Tuesday, October 4, 2011

लन्दन डायरी



दोस्तो,
लन्दन डायरी की तीसरी और अन्तिम क़िस्त पेश है । पूरी कविता के बाद फ़ुटनोट ज़रूर देख लीजियेगा। इसके बाद एक नयी पेशकश।


लन्दन डायरी


8
मैं जानता हूँ
अब गाने के लिए
स्वर साधते ही
मेरा कण्ठ भरभरा आता है
ख़ामोशी रेंगती है दिमाग़ पर
जैसे निर्जन प्राचीरों पर जहरीली बेल
मैं अपनी ही छाया से कतराता हुआ
अँधेरे गलियारों में
बीते हुए सूर्यों के बारे में
सोचता हुआ
दुबका फिरता हूँ

गर्मियाँ फिर बीत रही हैं
जा रही हैं। धीरे-धीरे

गर्मियाँ फिर बीत रही हैं
फिर से बादल घिरने लगे हैं

रंगों को खुले हाथ छितराते हुए
आकाश फूट पड़ता है
संगीत में
यहाँ एक अजनबी देश में
दूसरे शहर में
अनजान या उदासीन लोगों के बीच
सिर्फ़ उदासी बच रहती है
किसी राग की तरह
ख़ामोशी पर तिरती हुई
अनन्त इकाई की तरह
गीत की धुन में
सदा उपस्थित सुर की तरह
आह, मेरे जीवन के ग्रीष्म
तुम भी तो गुज़रते जा रहे हो
नष्ट होते आवेगों के पागलपन में
थके हुए एहसासों के शून्य में
साथी-संगियों की विफल तलाश में

ज़ाया होते हुए एक अनजाने देश में
जिसके तरीक़े अलग हैं
जिसके लोग अलग हैं
9
घूरता है
कोरा पन्ना
कोरे दिमाग़ को

10
स्मृति के आकाश पर
अब भी
एकाध भटका हुआ बवण्डर
मँडराता है

याद के पेड़ पर
कुछ पत्तियाँ
अब भी मौजूद हैं
जिन्हें तेज-से-तेज आँधी भी
झकझोर कर उड़ा नहीं पायी
11
यहाँ, इस सर्द शहर की
अनजान सड़कों पर भटकता हुआ
याद करता हूँ मैं
उन रातों को,
दूसरे शहर की,
जब तुम्हारी आँखों में
मैं देखता था ब्रह्माण्ड

इस विदेशी आकाश के नीचे
भटकता हुआ
मैं याद करता हूँ
वह समय
जो तुम्हारे पहलू में बिताया मैंने

तुम्हारी देह पर
अपनी उपस्थिति अंकित करते हुए
तुम्हें एक औज़ार की तरह
गढ़ते हुए
एक खिड़की की तरह
खोलते हुए
अपने हाथों में महसूस करते हुए
तुम्हारे हाथों की गर्मी
और अपनी आँखों में
तुम्हारी पुतलियों से छन कर आता हुआ
विश्वास

12
मैं जानता हूँ मैं तुम्हारा विश्वास खो चुका हूँ,
तुम अब मुझे प्यार नहीं करतीं, तुम,
जो मुझे प्यार करती थीं, जैसे कभी
किसी और ने नहीं किया था,

हम एक पथरीले तूफ़ानी किनारे पर
मिले थे, टकराने को बढ़े आते दो
सितारों की तरह, सुख की ऊर्जा में
फूटते हुए, झुलसाते हुए एक-दूसरे
को प्यार की विभोरता के विस्फोट से,

लेकिन अब वह सब बीत चुका है
और मैं लन्दन शहर की इस
भूल-भूलैयाँ में भटकता हूँ
अन्तरिक्ष के अनन्त शून्य में
उड़ते-फिरते किसी नक्षत्र की तरह

13
हमारा रिश्ता वह सड़क है
जिसका नक्शे में कोई निशान नहीं
हमारा प्यार वह मैदान है
जहाँ से कोई रास्ता नहीं फूटता
हमारे एहसास चुभते हैं हमें
कीलों की तरह
हम कौन है ? मशीनी इन्सान
या बीसवीं सदी के आख़िरी दशक के लोग ?

14
हवाओं में नश्तर-सी धार है
आदमी-आदमी के बीच वही दरार है

15
मैं, जो अपने शहर से दूर, अपने लोगों से दूर
यहाँ एक अनजानी ज़मीन पर चला आया हूँ
मगर ज़िन्दगी खुलती है
हर रोज़
मेरे सामने
पंखुडि़यों की तरह खुलते हैं दिन

आह! ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है
पत्तियों को थरथराती हुई हवा
आकाश पर तनी नीली मख़मल की चादर
पेड़ों की फुनगियों पर
पतंग की तरह अटकी हुई धूप
ज़िन्दा होने का एहसास
कितना ख़ूबसूरत है यह सब कुछ
यहाँ के लोग नहीं तो न सही
यह सारी दुनिया तो मेरी परिचित है
यह हवा, यह घास, यह पेड़
ये हाथों की तरह हिलती हुई पत्तियाँ

