Thursday, December 23, 2010

देशान्तर



आज के कवि : बर्टोल्ट ब्रेख़्ट


निर्णय के बारे में

तुम जो कलाकार हो
और प्रशंसा या निन्दा के लिए
हाज़िर होते हो दर्शकों के निर्णय के लिए
भविष्य में हाज़िर करो वह दुनिया भी
दर्शकों के निर्णय के लिए
जिसे तुमने अपनी कृतियों में चित्रित किया है

जो कुछ है वह तो तुम्हें दिखाना ही चाहिए
लेकिन यह दिखाते हुए तुम्हें यह भी संकेत देना चाहिए
कि क्या हो सकता था और नहीं है
इस तरह तुम मददगार साबित हो सकते हो
क्योंकि तुम्हारे चित्रण से
दर्शकों को सीखना चाहिए
कि जो कुछ चित्रित किया गया है
उससे वे कैसा रिश्ता कायम करें

यह शिक्षा मनोरंजक होनी चाहिए
शिक्षा कला की तरह दी जानी चाहिए
और तुम्हें कला की तरह सिखाना चाहिए
कि चीज़ों और लोगों के साथ
कैसे रिश्ता कायम किया जाय
कला भी मनोरंजक होनी चाहिए

वाक़ई तुम अँधेरे युग में रह रहे हो।
तुम देखते हो बुरी ताक़तें आदमी को
गेंद की तरह इधर से उधर फेंकती हैं
सिर्फ़ मूर्ख चिन्ता किये बिना जी सकते हैं
और जिन्हें ख़तरे का कोई अन्देशा नहीं है
उनका नष्ट होना पहले ही तय हो चुका है

प्रागैतिहास के धुँधलके में जो भूकम्प आये
उनकी क्या वक़अत है उन तकलीफ़ों के सामने
जो हम शहरों में भुगतते हैं ? क्या वक़अत है
बुरी फ़सलों की उस अभाव के सामने
जो नष्ट करता है हमें
विपुलता के बीच


आलोचनात्मक रवैये पर

बहुत-से लोगों को
आलोचनात्मक रवैया कारगर नहीं लगता
ऐसा इसलिए कि वे पाते हैं
सत्ता पर उनकी आलोचना का कोई असर नहीं पड़ता।

लेकिन इस मामले में जो रवैया कारगर नहीं है
वह दरअसल कमज़ोर रवैया है।

आलोचना को हासिल कराये जायँ
अगर हाथ और हथियार
तो राज्य नष्ट किये जा सकते हैं उससे

नदी को बाँधना
फल के पेड़ की छँटाई करना
आदमी को सिखाना
राज्य को बदलना
ये सब हैं कारगर आलोचना के नमूने
साथ ही कला के भी।


तेरह भजन

बसन्त का भजन

1. मैं अब गर्मियों की ताक में हूँ दोस्तो।
2. हमने जमा कर ली है ख़ूब सारी रम और गिटार पर चढ़ा लिये हैं नये तार।
बस, सफ़ेद कमीज़ें जुटाना बाक़ी है
3. हमारे अंग गर्मियों की घास तरह बढ़ते है और अगस्त के मध्य में
ग़ायब हो जाती हैं कुँआरी कन्याएँ। यह वक़्त है बेपनाह मस्ती का।
4. दिन पर दिन आकाश में भर जाती है एक सुकोमल आभा और
रात हमारी नींद उड़ा ले जाती है।

