Sunday, February 22, 2015

जैज़ संगीत पर एक लम्बा आलेख



चट्टानी जीवन का संगीत 

चौदहवीं कड़ी



17.
जब मैं ने हौक को सुना मैंने लम्बे राग बजाना सीखा
-- माइल्स डेविस 

कोलमैन हॉकिन्स (1904-69) से पहले हालांकि कुछ लोग टेनर सैक्सोफ़ोन बजाते थे, लेकिन इस वाद्य को जैज़ के वाद्यों की पहली पांतमें जगह नहीं मिली थी. कोलमैन हौकिन्स ने ही सबसे पहले इस वाद्य पर महारत हासिल करके उसे जैज़ की क़तारों में शामिल कराया. इसीलिए उनके साथी सैक्सोफ़ोन वादक लेस्टर यंग ने -- जिन्हें सब "प्रेज़िडेन्ट" (राष्ट्रपति) का छोटा रूप "प्रेज़" कह कर बुलाते थे -- 1959 में "द जैज़ रिव्यू" को दिये गये एक इन्टर्व्यू में कहा -- "जहां तक मेरा सवाल है, मेरे ख़याल में कोलमैन हौकिन्स ही राष्ट्रपति थे पहले, ठीक ? रहा मैं, तो मैं दूसरा था." आगे चल कर सुप्रसिद्ध सैक्सोफ़ोन वादक माइल्स डेविस ने कहा -- "जब मैं ने हौक को सुना मैंने लम्बे राग बजाना सीखा."
कोलमैन हौकिन्स हालांकि मिसूरी में पैदा हुए थे, पर उनकी पढ़ाई-लिखाई शिकागो और कैनसास में हुई. शुरू-शुरू में वे पियानो और चेलो बजाते थे, लेकिन जल्दी ही लगभग नौ-दस साल की उमर से वे सैक्सोफ़ोन बजाने लगे. चौदह तक पहुंचते-पहुंचते वे पूर्वी कैनसास में जैज़ मण्डलियों में बजाने लगे थे. हौकिन्स को उनका पहला बड़ा मौक़ा मैमी स्मिथ के जैज़ हाउण्ड्स नामक बैण्ड में मिला और वे 1921 से 23 तक उसी बैण्ड के साथ रहे और फिर न्यू यौर्क चले आये. यहां आ कर हौकिन्स फ़्लेचर हेण्डर्सन की मण्डली  में शामिल हो गये और अगले दस साल तक उसी के साथ रहे. कभी-कभीए वे क्लैरिनेट और बेस सैक्सोफ़ोन भी बजाते. हौकिन्स के जीवन में सब से बड़ा मोड़ तब आया जब लूई आर्मस्ट्रौंग 1924-25 के आस-पास न्यू यौर्क आ कर फ़्लेचर हेण्डर्सन के बैण्ड से जुड़ गये. ज़ाहिर है, दो बड़े संगीतकारों का यह मेल नयी दिशाएं खोलने वाला था और इस दौरान कोलमैन हौकिन्स की वादन शैली में ज़बर्दस्त बदलाव आया. ख़ुद एक प्रतिभाशाली संगीतकार होने के अलावा हौकिन्स में दूसरी प्रतिभाओं को पहचानने का गुण भी था. समय-समय पर आर्मस्ट्रौंग, ड्यूक एलिंग्टन, जैंगो राइनहार्ट और बेनी कार्टर जैसे वादकों के साथ जैज़ बजाने के साथ-साथ उन्होंने लेस्टर यंग, माइल्स डेविस, थेलोनियस मंक और मैक्स रोच जैसे युवा जैज़ संगीतकारों को प्रेरित-प्रभावित भी किया. 1934-39 के बीच लम्बे अर्से तक वे  अमरीका के बाहर यूरोप का भी दौरा करते रहे. 1939 में अमरीका लौटने पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध रिकौर्ड "बौडी ऐण्ड सोल" (देह और आत्मा) जारी किया जो एक मील का पत्थर बन गया. 

http://youtu.be/zUFg6HvljDE  ("बौडी ऐण्ड सोल" )

