Wednesday, February 11, 2015

जैज़ संगीत पर एक लम्बा आलेख


चट्टानी जीवन का संगीत 

आठवीं कड़ी

9. 

जैज़ का एक पहलू उसके वाद्यों से जुड़ा हुआ है. एकदम शुरुआत में जब अफ़्रीका से ला कर ग़ुलाम बनाये गये लोगों को ढोल-नगाड़े बजाने की भी इजाज़त नहीं थी, उनके पास ले-दे कर अपनी आवाज़ें, अपने शरीर और लय-ताल-सुर का अपना परम्परागत ज्ञान ही था. फिर धीरे-धीरे एक ओर तो पाबन्दियां ढीली पड़ीं, दूसरी तरफ़ ये ग़ुलाम पश्चिमी वाद्यों और पश्चिमी संगीत के सम्पर्क में आये और उन्होंने इन वाद्यों को बजाने की सलाहियत हासिल की. पियानो, फ़िडल यानी वायोलिन और माउथ और्गन और किसी हद तक बैन्जो उस संगीत के बुनियादी वाद्य थे जिस से जैज़ विकसित हुआ. पाबन्दियां उठने पर फ़ौजी ड्रम और अलग-अलग क़िस्म के नगाड़े इस्तेमाल होने लगे. उन्नीसवीं सदी की दहलीज़ पार करते-न करते क्लैरिनेट, ट्रम्पेट, बेस, गिटार, बांसुरी   जैसे वाद्य शामिल हुए. यहां तक आते-आते अफ़्रीकी-अमरीकी संगीत में कई वाद्य जुड़ गये थे -- पियानो तो था ही, साथ ही फ़िडल यानी वायोलिन और अलग-अलग आकार के ढोल-नगाड़े भी थे. धीरे-धीरे माउथ और्गन, क्लैरिनेट, ट्रम्पेट, गिटार, बेस, बांसुरी जैसे वाद्यों ने अपनी जगह बनायी और फिर सबसे आख़िर में ट्रौम्बोन और जैज़ के सबसे जाने-माने वाद्य -- सैक्सोफ़ोन का प्रवेश हुआ और इन के आने के बाद कहा जाये कि एक तरह से पूरा बैण्ड तैयार हो गया. बाद में इन्हीं के और साथी-संगी आ-आ कर जमावड़े को समृद्ध करते रहे. 
इतना सब लिखने के बाद जैज़-संगीत के एक प्रमुख और बुनियादी वाद्य की चर्चा न करना ¤ज्यादती ही कहा जायेगा। और वह वाद्य है-ड्रम्स. भारतीय संगीत में जिस तरह ढोलक, तबला, मृदंग, पखावज और खड़ताल तथा मंजीरा इस्तेमाल किये जाते हैं, उससे जैज़ संगीत में इस्तेमाल होने वाले ड्रम्स की तुलना नहीं की जा सकती। जैज़ का ड्रम-वादक हाथ से भी काम लेता है और ड्रम-स्टिक्स से भी। ड्रम्स का आकार-प्रकार भी अलग होता है। बैण्ड में बजाये जाने वाले बड़े ढोल-नुमा ड्रम से ले कर छोटे-छोटे बौंगो ड्रम्स तक। इसके साथ ही ड्रम्स से जुड़ी धातु की एक थाली भी होती है, जिस पर आघात करके एक छनछनाहट-सी पैदा की जाती है।
जैसा कि मैंने कहा, ड्रम्स जैज़-संगीत का बुनियादी साज़ है, क्योंकि इसके बिना वे ताल नहीं पैदा की जा सकती, जो लय के साथ जैज़-संगीत की अपनी ख़ासियत है। लेकिन अमूमन जैज़ की चर्चा में ज़्यादा ज़ोर कॉर्नेट, ट्रम्पेट, पियानो और सैक्सोफ़ोन की बारीकियों पर दिया जाता है-शायद इसलिए कि ड्रम्स को एक अनिवार्य अंग मान कर पृष्ठभूमि में ही रखा जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि पियानो हो अथवा ट्रम्पेट या सैक्सोफ़ोन-किसी भी धुन को पेश करने में प्रमुख भूमिका इन्हीं की होती है और केवल ड्रम्स के बल पर जैज़ प्रस्तुत करना सम्भव नहीं। इसके बावजूद सैक्सोफ़ोन, पियानो आदि दूसरे वाद्यों के एकल वादन के लिए जो फलक तैयार किया जाता है, वह ड्रम्स के बिना सम्भव नहीं।