ईश्वर का सायंकालीन गीत

जब शाम की धुन्ध भरी नीली हवा परमपिता ईश्वर को जगाती है
वह देखता है अपने ऊपर तने आकाश को निरवर्ण होते और
आनन्दित होता है इस पर। फिर सृष्टि का महान कीर्तन
तरोताजा करता है उसक कानों को और आहलाद से भर देता है उसे :
डूबने के कगार पर बाढ़ ग्रस्त वनों की चीख़
लोगों और साज-सामान के बेपनाह बोझ से दबे
पुराने, धूसर मकानों की कराह।
जिनकी ताक़त छीन ली गयी है
उन चुके हुए खेतों की हलक़-चीरती खाँसी।
धरती पर प्रागैतिहासिक हाथी की कठिन और आनन्द-भरी ज़िन्दगी के
अन्त को चिह्नित करने वाली पेट की विराट गड़गड़ाहट।
महापुरुषों की माताओं की चिन्तातुर प्रार्थनाएँ।
बर्फीले एकान्त में आमोद-प्रमोद करते श्वेत हिमालय के
दहाड़ते हिमनद।
और बर्टोल्ट ब्रेश्ट की वेदना जिसके दिन ठीक नहीं गुजर रहे
और इसी के साथ:
वनों में बढ़ते हुए पानी के पगलाये गीत।
फ़र्श के पुराने तख़्तों पर झूलते, नींद में डूबे लोगों की धीमी साँसें।
अनाज के खेतों की हर्ष भरी बुदबुदाहट, अन्तहीन प्रार्थनाओं मे अम्बार लगाती हुई
महापुरुषों के महान भजन।
और बर्टोल्ट ब्रेश्ट के शानदार गीत, जिसके दिन ठीक नहीं गुजर रहे

प्रेमिका का गीत

1. मैं जानता हूँ, मेरी जान, मेरी बीहड़ ज़िन्दगी की वजह से मेरे बाल
झड़ रहे हैं और मुझे पत्थरों पर सोना पड़ता है। तुम मुझे ठर्रा पीते देखती
हो और मैं हवा में उघाड़े बदन घूमता फिरता हूँ।
2. लेकिन एक समय था, मेरी जान, जब मैं निष्पाप था।
3. मेरी एक औरत थी जो मुझसे ज़्यादा ताक़तवर थी, जैसे घास बैल से
ज़्यादा ताक़तवर होती है - वह फिर सीधी तन जाती है।
4. वह जानती थी कि मैं दुष्ट हूँ और मुझसे प्यार करती थी।
5. उसने कभी नहीं पूछा वह रास्ता वहाँ जाता था और उसका रास्ता था
और शायद वह नीचे को उतरता था। जब वह मुझे अपनी देह
सौंपती तो कहती-बस। और उसकी देह मेरी देह बन जाती।
6. अब वह कहीं नहीं है। वर्षा के बाद बादल सरीखी वह गायब हो गयी।
मैंने उसे छोड़ दिया और वह नीचे गिरती चली गयी क्योंकि वही
उसका रास्ता था।
7. लेकिन कभी-कभार रात को जब तुम मुझे शराब पीते देखती हो,
मुझे उसका चेहरा नज़र आता है - हवा में विवर्ण, मज़बूत और मेरी तरफ़ मुख़ातिब
और मैं हवा में झुक कर उसे सलाम करता हूँ।