१९४० के आस-पास उन्होंने जैज़ की ही एक शैली "स्विंग" और फिर "बीबौप" में जम कर प्रयोग किये. हालांकि कुछ आगे चल कर लेस्टर यंग और चार्ली पार्कर जिस तरह सूझ और उपज के साथ बजाने लगे थे उससे लगता था कि कोलमैन हौकिन्स पुराने पड़ गये हैं. मगर यह हौकिन्स का कमाल था कि वे नयी-से-नयी शैली को अपनाने के लिए तैयार रहते थे और जल्दी ही उन्होंने डिज़ी गिलिस्पी के साथ "स्विंग" और "बीबौप" का जादू जगाना शुरू कर दिया था. आज अगर जैज़ में सैक्सोफ़ोने एक अनिवार्य वाद्य बन चुका है तो इसके पीछे कोलमैन हौकिन्स की बहुत बड़ी भूमिका है.
सन तीस के दशक में एक ओर तो जैज़ के क्षेत्र में नयी-नयी प्रतिभाएँ उभर कर सामने आ रही थीं, दूसरी ओर इन नयी प्रतिभाओं के बीच अपनी सहयोग की एक अद्भुत भावना भी पनप रही थी। कूटी विलियम्स, जॉनी हॉजेस, बैनी कार्टर, रे नैंस, लॉरेन्स ब्राउन -- ये कुछ प्रमुख संगीतकार थे, जो अपने-अपने फ़न के माहिर होने के साथ एक-दूसरे से मिल कर संगीत सभाओं में भाग लिया करते थे। उन दिनों लुई आर्मस्ट्रौंग और कोलमैन हॉकिन्स के अलावा जो संगीतकार संगीत-प्रेमियों को अपनी मौलिक प्रतिभा से मुग्ध कर रहा था -- उसका नाम है ड्यूक एलिंग्टन। उसी ज़माने का एक किस्सा याद करते हुए कोलमैन हाकिन्स ने बताया कि एक दिन ड्यूक एलिंग्टन आये और कहने लगे कि मैं चाहता हूँ तुम मेरे साथ मिल कर एक रिकॉर्ड तैयार करो। मैं पियानो बजाऊँगा, तुम सैक्सोफ़ोन सँभालो। धुन मैं तैयार करूँगा। कोलमैन हॉकिन्स ने फ़ौरन हामी भर दी लेकिन इन दोनों संगीतकारों को मिल-बैठने में बीस बरस लग गये। फिर सन 1962 में एक इन्टरव्र्यू के दौरान कोलमैन हॉकिन्स ने इस घटना का ज़िक्र किया तो इन दोनों के इकट्ठा होने की नौबत आयी। और तब दोनों ने मिल कर जो रिकॉर्ड तैयार किया -- लिम्बो जैज़  -- उसने जैज़ की दुनिया में एकबारगी तहलका मचा दिया।

http://youtu.be/rN6UlJEXySY (लिम्बो जैज़)

लेकिन यह काफ़ी समय बाद की बात है। सन तीस के दशक में तो ड्यूक एलिंग्टन ख़ुद अपनी मण्डली को जमाने में जुटे हुए थे और कोलमैन हॉकिन्स अकेले दम अपनी प्रतिभा का सिक्का मनवाने की कोशिश कर रहे थे। 1933 में ही उन्होंने कुछ शानदार मिसालें कायम कर दी थीं जिनमें से ‘होकस पोकस’ शीर्षक से की गयी रचना बहुत मशहूर हुई।

http://youtu.be/DCAWyZk8lNY (होकस पोकस)

वैसे, बहुत-से लोग सन 30 के दशक के मध्य से ले कर 40 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों तक के समय को ‘स्विंग म्यूज़िक’ के युग के नाम से याद करते हैं। लेकिन ‘स्विंग म्यूज़िक का युग’ दरअसल कोई मायने नहीं रखता। इस दौर में बस हुआ यह कि संगीत का मोर्चा कुछ देर के लिए बड़े-बड़े बैण्डों ने सँभाल लिया। इनमें से ज़्यादातर बैण्ड गोरे संगीतकारों के थे और प्रचार भी इनका ज़्यादा हुआ, जैसे बेनी गुडमैन का, जिनका रिकॉर्ड ‘स्टॉम्पिंग ऐट द सैवॉय’ एक ज़माने में बहुत लोकप्रिय हुआ था। मगर बहत-से दूसरे बैण्ड ख़ालिस तौर पर नीग्रो संगीतकारों के थे, जिनमें काउण्ट बेसी का ऑकैस्ट्रा और ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड काफ़ी मशहूर हुए।

18.

