Tuesday, December 28, 2010

देशान्तर



आज के कवि : तादेऊष रोज़ेविच




वे बोझ उतारते हैं

वह तुम्हारे पास आता है
और कहता है
तुम ज़िम्मेदार नहीं हो
न तो दुनिया के लिए
न दुनिया के अन्त के लिए
यह भार उठा लिया गया है तुम्हारे कन्धों से
तुम बच्चों और चिड़ियों की तरह हो
जाओ, खेलो

और वे खेलते हैं
भूल जाते हैं वे
कि समकालीन कविता का मतलब है
साँस के लिए संघर्ष

एक जीवनी से

जन्म तिथि
जन्म स्थान
रादोम्स्को 1921

हाँ
मेरे बेटे की स्कूली कापी के
इस पन्ने पर
दर्ज है मेरी जीवनी

थोड़ी-सी जगह अब भी बाकी बची है
कुछ हिस्से ख़ाली हैं
मैंने सिर्फ़ दो वाक्य काटे हैं
लेकिन एक जोड़ दिया है
थोड़ी देर में
मैं कुछ शब्द और लिख दूँगा

तुम पूछते हो
मेरी ज़िन्दगी की ज़्यादा महत्वपूर्ण घटनाओं और
तारीख़ों के बारे में
यह दूसरों से पूछो

मेरी जीवनी लगभग ख़त्म हो चली थी
कई मौक़ों पर
कुछ अच्छे कुछ ख़राब


चुटिया

जब काफ़िले की सारी औरतों के सिर
मूँड़ दिये गये
चार मज़दूरों ने चीड़ की टहनियों के
झाड़ुओं से
बुहार कर इकट्ठा किया

साफ़ शफ़्फ़ाफ़ शीशे के पीछे
पड़े हैं रूखे कड़े बाल
उनके जो गैस की भट्ठियों में
दम घोंट कर मारी गयीं
क्लिप और कंघियाँ भी हैं
इन बालों में

रोशनी में लिश्कारा नहीं मारते ये बाल
हवा नहीं छितराती इन्हें
नहीं छूता इन्हें कोई हाथ
या बारिश या होंट

बड़े-बड़े काँच-जड़े बक्सों में
सूखे बालों के बादल
उनके जो दम घोंट कर मारी गयीं
और एक फीके पड़ गये रिबन से बंधी
कुम्हलाई चुटिया
जिसे स्कूल में खींच कर भागते थे
शरारती लड़के
(संग्रहालय, आउश्वित्ज़, 1948)

मेरी कविता

कुछ नहीं समझाती
कुछ नहीं स्पष्ट करती
कोई क़ुरबानी नहीं करती
सर्वव्यापक नहीं है
किसी आशा पर खरी नहीं उतरती
खेल के नये नियम ईजाद नहीं करती
कोई हिस्सा नहीं लेती खेल में
उसकी एक सुनिश्चित जगह है
जिसे उसको भरना है

अगर वह कोई गूढ़ भाषा नहीं है
अगर वह कोई मौलिक बात नहीं कहती
अगर उसमें कोई आश्चर्य नहीं छिपा
तो प्रकट रूप से यही होना भी चाहिए

अपनी ज़रूरतों,
अपनी सीमा और विस्तार के अनुसार
चलती हुई
वह ख़ुद अपने से भी हार जाती है
वह किसी और कविताई की जगह नहीं हड़पती
न कोई और कविताई ले सकती है उसकी जगह

सबके लिए खुली
रहस्य से रहित
उसके सामने बहुत-से कर्तव्य हैं
जिन्हें वह कभी पूरा नहीं कर पायेगी






मैं देखता हूँ पागलों को

मैं देखता हूँ पागलों
जो चले थे समुद्र पर
अन्त तक विश्वास करते हुए
और डूब गये

अब भी वे डगमगाते हैं
मेरी अस्थिर नाव

बेरहमी से ज़िन्दा
मैं परे धकेलता हूँ
वे कड़े हठीले हाथे
परे धकेलता रहता हूँ उन्हें
साल-दर-साल