चूँकि जैज़ का विकास ही शब्द से हुआ है, यानी ब्लूज़ की गायकी से, इसलिए गायक की और बाद में वादक की भी संगत के लिए ड्रम एक ज़रूरी साज़ था। प्रारम्भिक युग में पियानो बहुत महँगे थे और इसीलिए दुर्लभ भी। ट्रम्पेट, कॉर्नेट आदि के लिए बड़े बैण्ड का होना ज़रूरी था। लिहाज़ा शुरूआत में गायक के साथ बैंजो, गिटार या माउथ ऑर्गन और सीधे-सादे ड्रम का होना ही काफ़ी था और बहुत-सा संगीत बस इतने भर ही से पेश किया जाता रहा। ज़ाहिर है कि लय की तरह इस संगीत की ताल में भी अफ्रीकी प्रभाव की मात्रा भरपूर थी। एक ओर अगर लय लोगों को थिरकने पर मजबूर कर देती तो दूसरी ओर उसकी ’बीट’ लोगों को अनायास ही ताल देने पर विवश कर देती। चूँकि अफ्रीकी संगीत में ढ¨ल-ताशों की एक प्रमुख भूमिका है, इसलिए स्वाभाविक रूप से जैज़ में भी अफ्रीकी ताल सहज रूप से चली आयी है।
कहने की बात नहीं है कि जैज़ का इतिहास उसकी लय-ताल का इतिहास है। शुरू के दिनों में जैज़ की मण्डलियों में पियानो, गिटार या बैंजो बड़ी ट्रम्पेट और तार वाली बड़ी वायलिन के अलावा पैरों से भी निरन्तर लय के साथ ताल देता चलता है। ताल यानी ’बीट’ धुन का एक ज़रूरी हिस्सा है और ’सुर’ में रहना भी उतना ही ज़रूरी था, जितना ’ताल में’ रहना। बहुत-से वादकों के लिए अपने बल पर ताल में रहना कठिन साबित होता था और कुछ ऐसे भी थे, जिनके लिए जैज़ की लय, उसकी गति, उसका स्विंग मुश्किलें पैदा करता था। यही वजह है कि बहुत-से दल लय-ताल के इस संयुक्त मोर्चे पर लड़खड़ा जाते थे। चूँकि शुरू-शुरू में ताल की बिनावट बहुत सीधी-साधी थी, इसलिए वक्त के साथ सिर्फ़ ताल देना ही काफ़ी न रहा और उसका रूप बदलने लगा। इसलिए भी कि लय के मोर्चे पर काम करने वाले वादकों ने उसकी जगह भरने के लिए संगीत के दूसरे टुकड़े ईजाद कर लिये। लेकिन अपने नये स्वरूप में ड्रम्स का महत्व और भी बढ़ गया। मिसाल के तौर पर काउण्ट बेसी के दल में जो जोन्स ड्रम-वादक थे और न सिर्फ़ वे बहुत हल्के हाथों से, बल्कि एक बिलकुल अलग तरीके से ड्रम बजाते थे। बारीकियों में न जाकर इतना कहा जा सकता है कि जोन्स ने एक ऐसा तरीका खोज निकाला था, जिससे वे ताल को महज़ लय का सहारा देने के लिए नहीं इस्तेमाल करते थे, बल्कि लय के साथ बहते चले जाते थे और जब लय की अदायगी में सामने की पंक्ति के वाद्य बारी-बारी से धुन बजाते तो वे अपने ड्रम-वादन से हस्तान्तरण की इस प्रक्रिया में योग देते। मानो उसके ड्रम की ताल धुन को एक वादक से दूसरे वादक तक पहुँचाने में वादन का काम कर रही हो। 

http://youtu.be/LjJZJJ5QBhc?list=RDW8L7JZP97X0 (जो जोन्स ड्रम एकल वादन - ड्यूक एलिंग्टन की संगत में)