 बैण्ड सचमुच मस्ती में झूम सकता है, जब आप इस तरह सबका साथ निभा सकें 
मानो आप मक्खन को छुरी से काट रहे हों.
-- काउण्ट बेसी

इस बीच जैज़ का दायरा न्यू ऑर्लीन्स और शिकागो से बढ़ कर अमरीका के अन्य शहरों तक फैल गया था। काउण्ट बेसी अमरीका के कैन्सस सिटी नामक नगर की देन थे। काउण्ट बेसी को कैन्सस सिटी से निकल कर अपनी प्रतिभा का चमत्कार दिखाने का मौका कब मिला, इसका जैज़ संगीत के इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है, न ही इस बात का ज़िक्र है कि काउण्ट बेसी ने जैज़ के एक और मशहूर संगीतकार बेनी कार्टर की संगत कब शुरू की, मगर इतना तय है कि सन 40-41 के आस-पास ये दोनों कलाकार मिल कर जैज़ संगीत में नयी धारा बहाने में मशग़ूल थे। शायद इसी शुरू की संगत का असर था कि वर्षों बाद जब सन 1961 में बेनी कार्टर ने काउण्ट बेसी के साथ मिल कर धुनों के संकलन का एक मशहूर रिकॉर्ड तैयार किया तो उसका नाम काउण्ट बेसी के अपने शहर के नाम पर रखा -- ‘कैन्सस सिटी सुईट’।

http://youtu.be/HtzbK_ByFG8 (कैन्सस सिटी के बारे में)
http://youtu.be/3Pgmb0Y9nGc (कैन्सस सिटी सेवेन) 

अपने शुरू के दिनों में काउण्ट बेसी कैन्सस सिटी के मशहूर रेनो क्लब में पियानो बजाया करते थे और यह अकारण नहीं कि इस रिकार्ड की एक धुन का नाम है -- ‘राम्पिन ऐट द रेनो’ -- यानी रेनो क्लब की धमा चौकड़ी।

http://youtu.be/GGomvd__bqU  (राम्पिन ऐट द रेनो)

बात यह थी कि न्यू और्लीन्ज़ और शिकागो से होते हुए जैज़ संगीत की शाखाएं न्यू यौर्क, न्यू जर्सी और दूसरी बहुत-सी छोटी-बड़ी जगहों पर भी फैलने लगी थीं और जब कैनसस सिटी के दरवाज़े मनोरंजन की दुनिया के लिए खोल दिये गये तो जुआघरों, शराबख़ानों और वेश्यालयों के साथ-साथ क्लबों के लिए भी जगह बन गयी और ऐसी हालत में उत्तर-दक्षिण-पूरब-पच्छिम से संगीत-मण्डलियां, बड़े-बड़े बैण्ड और संगीतकार आ कर कैनसस सिटी में इकट्ठा होने लगे. काउण्ट बेसी का नाम  इन में प्रमुख था.
विलियम जेम्स "काउण्ट" बेसी का जन्म न्यू जर्सी के रेड बैंक नामक गांव में हुआ था. माता-पिता, दोनों संगीत-प्रेमी थे, मां पियानो बजाती थीं और उन्हीं से काउण्ट बेसी को पियानो के शुरुआती सबक भी मिले. स्कूल में बेसी पढ़ने-लिखने की बजाय यात्राओं के सपने लेते. उन पर उन घुमन्तू मेलों का असर था जो उनके कस्बे में आया करते. हाई स्कूल की दहलीज़ लांघने के बाद काउण्ट बेसी रेड बैंक के पैलेस थियेटर में काफी समय गुज़ारते जहां छिट्पुट काम करने के एवज़ में उन्हें मुफ़्त में कार्यक्रम देखने-सुनने को मिल जाते. उन्होंने जल्दी ही मंच पर चल रहे कार्यक्रमों और मूक फ़िल्मों के साथ बजने वाले उपयुक्त संगीत को रचना सीख लिया. हालांकि पियानो बजाने में उन्हें स्वाभाविक रूप से महारत हासिल थी, बेसी ने ड्रम बजाना पसन्द किया, लेकिन अपने ही कस्बे में रहने वाले सनी ग्रियर की प्रतिभा से हतोत्साह हो कर, जो आगे चल कर ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड में शामिल हुए, काउण्ट बेसी ने पन्द्रह साल की उमर में पूरी तरह पियानो पर ही ध्यान लगाया. फिर बेसी और ग्रियर वहीं रेड बैंक में अलग-अलग कार्यक्रमों में साथ-साथ पियानो और ड्रम बजाते रहे, जब तक कि ग्रियर अपने व्यावसायिक जीवन के सिलसिले में रेड बैंक से चले नहीं गये. इसके बाद कुछ साल वहीं अपने पर तोलने के बाद 1920 के आस-पास काउण्ट बेसी हार्लेम चले गये, हार्लेम में, जो जैज़ संगीत का गढ़ बनता जा रहा था,  बेसी अल्हम्ब्रा थियेटर के पास रहते थे और जैज़ संगीतकारों से अक्सर उनका मिलना-जुलना होता. सनी ग्रियर भी वहीं थे. धीरे-धीरे सोलह वर्षीय बेसी संगीत की बारीकियां सीखने लगे और सीखने का इससे बेहतर तरीका और क्या होता कि जो भी मौका मिले उसे थाम लो, बीस साल की उमर तक वे बैण्डों के साथ और एकल रूप में भी कैन्सस सिटी, सेंट लुई, न्यू और्लीन्ज़ और शिकागो तक दौरे कर आये थे. इस विविध रूपी काम में उन्हें जो अनुभव मिल रहा था वह आगे चल कर उनके बहुत काम आने वाला था.  1925 में हार्लेम लौट कर बेसी को पहला स्थायी काम लेरौय’ज़ नामक जगह में मिला जो अपने पियानो वादकों के लिए जानी जाती थी. यहीं बेसी की मुलाकात फ़ैट्स वौलर से हुई और उन्होंने और्गन बजाना भी सीख लिया, जिसे वे बाद में कैन्सस सिटी के एबलोन थियेटर और फिर ड्यूक एलिंग्टन के बैण्ड में भी बजाने वाले थे.