पत्नी का गीत

1. कभी कभी शाम के समय नदी किनारे झाड़ियों के अँधेरे सीने में मुझे फिर उसका
चेहरा दिखायी देता है। उस औरत का चेहरा जिसे मैं प्यार करता था। मेरी बीवी। जो अब नहीं है।
2. यह बरसों पहले की बात है और बाज़ वक्त मुझे उसकी कोई याद नहीं रहती
जो कभी सब कुछ थी, मगर सब कुछ बीत जाता है।
3. और वह मेरे भीतर थी जैसे मंगोलिया के मैदानों पर नन्हीं ज़ूनिपर की झाड़ी,
धुनषाकार, हल्के पीले आकाश और गहरी उदासी के साथ
4. नदी किनारे की एक काली-सी झोंपड़ी हमारा घर थी। मच्छर अक्सर उसकी गोरी
देह को काटते और मैं सात बार अख़बार पढ़ता या कहता - ‘तुम्हारे बालों का
रंग मिट्टी जैसा है’ या - ‘तुम हृदयहीन हो।’
5. लेकिन एक दिन जब मैं झोंपड़ी में अपनी कमीज़ धो रहा था, वह दरवाज़े तक
गयी और उसने मेरी तरफ देखा बाहर जाने की इच्छा से।
6. और उसने, जो उसे थक जाने की हद तक पीटता था, कहा - ‘प्राणेश्वरी।’
7. और वह, जिसने कहा था, ‘मैं तुम्हें प्यार करता हूँ’ - उसे बाहर ले गया
और उसने मुस्कराते हुए आकाश को देख कर मौसम की तारीफ़ की और उससे हाथ मिलाया।
8. अब जबकि वह बाहर खुली हवा में थी और झोंपड़ी में उदासी छा गयी
थी, उसने दरवाजा बन्द किया और अख़बार खोल कर बैठ गया।
9. तब से मैंने उसे फिर नहीं देखा। अपने पीछे वह बस एक हल्की-सी
चीख़ छोड़ गयी जब सुबह दरवाजे पर आ कर उसने बन्द पाया।
10. अब झोंपड़ी ढह चुकी है और मेरे सीने में अखबार ठुँसे हुए हैं और मैं
शामों को नदी किनारे झाड़ियों के अँधेरे विवर में लेटा रहता हूँ और याद करता हूँ।
11 हवा के बालों में घास की महक है और पानी ईश्वर से
शान्ति की अन्तहीन गुहार लगाता है और मेरी ज़बान पर हरदम रहता है एक कड़वा स्वाद।

भजन

1. हमने पलक तक नहीं झपकायी जब सफ़ेद पानी हमारे गले तक चढ़ आया।
2. जब गहरी भूरी शामें हमें कुतरती रहीं हम सिगार पीते रहे।
3. हमने इनकार नहीं किया जब हम आकाश में डूब गये।
4. पानी ने किसी को नहीं बताया कि वह हमारे गले तक चढ़ आया है।
5. अख़बारों में कुछ भी नहीं था हमारे कुछ न कहने के बारे में।
6. आकाश नहीं सुनता उन लोगों की चीख़ें जो डूब रहे होते हैं।
7. लिहाज़ा हम बैठे रहे बड़ी चट्टानों पर ख़ुशक़िस्मत लोगों की तरह।
8. लिहाज़ा हमने मार डालीं वे सोनचिरैयाँ जो हमारे मौन चेहरों की चर्चा करती थीं।
9. कौन बात करता है चट्टानों के बारे में ?
10. और किसे परवाह है कि पानी, शाम और आकाश का हमारे लिए क्या मतलब है ?

चौथा भजन

1. अब वे मुझसे क्या चाहते हैं ? मैं ताश की सभी बाज़ियाँ खेल चुका हूँ, सारी शराब थूक चुका हूँ, सारी किताबें चूल्हे में झोंक चुका हूँ, सारी औरतों को उस हद तक प्यार कर चुका हूँ जब तक कि वे मगरमच्छ की तरह गँधाने नहीं लगीं।
अभी से मैं एक महान सन्त हो गया हूँ, मेरा कान सड़ गया है कि बहुत जल्द झड़ जायेगा।
तब फिर क्यों कोई चैन नहीं है ? क्यों लोग अहाते में कचरे की पेटियों की तरह खड़े रहते हैं, चन्दे की उम्मीद में? मैंने यह साफ़ कर दिया है कि अब मुझसे यह अपेक्षा नहीं रखी जा सकती कि मैं वह गीतों का सरताज गीत रच ही दूँगा। मैंने पुलिस को उन हज़रात के पीछे लगा दिया है। तुम्हें जिसकी भी तलाश हो, मैं वह बन्दा नहीं हूँ।
2. अपने भाइयों में मैं सबसे ज़्यादा दुनियादार हूँ - और मेरा ही सर सबसे पहले क़लम किया जाता है। मेरे भाई क्रूर थे, मैं क्रूरतम हूँ - और रात-रात भर रोता हूँ मैं।
3. पवित्र आचार संहिता के साथ पापों का भी बण्टाढार हो गया है। यहाँ तक कि अपनी बहन के साथ सोने में भी अब कोई मज़ा नहीं रहा। बहुतों के लिए हत्या एक बड़ी ज़हमत है, कविता लिखना बेहद आम। सारे रिश्तों की असुरक्षा के इस माहौल में बहुत-से लोग सच बोलना पसन्द करते हैं - इसके ख़तरों से बिलकुल अनजान। रण्डियाँ सर्दियों के लिए गोश्त का अचार डाल रही हैं और शैतान ने अपने सबसे वफ़ादार लोगों को गुहारना बन्द कर दिया है।