एलविन जोन्स जैज़-संगीत के उन ड्रम-वादकों में से हैं, जिनमें प्रतिभा और मौलिकता एक साथ दिखायी पड़ती है। विभिन्न वाद्यों के बीच उनके ड्रम के टुकड़े महज़ संगत के लिए नहीं होते, बल्कि एक ऐसी जुगलबन्दी का काम करते हैं, जो पूरे संगीत के साथ सीधी हिस्सेदारी करती है। ऐसे ही एक और मशहूर ड्रम-वादक हैं मैक्स रोच, जो सनी रॉलिन्स के साथ थिलोनियस मंक के विचारों को संगीत में उतारने की कोशिश करते रहे। यहाँ तक कि कई बार वे सिर्फ़ पार्श्व में ही न रह कर धुन की थीम तक को अपने ड्रम के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश करते।

http://youtu.be/Q0yANhawGaU (मैक्स रोच -- डिज़ी गिलेस्पी की संगत में)

 इसी तरह आर्ट ब्लेकी ने भी जैज़ में अपनी ओर से कुछ जोड़ते हुए मैक्स रोच की ही परम्परा को आगे बढ़ाया। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि ब्लेकी अपने ड्रमवादन से दूसरे वादकों को कोंच-कोंच कर प्रेरित करने की कोशिश कर रहे हों। शायद यही वजह है कि उनके वादन में भी वही विशेषता दिखायी देती है, जो एल्विन जोन्स में। यानी वे सिर्फ़ संगत नहीं करते बल्कि जुगलबन्दी पर उतर आते हैं। 

http://youtu.be/2IQNPlnc9c0  (आर्ट ब्लेकी -- ए नाइट इन ट्यूनिशिया -- ड्रम संगत में)

इस तरह, पहले विश्वयुद्ध के दिनों में ड्रम बजाने वाले ’टिन कैन’ ऐलन से ले कर बेबी डॉड्स, केनी क्लार्क, कोनी के, और शैली मैन तक-निजी प्रतिभा वाले ड्रम-वादकों की एक लम्बी सूची है और अगर जैज़-संगीत की धारा को आगे बढ़ाने में पियानो तथा सैक्सोफ़ोन ने प्रमुख भूमिका निभायी है तो ड्रम-वादकों ने भी कम योगदान नहीं किया।
इस बात का ज़िक्र इसलिए किया गया है कि ख़ुद वाद्यों को बनाने की तकनीक में भी विकास होता रहा है और संगीत को रिकौर्ड करने की तकनीक में भी. यही कारण है कि रैगटाइम के उरूज पर पहुंचने के बाद जब पियानो की तकनीक बदली तो उसने ग्रामोफ़ोन के तवों यानी पुरानी तर्ज़ के रिकौर्डों के साथ मिल कर जैज़ की राहों को खोलने का काम किया. अब "लिखे" हुए रैगटाइम संगीत की तुलना में ज़्यादा खुला, जटिल, आशु-कलाकारी पर आधारित संगीत सम्भव हो गया जिसमें तयशुदा, "लिखे हुए" सुर-ताल की बजाय प्रयोगशीलता की अधिक गुंजाइश थी और जैज़ के अलमबरदारों ने इस का फ़ायदा उठाने में कोई कोताही नहीं की.
यह उस ज़माने की बात है जब जैज़ संगीत का अभी यह नामकरण नहीं हुआ था और अमरीका के दक्षिणी राज्यों में तरह-तरह के बैण्ड ब्लूज़ और रैगटाइम ही बजाते थे, भले ही उनमें शामिल कुछ संगीतकार जैज़ की दिशा में क़दम बढ़ा चुके थे। कुछ बैण्ड तो अपने-अपने शहरों तक ही सीमित थे, मगर बहुत-से बैण्ड या फिर उनके गायक और वादक दूर-नज़दीक का दौरा भी किया करते थे। ऐसे दौरों में स्थानीय बैण्डों के मुकाबले और ‘दंगल’ हो जाना आम बात थी। फिर चूँकि उन दिनों अमरीकी नीग्रो संगीत की कोई सुनिश्चित परम्परा नहीं बनी थी -- जैसा कि बाद में हुआ -- इसलिए बहुत-से बैण्ड किसिम-किसिम के करतबों का भी सहारा लेते थे। एक बैण्ड में ट्रम्पेट बजाने वाला एक साथ दो ट्रम्पेटों पर रैगटाइम की मशहूर धुन ‘टाइगर रैग’ बजा सकता था तो दूसरे में कुछ ऐसे वादक थे, जो बीच-बीच में कलाबाज़ियाँ लगाते थे। ज़्यादातर बैण्डों में इस तरह की निराली अनोखी चीज़ें हुआ करती थीं, ताकि लोगों को आकर्षित किया जा सके। यह बात अलग है कि जिन बैण्डों में अच्छे संगीतकार होते, उन्हें इस तरह की हिकमतों का आसरा लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। 