http://youtu.be/iBDMTT_GVeU?list=PLwF7H2q48PPMT2FuxFczAapwlJbE4yjWv (वन ओ क्लौक जम्प)


1928 में बेसी टुल्सा में थे जब उन्होंने वौल्टर पेज और उनके बैण्ड को सुना. कुछ महीनों के बाद उन्हें भी उस बैण्ड में शामिल होने का मौका मिला और उनके वादन को सुन कर पहली बार लोग उन्हें "काउण्ट" कहने लगे. अगले ही साल बेसी कैन्सस सिटी चले आये और बेनी मोटेन के बैण्ड मे शामिल हो गये. मोटेन की हसरत ड्यूक एलिंग्टन या फ़्लेचर हेण्डरसन जैसा बैण्ड कायम करने की थी. मोटेन थे भी काफी प्रतिष्ठित और 1935 तक बेसी और मोटेन का साथ तमाम तरह के उतार-चढ़ाव के बीच बना रहा. 1935 में मोटेन की मौत के बाद, बेसी ने एक नया बैण्ड कायम किया, जिसमें मोटेन के कई सद्स्य शामिल थे.  1936 के अन्त में काउण्ट बेसी कैन्सस सिटी से शिकागो आ गये और पहली बार उनके बैण्ड "काउण्ट बेसी ऐण्ड हिज़ बैरन्स औफ़ रिदम" ने जैज़ संगीत की दुनिया में अपना सिक्का मनवाना शुरू कर दिया. शुरू ही से बेसी और उनका बैण्ड अपनी लय-ताल के लिए जाना जाता था. बेसी ने एक और नया प्रयोग यह किया कि वे दो टेनर सैक्सोफ़ोन वादकों को औल्टो वादकों के अगल-बगल रखने लगे. इससे जो होड़ और मुकाबले का समां बंधने लगा उसने दूसरे बैण्डों को भी यह हिकमत आज़माने की प्रेरणा दी. इस बीच उनके संगीत के रिकौर्ड भी बनने लगे थे. 

http://youtu.be/Rxg_kA6YaYk?list=PLwF7H2q48PPMT2FuxFczAapwlJbE4yjWv (स्विंगिंग द ब्लूज़ 1938)


