डा. शिवमंगल सिद्धांतकर न सिर्फ़ प्रतिबद्ध कवि हैं बल्कि शब्द को कर्म में रूपान्तरित करने वाले संस्कृतिकर्मी भी. सीमा आज़ाद और विश्वविजय के पक्ष में आवाज़ बुलन्द करने वालों में वे अग्रणी हैं. यहां उनकी ताज़ा टिप्पणी दी जा रही है जो आपातकाल विरोधी दिवस 26 जून को जारी की गयी थी
अदालती आतंकवाद
कोई एक दल या संगठन या व्यक्ति अन्यायपूर्ण सरकार और सत्ता के खिलाफ यदि संघर्ष छेड़ता है तो वह संघर्ष देश और दुनिया भर में चल रहे संघर्षों का एक हिस्सा होता है और जिस दल, संगठन या व्यक्ति ने संघर्ष छेड़ा होता है वह किसी एक दल या संगठन या व्यक्ति का संघर्ष नहीं रह जाता बल्कि इस प्रकार के सभी तत्त्वों का संघर्ष बन जाता है। सत्ता विरोधी किसी दल या संगठन या व्यक्ति को यदि प्रतिबंधित किया जाता है तो वह इस तरह के अन्य तत्त्वों पर भी प्रतिबंध समझ लिया जाता है। ऐसी हालत में प्रतिरोधकारी और विद्रोहकारी एकता जरूरी हो जाती है। इसी आधार पर हमारा यह कार्यभार बन जाता है कि हम सीमा आजाद और विश्व विजय के आजीवन कारावास को खारिज कराने के लिए कानूनी रास्ते तो अपनायंे ही, आन्दोलन के रास्ते पर भी बढंे़, जो स्थानीय राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय धरातल पर संभव किया जा सके।
अंगे्रजी राज से अब तक राज्य विरोधी क्रांतिकारी शक्तियों की अदालती हत्या का एक लंबा सिलसिला रहा है और आजीवन कारावास से भी क्रांतिकारियों को गुजरना पड़ा है जिसके विस्तार में जाने की बजाय हमारा यह मानना है कि सीमा आजाद और विश्व विजय को आजीवन कारावास दिया जाना अदालती आतंकवाद है। इस अदालती आतंकवाद के खिलाफ राज्य बंदी रिहाई अभियान चलाना जरूरी तो है लेकिन बदले हुए समय में इस रिहाई अभियान में मौजूदा राज्य सत्ता और सरकार के विरोधी राजनीतिक दलों का एकजुट होकर संघर्ष चलाना जरूरी हो गया है; क्योंकि घोषित आपाकाल से मौजूदा अघोषित आपातकाल ज्यादा क्रूर और खतरनाक बनने जा रहा है इसलिए कि साम्राज्यवादी भारत सरकार बकौल प्रधानमंत्राी कड़े फैसले लेने जा रही है; जाहिर है जिससे मेहनतकश, सर्वहारा, नव सर्वहारा, अर्द्ध सर्वहारा को बदहाली झेलने पड़ेगी।
इस अदालती आतंकवाद के खिलाफ स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय धरातल पर अभियान चलाना बहुत जरूरी हो गया है और इसमें सूचना तकनीक के विभिन्न औजारों का इस्तेमाल तो जरूरी है ही; समाज के निचले पायदान से ऊपर के पायदान तक संघर्षशील जनसेवक ईकाइयों का निर्माण भी जरूरी हो गया है जो परिवर्तनकारी नव सर्वहारा औजार से लैस हो न कि नागरिक अधिकार आंदोलन तक ही सीमित रहे; क्योंकि हमारा मानना यह है कि सीमा आजाद और विश्व विजय को आजीवन कारावास की सजा सरकार और सत्ता के खिलाफ युद्ध के ‘अपराध’ में सुनाई गई है। ऐसे हालात में यह सजा राजनीतिक बन जाती है इसलिए इसके खिलाफ संघर्ष भी नई क्रांतिकारी राजनीतिक शक्तियों द्वारा एकताबद्ध होकर चलाना होगा।
भूमाफिया, राजनेता और पुलिस और कौशाम्बी जिले के जन प्रतिनिधियों के खिलाफ भी आंदोलन जरूरी है जहां यह सब हो रहा है। क्रांतिकारियों पर तो सदा आपातकाल रहा है 26 जून 1975 को शासक वर्ग के विरोध पक्ष पर भी आपातकाल लग गया था।
इन्हीं शब्दों के साथ 26 तारीख को आपातकाल विरोधी दिवस मनाये जाने के हम साथ हैं और सीमा आजाद तथा विश्व विजय को सजामुक्त कराने की लड़ाई के लिए हमारे पास भारतीय जनसंसद और दूसरे बहुतेरे जो सांगठनिक औजार हैं उन्हें शामिल करने के लिए तैयार हैं। इस सिलसिले में स्थानीय राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय धरातल पर अपने सांगठनिक औजारों का इस्तेमाल करने का हम साझा संकल्प करते है।
-शिवमंगल सिद्धांतकर
महासचिव: सी. पी. आई. एम. एल. न्यू प्रोलेतारियन
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