लेकिन ब्लूज़ हो या रैगटाइम या फिर नीग्रो भजनीकों के बिलकुल अलग किस्म के गीत, जिन्हें ‘स्पिरिचुअल्स’ कहा जाने लगा -- जैज़ संगीत और जैज़ से पहले के इस तमाम नीग्रो संगीत के बीच एक काफ़ी चौड़ी खाई थी। इस खाई को लाँघने वालों में शायद सबसे महत्वपूर्ण नाम न्यू ऑर्लीन्स के नीग्रो संगीतकार और पियानोवादक जेली रोल मॉर्टन (1885-1941) का है।
जैली रोल मॉर्टन का एक किस्सा प्रसिद्ध ब्लूज़ गायक जिमी रशिंग अक्सर सुनाया करते थे। उन दिनों जिमी रशिंग जेली रोल के साथ कैलिफ़ोर्निया का दौरा कर रहे थे। जेली रोल का नाम वहाँ बहुत जाना-माना नहीं था, लेकिन इससे उनके नाज़-नख़रों पर कोई असर नहीं पड़ा था और वे इस बात पर ज़ोर देते थे कि जब वे आयें तो सबको उठ कर उनके सम्मान में खड़े हो जाना चाहिए। चूँकि जेली रोल केवल बात के धनी नहीं थे, बल्कि जो कहते थे, वह अपने संगीत में कर दिखाने की कूवत भी रखते थे, इसलिए लोग उनकी अदाएँ चुपचाप सह जाते।
एक बार उनका बैण्ड इतालवी आप्रवासियों की किसी शादी में बुलाया गया। जेली रोल उस दिन ड्रम्स पर थे और जिमी रशिंग ने पियानो सँभाल रखा था। बैण्ड में जो गायिका थी, उसे लगा कि साज़िन्दे उसके गीत के साथ ठीक सुर में संगत नहीं कर रहे हैं और जब उसे पता चला कि गड़बड़ जिमी रशिंग के साथ है तो उसने पहले तो जिमी रशिंग की ख़बर ली फिर जा कर बैण्ड के मैनेजर से कहा कि इन साज़िन्दों को चलता करके दूसरे साज़िन्दे बुलाये जायें। तब जेली रोल ने सँभाला, ड्रम जिमी रशिंग के हवाले किये और संगत शुरू की। इसके बाद सारी रात जेली रोल पियानो बजाते रहे, भीड़ उन्हीं के इर्द-गिर्द जुटी रही और जिमी रशिंग को पियानो के पास फटकने तक का मौका नहीं मिला।
जेली रोल मॉर्टन बड़े ही रंगीन-मिज़ाज, छैल-छबीले किस्म के आदमी थे। शुरू की ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा उन्होंने न्यू ऑर्लीन्स के वेश्यालयों में पियानो-वादक की हैसियत से गुज़ारा था। स्वभाव से बड़बोले और डींग हाँकने वाले शख़्स थे। शायद इसीलिए जब सन तीस के दशक में उन्होंने बड़े तमतराक से यह दावा किया कि उन्हीं ने जैज़-संगीत ईजाद किया था तो बहुत-से लोग नाख़ुश और नाराज़ हो गये थे। ज़ाहिर है जैज़-संगीत की ईजाद के पीछे किसी एक व्यक्ति का हाथ नहीं है, लेकिन आज जब लोग पीछे झाँक कर जैज़-संगीत पर नज़र डालते हैं तो जेली रोल मॉर्टन के दावे में काफ़ी-कुछ सच्चाई जान पड़ती है। कम-से-कम इतना तो तय है कि वे रैगटाइम और जैज़ के बीच की शायद सबसे महत्वपूर्ण कड़ी थे और शुरू उन्होंने भले ही रैगटाइम से किया हो, लेकिन उसकी लय-ताल को एक अलग अन्दाज़ से पेश करके उन्होंने उसे काफ़ी हद तक जैज़ के निकट पहुँचा दिया था।
इसकी सबसे उम्दा मिसाल है जैली रोल मॉर्टन द्वारा अपने पूर्ववर्ती स्कॉट जॉपलिन के ‘मेपल लीफ़ रैग’ की प्रस्तुति। वैसे तो जेली रोल मॉर्टन ने इस धुन को अपने जीवन में बीसियों बार बजाया होगा, मगर मृत्यु से तीन वर्ष पहले की गयी उनकी रिकॉर्डिंग को जब हम सुनते हैं और स्कॉट जॉपलिन की मूल धुन से मिलान करते हैं, तब हमें पता चलता है कि स्वरलिपि में परिवर्तन न करने के उन तमाम विधि-निषेधों के बावजूद (जो स्कॉट जॉपलिन ने निर्धारित किये थे) जेली रोल मॉर्टन ने धुन की अदाकारी में कितनी छूट से काम लिया था। 