16
जितनी बार
वे उठाते हैं दीवार
उतनी बार
दीवारें गिराने वाले
पैदा हो जाते हैं

दीवारें खड़ी करने वालों से
कहीं ज़्यादा हैं
दीवारें गिराने वाले

17.
आओ, मेरे पास आओ, मेरे दोस्तो
ताक़त और गर्मी से भरे अपने हाथ
मेरे हाथों में दे दो
तुम कोई भी हो
किसी भी रंग के
काले, भूरे, पीले, गोरे
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
हमारी लड़ाई गोरे रंग से नहीं
गोरे साम्राज्यवाद से है दोस्तो
जिसके लिए
वेल्स की कोयला खदान में काम करता है पैडी
स्वराज पाल से ज़्यादा ख़तरनाक है
आओ, मेरे पास आओ, मेरे दोस्तो
चमकते हुए फ़िकरों का सरमाया नहीं है
मेरे पास
सुबह की ओस की तरह
ताज़े हैं मेरे शब्द

18
आशा चमकती है
जैसे माँओं की आँखों में
झिलमिलाते आँसुओं की रोशनी

19
बढ़ाते जा रहे हैं हाथ अपने ज़ुल्म के साये
मिटाते जा रहे हैं ज़िन्दगी को ज़ुल्म के साये
लगी है चोट दिल पर और भी चोटें
लगाते जा रहे हैं ज़ुल्म के साये
जिस्म बिखरे हैं सड़क पर
बम बरसते हैं सड़क पर
ख़ून खिलता है सड़क पर
यह सड़क बेरूत से फैली हुई है
दूर सल्वादोर तक
ज़िन्दगी औ’ मौत की जो कशमकश है
उस लड़ाई के कठिनतम छोर तक

20
झर झर झर
झर रहे हैं पत्ते
सुनहरी फुहार में
शरत का अभिषेक करते हुए
गिन्नियों की तरह झरते हुए
उतर रहे हैं वृक्षों के वस्त्र, पल-पल
स्ट्रिपटीज़ करती हुई नर्तकी की तरह
अनावृत हो रही है पृथ्वी
शर्म से पीली और फिर सुर्ख़ होती हुई
उजागर हो रही है एक नयी सुन्दरता
प्रकट हो रही है वृक्षों की वस्त्रहीन देह
हेमन्त के अभिसार के लिए
वसन्त की सम्भावनाओं को
अपने भीतर छिपाये

21.
चाँदनी में भीगी हुई सड़क की तरह
फैली है आकाश-गंगा मेरे सामने

22.
पता नहीं
मेरे हाथ
और होंट
क्या जानकारी
देते हैं तुम्हें
और मेरा हृदय
तुम देख नहीं सकतीं

23.
अपने मकान का छत्तीसवाँ दरवाज़ा खोल कर
मैं उतर आया हूँ शरीर के उत्सव में
नफ़रत और प्यार के फूलों से सजा हुआ
विश्वासघात - आती है आवाज़
अन्दर से नशे की धुन्ध को चीर कर

24.
हवा में एक नयी लहर आयी है
वह धुन जो स्टीवी वण्डर ने गायी है
ढोल की थाप पर
गीत के आलाप पर
थिरकता है इस काले गायक का तनावर जिस्म
थिरकता है एक समूचे महाद्वीप का अँधेरा
रोशनी में फूट पड़ने के लिए


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सन्दर्भ
1. शनिवार-इतवार की दो छुट्टियों के साथ जब शुक्रवार या सोमवार का अवकाश जुड़ जाता है तब उसे लम्बा वीक-एण्ड कहते हैं।
2. पब - शराबख़ाना।
3. रेग्गे - वेस्ट इंडीज से आये लोगों का संगीत।
4. केन लिविंग्स्टन - लेबर पार्टी का वामपन्थी नेता।
5. ग्रेटर लण्डन काउन्सिल - लन्दन महानगर पालिका
6. पे-पैकेट - हफ़्तावार वेतन जो शुक्रवार की शाम को बँटता है।
7. कम्मी - खेत-मजूर
8. किंग्स क्रौस - लन्दन शहर का एक मुहल्ला जो अब वेश्याओं के लिए कुख्यात है।
9. साउथॉल - लन्दन में भारतीय मूल के लोगों की बस्ती जो छोटा हिन्दुस्तान के नाम से मशहूर है।
10. ग़ालिब से साभार।
11. ट्यूब - ज़मीन के भीतर चलने वाली रेलगाड़ी
12. पैडी - आयरलैण्ड से आये मज़दूरों को अंग्रेज उपेक्षा से पैडी कहते हैं। अब यह शब्दी किसी भी आयरिश के लिए इस्तेमाल होता है।

4 comments:

  1. ज़ाया होते हुए एक अनजाने देश में
    जिसके तरीक़े अलग हैं
    जिसके लोग अलग हैं
    wow ......

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  2. हमारा रिश्ता वह सड़क है
    जिसका नक्शे में कोई निशान नहीं
    हमारा प्यार वह मैदान है
    जहाँ से कोई रास्ता नहीं फूटता.even this one too......

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  3. अपने मकान का छत्तीसवाँ दरवाज़ा खोल कर
    मैं उतर आया हूँ शरीर के उत्सव में
    नफ़रत और प्यार के फूलों से सजा हुआ
    विश्वासघात - आती है आवाज़
    अन्दर से नशे की धुन्ध को चीर कर



    Shaandar !

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  4. घूरता है
    कोरा पन्ना
    कोरे दिमाग़ को
    ajeeb ehsaas hi sir swad mahsoos hota hai bayan nahin kiya ja sakta lekin aap ne bahut najdeek tak bayan kar diya hai

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