Sunday, September 13, 2015

तीन मुख़्तलिफ़ मिज़ाज महिलाओं का क़िस्सा



 क़िस्त अव्वल

साहबो,
जब-जब हम फ़ेसबुक पर आते हैं, हमें अपनी अज़ीज़ा गीताश्री का ख़याल हो आता है. ये क़िस्सा उन्हीं के मुतल्लिक़ है. और उनके हवाले से हमारी दो और दोस्तों से.
जिन क़द्रदानों ने हमारे क़िस्सों पर नज़रसानी की है, वे इस बात से बख़ूबी वाक़िफ़ हो गये होंगे कि हमें बात चाहे ज़री-सी कहनी हो, मगर हमारी कोशिश यही रहती है कि वह मुन्नी-सी बात भी एक अदा से कही जाये जिससे हमारे सामयीन का दिल भी बहले और हमें भी कुछ तस्कीन हो कि हमने वक़्त ज़ाया नहीं किया. ये बात दीगर है कि बहुत-से लोग तो यही कहते पाये गये हैं कि हम वक़्त ज़ाया करने के अलावा कुछ करते ही नहीं, कि हमारे पास वक़्त के सिवा और बचा ही क्या है जिसे ज़ाया करें. ख़ैर, जैसा कि देवभाषा में कहते हैं -- "मुण्डे-मुण्डॆ मतिर्भिन्ना." यों बाज़ लोगों का कहना है कि अच्छा क़िस्सागो वही हो सकता है, जो बातूनी हो, लफ़्ज़ और फ़िक़रे जिसकी ज़बान पर रस छोड़ते हों. हमें भी इस बात से पूरा इत्तेफ़ाक़ है. चुनांचे: हमने इन दोनों कलाओं -- क़िस्सागोई और जिसे अंग्रेज़ी में कौन्वरसेशन या स्मौल टौक भी कहते हैं, बड़ी काविश से महारत हासिल की है. गो इसके चलते हमने एकाधिक मित्र खोये हैं, क्योंकि आजकल का मिज़ाज फ़ास्ट का है, ख़्वाह वो फ़ूड हो या फ़न (दोनों हिन्दी-अंग्रेज़ी मानी में).
बहरकैफ़, बात आज के क़िस्से की चल रही थी, जो तीन मुख़्तलिफ़ मिज़ाज महिलाओं (ज़रा अनुप्रास की छब और छटा पर ग़ौर करें, मेहरबान) के बारे में है.
अब आप सोच रहे होंगे कि ये किन ख़वातीन का ज़िक्र हुआ चाहता है. तो हम ससपेन्स में कटौती करते हुए आपको शुरू ही में बता दें कि ये तीन मुख़्तलिफ़ मिज़ाज महिलाएं हैं....दिल थाम कर बैठिये हुज़ूर .... गीता श्री, अचला शर्मा और रमा पाण्डे, जिनमें से दो आख़िरी शख़्सियतें बीबीसी में हमारी सहकर्मी रहीं और पहली मोहतरमा से हमारा परिचय बीबीसी से लौटने के काफ़ी बाद यहां इस शहर शाहजहानाबाद उर्फ़ दिल्ली में हुआ. यह पोस्ट दरअसल गीताश्री के बारे मॆं है, जिनकी याद, जैसा मैंने पहले ही अर्ज़ किया, मुझे फ़ेसबुक पर आते ही हर बार हो आती है.

(जारी इस गुज़ारिश के साथ कि कोई राय क़ायम करने से पहले पूरा क़िस्सा सुन लें)

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