्मोन्तोव के उपन्यास हमारे युग का एक नायक का अनुवाद
रंगमंच के अलावा टेलीविजन, रेडियो, पत्रकारिता, फि्ल्म, ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रमों तथा नृत्य-नाटिकाओं के लिए पटकथाएँ और आलेख
फि्ल्म, चित्रकला, जैज तथा भारतीय संगीत में ख़ास दिलचस्पी
ई-पता : neelabh1945@gmail.com
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sir bahut acchi kahani hai jehan men ghar kar gayi
ReplyDeleteये तो समालोचन की ही सामग्री आ गई है.
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