बच निकलने वाला

मैं चौबीस का हूँ
वध को ले जाया गया
जीवित बच निकला

नीचे दिये गये शब्द खोखले पर्याय हैं :
आदमी और जानवर
प्यार और नफ़रत
दोस्त और दुश्मन
अँधेरा और रोशनी

मनुष्यों और पशुओं को मारने का तरीक़ा एक-सा है
मैंने देखा है यह :
ट्रकों में भरे बोटी-बोटी किये गये लोग
जो बचाये नहीं जा सकेंगे

विचार महज़ शब्द हैं :
सदाचार और अपराध
सच और झूठ
सौन्दर्य और साहस
कायरता और कुरुपता
सदाचार और अपराध का वज़न बराबर है
मैंने देखा है इसे :
ऐसे आदमी में जो एक साथ
अपराधी भी था और सदाचारी भी

मैं खोजता हूँ एक गुरु और साईं
जो लौटा दे मेरी नज़र
मेरी सुनने और बोलने की ताक़त
जो एक बार फिर विचारों और वस्तुओं को नाम दे
जो अलग कर दे अँधेरे को रोशनी से

मैं चौबीस का हूँ
वध के लिए ले जाया गया
बच निकला जीवित


शुद्धि

आँसुओं पर लजाओ मत
मत लजाओ आँसुओं पर युवा कवियो
विस्मय से देखो चाँद को
चाँदनी रात को
विस्मय करो निष्कलंक प्रेम और बुलबुल के गीत पर
स्वर्ग जाने से डरो मत
हाथ बढ़ाओ नक्षत्रों की तरफ़
आँखों की तुलना करो सितारों से

पीले फूल को, नारंगी तितली को
सूर्य के उगने और डूबने को देख कर
लरज़ने दो हृदय

भोले-भाले कबूतरों को चुग्गा दो
एक मुस्कान के साथ निरखो
कुत्ते इंजन फूल और गैंडे
बात करो आदर्शों की
जवानी के लिए एक गीत गाओ
भरोसा करो अजनबी राहगीर पर

निष्कपट तुम विश्वास करने लगोगे सौन्दर्य पर
स्पन्दित हो कर विश्वास करने लगोगे तुम इन्सान पर

आँसुओं पर लजाओ मत
मत लजाओ आँसुओं पर युवा कवियो

वापसी

अचानक खिड़की खुलेगी
और माँ पुकारेगी
भीतर आने का वक्त हो गया है

दीवार फट जायेगी
मैं प्रवेश करूँगा स्वर्ग में
मिट्टी-सने जूते पहने

मेज़ तक आऊँगा
और रुखाई से सवालों का जवाब दूँगा
मैं बिलकुल ठीक हूँ मेरा पीछा छोड़ो

हाथों में सिर दिये मैं
बैठा रह जाता हूँ। कैसे बताऊँ मैं उन्हें
उस लम्बे और पेचीदा
रास्ते के बारे में

यहाँ स्वर्ग में माँएँ
बुन रही हैं हरे गुलूबन्द
मक्खियाँ भिनभिनाती हैं
छै दिन की मेहनत के बाद
पिता सिगड़ी के पास झपकी ले रहे हैं

नहीं --यक़ीनन मैं उन्हें
नहीं बता सकता कि
लोग एक-दूसरे का
गला काटने पर उतारू हैं

मुलाक़ात


जब मैं यहाँ अन्दर आया
मैं उसे पहचान नहीं सका
ठीक भी है
इस बेढंगे गुलदान में
सलीके से इन फूलों को सजाने में
इतना समय लगना सम्भव है

‘इस तरह मेरी तरफ़ मत देखो’
उसने कहा
मैं उसके कतरे बालों वाले सिर पर
फेरता हूं अपना खुरदुरा हाथ
‘उन्होंने मेरे बाल काट दिये,’ वह कहती है,
‘देखो ज़रा क्या किया है उन्होंने मेरे साथ’

