Monday, February 22, 2010

साहस का क़द पांच फ़ुट दो इंच

साहस का क़द पांच फ़ुट दो इंच
दोस्तो, आज भी मन कल ही के प्रसंग पर ठहरा हुआ है. आंखों के सामने बार-बार सीमा आज़ाद का चेहरा घूम जाता है. कन्धों तक कटे उसके घुंघराले बालों से घिरा उसका गोल मुखड़ा, खिले-खिले दांतों वाली उजली मुस्कान, औसत से कुछ कम, लगभग पांच फ़ुट दो इंच का क़द और पूरी चाल-ढाल में कूट-कूट कर भरा साहस.
कहने को कोई कह सकता है कि बस, इतने-से बूते पर यह युवती इतने बड़े तन्त्र से लोहा लेने निकली है. लेकिन यही तो अपनी जनता के लिए काम करने वालों की फ़ितरत है. वे जानते हैं कि एक चिनगारी पूरे जंगल में आग लगा सकती है, दस हज़ार मील की यात्रा एक क़दम से शुरू होती है और दमन और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लड़ाई का आग़ाज़ कारागार की संकरी कोठरी से होता है जैसा कंस के सिलसिले में हुआ था और साहस क क़द नापा जाये तो वह लगभग पांच फ़ुट दो इंच बैठेगा. यक़ीन न आये तो संसार के कुछ बड़े-बड़े वीरों को देखें तो हम पायेंगे कि साहस और क़द-काठ का कोई ख़ास रिश्ता नहीं होता. शिवा जी, नेपोलियन, अकबर--सब छोटे क़द के योद्धा थे.
वैसे, सीमा और उसके साथियों ने जो बीड़ा उठाया है उसमें साहस और दृढ़ता की ख़ास ज़रूरत पड़ेगी. कारण यह कि दूसरी तरफ़ जो लोग हैं उन्हें किसी किस्म की दया-माया छू नहीं गयी. अब यही देखिए, जब से सरकार ने उदारीकरण और नयी आर्थिक नीतियां अपनायी हैं १ लाख ८० हज़ार किसान क़र्ज़ तले दब कर आत्महत्याएं कर चुके हैं और सत्ताधारियों के कान पर जूं भी नहीं रेंगी चाहे वे किसी भी रंग के हों, पूरे भगवा या फिर आधे. इसी बीच लाखों आदिवासियों को उनकी ज़मीनों से बेदखल करने की योजनाएं बनायी जा रही हैं और वे भी किसी फ़िरंगी हुकूमत द्वारा नहीं, बल्कि अपने ही लोगों द्वारा. आख़िर, पी चिदम्बरम और मनमोहन सिंह को कौन होगा जो विदेशी कहेगा. यह बात अलग है कि हमारे आदरणीय प्रधान मन्त्री इंग्लैण्ड जा कर हमारे भूतपूर्व आक़ाओं को यह सनद दे आये हैं कि अगर वे यानी अंग्रेज़ न होते तो हिन्दुस्तान कभी तरक़्क़ी न कर पाता. ऐसा बयान आज तक किसी पूर्व प्रधान मन्त्री ने नहीं दिया था. ऐसी हालत में यह सोचने कि बात है कि राजद्रोह की अपराधी सीमा आज़ाद है या प्रधान मन्त्री मनमोहन सिंह जैसे लोग ?
यह बात भी बहुत से लोग शायद नहीं जानते कि अनाज और दालों और चीनी की क़ीमतों में ताज़ा महंगाई हमारे इन्हीं भूरे अंग्रेज़ों की देन है. एक मिसाल काफ़ी होगी. कल मैं अनाज के एक बहुत बड़े आढ़तिये के पास बैठा हुआ था. उसने बताया कि मौजूदा गड़बड़ी के पीछे और कोई नहीं, अपने "राष्ट्रवादी कांग्रेसी" नेता शरद पवार हैं. जब से उन्होंने खाद्य मन्त्री का पद संभाला है अनाज और दूसरी जिंसों की क़ीमतें आसमान छूने लगी हैं. जब उत्तर भारत में गेहूं की कमी थी तब पंजाब में गेहूं मुर्गी चारे के लिए दिया जा रहा था, अच्छा गेहूं. चीनी का भी कुछ ऐसा ही हाल है.
हम सुनते आये हैं कि अंग्रेज़ झूठे अभाव पैदा करके अकाल की स्थिति ले आया करते थे. लेकिन अपने शरद पवार तो ख़ालिस हिन्दुस्तानी आदमी हैं. या हो सकता है कि वे उन काले साहबों में शामिल हों जिनके बारे मॆं भगत सिंह ने चेतावनी दी थी कि अंग्रेज़ों के जाने के बाद वे हम पर हुकूमत करने लगेंगे. क्या शरद पवार जिनकी कई चीनी मिलें हैं राज द्रोह के घेरे में नहीं आते ? जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जाते हैं, जटिलता बढ़ती जाती है.
तो दोस्तो, यह सोचिए कि जो लोग इन मगर-मच्छों पर लगाम कसने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें मगर-मच्छों की यह जमात अगर राज द्रोही क़रार दे रही है तो यह स्वाभाविक ही है. वे सीमा आज़ाद और उन जैसे सैकड़ों जन-प्रेमियों के लिए ज़ंजीरें और बेड़ियों का ही बन्दोबस्त करेंगे. यह तो लडाई है एक तरफ़ जनता और सीमा आज़ाद जैसे लोग हैं, दूसरी ओर पी चिदम्बरम, मनमोहन सिंह और शरद पवार जैसे जन-द्रोही. याद रखिये कवि केदार की पंक्तियां --
कभी नहीं जनता मरती है, शासक ही मरते आये हैं...

4 comments:

  1. बेहद तल्ख़, लेकिन सच्चा बयान ! आपके उस साहस को मेरा सलाम, जिसका कद पांच फुट दो इंच है !!
    साधू-साधु !!!
    सप्रीत--आ.

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  2. आपका अंदाज़ अच्छा लगा...
    सलाम...हमारा भी...

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  3. काश ऐसे कद और कदम और उठे और आगे बढ़ें...जनता यह जान /समझ जाये कि जनता नहीं मरती शासक मरते हैं तो शायद आज स्थिति कुछ और हो जाएगी .

    [भगत सिंह ने जो चेतावनी दी थी बहुत हद्द तक सही होती ही नज़र आ रही है.]

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  4. 'भगत सिंह ने चेतावनी दी थी कि अंग्रेज़ों के जाने के बाद वे (काले अंग्रेज़) हम पर हुकूमत करने लगेंगे.'

    क्या इस एक बयान के लिये आपको राजद्रोही नहीं क़रार किया जा सकता? यह व्यवस्था विरोधी बयान है नीलाभ जी…और इसे बार-बार दुहराने के लिये सीमा के साथ हम सब की बारी आने वाली है।

    सवाल यह है कि क्या हम तैयार हैं?

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