Monday, June 11, 2012

सीमा आजाद के बहाने विरोध की आवाज को कुचलने की साजिश

सीमा आजाद के बहाने विरोध की आवाज को कुचलने की साजिश






नागरिक अधिकार कार्यकर्ता सीमा आजाद और उनके पति विश्व विजय को देशद्रोह और राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप मंे गैर कानूनी गतिविधि निवारण कानून (यूएपीए) के विभिन्न प्रावधानों के तहत इलाहाबाद की एक निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा देकर एक बार फिर इस बात की पुष्टि की है कि यह व्यवस्था जनतांत्रिक विरोध की हर आवाज को कुचलने पर आमादा है। आठ जून को उम्रकैद की सजा का आदेश जारी करते हुए इन दोनों लोगों पर 70 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। इन पर आरोप है कि ये दोनों भूतपूर्व छात्र नेता और सामाजिक कार्यकर्ता भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सदस्य हैं और ‘गैर कानूनी गतिविधियों’ में शामिल है।


सीमा आजाद और विश्व विजय को 6 फरवरी 2010 को उत्तर प्रदेश में स्पेशल टास्क फोर्स ने इलाहाबाद में उस समय गिरफ्तार किया जब ये लोग दिल्ली से विश्व पुस्तक मेला देखने के बाद लौट रहे थे। एसटीएफ का दावा था कि इनके पास से माओवादी साहित्य बरामद किया गया है और ये दोनों प्रतिबंधित माओवादी पार्टी से संबद्ध हैं। एसटीएफ ने इस मामले को उत्तर प्रदेश के आतंकवाद विरोधी स्क्वैड को हस्तांरित कर दिया।


सीमा आजाद द्वैमासिक पत्रिका ‘दस्तक’ की संपादक तथा पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) उत्तर प्रदेश के संगठन सचिव के बतौर नागरिक अधिकार आंदोलनों से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनके पति विश्व विजय छात्र आंदोलन और इंकलाबी छात्र मोर्चा के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। सीमा आजाद ने अपने लेखन व पत्रकारिता के जरिए और विश्व विजय ने अपनी राजनीतिक सक्रियता के जरिए पूर्वी उत्तर प्रदेश में मानवाधिकारों पर हो रहे दमन के खिलाफ लगातार आवाज उठायी। इन दोनों का कार्य क्षेत्र इलाहाबाद व कौशाम्बी जिले का कछारी क्षेत्र रहा है जहां माफिया, राजनेता व पुलिस की मिलीभगत से अवैध तरीके से बालू का खनन किया जा रहा है और इस प्रक्रिया में काले धन की कमाई के साथ-साथ मजदूरों का भीषण दमन और शोषण जारी है। इन दोनों राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने पुलिस-माफिया-राजनेता गठजोड़ के खिलाफ आवाज उठायी जिससे वे सत्ता की आंख की किरकिरी बन गए थे। ये दोनों युवा जिन गतिविधियों और क्रियाकलाप में लगे थे उन्हें न तो किसी भी तरीके से गैर कानूनी कहा जा सकता है और न उन्होंने कभी कोई ऐसा काम किया जो भारतीय संविधान द्वारा अपने नागरिकों को दिए गए अधिकारों के दायरे से बाहर हो। सीमा आजाद की पत्रिका ‘दस्तक’ ने उस गंगा एक्सप्रेस-वे योजना पर एक विस्तृत जांच की थी जिससे हजारों किसानों के उजड़ने का खतरा था। इसने आजमगढ़ के मुस्लिम युवकों की अंधाधंुध गिरफ्तारी और उत्पीड़न पर एक लंबी रपट प्रकाशित की थी। इन दोनों राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और अभी का फैसला पूरी तरह दुर्भावना से प्रेरित है और उन लोगों को सबक सिखाने के लिए है जो सरकारी तंत्र की मनमानी के खिलाफ आवाज उठाते हैं और उत्पीड़ित लोगों के पक्ष में खड़े होते हैं।


हम इस फैसले की घोर निंदा करते हैं और आम जनता से अपील करते हैं कि वह मामले की तह तक जाय और सरकार के इस जनविरोधी चेहरे को बेनकाब करे। हम अंग्रेजों द्वारा बनाए गए उस कानून को समाप्त करने की भी मांग करते हैं जिसके तहत आए दिन सामाजिक कार्यकर्ताओं को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और सालों-साल बगैर मुकदमा चलाए जेलों में रखा जाता है। यही स्थिति विनायक सेन, प्रशांत राही और अरुण पेरेरा की हुई। ऐसी ही हालत में भारत की जेलों में सैकड़ों हजारों युवकांे को ‘देशद्रोही’ करार देते हुए बंद रखा गया है। सीमा आजाद और विश्व विजय का मामला सभी जनतंत्रप्रेमी लोगों के लिए एक चुनौती है जिसका मुकाबला डट कर किया जाना चाहिए।

6 comments:

  1. ये तो न्याय व्यवस्था का मज़ाक़ है.. सिर्फ़ सीपीआई माओइस्ट का सदस्य होना ही उमरक़ैद लायक़ गुनाह है? यूनियन कार्बाइड केस में अर्जुन सिंह संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाए गए थे.. हज़ारों लोगों की ज़हरीली मौत मारने के गुनाहगार को भारत से तड़ीपार करने में उनकी क्या भूमिका थी वो जगज़ाहिर है.. और वो बरसों तक मंत्री पद पर पादते रहे.. और दो नौजवानों को सिर्फ़ इसलिए सज़ा कि वे आदिवासियों की लड़ाई के साथ हमदर्दी रखते हैं?

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  2. शर्मनाक ....निंदनीय ..

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  3. भारत की सभी अदालतें सरकारी दमन का ही अदालती रूप हैं। न्याय व्यवस्था ख़त्म हो चुकी है

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  4. Raja and Kalmadi has been released from the jail, so that those who write against the state policies should be kept in the jail for lifetime!!
    Court judgement can be downloaded from http://seemaazadvishwavijay.wordpress.com

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