अब फिर से वह आसमानी-नीला सोता
फड़कने लगता है उसकी गर्दन की पारदर्शी त्वचा के चीचे
हमेशा की तरह
जब वह घूँटती है अपने आँसू
इस तरह क्यों घूरती है वह
मैं सोचता हूँ

’ख़ैर मुझे जाना होग’
मैं ज़रूरत से ज़्यादा ऊँचे स्वर में कहता हूँ
और कण्ठ में एक गोला-सा लिये
जाता हूँ उसे छोड़ कर



कैसी ख़ुशकिस्मती

कैसी ख़ुशकिस्मती है
मैं बीन सकता हूँ जंगल में बेर
मेरा ख़याल था न कहीं कोई
जंगल है न बेर
कैसी ख़ुशकिस्मती है
लेट सकता हूँ मैं पेड़ की छाया में
मेरा ख़याल था
अब छाया नहीं देते पेड़
कैसी ख़ुशकिस्मती है
तुम्हारे साथ हूँ मैं
किस कदर धड़कता है मेरा दिल
मेरा ख़याल था
आदमी के दिल नहीं होता

साक्षी

मेरी जान, तुम्हें पता है मैं घर में हूँ
लेकिन अचानक मत आओ
मेरे कमरे में
हो सकता है तुम देखो मुझे
ख़ामोश
कोरी चादर पर पड़ा हुआ

क्या तुम लिख सकते हो
प्रेम के बारे में
जब तुम्हें सुनाई दे रही हों
कत्ल और बेइज़्ज़त किये लोगों की चीख़ें

क्या तुम मौत के बारे में
लिख सकते हो
बच्चों के नन्हे चेहरों में
झाँकते हुए

मेरे कमरे में
अचानक मत जाओ
तुम देखोगी
प्रेम का
एक गूँगा और शपथ-बंधा साक्षी
मौत से पराजित

छोड़ दो हमें

भूल जाओ हमें
हमारी पीढ़ी को
इन्सानों की तरह जियो
हमें भूल जाओ

हमने ईर्ष्या की
पौधों और पत्थरों से
हमें कुत्तों से रश्क रहा

काश मैं चूहा होता
मैंने उससे तब कहा था

काश मैं पैदा ही न हुई होती
काश मैं सो सकती
और युद्ध ख़त्म होने पर जागती
उसने आँखें मूंदे कहा था

भूल जाओ हमें
मत पूछो हमारी जवानी के बारे में
हमें अकेला छोड़ दो


वापसी

अपनी कुछ कविताओं से
मैं कभी समझौता नहीं कर पाता
वर्ष बीतते हैं
मैं उनसे समझौता नहीं कर पाता
तो भी मैं उन्हें नकार नहीं सकता
वे ख़राब हैं लेकिन मेरी हैं वे
मुझ से दूर वे अपनी ज़िन्दगी बसर करती हैं
उदासीन और मृत

लेकिन एक क्षण ऐसा आयेगा जब वे सब-की-सब
मेरे पास भागती हुई लौट आयेंगी
सफल और विफल
लँगड़ी और साबुत
जिनकी हँसी उड़ी और जो अस्वीकृत हुईं
सब मिल कर एक हो जायेंगी

बूढ़ी औरतों का क़िस्सा


मुझे पसन्द हैं बूढ़ी औरतें
बदसूरत औरतें
बुरी औरतें

वे इस धरती का नमक हैं

इन्सानी कचरे से
उन्हें घिन नहीं आती
वे जानती हैं
प्यार और विश्वास के
सिक्के की
दूसरी तरफ़ क्या है

वे आती हैं वे जाती हैं
तानाशाह भड़ैती करते रहते हैं
मनुष्य के ख़ून से रँगे हाथ लिये

बूढ़ी औरतें तड़के उठती हैं
गोश्त फल रोटी ख़रीदती हैं
सफ़ाई करती हैं खाना बनाती हैं
खड़ी रहती हैं सड़क पर
हाथ बाँधे ख़ामोश
बूढ़ी औरतें अमर हैं