ईश्वर के लिए भजन

1. गहरी अँधेरी घाटियों में भूखे लोग मर रहे हैं। तुम सिर्फ़ उन्हें रोटी दिखाते
हो और मरने के लिए छोड़ देते हो। तुम सिर्फ़ राज करते हो अनन्त
अदृश्य। इस अन्तहीन योजना पर क्रूरता से मुस्कुराते हुए।
2. तुम नौजवानों को मरने देते हो और उनको भी जोज़िन्दगी का मज़ा लेते
हैं। लेकिन जो मरना चाहते थे उन्हें तुमने स्वीकार नहीं किया। बहुत
से लोग जा अब पड़े सड़ रहे हैं। तुम में विश्वास करते थे
और पूरी तरह महफ़ूज़ मरे
3. तुम ग़रीबों को साल-ब-साल गरीब रहने देते हो
इस एहसास के साथ कि उनकी इच्छाएँ तुम्हारे स्वर्ग से ज़्यादा मधुर हैं।
अफ़सोस इससे पहले कि तुम उन तक रोशनी ला सको वे सिधार गये।
तो भी वे आनन्द से सिधारे - और तत्काल सड़ गये।

4. हममें से बहुत से कहते हैं तुम नहीं हो -
और यही भला है लेकिन वह चीज़
जो रच सकती है ऐसा प्रपंच नहीं कैसे हो सकती।
अगर इतना कुछ तुम्हारे सहारे ज़िन्दा है
और मर नहीं सकता तुम्हारे बिना तो
बताओ ज़रा इससे क्या फ़र्क
पड़ता है कि तुम नहीं हो ?

माँ के लिए

और जब वह ख़त्म हो गयी उन्होंने दफ़्न कर दिया उसे
फूल उगते रहे उसके ऊपर, तितलियाँ मँडराती रहीं उस पर
इतनी हल्की थी वह, मुश्किल से दबा पायी धरती को
कितनी तकलीफ़ों से गुज़र कर हुई होगी वह इतनी हल्की।

बेचारे बी.बी. के बारे में


मैं, बर्टोल्ट ब्रेख़्ट, काले जंगलों से आया।

मेरी माँ मुझे शहरों में लायी जब मैं उसके देह के भीतर था
और मरते दम तक मेरी भीतर रहेगी जंगलों की ठण्ड।

डामर की सड़कों वाले शहर मेरा ठिकाना हैं शुरू ही
से उन्होंने मुझे हर अन्तिम संस्कार प्रदान
किया - अख़बार और तम्बाकू और शराब

अन्त तक शक्की, काहिल और सन्तुष्ट
लोगों से शिष्टता और दोस्ती से पेश आता हूँ मैं पहनता हूँ टोप
क्योंकि ऐसा ही करते हैं वे भी
वे जानवर हैं एक ख़ास गन्ध वाले
मैं कहता हूँ
तो क्या हुआ ? मैं यह भी कहता हूँ
मैं भी तो हूँ।

कभी-कभी दोपहर से पहले मैं
अपनी ख़ाली झूलने वाली कुर्सियों पर
बैठा देता हूँ एक या दो औरतें और फिर
लापरवाही से उन पर नज़र डाल कहता
हूँ मैं वो शख़्स हूँ जिस पर तुम भरोसा नहीं कर सकतीं।

शाम होते-होते मैं इकट्ठा कर लेता
हूँ कुछ पुरुष अपने गिर्द
हम एक-दूसरे को कहते हैं महाशय
मेरी मेज़ पर टाँगें फैला कर वे
कहते हैं चीज़ें बेहतर होंगी हमारे लिए
मैं नहीं पूछता कब ?