http://youtu.be/OqFL9t9og_I जेली रोल मौर्टन -- मेपल लीफ़ रैग

जहाँ तक छूट का सवाल है, वह तो जेली रोल मॉर्टन ने केवल रैगटाइम के साथ ही नहीं ली, बल्कि ब्लूज़ के साथ भी ली। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है स्वयं उनके अपने नाम से मशहूर ‘जेली रोल ब्लूज़’ जिसे उन्होंने ‘रेड हाट पेपर्स’ नामक अपने बैण्ड के साथ पेश किया।

http://youtu.be/Zt203us6TME (जेली रोल मौर्टन -- जेली रोल ब्लूज़)

http://youtu.be/m0JBNj2urb8 (dead man blues)


जेली रोल मॉर्टन ने रैगटाइम और जैज़ के बीच की खाई को पाटने की महत्वपूर्ण भूमिका तो अदा की ही, साथ ही उन्होंने लूज़ियाना राज्य के बिखरे नीग्रो संगीत को, जो रैगटाइम और ब्लूज़ से होते हुए जैज़ तक पहुँचने की अलग-अलग मंज़िलों को तय कर रहा था, उसका पहला महत्वपूर्ण केन्द्र मुहैया कराया -- न्यू ऑर्लीन्स।

(जारी : अगली बार न्यू और्लीन्स)

1 comment:

  1. जैज संगीत के बारे में बात करना माने अपनी ही मिट्टी के बारे में बतियाना है. उस खुश्बू को महसूस करना जो इस खुबसूरत दुनिया में बिखरी हुई है. यह संगीत उन तकलीफों को छूता है, जो हमारे भीतर है. दुखों से बातें करता है जिसे हम रोज़ ब रोज़ वाबस्ता होते हैं. हमें सोंधेपन के नामक और लहू से मिलाता है जिसमें हम जीते जीते भूल गये कि हवा पानी मिट्टी सबने मिलकर हमें गढ़ा है.,

    नीलाभ जी का जैज संगीत के बारे में लिखते हुए जीवन के संगीत को, जीवन की सबसे कठिन धुनों को, मजदूर की मेहनत और सबसे ज्यादा कीमती साँसों की तान को छूते चले जाना किसी रोमांच और त्रासदी के बीच गहराई में उतरने से कम कतई नहीं है.

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