एक बार काउण्ट बेसी ने अपना सिक्का जमा दिया तो फिर गाड़ी चल निकली. शहरों के नाम एक के बाद एक गुज़रने लगे. न्यू यौर्क में बेसी अनेक ब्लूज़ गायकों के सम्पर्क में आये बिली हौलिडे, जिमी रशिंग, बिग जो टर्नर, हेलेन ह्यूम्ज़ और जो विलियम्स जैसी प्रतिभाएं. यही नहीं, बेसी ने कुछ जाने-माने हौलिवुड सितारों के साथ भी कार्यक्रम दिये. इसी के साथ बेसी का सम्बन्ध फ़िल्मों से भी हुआ. यह सिलसिला 1958 तक चलता रहा जब काउण्ट बेसी और उनका बैंड अपने पहले यूरोपीय दौरे पर गया. दौरा कामयाब रहा और इसके बाद कार्यक्र्मों की गिनती न रही. अमरीका के पूर्वी तट पर न्यू यौर्क से ले कर पश्चिमी तट पर हौलिवुड और लास वेगास तक -- काउण्ट बेसी संगीत सभाओं, फ़िल्मों और टेलिविजन के कार्यक्रमों में भाग लेते रहे और बड़े-बड़े गायकों के संगतकार बने रहे. यह सिलसिला 1984 में काउण्ट बेसी के देहान्त तक चलता रहा. 
जैज़ संगीत में यह कहना मुश्किल है कि कौन-सी चीज़ अहम है -- गाना या बजाना. एकदम शुरुआती दौर की गुहारों और कनस्तरों और बैंजो जैसे वाद्यों  से ले कर रैग टाइम, ब्लूज़, स्विंग और हिप-हौप की मंज़िलें तय करते हुए जैज़ गायन और जैज़ के वाद्यों ने कई पड़ाव देखे हैं, उसमें कई क़िस्म की शैलियां और वाद्य जुड़े हैं. आज जब जैज़ संगीत की बात होती है तो आम लोगों के मन में या तो ड्रम बजाते ड्रमवादक की छवि उभरती है या सैक्सोफ़ोन पर हिलोरें और झटके लेते सैक्सोफ़ोनवादक की. अक्सर लोग उस वाद्य को नज़रन्दाज़ कर देते हैं जो जैज़ के सारे वाद्यों -- ड्रम, सैक्सोफ़ोन, क्लैरिनेट, ट्रौम्बोन, ट्रम्पेट, गिटार, बेस गिटार और बैंजो आदि -- को जोड़े रहता है, वैसे ही जैसे धागा सारे मनकों को माला की शक्ल में पिरोये रखता है. और यह वाद्य है पियानो जो शायद ड्रम (या उसके बहुत ही कच्चे रूप कनस्तर) और बैंजो के बाद पहला वाद्य था जो जैज़ संगीत के साथ जुड़ा था. दरअसल, अगर संगीत कुल मिला कर सुर-ताल का मामला है तो सुर-ताल के बीच सामंजस्य कायम करने का काम जो वाद्य करता है, वह पियानो है. काउण्ट बेसी की सबसे बड़ी ख़ूबी यही थी कि वे अपने बैण्ड की रीढ़ बने रहे जो अक्सर नज़र नहीं आती, लेकिन ढांचे को खड़ा रखने की भूमिका निभाती है. यही वजह है कि उन्होंने अपने लगभग अस्सी वर्ष के जीवन में न केवल जैज़ के बेगिनती गायकों के साथ संगत की, बल्कि अनेक वादकों को भी पियानो के पीछे बैठे-बैठे वह फलक मुहैया कराया, जिस पर वे अपने सुरों की कारीगरी दिखा सकें.  
काउण्ट बेसी ने सुनने वालों की कई पीढ़ियों को बड़े बैण्ड के संगीत से परिचित कराया. वे बहुत-से जैज़ संगीतकारों के विपरीत विनम्र और किसी हद तक संकोची कलाकार थे, तनावरहित, मज़ा लेने वाले और हमेशा अपने संगीत लो ले कर उत्साह से भरे हुए. उन्होंने लिखा है ,"मेरे ख़याल से बैण्ड सचमुच मस्ती में झूम सकता है अगर वह बिना झटकों के झूम सके, जब आप इस तरह अपने वाद्य को बजाते हुए सबका साथ निभा सकें मानो आप मक्खन को छुरी से काट रहे हों."

http://youtu.be/gMko51An5JU (काउण्ट बेसी -- पैरिस में -- 1981)

आज जब काउण्ट बेसी की फ़ेहरिस्त को हम देखते हैं तो हैरत होती है. बिली हौलिडे से ले कर जो जोन्स, जिमी रशिंग, एला फ़िट्ज़जेरल्ड, फ़्रैंक सिनाट्रा, सैमी डेविस जूनियर, बिंग क्रौसबी और सारा वौहन जैसे नामी गायकों के साथ काउण्ट बेसी का लम्बा सम्बन्ध रहा और यह संगीत सभाओं से लेकर रिकौर्ड बनाने वाली कम्पनियों और फ़िल्मों औत टेलिविजन तक हर क़िस्म की संगत का रहा. यही हाल वादकों का भी था. बस उनकी सबसे बड़ी निराशा यह रही कि वे कभी लुई आर्मस्ट्रौंग की संगत नहीं कर सके.   
इस विनम्र कलाकार को सबसे बड़ा ख़िराज उनके देहान्त के बाद दिया गया. रेड बैंक में एक थियेटर हौल और एक मैदान को तो उनका नाम दिया ही गया, 2009 में न्यू यौर्क की एजकोम्ब ऐवेन्यू और 160वीं सड़क का नाम बदल कर दो महान संगीतकारों पर रखा गया. एजकोम्ब ऐवेन्यू को पौल रोबसन बूलेवार और 160वीं सड़क का नाम काउण्ट बेसी प्लेस रखा गया.

(जारी)

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