सुबह-सबेरे भोर के
सलेटी धुंधलके में मूतते हैं चीड़ के पेड़ और उनके कीड़े,
यानी चिड़ियाँ, चहचहा कर गुलगुपाड़ा मचाने लगती हैं
उस समय शहर में अपना गिलास ख़ाली करता हूँ मैं
फिर फेंक देता हूँ सिगार का टोटा और चिन्ता में डूबा सोने जाता हूँ।

हम एक आरामतलब पीढ़ी के लोग
रहते आये हैं ऐसे घरों में
जिनके बारे में ख़याल था कि वे तबाह नहीं किये जा सकते
( इसी तरह बनाये हमने : मैनहैटन आइलैण्ड के ऊँचे डिब्बे
और अतलान्तिक महासागर की लहरों का मनोरंजन करने वाले एण्टेना)

उन शहरों में बस बचेगा वही जो
उनसे हो कर गुज़रा यानी तूफ़ान।
घर ख़ुशी देता है खाने पर आये मेहमान को
जो उसकी सफ़ाई कर जाता है

हम जानते हैं हम सिर्फ़ किरायेदार हैं, कुछ देर के,
और हमारे बाद ऐसा कुछ नहीं आयेगा जो चर्चा के क़ाबिल हो।

उन भूकम्पों में जो आने वाले हैं
मुझे पूरी उम्मीद है मैं अपने सिगार को बुझने नहीं दूँगा
भले ही मुझ में कड़वाहट भर गयी हो या नहीं

मैं, बर्टोल्ट ब्रेख़्ट, जो अर्सा पहले अपनी माँ के भीतर काले जंगलों में
डामर की सड़कों वाले शहरों में लाया गया था।

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बावेरिया, जर्मनी में जन्मे बर्टोल्ट ब्रेख़्ट (10 फ़रवरी 1898-14 अगस्त 1956)बीसवीं सदी के उन साहित्यकारों में हैं जिन्होंने पूरी दुनिया पर अपना असर छोड़ा है. वे नाटककार, कवि और नाट्य-निर्देशक थे. पूर्वी और हिन्दुस्तानी परम्पराओं से प्रेरणा ले कर उन्होंने समूचे नाट्य-कर्म को अपनी नयी शैली से प्रभावित किया. बीस-बाईस साल की उमर से वे एक प्रतिबद्ध मार्क्सवादी बन गये और जीवन भर रहे. उन्होंने दो-दो महा युद्धों की विभीषिका नज़दीक से देखी थी और हिट्लर और उसकी नात्सी पार्टी की हिट-लिस्ट में रहे जिसकी वजह से उन्हें दस साल से ज़्यादा की जलावतनी से गुज़रना पड़ा. ब्रेख़्ट कहते थे कि वे कविताएं प्रकाशित करने के लिए नहीं, बल्कि अपने नाटकों को और बेहतर बनाने के लिए लिखते थे. लेकिन उनका काव्य भण्डार जिसमें 500 से ज़्यादा कविताएं हैं बज़ातेख़ुद एक अहमियत रखता है. इसके अलावा उन्होंने उपन्यास और कुछ कहानियां भी लिखी हैं और नाट्य प्रस्तुतियों पर वैचारिक लेख भी.

2 comments:

  1. aapki wajah se itni khubsurat kavitayen padh paane ke liye hardik aabhar !

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  2. bahut hi acchi kabitayen.ek bichalan dahak uthata hai.yeh yatra jari rahe.apka sukragujar

    lenin kumar,bhubaneswar(odisha)

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