हैमलेट जाल में घिरा ग़ुस्से से
पगलाता है
फ़ाउस्ट निभाता है
हास्यास्पद रूप से नीच भूमिका
रास्कॉल्निकॉव कुल्हाड़ी से वार करता है

बूढ़ी औरतें
अनश्वर हैं
वे रहम से मुस्कराती हैं

एक देवता मरता है
बूढ़ी औरतें हमेशा की तरह उठती हैं
रोटी शराब मछली ख़रीदती हैं
सभ्यता मरती है
बूढ़ी औरतें भोर में उठती हैं
खिड़कियाँ खोलती हैं
कचरा बहाती हैं

आदमी मरता है
वे शव को नहलाती हैं
दफ़नाती हैं मृतकों को
फूल लगाती हैं

मुझे पसन्द हैं बूढ़ी औरतें
बदसूरत औरतें
बुरी औरतें
वे अनन्त जीवन में विश्वास करती हैं
वे धरती का नमक हैं
पेड़ की छाल हैं वे
और पशुओं की विनम्र आँखें
कायरता और वीरता
महानता और नीचता
देखती हैं वे सही परिप्रेक्ष्य में
रोज़मर्रा की ज़रूरतों के
पैमाने से

उनके बेटे अमरीका की खोज करते हैं
थर्मोपाइले के युद्ध में काम आते हैं
चढ़ते हैं सूलियों पर
जीत लेते हैं ब्रह्माण्ड

बूढ़ी औरतें सुबह-सवेरे
दूध रोटी गोश्त ख़रीदने निकलती हैं
वे शोरबे में मसाला डालती हैं
खिड़कियाँ खोलती हैं

सिर्फ़ मूर्ख हँसते हैं
बूढ़ी औरतों पर
बदसूरत औरतों पर
बुरी औरतों पर
क्योंकि ये खूबसूरत औरतें हैं
अच्छी औरतें हैं
बूढ़ी औरतें हैं

वे कोख में बढ़ता बीज हैं
रहस्य से रहित रहस्य हैं वे
वह गोला जो लुढ़कता है
बूढ़ी औरतें
पवित्र बिल्लियों के
परिरक्षित शव हैं
वे नन्हें झुर्रीदार फल हैं
सूखते हुए जलाशय हैं
या गदराये
अण्डाकार बुद्ध

जब वे मरती हैं
एक आँसू
आँख से बहता है
और घुल जाता है
एक नन्हीं लड़की के होंटों पर
खिली मुस्कान में



संशोधनार्थ


मौत नहीं सुधारेगी
कविता की एक भी पंक्ति
वह कोई प्रूफ़-रीडर नहीं है
वह कोई हमदर्द
महिला-सम्पादक नहीं है

एक ख़राब रूपक अनश्वर है

एक घटिया दिवंगत कवि
महज़ एक घटिया दिवंगत कवि है

ऊबाऊ आदमी
मौत के बाद भी ऊब पैदा करता है
मूर्ख क़ब्र के पार से भी जारी रखता है
अपनी मूर्खतापूर्ण बकवास

बहुत-से कामों में व्यस्त हो कर

बहुत ज़रूरी कामों में व्यस्त हो कर
मैं भूल गया
हमें
मरना भी होता है
ग़ैर ज़िम्मेदारी से
मैं इस कर्तव्य को टालता रहा
या उसे निभाता रहा
लापरवाही से

कल से
सिलसिला दूसरा होगा
मैं मरना शुरू करूँगा सलीक़े से
सियानेपन से
उम्मीद के साथ
बिना समय ज़ाया किये

सम्बोधन

भावी पीढ़ियों को नहीं
यह बेमानी होगा
क्या पता है वे सब दानव हों
उच्च आयोग ने
शासकों, शक्तियों और फ़ौजी दफ़्तरों ने
साफ़ चेतावनी दी है
कि अब दानव आयेंगे
जिनके दिमाग़ नहीं होगा

इसलिए भावी पीढ़ियों को नहीं
बल्कि उनको
जो ठीक इसी क्षण
आंखें मूंदे अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं
भावी पीढ़ियों को नहीं सम्बोधित कर रहा
मैं इन शब्दों से

मैं मुख़ातिब हूं नेताओं से
जो मुझे नहीं पढ़ेंगे
धर्म गुरुओं से
जो मुझे नहीं पढ़ेंगे
सेना नायकों से
जो मुझे नहीं पढ़ेंगे
मैं मुख़ातिब हूं
तथाकथित "आम लोगों" से
जो मुझे नहीं पढ़ेंगे

मैं उन सबसे कहूंगा
जो मुझे पढ़ते नहीं
न सुनते हैं, न जानते हैं
न मेरी ज़रूरत महसूस करते हैं

उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं
पर म्झे उनकी ज़रूरत है
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तादेऊष रोज़ेविच का जन्म 1921 में पोलैण्ड के रादोम्स्क नगर में हुआ. वे उस पीढ़ी के लोगों में से हैं जिनकी शिक्षा दूसरे महायुद्ध के कारण्क बीच ही में रुक गयी थी. वैसे जहां तक ख़ुद रोज़ेविच का सवाल है, उन्होंने 1938 में ही आर्थिक कठिनाइयों के चलते पढ़ाई छोड़ दी थी. युद्ध के दौरान रोज़ेविच आजीविका के लि, छिटपुट मज़दूरी करते रहे. पोलैण्ड पर जर्मनी के क़ब्ज़े के समय वे एक कारख़ाने में काम कर रहे थे. 1943-44 में वे अपने भाई जानुश के साथ हिटलर विरोधी छापामारों में शामिल हो गये और इसी गुप्त सैनिक संगठन में सक्रिय रहते हुए उन्होंने लड़ाई के साथ-साथ शिक्षा और कविता जारी रखी. हालांकि छापामार संघर्ष से रोज़ेविच बच निकले, उनके भाई को गोली मार दी गयी थी. लड़ाई ख़त्म होने के बाद उन्होंने पोलैण्ड के प्रसिद्ध क्रैकाओ विश्वविद्यालय में कला के इतिहास का अध्ययन किया.

रोज़ेविच का पहला कविता संग्रह "चिन्ता" 1947 में प्रकाशित हुआ. अब तक वे बीस से ज़्यादा कविता संग्रह और कई नाटक प्रकाशित कर चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने कुछ फ़िल्म पटकथाएं और विविध गद्य भी लिखा है. 1966 में उन्हें पोलैण्ड का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार दिया गया, लेकिन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1971 में पोलैण्ड के चुने हुए युवा कवियों द्वारा देश के सबसे महत्वपूर्ण जीवित कवि घोषित करके सम्मानित किया जाना था.

रोज़ेविच की कविता युद्ध और अमानवीयता के ख़िलाफ़ मनुष्य के बुनियादी विवेक की वकालत करती है. उनका स्वर अण्डरटोन्ज़ का स्वर है, लेकिन वे उसे इस तरह काम में लाते हैं कि युद्ध और अमानवीयता और भी भयावह रूप से मुखर हो जाती है. पीड़ा और विनाश के चित्र अंकित करते हुए रोज़ेविच की नज़र करुणा और मानवीयता के उन जज़्बों पर बराबर टिकी रहती है जो दमन और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ मनुष्य के अथक संघर्ष में उसका साथ देती है. इसीलिए, उनकी कविता में पारदर्शी निश्छलता और मार्मिक वक्रता की धाराएं एक साथ मौजूद रहती हैं.

see these poems on http://neelabhkamorcha.blogspot.com/

1 comment:

  1. नीलाभ जी, सारी कविताएं पढी। बहुत गहन अर्थ लिए ये सारी कविताएं बहुत कुछ सोचने पर विवश कर गईं।
    आभार इस उत्तम प्रस्तुति के लिए।

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